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Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Wednesday, February 12, 2014

व्‍यक्तित्‍व: आम्‍ही सगले दाभोलकर! Author: सुभाष गाताडे

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व्‍यक्तित्‍व: आम्‍ही सगले दाभोलकर!

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अंधश्रद्धा के खिलाफ संघर्षरत एक संग्रामी की शहादत

'जिंदगी जीने के दो ही तरीके हैं। पहला यही कि कोई भी चमत्कार नहीं। दूसरा, मानो सब कुछ चमत्कार ही हो।'

- अलबर्ट आइनस्टाइन

 

narendra-dabholkarशब्दों की यह खासियत समझी जाती है कि वे पूरी चिकित्सकीय निर्लिप्तता के साथ ग्राही/ग्रहणकर्ता के पास पहुंचते हैं। यह ग्राही पर निर्भर करता है कि वह उनके मायने ढूंढऩे की कोशिश करे। बीस अगस्त की अलसुबह पुणे की सड़क पर अंधश्रद्धा विरोधी आंदोलन के अग्रणी कार्यकर्ता डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हुई सुनियोजित हत्या की खबर से उपजे दुख एवं सदमे से उबरना उन तमाम लोगों के लिए अभी भी मुश्किल जान पड़ रहा है, जो अपने-अपने स्तर पर प्रगति एवं न्याय के संघर्ष में मुब्तिला हैं।

पुणे के निवासियों के एक बड़े हिस्से के लिए मुला मुठा नदी के किनारे बना ओंकारेश्वर मंदिर वह जगह हुआ करती रही है, जहां लोग अपने अंतिम संस्कार के लिए ले लाए जाते रहे हैं। इसे विचित्र संयोग कहा जाएगा कि उसी मंदिर के ऊपर बने पुल से गुजरते हुए नरेंद्र दाभोलकर ने अपनी झंझावती जिंदगी की आखिरी सांसें लीं। एक जुंबिश ठहर गई, एक जुस्तजू अधबीच थम गई। मोटरसाइकिल पर सवार हत्यारे नौजवानों द्वारा दागी गई चार गोलियों में से दो उनके सिर के पिछले हिस्से में लगी थीं।

अपनी मृत्यु के एक दिन पहले शाम के वक्त मराठी भाषा के 'सहयाद्री' टीवी चैनल पर उपस्थित होकर वह जाति पंचायतों की भूमिका पर अपनी राय प्रकट कर रहे थे। उस वक्त किसे यह गुमान हो सकता था कि उन्हें 'सजीव' अर्थात लाइव सुनने का यह आखिरी अवसर होने वाला है। यह पैनल चर्चा नासिक जिले की एक विचलित करने वाली घटना की पृष्ठभूमि में आयोजित की गई थी, जहां किसी कुम्हारकर नामक व्यक्ति द्वारा जाति पंचायत के आदेश पर अपनी बेटी का गला घोंटने की घटना सामने आयी थी। वजह थी उसका अपनी जाति से बाहर जाकर किसी युवक से प्रेमविवाह। चर्चा में हिस्सेदारी करते हुए दाभोलकर बता रहे थे कि किस तरह उन्होंने हाल के दिनों में अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा देने के लिए सम्मेलन का आयोजन किया था और इसी मसले पर घोषणापत्र भी तैयार किया था।

एक बहुआयामी व्यक्ति -प्रशिक्षण से डॉक्टरी चिकित्सक, अपनी रुचि के हिसाब से देखें तो लेखक-संपादक एवं वक्ता और एक आवश्यकता की वजह से एक आंदोलनकारी, यह कहना अनुचित नहीं होगा कि पूरे मुल्क के तर्कशील आंदोलन के लिए वह एक अद्भुत मिसाल थे और अपने संगठन एवं उसकी 200 से अधिक शाखाओं के जरिए महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं गोवा में जनजागृति के काम में लगे थे। बहुत कम लोग जानते थे कि अपने स्कूल-कॉलेज के दिनों में वह जाने माने कबड्डी के खिलाड़ी थे, जिन्होंने भारतीय टीम के लिए मेडल भी जीते थे। हालांकि उन्होंने अपने सामाजिक जीवन की शुरुआत डॉक्टरी प्रैक्टिस से की थी, मगर जल्द ही वह डॉ. बाबा आढाव द्वारा संचालित 'एक गांव, एक जलाशय' (पाणवठा) नामक मुहिम से जुड़ गए थे। विगत दो दशक से अधिक समय से वह अंधश्रद्धा के खिलाफ मुहिम चला रहे थे।

दाभोलकर की प्रचंड लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके मौत की खबर सुनते ही महाराष्ट्र के तमाम हिस्सों में स्वत:स्फूर्त प्रदर्शन हुए और उनके गृहनगर सातारा में तो जुलूस में शामिल हजारों की तादाद ने जिंदगी के सत्तरवें बसन्त की तरफ बढ़ रहे अपने नगर के इस प्रिय एवं सम्मानित व्यक्ति को अपनी आदरांजलि दे दी। 21 अगस्त को पुणे शहर में सभी पार्टियों के संयुक्त आह्वान पर बन्द का आयोजन किया गया। राजनेताओं से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं तक सभी ने दाभोलकर को श्रद्धांजलि अर्पित की है।

उन्हें किस हद तक विरोध का सामना करना पड़ता था, इस बात का अंदाजा इस तरह लगाया जा सकता है कि विगत अठारह साल से महाराष्ट्र विधानसभा के सामने एक बिल लंबित पड़ा हुआ था जिसका फोकस जादू-टोना करने वाले या काला जादू करने वाली ताकतों पर रोक लगाना है। रूढ़ीवादी हिस्से के विरोध को देखते हुए इस बिल में आस्था क्या है या अंधआस्था किसे कहेंगे? इसको परिभाषित करने से बचा गया था और राज्य में व्यापक पैमाने पर व्यवहार में रहने वाली अंधश्रद्धाओं को निशाने पर रखा गया था। ऐसी गतिविधियां संज्ञेय एवं गैरजमानती अपराध के तौर पर दर्ज हों, ऐसे अपराधों की जांच के लिए या उन पर निगरानी रखने के लिए जांच अधिकारी नियुक्त करने की बात भी इसमें की गई थी।

'महाराष्ट्र प्रीवेंशन एंड इरेडिकेशन ऑफ ह्यूमन सैक्रिफाइस एंड अदर इनह्यूमन इविल प्रैक्टिसेस एंड ब्लैक मैजिक' (महाराष्ट्र मानव बलि तथा अन्य अमानवीय अनिष्टकर प्रथाओं एवं काला जादू निवारण एवं उन्मूलन) शीर्षक के इस बिल का हिंदू अतिवादी संगठनों ने लगातार विरोध किया है। पिछले दो साल से वारकरी समुदाय के लोगों ने भी विरोध के सुर में सुर मिलाया है। इन्हीं का हवाला देते हुए इस अंतराल में राज्य में सत्तासीन सरकारें इस बिल को पारित करने से बचती रही हैं। आप इसे दाभोलकर की हत्या से उपजे जनाक्रोश का नतीजा कह सकते हैं या सरकार द्वारा अपनी झेंप मिटाने के लिए की गई कार्रवाई कह सकते हैं कि कि इस दुखद घटना के महज एक दिन बाद महाराष्ट्र सरकार के मंत्रिमंडल में इस बिल को लेकर एक अध्यादेश लाने का निर्णय लिया गया और उस पर 24 अगस्त को राज्यपाल ने हस्ताक्षर भी कर दिए थे।

नि:संदेह उनकी हत्या के पीछे एक सुनियोजित साजिश की बू आती है। आखिर किसने ऐसे शख्स की हत्या की होगी, जिसने महाराष्ट्र की समाज सुधारकों – ज्योतिबा फुले, महादेव गोविंद रानाडे या गोपाल हरि आगरकर – की विस्मृत हो चली परंपरा को नवजीवन देने की कोशिश की थी?

कई सारी संभावनाएं हैं। यह सही है कि उनके कोई निजी दुश्मन नहीं थे, मगर अंधश्रद्धा के खिलाफ उनके अनवरत संघर्ष ने ऐसे तमाम लोगों को उनके खिलाफ खड़ा किया था, जिनको उन्होंने बेपर्दा किया था। तयशुदा बात है कि ऐसे लोग कारस्तानियों में लगे होंगे। राजनीति में सक्रिय यथास्थितिवादी शक्तियों के लिए भी उनके काम से परेशानी थी। पुलिस ने कहा कि वह इन आरोपों की भी पड़ताल करेगी कि इसके पीछे सनातन संस्था और हिन्दू जनजागृति समिति जैसी अतिवादी संस्थाओं का हाथ तो नहीं है, जिसके सदस्य महाराष्ट्र एवं गोवा में आतंकी घटनाओं में शामिल पाए गए हैं। इस बात को रेखांकित करना ही होगा कि कई भाषाओं में प्रकाशित अपने अखबार सनातन प्रभात के जरिए इन संस्थाओं ने दाभोलकर के खिलाफ जबर्दस्त मुहिम चला रखी थी। इतना ही नहीं उन्होंने दाभोलकर के ऐसे फोटो भी प्रकाशित किए थे, जिस पर लाल रंग का काटा लगाया गया था। यह उनकी सांकेतिक समाप्ति की तरफ इशारा था।

दाभोलकर को दी अपनी श्रद्धांजलि में लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक आनंद तेलतुम्बडे लिखते हैं :

'…दाभोलकर की हत्या के बाद भी सनातन संस्था ने उनके प्रति अपनी घृणा के भाव को छिपाया नहीं बल्कि अगले ही दिन जबकि पूरा राज्य दुख एवं सदमे में था, उन्होंने अपने मुखपत्र में लिखा कि यह ईश्वर की कृपा थी कि दाभोलकर की मृत्यु ऐसे हुई। गीता को उद्धृत करते हुए लिखा गया कि जो जनमा है, उसकी मृत्यु निश्चित है, जन्म एवं मृत्यु हरेक की नियति के हिसाब से होती है। हरेक को अपने कर्म का फल मिलता है। बिस्तर पर पड़े-पड़े बीमारी से मरने के बजाय डॉ. दाभोलकर की जो मृत्यु हुई, वह ईश्वर की ही कृपा थी। …इतना ही नहीं इस हत्या से अपने संबंध से इनकार करने के लिए बुलाई गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्हें यह कहने में भी संकोच नहीं हुआ कि वह दाभोलकर की लाल रंग से काटी गई तस्वीर की तरह कई अन्यों की तस्वीरें भी प्रकाशित करेंगे। कहने का तात्पर्य कि जो दाभोलकर की राह चलेगा उन्हें वे नष्ट करेंगे।'

(द्धह्लह्लश्च://222.ष्शह्वठ्ठह्लद्गह्म्ष्ह्वह्म्ह्म्द्गठ्ठह्लह्य.शह्म्द्द/ह्लद्गद्यह्लह्वद्वड्ढस्रद्ग२३०८१३.द्धह्लद्व)

ऐसा नहीं था कि दाभोलकर को इस बात का अंदाजा नहीं था कि ऐसी ताकतें किस हद तक जा सकती हैं। उनके परिवार के सदस्यों के मुताबिक उन्हें अक्सर धमकियां मिलती थीं, लेकिन उन्होंने पुलिस सुरक्षा लेने से हमेशा इनकार किया। उनके बेटे हामिद ने कहा कि 'वे कहते थे कि उनका संघर्ष अज्ञान की समाप्ति के लिए है और उससे लडऩे के लिए उन्हें हथियारों की जरूरत नहीं है।' उनके भाई ने रुंधे गले से बताया कि जब हम लोग उनसे पुलिस सुरक्षा लेने का आग्रह करते थे, तो वह कहते थे कि 'अगर मैंने सुरक्षा ली तो वे लोग मेरे साथियों पर हमला करेंगे और यह मैं कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता। जो होना है मेरे साथ हो।'

विभिन्न बाबाओं एवं साध्वियों के खिलाफ उन्होंने 'महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति' के बैनर तले आंदोलन चलाया था। एक किशोरी के साथ कथित बलात्कार के आरोपों के चलते इन दिनों सुर्खियां बटोर रहे आसाराम बापू ने पिछले दिनों होली के मौके पर नागपुर में अपने शिष्यों के साथ होली के कार्यक्रम का आयोजन किया था। काफी समय से सूखा झेल रहे महाराष्ट्र में इस कार्यक्रम के लिए लाखों लीटर पीने के पानी के टैंकरों का इंतजाम किया गया था। समिति के बैनर तले दाभोलकर ने इस कार्यक्रम को चुनौती दी और अंतत: यह कार्यक्रम नहीं हो सका। चर्चित निर्मल बाबा के खिलाफ भी उन्होंने पिछले दिनों अपना मोर्चा खोला था। यू टयूब पर आप चाहें तो दाभोलकर के भाषण को सुन सकते हैं 'निर्मल बाबा: शोध आणि बोध'। यह वही निर्मल बाबा हैं जिनका कार्यक्रम एक साथ 40 विभिन्न चैनलों पर चलता है, जहां लोगों को उनकी समस्याओं के समाधान के नाम पर ईश्वरीय कृपा की सौगात दी जाती है। उनकी समागम बैठकों में 2000 रुपए के टिकट भी लगते हैं।

वर्ष 2008 में दाभोलकर एवं अभिनेता तथां समाजकर्मी श्रीराम लागू ने ज्योतिषियों के लिए एक प्रश्नमाला तैयार की और कहा कि अगर उन्होंने तर्कशीलता की परीक्षा पास की, तो उन्हें पुरस्कार मिल सकता है। अभी तक इस पर दावा ठोकने के लिए कोई आगे नहीं आया। वर्ष 2000 में अपने संगठन की पहल पर उन्होंने राज्य की सैकड़ों महिलाओं की रैली अहमदनगर जिले के शनि शिंगणापुर मंदिर तक निकाली, जिसमें महिलाओं का प्रवेश वर्जित था। न केवल रूढ़ीवादी तत्वों ने बल्कि शिवसेना एवं भाजपा के कार्यकर्ताओं ने परंपरा एवं आस्था की दुहाई देते हुए महिलाओं के प्रवेश को रोकना चाहा, उनकी गिरफ्तारियां भी हुईं और फिर मामला मुंबई की उच्च अदालत पहुंचा और सुनने में आया है कि मामला पूरा होने के करीब है।

अपने एक आलेख 'रैशनेलिटी मिशन फॉर सक्सेस इन लाइफ' (जिंदगी में सफलता के लिए तार्किक होने का मिशन) में जिसमें उनका मकसद 'आवश्यक बदलाव के लिए लोगों को प्रेरित करना है' उन्होंने लिखा था :

'परंपराओं, रस्मोरिवाजों और मन को विस्मित कर देनेवाली प्रक्रियाओं से बनी युगों पुरानी अंधश्रद्धाओं की पूर्ति के लिए पैसा, श्रम और व्यक्ति एवं समाज का समय भी लगता है। आधुनिक समाज ऐसे मूल्यवान संसाधनों को बरबाद नहीं कर सकता। दरअसल, अंधश्रद्धाएं इस बात को सुनिश्चित करती हैं कि गरीब एवं वंचित लोग अपने हालात में यथावत बने रहें और उन्हें अपने विपन्न करने वाले हालात से बाहर आने का मौका तक न मिले। आइए हम प्रतिज्ञा लें कि हम ऐसी किसी अंधश्रद्धा को स्थान नहीं देंगे और अपने बहुमूल्य संसाधनों को बरबाद नहीं करेंगे। उत्सवों पर करदाताओं का पैसा बरबाद करने वाली, कुंभ मेले से लेकर मंदिरों/मस्जिदों/गिरजाघरों के रखरखाव के लिए पैसा व्यय करने वाली सरकारों का हम विरोध करेंगे और यह मांग करेंगे कि पानी, ऊर्जा, संचार, यातायात, स्वास्थ्य सेवा, प्राथमिक शिक्षा और अन्य कल्याणकारी एवं विकास संबंधी गतिविधियों के लिए वह इस फंड का आवंटन करें।'

उनके जीवन की एक अन्य कम उल्लेखित उपलब्धि रही है विगत अठारह साल से साधना नामक साप्ताहिक का संपादन, जिसने अपनी स्थापना के 65 साल हाल ही में पूरे किए। जानकार बताते हैं कि जब उन्होंने संपादक का जिम्मा संभाला तो साने गुरुजी जैसे स्वतंत्रता सेनानी एवं समाज सुधारक द्वारा स्थापित यह पत्रिका काफी कठिन दौर से गुजर रही थी, मगर उनके संपादन ने इस परिदृश्य को बदल दिया और आज भी यह पत्रिका तमाम परिवर्तनकामी ताकतों के विचारों के लिए मंच प्रदान करती है।

ठीक ही कहा गया है कि दाभोलकर की असामयिक मौत देश के तर्कवादी आंदोलन के लिए गहरा झटका है। देश में दक्षिणपंथी ताकतों के उभार के चलते पहले से ही तमाम चुनौतियों का सामना कर रहे इस आंदोलन ने अपने एक सेनानी को खोया है। मगर अतिवादी ताकतों के हाथ उनकी मौत दरअसल उन सभी के लिए एक झटका कही जा सकती है, जो देश में एक प्रगतिशील बदलाव लाने की उम्मीद रखते हैं। अब यह देखना होगा कि उनकी मृत्यु से उपजे प्रचंड दुख एवं गुस्से को ऐसी तमाम ताकतें मिल कर किस तरह एक नयी संकल्पशक्ति में तब्दील कर पाती हैं ताकि अज्ञान, अतार्किकता एवं प्रतिक्रिया की जिन ताकतों के खिलाफलडऩे में दाभोलकर ने मृत्यु का वरण किया, वह मशाल आगे भी जलती रहे।

प्रतिक्रियावादी तत्व भले ही डॉ. दाभोलकर को मारने में सफल हुए हों, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस तरह से उनकी हत्या हुई है, उसने तमाम नए लोगों को भी दिमागी गुलामी के खिलाफ जारी इस व्यापक मुहिम से जोड़ा है। यह अकारण नहीं कि महाराष्ट्र के विभिन्न स्थानों पर हुई रैलियों में तमाम बैनरों, पोस्टरों में एक छोटे से पोस्टर ने तमाम लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था, जिस पर लिखा था 'आम्ही सगले दाभोलकर' (हम सब दाभोलकर)।

महाराष्‍ट्र मानव बलि तथा अन्‍य अमानवीय अनिष्‍टकर प्रथाएं व काला जादू निवारण व उन्‍मूलन कानून

स्व. नरेंद्र दाभोलकर ने अंधविश्वास और काला जादू विरोधी विधेयक 13 वर्ष पहले तैयार किया था। इसमें 29 संशोधन किए गए और इसके बावजूद इसे विधान सभा में भाजपा और शिव सेना ने पारित नहीं होने दिया। शिव सेना प्रमुख ने 24 अगस्त को फिर से कहा कि यह बिल सब धर्मों पर लागू होना चाहिए। यहां यह बतलाना भी जरूरी है कि पुणे में फिल्म इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में जब दाभोलकर को श्रृद्धांजलि दी जा रही थी एबीवीपी के गुंडों ने इंस्टिट्यूट के दो छात्रों पर माओवादी कहते हुए आक्रमण किया।

फिलहाल संशोधित बिल पर राज्यपाल में ने हस्ताक्षर कर दिए हैं और यह विधेयक लागू हो गया है। इसमें निम्न बातें अपराध होंगी:

- भूत भगाने के नाम पर किसी को मारना या पीटना, पर किसी तरह का मंत्र पढऩे पर पाबंदी नहीं होगी। 
- चमत्कार के नाम पर दूसरों को धोखा देना या पैसा लेना,
- किसी की जिंदगी को खतरे में डालकर अघोरी तरीके इस्तेमाल करना, 
- भानामती, करणी, जरण-मरण, गुप्तधन के नाम से अमानवीय काम करना या नरबलि देना, 
- दैवी शक्ति होने के दावे के नाम पर डर फैलाना, 
- पिछले जन्म में पत्नी, प्रेमिका या प्रेमी होने का दावा कर या बच्चा होने का आश्वासन देकर संबंध बनाना, 
- उंगली से आपरेशन का दावा करना, 
- गर्भवती महिलाओं से लिंग परिवर्तन का दावा करना, 
- भूत पिशाच का आह्वाहन करते हुए डर फैलाना, 
- कुत्ता, बिच्छू, सांप काटने पर दवा देने से मना करके मंत्र द्वारा ठीक करने का दावा करना, 
- मतिमंद व्यक्ति में अलौकिक शक्ति का दावा कर उस व्यक्ति का इस्तेमाल धंधे या व्यवसाय के लिए करना।

http://www.samayantar.com/tribute-we-all-are-dabholkar/

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