| फेसबुक ने दबे कुचले वर्ग के सक्षम वर्ग के संवेदनशील और जागरूक हिस्से को एक प्लेटफार्म दिया है जहाँ अपनी बात रखने और संवाद करने की स्थिति है। यह इस वर्ग का वह हिस्सा भी है जो तमाम कारणों से सड़क या ज़मीनी दलित आन्दोलनो से और समाज से अलग थलग भी है। सभी के साथ ऐसा नहीं है किन्तु अधिकतर स्थिति यही है जिसके उचित कारण भी हो सकते है। कुछ लोगों को मुझसे असहमत रहने का पूरा अधिकार है। लेकिन अब समय आ गया है कि ऐसे साथी इससे कुछ आगे जाये और अपनेआपको ज़मीनी आन्दोलन से जोड़े। कम से कम हमें यह ज़रुर सोचना होगा कि हमारी ऊर्जा किसी भी तरह से ज़मीनी सघर्षो को मजबूत करें। समग्र परिवर्तन के आन्दोलन की आवशयकता यही है कि सक्षम वर्ग अपने वर्ग के हितो की लड़ाई में व्यापक वैचारिक सोच के साथ आन्दोलनो को मजबूत करें। किसी न किसी स्तर पर सभी एक महवपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। जब मोदी सोशल नेटवर्किंग के माध्यम से देश के प्रधानमंत्री बनने का प्रबल दावेदार हो सकता है तो सामाजिक परिवर्तन और बदलाव के लिये हम सब इसका इस्तेमाल क्यों नहीं कर सकते। कम से कम एक बार देश के किसी भी कोने में जमा होकर सोशल नेटवर्किंग पर अपनी एक सामूहिक रणनीति तो बना ही सकते हैं। मुद्दों, अवधारनाओम विचारो और दिशा पर एक सामूहिक रणनीति सकारात्मक नतीज़े दे सकती है। नहीं तो दो -तीन दिन के जामवाड़े में हम सब कुछ वास्तविक फ्रेंड तो पा ही जायंगे। अपने विचार दें तो कम से कम कोशिश तो की ही जा सकती है। सफल न भी हो तो कम से कम मलाल तो नहीं रहेगा !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! |
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