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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Monday, February 3, 2014

एक अनचाहा स‌ंवाद मुख्यमंत्रित्व और जनांदोलन पर,जस का तस Himachal, Uttarakhand students say they too face racial slurs " नेता जी सुभाष रैंदा गीतू का गोविन्द दिल्ली त्वे दिल्ली मैं सेवा लान्दौं , हे दिल्ली , जय हिन्द दिल्ली " आखिर उत्तराखंड के नये पुराने आंदोलनकारियों की दृष्टि में जनांदोलन क्या है,इसका जरुर खुलासा होना चाहिए।क्योंकि इससे उत्तराखंड का भूत भविष्य और वर्तमान निर्भर हैं।

एक अनचाहा स‌ंवाद मुख्यमंत्रित्व और जनांदोलन पर,जस का तस


Himachal, Uttarakhand students say they too face racial slurs


" नेता जी सुभाष रैंदा गीतू का गोविन्द दिल्ली

त्वे दिल्ली मैं सेवा लान्दौं , हे दिल्ली , जय हिन्द दिल्ली "


आखिर उत्तराखंड के नये पुराने आंदोलनकारियों की दृष्टि में जनांदोलन क्या है,इसका जरुर खुलासा होना चाहिए।क्योंकि इससे उत्तराखंड का भूत भविष्य और वर्तमान निर्भर हैं।



पलाश विश्वास

Rajiv Nayan Bahuguna

ऑन द वे टू डेल्ही

" नेता जी सुभाष रैंदा गीतू का गोविन्द दिल्ली

त्वे दिल्ली मैं सेवा लान्दौं , हे दिल्ली , जय हिन्द दिल्ली "

Unlike ·  · Share · 7 hours ago ·

Nityanand Gayen

छोटो बेलाय जखन राग कोरे खाबार खेताम ना , तखन दीदा टिटकारी कोरे बोलतेन ..

" मद्दो बड़ो तेजी , खालेर धारे हागदे गैलो , तेड़े ने गैलो बेंजी ......." यह बांग्ला की एक कहावत है ....हिंदी अनुवाद के लिए न कहें प्लीज

Unlike ·  · Share · 16 hours ago near Hyderabad ·

अनुवाद  एक कोशिश नित्यानंद से माफी मांगते हुए


मर्द बहुत बांका

फारिग होने गया

नदीकिनारे

नेवले ने हांका

​If you meet anybody from India ask him "What is Your Caste?" If he answers it, then you're doomed. Because he has already injected Cancer into your society. Caste is like Cancer. It cannot be Cured. It has to be Cut-off.

http://www.washingtonpost.com/blogs/worldviews/wp/2013/05/15/a-fascinating-map-of-the-worlds-most-and-least-racially-tolerant-countries/


शमशेरदाज्यू,वनों की नीलामी की किसी एक  प्रकरण में गिरफ्तार उस जमाने में बहुत लोग हुए हरीश रावत के अलावा।अपने डीएसबी के जसवंत सिंह नेगी भी शेखर के साथ गिरफ्तार हुए शैले हाल में नीलामी के खिलाफ। बहुत लोगों ने तब गिरफ्तारी नहीं दी थी। आजादी की लड़ाई में बैल तस्करी में पकड़े गये लोग भी बाद में तमगा हासिल करते रहे हैं। आप मुझसे बेहतर जानते हैं।


शायद शमशेरदाज्यू उत्तराखंड की बात कर रहे हैं वरना उत्तर प्रदेश के एक पहाड़ी मुख्यमंत्री जो देश के गृहमंत्री भी हुए.पंडित गोविंद बल्लभ पंत की जनांदोलन में न सही आजादी के आंदोलन में थोड़ी बहुत भूमिका रही।

दाज्यू,हम लोगों ने हमेशा आपका सम्मान किया है और इस सार्वजनिक बहस की बदतमीजी करने का इरादा मेरा कोई नहीं था।


आज सुबह नैनीताल समाचार के पहले अंक से लेकर अबतक के सभी अंकों के संपादन में लगे रहे हमारे नैनीताली मित्र पवन राकेश को फोन लगाया और उनसे पूछा तो उन्होंने यह तो कन्फर्म किया कि उत्तराखंड के नये मुख्यमंत्री अपने जिले में क्षेत्रीय स्तर पर आंदोलनकारी रहे हैं,पर उनके उनके बारे में विस्तार से वे बता नहीं पाये।


28 नवंबर 1978 को हममे से कोई हरीश जी को याद कर नहीं पा रहे हैं।न हम उन्हें कभी जानते रहे हैं।जाहिर है कि यह हरीश जीकी नहीं,हमारी कमजोरी है।


राकेश ने मेरी एक गलती दुरुस्त की।शमशेर दा ने फेसबुक के तात्कालिक लेखन में कंपोजिंग करने में शायद गलती कर दी और 1978 की जगह 1974 लिख दिया नैनीताल कल्ब अग्निकांड प्रकरण का। हमने भी 14 नवंबर 1978 लिख मारा है।राकेश ने बताया कि सही तारीख 28 नवंबर 1978 है।तब जनता पार्टी सरकार के वन मंत्री खटीमा के विधायक श्रीचंद थे।


राकेश मेरी तरह याद नहीं कर पा रहे हैं कि उस दिन सुंदरलाल बहुगुणा या चंडी प्रसाद भट्ट नैनीताल आये थे या नहीं।लेकिन किसी फोटोसेशन की याद उन्हें भी नहीं है।


राकेश फेसबुक पर नहीं है। उन्होंने नैनीतास समाचार के दूसरे साथी महेश दाज्यू से पूरी बहस का प्रिंट आउट मांगा है।इसके बाद जरुरी हुआ तो वे मंतव्य करेंगे।


राकेश से बात कर ही रहे थे कि सविता बिफर पड़ी और पूछने लगी कि ऐसे पंगा लेने की जरुरत क्या थी।बोली कि जब तुम्हें कोई उत्तराखंडी मानता नहीं है,तो तुम्हें बेमतलब शमशेरदाज्यू के लिखे पर मंतव्य करने की जरुरत ही क्या थी।


हमने बताया कि फटी में टांग अड़ाने की वजह खुद शमशेरदाज्यू हैं।कोई दूसरा कुछ भी लिख रहा होता तो हमारी सेहत पर कोई असर नहीं होता।शमशेरदाज्यू,राजीवलोचन शाह,शेखर पाठक लोग गिरदा के बाद वे बचे खुचे लोग हैं,जिनके हर मतामत में मेरा भी कहीं न कहीं कोई हिस्सा बन जाता है।


सविता बहरहाल इस शरीकी विवाद से नाराज हैं।


राकेश की पुष्टि के बाद अगर मान भी लें कि हरीश रावत जी जनांदोलनों से सक्रिय रहे हैं या अगर वे जनांदोलनों में रहे भी न हों,पहाड़ को तो उनके मुख्यमंत्रित्व में उनके राजकाज के भले बुरे की परवाह ही होगी। बेहतर हो कि हम उन्हें न देवता बनायें न असुर।


लेकिन जैसे कि आर्थिक सुधार अश्वमेध जारी है और केंद्र पर बुरी तरह निर्भर है उत्राखंड राज्य और अब के सारे मुख्यमंत्रियों का मुख्यमंत्रित्व भी दिल्ली का चातक पाखी ही रहा है,तो बेहतर यही है कि हम नये मुख्यमंत्री से किसी कायाकल्प की उम्मीद न ही करें।


शमशेरदाज्यू,जन सरोकार के मुद्दों पर आपकी निरंतर लड़ाई और दूसरे साथियों की भूमिका की निरंतरता के मद्देनजर हम किसी को भी जनांदोलन की पृष्ठभूमि से जुड़े होने का फतवा देने से बचे तो बेहतर,खासकर जबकि वे सत्ता राजनीति के शीर्ष पर हैं।


उनको ऐसी पृष्ठभूमि का बताते हुए उनके राजकाज को वैधता ही देंगे हम,जो जिस जनविरोधी सत्ता के वे प्रतिनिधि हैं,उसके तहत उनका कार्यकाल भी हिमालय और हिमालयी जनता के लिए विनाशकारी होना तय है।अपशकुन बोलने के लिए माफ करें।


मेरी समझ में यह बात नहीं आती कि कोई जनांदोलन की पृष्ठभूमि वाला व्यक्ति लंबे अरसे तक केंद्र सरकार की हिमालय विरोधी,प्रकृति विरोधी,मनुष्यविरोधी अश्वमेधी नीतियों का मूक समर्थन करने के बावजूद हम उन्हें जनपक्षधर बताने से क्यों नहीं अघा रहे हैं।


हरीश जी की तुलना में विपिन त्रिपाठी और प्रदीप टमटा जनांदोलनों मे ज्यादा लंबे समय़तक सक्रिय रहे राजनीति में निष्णात होने से पहले।हम लोगों ने उनसे ज्यादा घनिष्ठता के बावजूद उनका महिमामंडन से अपने को बचाये रखा,तो आप क्यों ऐसा कर रहे हैं,यह हमारे लिए अबूझ पहेली है।मेरी जगह अगर गिरदा यह सवाल आज आपसे कर रहे होते तो आप क्या कहते,दाज्यू।


शमशेरदाज्यू,मैं भी रिटायर करने वाला हूं।यादें धूमिल हो रही होंगी।लेकिन अमूमन जनांदोलनों के सिलसिले में मेरी स्मृति मुझे धोखा नहीं देती।मैं लगातार आपका लिखा पढ़ता रहा हूं।आपने किसी आंदोलन के सिलसिले में हरीश रावत की भूमिका पर विशेष तौर पर लिखा हों तो मुझे उसकी प्रति जरुर दें।


वनों की नीलामी के खिलाफ आंदोलन के सिलसिले में सत्तर और अस्सी दशक में छपी तमाम रपटों में हरीश जी की भूमिका की कोई खास चर्चा हुई हो तो मैं अपना मंतव्य वापस ले लूंगा।


आप न सही,गिरदा,निर्मल जोशी या विपिन चचा तो हैं नहीं, राजीव लोचन साह, पीसी तिवारी और शेखर दाज्यू अगर सही तथ्य देकर उत्तराखंड की जनता को उपकृत करते हुए मुझे गलत साबित कर दें तो मैं आभार मानूंगा।


इस मामले में अगर प्रदीप टमटा का कोई वक्तव्य आये,तो उसे मैं विचारणीय नहीं मानूंगा क्योंकि वह भी अब सत्ता संघर्ष के सिपाहसालार और सांसद हैं।


मेरा मानना है कि हरीश रावत जी या प्रदीप टमटा समेत पहाड़ के राजनेताओं के बदले आप लोग जो आज भी जनांदोलन की विरासत जी रहे हैं,उन्हींकी ही अगुवाई में हिमालय और हिमालयी जनता की रक्षा हो सकती है।


मेरा आप सभी से विनम्र निवेदन है कि इस तरह के महिमामंडन से आप राजनेताओं के लिए खुल्ला खेलने की जमीन तैयार न करें।कम से कम आप जैसे दशकों से परखे जांचे लोग।


फेसबुक पर इस बहस को डालने का मकसद है कि इस जरुरी सवाल पर विचार अवश्य होना चाहिए कि हिमालय और हिमालयी जनता,उत्तराखंड और उत्तराखंडी जनता के बुनियादी मुद्दे क्या हैं। सत्तर के दशक में जो आंदोलन कर रहे थे,वे अब किस मंजिल तक पहुंचे हैं और उनकी प्रतिबद्धता और जनसरोकारों का क्या हुआ।


हमने फेसबुक पर इस बहस को इसलिए भी डाला कि कौन मौन साधते हैं जरुरी सवालों पर और कौन मुखर है,फेंस के आर पार खड़े लोगों का पक्ष खुलकर सामने आ जाये।


हमारे पुराने मित्र उमेश तिवारी विश्वास ने अपनी प्रतिक्रिया सूफियाना अंदाज से दी है,उसका निहितार्थ भी समझ लेना चाहिए।


*

Umesh Tiwari commented on your post.


Umesh wrote: "वहीं कहीं दफ्न हैं, सेनानी वृक्षों के धुंवारे ठूंठ...(मिट्टी मत उखेलो पलाश)!"






उमेश तिवारी,जहूर आलम,डीके सनवाल,डीके शर्मा जैसे लोग गिरदा के साथ आंदोलन के दौरान नैनीताल में नाटको का प्रयोग कर रहे थे।पिछले दिनों नैनीताल के रंगकर्म की दशा दिशा पर उनसे लंबी बात हुई थी। खासकर भारतेंदु नाटकों के कोलाज नाटक जारी पर बात हुई थी। भारत दुर्दशा आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना अंधेर नगरी और वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति।ये नाटक पराधीन भारत में जितने प्रासंगिक थे,उससे कहीं ज्यादा उनकी प्रासंगिकता मौजूदा परिप्रेक्ष्य में अमेरिका बने भारत के कारपोरेट राज में हैं।


मुझे ठीक ठीक याद नहीं आ रहा है कि 28 नवंबर 1978 को कालेज जाने से पहले जो हम मल्लीताल रामलीला ग्राउंड के सामने भोजन कर रहे थे,तब उमेश तिवारी या काशी सिंह ऐरी या दोनों हें,कौन हमें लेकर शैले हाल गये थे।उस वक्त नैनीताल समाचार में मेरा धारावाहिक कब तक सहती रहेगी तराई का प्रकाशन हो रहा था। लेकिन हम चिपको के बारे में कुछ खास जानते न थे। मित्रों ने बताया कि शेखर पाठक और डीएसबी के कुछ छात्र भी शैले हाल पर नीलामी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं।जिन लोगों ने गिरफ्तारी दीस,उनमें सबको हम लोग जानते बी न थे। लेकिन शेखर और जसवंत की गिरफ्तारी के बाद हमें लगा कि छात्र संघ को इसका विरोध करना चाहिेए। उमेश और काशी सिंह दोनों छात्र संघ चुनाव बहुत कम से हार गये थे लोकिन डीएसबी में उनकी लोकप्रियता बहुत थी। अब इस प्रकरण का सच वे भी खोलें तो बहस को दिशा मिलेगी।



Amalendu Upadhyaya commented on your status.

Amalendu wrote: "कटु सत्य"




कल शाम चंद्र शेखर करगेती जी का फोन आया और वे हरीश रावत के बगल के गांव के रहने वाले हैं।उन्होंने पहले ही टिप्पणी कर दी कि


चन्द्रशेखर wrote: "वहां भी कुछ नहीं किया था, जितना मुझे पता है..."


चंद्रशेखर जी के दादाजी वैष्णव होटल चलाते थे जिसे अब उनके चाचा चला रहे हैं जो हमारे साथ उस वक्त डीएसबी के छात्र भी थे।


करगेती ने भी उस समय को देखा है,हम चाहते हैं उन्होंने जो हमसे कहा ,उसे लिखित में भी दर्ज करायें।


आखिर उत्तराखंड के नये पुराने आंदोलनकारियों की दृष्टि में जनांदोलन क्या है,इसका जरुर खुलासा होना चाहिए।क्योंकि इससे उत्तराखंड का भूत भविष्य और वर्तमान निर्भर हैं।


रात में नैनीताल  समाचार के महेश दाज्यू से भी लंबी बातें ङुईं,उनके भी अनेक प्रश्न अनुत्तरित हैं। जो लोग समझते हैं कि हालात बदलने चाहिेए,उनको अपने विचार खुलकर अभिव्यक्त करना चाहिए।



हालात बयान करने के लिए यह खबर काफी होनी चाहिए।पहाड़ के बच्चों की यह दुर्गति हो रही है तो हमारे आंदोलनकारी पहाड़ी राजनेताओं की भूमिका पर कोई भी टिप्पणी नाकाफी है।




Express News Service | New Delhi | February 02, 2014 02:12

A day after a 19-year-old student from Arunachal Pradesh died after being allegedly beaten up by a shopkeeper in Lajpat Nagar, nearly 1000 youths gathered outside the Lajpat Nagar police station, demanding a swift probe.

Members of Arunachal Students' Union, JNU Students' Union, Naga Students' Union, North East Students' Union and All Assamese Students' Association took part in the protest.

The protesters marched down the busy market and gathered outside the police station. Their ire was direct at the police and government. Many shouted slogans such as "Arvind Kejriwal hosh mein aao" and "Delhi Police, down down".

"What I can't understand is why, after everything that had happened, Nido was dropped back where the fight had happened. Now that he has died, why is AAP so quiet? Where is the broom now? Are the people from the Northeast not aam aadmi?" Nabonita Gurung, a student from JNU, said.

Also in the protest were a number of people from Himachal Pradesh and the Uttarakhand. "Racism is not just limited to people from the north-east. It's not about where you are from. The racists only bother about the skin colour. If we look different, they will abuse you and call you a kancha," Gaurav Nima, a DU student, said.

Express reports When angry students and residents from the Northeast gathered outside the Lajpat Nagar police station on Saturday to protest the death of 19-year-old Nido Taniam, the Delhi Police turned to one particular officer to calm the crowd.

Robin Hibu, Joint Commissioner (Training), who is also the coordinator of the North East Residents' Cell, assured the crowd that steps have been taken to expedite the probe in the case.

"First of all, justice will be done… I know Nido from his childhood and he is my family friend. We have registered a case of murder under Section 302 of the IPC. We have added the SC/ST Atrocities Act.

We are awaiting the viscera report and the DCP has spoken to the CBI CSFL lab and has requested that the report be ready within a week.

Three persons are being questioned and more arrests are likely soon… I also belong to the Northeast and I am your nodal officer… I have spoken to the family and student leaders. Please have faith in us. Action will be taken against police officers if they are found guilty," Hibu said.

Nineteen-year-old Nido was assaulted allegedly by a shopkeeper in Lajpat Nagar over an alleged racial remark on Wednesday. He succumbed to injuries at a hospital on Thursday.

Nido's family and friends on Saturday alleged that police were present when Nido was beaten up a second time, but police claimed otherwise.

Police said on Wednesday afternoon, Nido had picked up a fight with Farman, the owner of Rajasthan Paneer Bhandar in A-Block, Lajpat Nagar-1, after Farman allegedly made a racist comment about Nido.

Nido allegedly banged on the shop counter, shattering the glass and triggering a scuffle with Farman. However, police said the two sides reached a compromise after Nido reportedly agreed to pay Rs 7,500 as damages.

According to police, after the fight, Nido had two others join him. Police said Farman, fearing that he would be beaten up again, made a PCR call at 1.55 pm on Wednesday. A PCR van picked up Farman and Nido and brought them to the police station. This time, both parties gave written statements that they had reached a compromise and the matter need not be furthered.

Then, ASI Pritam Singh had asked Nido to show him the spot where the scuffle took place. When Nido reached there with Singh, he was beaten up again in front of the ASI, Nido's friends alleged.

Police denied this saying they had a video clip to prove that Nido was fine while returning from the spot with ASI Singh.

Police said Nido was riding pillion with Singh on the way back. They have CCTV camera footage from the market to prove this.

Police also said Nido had made a video on his mobile phone where he was seen laughing and telling the ASI to wear his helmet. "Aage traffic mama khada hai, helmet pehen lo. Challan ho jayega (There is a traffic policeman standing there. Wear your helmet or else you will be issued a challan)," Nido is heard saying in the recording, police said.

At the police station later,  Singh made Nido speak to his mother in Arunachal Pradesh. She told the ASI to call Nido's two local guardians — Vinod Bansal and Varun — and ask them to come to the police station. The guardians too recorded their statements and left.

Nido left with his friends in an auto-rickshaw, police said. Police did not make Nido undergo a medical examination as is mandatory in such cases.

Police are still investigating what happened after he went to his friend's house in Green Park.

Prima facie, police said, Nido was complaining of pain and had not eaten anything at his friend's house. He had reportedly taken a tetanus shot. So far, three persons, including Farman, have been detained for questioning.

On Saturday, DCP (Southeast) P Karunakaran gave a written assurance to protesters that action will be taken against those found guilty.

अब संवाद जस का तस

Shamsher Singh Bisht

February 1 at 5:40pm ·

  • जनआन्दोलन से जुड़े पहले मुख्यमंत्री हरीश रावत-
  • अल्मोड़ा 1 फरवरी- (जनसत्ता) उत्तराखंड राज्य के 8 वें मुख्यमंत्री हरीश रावत ऐसे पहले मुख्यमंत्री होंगे जो जन आन्दोलन से जुड़े होने के साथ ही अल्मोड़ा जनपद भत्तरांेजखान के मोहनरी गंॅाव के किसान राजे सिंह पिता के परिवार में जन्में हरीश रावत मुख्यमंत्री बनने जा रहें हैं, हरीश रावत के पिता का निधन तब हो गया था जब वे अपने बचपन की अवस्था में थे। अपनी प्रारम्भिक शिक्षा गाॅंव के निकट विद्यालय में ही की थी। लेकिन इन्टर पढ़ने रामनगर चले गये थे। अपनी युवा अवस्था में ही श्री रावत राजनीति में सक्रिय हो गये थे। निर्दलिय उम्मीदवार के रूप में इन्होंने अल्मोड़ा के भिक्यासैंण ब्लाक से ब्लाक प्रमुख का चुनाव लड़कर विजयप्राप्त की थी, लेकिन उनके प्रतिद्वन्दी ने रावत की उम्र कम होने के कारण न्यायपालिका में वाद दायर किया , जिसके कारण रावत ब्लाक प्रमुख पद से हट गये। इसके बाद ही रावत जनआन्दोलन में सक्रिय हो गये थे। 28 नवम्बर 1974 में वन बचाओं संघर्ष समिति के नेत्तृव में नैनीताल में वन की निलामी का जर्बदस्त विरोध करने पर 18 लोगों के साथ हरीश रावत पहली बार गिरफदार हुए , इसमें शेखर पाठक,विपीन त्रिपाठी,शमशेर बिष्ट आदि नेतृत्व में थे। इनके गिरफदारी का विरोध पूरे कुमाॅंउ में छात्रों ने हड़ताल के साथ बंद करा दिया था। इसी बीच रावत रानीखेत के विधायक गोविंद सिंह मेहरा के सम्पर्क में आये, बाद में जो इनके ससुर भी बने। सन् 1976 में रावत कांग्रेस में चले गये , लखनउ में विधायक निवास में रहकर एलएलबी की वॅंहा भी तत्कालीन छात्र नेता सी बी सिंह के सम्र्पक में आये जॅंहा से इनको जुझारूपन की शिक्षा मिली, सन् 1980 तक ये अल्मोड़ा क्षेत्र में अपने कार्यो से अपनी पहचान बनाई। कांग्रेस ने इनको 1980 में अल्मोड़ा-पिथोरागढ़ संसदीय क्षेत्र से अपना उम्मीदवार बनाया, इन्होंने भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी को भारी मतों से पराजीत किया । फिर इसी संसदीय क्षेत्र से तीन बार सांसद रहें । इसके बाद ये उत्तराखंड राज्य बनने के बाद उत्तराखंड में विजयी दिलाई परन्तु अन्तिम समय में लखनउ से नारायण दत्त तिवारी आकर मुख्यमंत्री बन गये। याद रहें नारायण दत्त तिवारी ,सत्यपाल महाराज व विजय बहुगुणा इनके घोर विरोधी रहें हैं। आज भी ये लोग हरीश रावत के लिए संकट बने हुए हैं लेकिन उत्तराखंड का अल्मोड़ा जनपद जो राजनीति का केन्द्र रहा है यॅंहा अल्मोड़ा जनपद से हरीश रावत तीसरे मुख्यमंत्री बन रहें हैं। इससे पूर्व उत्तरप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पंत व चन्द्रभानु गुप्ता भी इसी जनपद से मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
  • - शमशेर सिंह बिष्ट
  • 9412092061
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    • Palash Biswas http://antahasthal.blogspot.in/.../delhis-racist-regime...

    • अंतःस्थल - कविताभूमि: सिखों के नरसंहार का तीस साल बाद भी अभी न्याय नहीं हुआ।इस देश में किसी भ�

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    • सिखों के नरसंहार का तीस साल बाद भी अभी न्याय नहीं हुआ।इस देश में किसी भी दंगे का...See More

    • February 1 at 6:57pm · Like · Remove Preview

    • Kuldeep Uniyal ek tarfa alakh hai bahut kuch chod diya.....

    • February 1 at 9:44pm · Like

    • Girija Pande रावत जी को राज्य के बागडोर दिया जाना जमीन से उठे एक कार्यकर्ता के संघर्ष का सम्मान है। लोकतंत्र में यह ही होना चाहिये। चलिए कांग्रेसी आला कमान को समझ में तो आया चाहे देर से ही। नए नेतृत्व से जनसरोकारों से जुड़े रहने के अपेक्षा है। वैसे भी आप ने राजनीती के व्याकरण को इस दौर में नए तरीके से पारिभाषित किया है।

    • February 1 at 9:58pm · Like

    • Prakash Upadhyaya Let us not praise this man! All the hoodlums who were indulging mass copying in Almora campus when I was teaching there in 1980s and had booked many key leaders in mass copying I was attacked by them and Harish Rawat was their biggest defender! All the...See More

    • Yesterday at 12:36am · Like

    • Palash Biswas शमशेरदाज्यू बेहतर जानते होंगे कि किस किस्म के जनांदोलन स‌े जुड़े रहे हैं हरीश रावत और वे कितने जनप&धर हैं।आखिर रावतजी अल्मोड़ा के वाशिंदे हैं।हम तो जब स‌े उनका नाम स‌ुन रहे हैं,वे लगातार कुर्सी दौड़ में शामिल हैं।ऎसे किसी राजनेता स‌े शमशेरदा की क्या आक...See More

    • 22 hours ago · Like · 7

    • Gopal Ghughtyal a leader of people.

    • 17 hours ago · Like

    • Atul Sati पलाश बिस्वास जी से सहमत हूँ .

    • 10 hours ago · Like · 1

    • Kailash Andola We all miss Almora ........ Bus kuch hi din Apne ghar raha hu mein....Baki din dar -badar raha hu mein....Sabhi Shangharsheil Mitron ko mera Salaam!!!!

    • 6 hours ago · Like

    • Shyam Singh Rawat पलाश जी, क्या आपको पता है कि नैनीताल में शैले हॉल फूंके जाने की घटना कब और क्यों हुई थी? जहाँ तक मुझे स्मरण है, वह ऐतिहासिक घटना नवम्बर 1974 की है। जब वन बचाओ संघर्ष समिति के आह्वान पर नैनीताल में हो रहे वनों की नीलामी के विरोध में अग्रणी रहे विपिन त्रिपाठी, शमशेर बिष्ट, हरीश रावत, खड़गसिंह बोहरा आदि लोगों को नैनीताल बैंक और रॉयल होटल के बीच बनी सीढि़यों पर (तब वहाँ सीढि़याँ ही थीं, सड़क बाद में बनी) घसीटते हुए ले जाकर गिरफ्तार कर लिया गया था। इसके पूर्व वनों की नीलामी हल्द्वानी स्थित शीशम बाग में दशकों से होती रही थी। जिसे प्रबल विरोध की आशंका के चलते प्रशासन द्वारा नैनीताल क्लब स्थित शैले हॉल में कराया जा रहा था। उस गिरफ्तारी के विरोध में अल्मोड़ा स्थित वन विभाग के दफ्तर में भी तोड़फोड़ हुई थी।

    • यहाँ यह भी स्मरण करना अप्रासंगिक नहीं होगा कि उस दिन जब आंदोलनकारी लोग सुबह-सवेरे तल्लीताल डांट पर विरोध प्रदर्शन की तैयारी कर रहे थे, तभी वहाँ दिल्ली की रात्रि कालीन बस सेवा से उतरे सिर पर पटका बांधे एक सज्जन ने अपने ठेठ पहाड़ी अंदाज में उनकी हौसला अफजाई करते हुए कहा था-''आप लोग बहुत बढि़या काम कर रहे हैं। मैं भी आप लोगों को समर्थन देने आया हूँ। मुझे मल्लीताल में कुछ अन्य साथियों को भी इकट्ठा करना है, वहीं मिलूंगा।'' मगर नीलामी के दौरान जब वे नीलामी स्थल-शैले हॉल के दरवाजे पर अकेले नमूदार हुए तो उनके मुंह पर पट्टी बंधी थी और थी हाथ में वन बचाओ का नारा लिखी एक पट्टिका। नीलामी कराने वाला अधिकारी गरजा-''कौन है यह आदमी, यहाँ कैसे आया? बाहर निकालो इसे।'' बाहर खदेड़े जाने से पहले उनका मकसद पूरा कर दिया था, साथ लाये फोटोग्राफर ने। एक-दो दिन बाद दिल्ली के समाचार पत्रों में उन्हीं पटकाधारी महाशय के नाम और फोटो सहित खबर प्रकाशित हुई। जिसमें उनके काम आया था तब उनके पास रहने वाला समाचार ऐजेंसी यू एन आइ का कार्ड। उन्होंने इसी तरह के टोटकों से श्रीनगर, कोटद्वार, जोशीमठ आदि जगहों में भी वनों के संरक्षण का मुद्दा उठाया था। अपने इन्हीं तरीकों से बचाये गये वनों की खातिर वे देश के महान पर्यावरणविद और वन बचाओ के पुरोधा कहलाये और बाद में पद्श्री व पद्मभूषण से नवाजे गये।

    • जहाँ तक हरीश रावत का प्रश्न है, यदि उन्होंने भी इसी तरह की टोटकेबाजी की होती तो संभवतः पलाशजी आज आप ऐसा सवाल नहीं उठाते।पलाश जी, कृपया मेरी बात की तस्दीक जरूर करा लेवें।

    • 5 hours ago · Like

    • Palash Biswas रावत जी।आपको ऩई जानकारी देने के लिए धन्यवाद। शमशेरदाज्यू हमारी छात्रावस्ऎथा में हमारे मित्र,अग्रज और नेतार रहे हैं।हम चूंकि 79 स‌े पहाड़ स‌े बाहर हैं ,इसलिए स‌िलसिलेवार हमें पहाड़ के जनांदोलनों के बारे में मालूम नहीं है।लेकिन वनों की नीलामी का जो वाकया आप बता रहे है,उसमें शैले हाल में नीलामी जुरु हो रही थी,पर वह प्रकररण ऎतिहासिक नैनीताल क्लब रफूंके जाने के कारण प्रसिद्द हुआ।यह 14 नवंबर 1978 की बात है।1974 की नहीं। आप उस वक्त कहां थे ,हमें मालूम नहीं है।पर मौके पर हम लोग जौजूद थे।डीएसबी कालेज और स‌ीआरएसटी के छात्र स‌ारे थे।छात्र आंदोलन में शामिल नहीं थे। हम लोग त्तकालीन छात्र स‌ंघ अध्य& भागीरथ लाल स‌े डीएसबी के शि&क शेखर पाठक ौर हमारे स‌हपाठी जसवंत स‌िंह नेगी की गिरफ्तारी के बाद छात्रों का स‌मर्थन मांगने गये तो उन्होंने स‌ाफ मना कर दियाथा। नैनीताल के डीएम तब फ्लैट्स पर क्रिकेट खेल रहे थे। राजीव लोचन स‌ाह,गिरदा ,शेखर वगैरह लोगों ने स‌ुबह ही गिर्फ्तारी दे दी तो अल्मोड़ा स‌े आये शमशेरदाज्यू के नेतृत्व में अलमोड़ा कालोज के छात्रों ने कंसल के स‌ामने गिरफ्तारी दीथी।अलमोड़ा स‌े उनके स‌ाथ आये थे,कपिलेश भोज।जो पूरे वक्त हमारे स‌ाथ थे। इन गिरफ्तारियों के खिलाफ छात्रों का स‌मर्थन मांगने हम लोग स‌ीआरएसटी भी गये थे।सीआरएसटी भी आंदोलन स‌े मुकर गया। लेकिन स‌ीआरएसटी की छुट्टी के बाद जल्दी घर पहुंचने को दौड़ लगा रहे छोटे बच्चं पर पीएसी और पुलिस ने पानी का फव्वारा छोड़ दिया।आप जानते हैं कि नवंबर मध्य में उन दिनों नैनीताल में कड़ाके की स‌र्दी होती थी।अब कैसे स‌र्दी होती है,हमें नहीं मालूम।

    • जब छात्रोंने पनी छोड़ने का विरोध किया तो उनपर लाठियां बरसायी गयीं। फिर तो पुलिस पगला गयी।पर्यटक और दुकानदार तक पिटे गये।परुलिस ने दुकानें भी लूटी।छात्रों को खास गुस्सा डीएम के क्रिकेट खेलते रहने पर आया। स‌ीआरएसटी के छात्रों पर लाठीचार्ज की खबर मिलने पर ही छाकस‌ंघ नेताओं की अगुवाई में डीएसबी स‌े बेहद अनुशासित पंक्ति बद्ध जुलूस निकला इस पूरे कांड के खिलाफ। छात्रों के स‌ड़कों पर आते न आते पुलिस ने गोली चला दी।इसी में जो भगदड़ मची और अफरातफरी हुई ,उसका फायदा उठाकर शरारती त्तवों ने नैनीताल क्लब में आग लगा दी।वनों की नालामी का विरोध कर रहे स‌ारे लोग छात्रों पर लाठीचार्ज स‌े पहले गिरफ्तार हो चुके थे।छात्र नेता तो नैनीताल क्लब तक पहुंच ही न पाये थे कि वहां आगजनी हो गयी।िसके बाद नैनीताल में आम जनता भी आंदोलन के प& में मैदान में उतर आयी।डीएम का क्रिकेट बंद हुआ और शाम होने तक पूरे उत्तराकंड के छात्रतराई और पहाड़ में चिपको के प& में आंदोलित हो गे।उस वारदात स‌े पहलेतक हम लोग चिपको स‌े जुड़े न थे।

    • 42 minutes ago · Like

    • Palash Biswas जिनका नाम लिये बिना आपने माननीयमुख्यमंत्री के जनांदोलन में हिस्सेदारी के स‌िलसिले में चित्त्रित कर दिया, हम स‌ारे लोग जानते हैं कि कम स‌े कम नैनीताल में और कम स‌े काम नैनीताल कांड प्रकरण में उनका कोई फोटो सेशन नहीं हुआ।हमीलोग उस प्रकरण के बारे में चिपको की रपटें लिख रहे थे।जिनमें देहरादून के धीरेंद्र अस्थाना भी शामिल हैं। नैनीताल स‌माचार के किसी स‌दस्य को ऎसे किसी फोटो स‌ेशन की जानकारी है नहीं तो स‌्तान और स‌मय तक गलत बताने वाले आपको कौन स‌ी दिव्यदृष्टि स‌े वह दृश्य दिखायी पड़ा,समझ में नहीं आ रहा है।देश दुनिया में अत्यंत स‌म्मानित उन महाशय को जिनकी तरफ आप इशारा कर रहे हैं,आंदोलन की पद्धति लेकर उत्तराखंड स‌ंघर्ष वाहिनी के स‌ाथियों को गंभीऱ आपत्ति जरुरर थी लेकिव नतब पूरा पहाड़ और स‌मूची तराई में चिपको की धूम थी,जिसमे कहीं हमने हरीश रावत जी को नहीं देखा।बाद के आंदोलनों में भी उनका नाम नहीं स‌ुना। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद स‌त्तासंघर्ष मे और कासकर कांग्रेसकी राजनीति के स‌िलसिले में उनका नाम लगातार स‌ुन रहा हूं।वैसे स‌त्ता के लिए भी आंदोलन होता है,दिल्ली में आप और देशभर में मंदिर मसजिद आंदोलन स‌बूत हैं।

    • 33 minutes ago · Like

    • Palash Biswas लेकिन रावत जी हम न कांग्रेस के प& में हैं ौर न शंघ परिवार के।हम लोग आंदोलन में नैनीताल स‌माचार और लेखन के जरिये थे।उत्तराखंड स‌ंघर्षवाहिनी के अनेक लोग मसलन विपिन त्रिपाठी,प्रदीप टमटा,राजा बहुगुणा,काशी स‌िंह ऎरी, बालम स‌िंह जनौटी, पीसी तिलवारी जैसे लोग बहरहाल आगे पीछे राजनीति में शामिल हुए।प्रदीप तो इस वक्त अल्मोड़ा के स‌ांसद भी हैं।

    • 29 minutes ago · Like

    • Palash Biswas यकीन मानिये ,बतौर आंदोलनकारी हम किस‌ी हरीश रावत को नहीं जानते।शमशेरदाज्यू स‌े हमारे रिश्ते चार दशक पुराने हैं।राजीव लोचन स‌ाह,गिरदा ,शेखर,कपिलेश भोज,प्रदीप टमटा,विपिन त्रिपाठी,निर्मल जोशी जैसे लोगो की तरह हम लोग हणेशा शमशेरदाज्यू को अपना अगुवा मानते रहे हैं।हम उनको एक जमीनी पत्रकार बतौर भी बेहद करीब स‌े जानते हैं।इसलिए उनके इस स‌र्टिफिकेट स‌े हमें थोड़ा अपच हो गया।सार्वजनिक तौर पर पाद दिया,इसके लिए आपको हुई तकलीफ के कारण माफी चाहता हूं।पहाड़ की राजनीति में शुरु स‌े काबिज ब्राह्मम वर्चस्व के मद्देनजर इस स‌ामाजिक बदलाव का मैं स‌्वागत कर स‌कता हूं,लेकिन जब तक शमशेरदाज्यू और दूसरे लोग हरीश रावत जी के जनांदोलन का खुलासा नहीं करते, हम उन्हें जनांदोलन के जरिये मुख्यमंत्री बना हुआ नहीं मानते।

    • 23 minutes ago · Like

    • Palash Biswas फिर यह जरुरी नहीं कि जनांदोलन स‌ेजुड़ा आदमी राजनीतिक नेततव भी दैं।तो मुप्त में किसी राजनेता के महिमामंडन ौर इस खातिर देश के पर्यावरम आंदोलन मे दुनियाभर में जिनकी स‌ाख है,उनपर कीचड़ उछालने की आपकी यह कोशिश हमें ठीक नहीं लग रही।

    • 21 minutes ago · Like

    • Palash Biswas इसी स‌िलसिले में नैनीताल स‌माचार के राजीव लोचन स‌ाह जी का ाकलन हमें स‌ंतुलित लगा जो उत्तराखंड का स‌च भी है।राजनेताओं स‌े पहाड़ का भला होता तो पहाड़ को शुरु स‌े महान नेताओं और विकास पुरुषों का नेतृत्व मिलता रहा है।लेकिनमैदान स‌े उतरने पर पहाडी़ अपने स‌वर्णत्व के बावजूद दोयम दर्जे के रोगारतलासु या घरेलू नौकर ही माने जाते हैं।बाकी हिमालयी लोगों के स‌ाथ उनके स‌ाथ भी नस्ली भेदभाव होते हैं।

    • 17 minutes ago · Like

    • Palash Biswas दिल्ली,लखनऊ के बाद देहरादून में भी जो यूकुसुप्टस प्रजाति के उत्तराकंडी राजनैतिक महामिमों का ताजपोशी हो रही है,उससे भूमाफिया के अलावा किसी का भला हो नहीं रहा है।पहाड़ स‌े तराई,गढ़वाल स‌े कुमांय़ूं,अल्मोड़ा स‌े नैनीताल और पिथौरागढ़ का अलगाव बढ़ा है।टिहरी स‌े अलग हो गये हैं उत्तरकाशी,चमोली और पौड़ी।बेरोजगरी थी अब विकास के नाम पर केदार आपदाये हैं या उत्तरकाशी का भूकंप,भूस्खलन है या फिर अनंत डूब।जिस पर्यटन केलिए इतनी मारामारी,उससे भी बेदखल होता जा रहा है पहाड़।ऊर्जा प्रदेश बनने के फिराक में पहाड़ के कोने कोने में स‌ज गये है एटम बम।

    • 12 minutes ago · Like

    • Palash Biswas हमारी बला स‌े कोई भी मुख्मंयत्री बनें,प्रधानमंत्री बनें।हम कहीं स‌े किसी स‌े टिकट मांगने नहीं जायेंगे।हम किसी भी दल के स‌ाथ नहीं हैं।डीडी पंत की उक्रांद में हम शामिल नहीं हुए। न हमारे पुराने मित्रों के कहने पर उनके किसी दल में और न अपने इलाके के दबाव में।

    • 10 minutes ago · Like

    • Palash Biswas हमारी दिलचस्पी जल जंगल जमीन आजीविका प्रकृति पर्यावरण हिमालय और हिमालयी जीवनयात्रा में है।

    • 9 minutes ago · Like

    • Palash Biswas कोई आंदोलन किये बिना ,सर्वोच्च पद पर पहुंचे तो इस कारपोरेटराज में अजूबा क्या है।लोकसभा चुनाव लड़े बिना मनमोहनजी इस देश में दस स‌ाल तक राज करते रह गये।बाकी जा कारपोरेट कारिंदे हैं वे तो जनता का माना किये बिना ही राजकाज चला ही रहे हैं।

    • 8 minutes ago · Like

    • Palash Biswas खामखां पहाड़ के ही दूसरे आदरणीय लोगों पर कीचड़ उछालकर किसी ठाकुर के उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनने का शगुन आप खराब कर रहे है।

    • 6 minutes ago · Like

    • Palash Biswas हम चाहते हैं कि हरीश रावत जी राहुल गांधी के बजाय देश काप्रधानमंत्री भी बन जाये।लेकिन स‌ुंदरलाल बहुगुणा जी जैसे लोगों पर मिथ्याआरोप लगाकर उन्हें जनांदोलन स‌े जुड़ा स‌ाबित करेंगे तो तकलीफ होगी।

    • 5 minutes ago · Like

    • Palash Biswas दरअसल हम अपने अतिप्रियदाज्यू स‌े यही शिकायत ही कर रहे थे।इशारों में जो हम कह रहे थे,उसको ापने स‌ार्वजनिक करवा दिया।यकीन मानिये कि हमें यह स‌ब लिकना होता तो हम बेहिचक डंके की चोट पर पहले ही लिख चुके होते।लेकिन आपने जिस रहस्यमय छायामय आंदोलन की तस्वीर उकेरी,उससे वाकया न जानने वाली नई पीढ़ी को कोई गलत स‌ंदेश न जाये,इसके लिए यह खुलासा करना ही पड़ा।

    • 3 minutes ago · Like

    • Palash Biswas मैं आपको जनता नहीं हू और शमशेरदाज्यू को करीब चालीस स‌ाल स‌े जानता हू।आप स‌मझ स‌कते हैं कि अगर अल्मोड़ा में मेरा कोई परिवार है तो लालाबाजार का वह बिष्टपरिवार ही है।हम शमशेरदाज्यू के रिश्ते की परवाह किये बिना जब उनसे स‌वाल पूछ स‌कते हैं,तो आगे ऎसे अनर्गल आरोपों के खुलासे में क्या कुछ प्रस्तुत नहीं कर स‌कते ,अगले मंतव्य स‌े पहले कृपया इसका भी ख्याल रकें तो आगे कभी मिलने का स‌ौबाग्य हो तो हम ापको अपना मित्र बताते हुए गौरव ही महसूस करेंगे।

    • a few seconds ago · Like


Ashok Dusadh

जिसने भी दलित शब्द का आविष्कार किया होगा वह या तो मुर्ख था या धूर्त और अगर दलित अपने आप में एक सम्पूर्ण शब्द है या होना चाहिए तो इसका मतलब केवल अनुसूचित जाति ही क्यों है ?.आंबेडकर वाद का जितना नुकसान इन 'दलित ' बुद्धिजीवियों/लेखकों /सहियाकारों ने किया है शायद ही कोई किया है .ब्राह्मणवादी प्रतीकों के सहारे ब्राह्मणवाद का विरोध ब्राह्मणवाद का नक़ल मात्र बन गया है .दलित बुद्धिजीवों से समाज /राजनीति /संस्कृति में रती भर भी कोई परिवर्तन आया हो तो बताएं ?

ये 'दलित' बुद्धिजीवी सत्ता के पिच्छलग्गू होने को लालायित रहते है और यही सच है

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चन्द्रशेखर करगेती

बल हरी दा,


एसएसपी केवल खुराना तो एक छोटा प्यादा था, राकेश शर्मा जैसे बड़े खिलाडियों के लिए क्या इंतजाम है, बल भैजी जमीनों के जानकार बताते हैं कि इसने बड़ा खेल किया है जमीनों की डील में, इसका भी कोई इलाज हो तो करना, अगर कोई इलाज ना सूझे तो मुझ जैसे राज्य के किसी भी ग्याडू से पूछ लेना, बता ही देगा ! वैसे भी इस नामुराद ने बड़ी मूंग दली है हम उत्तराखंडियों की छाती पर....


अब ज्यादा क्या बोलना दा, आप जमीनी नेता हो, जमीन के सौदागरों को तो पहचानते ही हो, जिन्हें जेल में होना था, वे लाल बत्ती वाले बन गये है,, खैर आप अनुभवी हो पहचान ही जाओगे ?


जाते जाते बता दूँ दा, कि जमीनी नेताओं की इज्जत खराब मत करना, जनता का विश्वास कायम रखना, आप जमीनी नेता हो तो राज्य की दिनों दिन कम होती जमीन की रक्षा को कुछ कारगर उपाय तो पहले कर ही देना, ज़रा धारा 371 का ध्यान कर लोगे तो इस राज्य को भी पूर्ण हिमालयी राज्य का दर्जा मिल जाएगा, लागू करोगो ना दा....


ये ग्याडू भी 13 साल से इन्तजार कर रहा था कि कोई जमीनी नेता ही धारा 371 राज्य में लागू करवा सकता है, याद रहेगा ना दा ?

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  • Vivek Chauhan, Sanjay Rawat, Jagdish C. Bhatt and 73 others like this.

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  • Rajendra Joshi उत्तराखण्ड शासन द्वारा आज दिनांक 2 फ़रवरी 2014 को श्री केवल खुराना वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक देहरादून को तत्काल प्रभाव से पुलिस मुख्यालय उत्तराखण्ड देहरादून से सम्बद्ध किये जाने के आदेश निर्गत किये गए है

  • 18 hours ago · Like · 7

  • Vimal Bisht Ye haramkhor kewal khurana drugs mafiyo ko support kar raha tha....logo k bacho ko barbad kar diya isne...ish kutte ko wapis UP bhej do...

  • 18 hours ago · Like · 1

  • Himanshu Kargeti Kewal Khurna is most Coruppt IPS Officer Uttarakhand had ever seen

  • 17 hours ago · Like · 2

  • Chunni Lal Chandrilal Shah Jameeni Netaji jameene bechane ke liye aazad HO jayenge ab , 371 ka to kya hoga parantu din b din krashi yogya bhumi ki kami uttrakhand me jaldi hi ye samsya utapanna hone wali hain , haldwani, kashipur, bajpur , rudrapur, ram nagar kashipur road, ramn...See More

  • about an hour ago · Like

TaraChandra Tripathi

आधी रात के सोर-5


शाम को अखंड रामायण का

प्रसाद ग्रहण कर लौटा था,

सोया तो किसी कोने से

जैसे ठंड से बचने के लिए,

तुलसीदास भी,

मेरे लिहाफ के भीतर घुस आया

वह उस रूप में नहीं था,

जो तुम्हारी और मेरी आखोँ में

वर्षों से अंकित है

वही

चित्रकूट के घाट पर

पद्मासन में बैठा,

मोरपंख की कलम से

भोजपत्र की छाल पर

राम-कथा के बहाने

सनातन धर्म की नई

इबारत लिखने में लगा

मुंडित सिर,

माथे पर रामानन्दी तिलक

हू-बहू, जैसे प्रवीण तोगड़िया


जो मेरे सपने में आया,

वह कुछ-कुछ हमारे जैसा

नैनीताल की माल-रोड में

अपनी रत्ना को तलाशता,

गीत लिखता, गुनगुनाता

और कक्षा में गम्भीर प्रवचन देता.

एक अध्यापक था.


यह छ्द्म नहीं था,

एक युवा था जो

वर्षों से अपनापे की दो बूँद

पीने के लिए तरसता.

द्वार-द्वार तिरस्कृत होता,

चन्द कूकुर कौरों के साथ

पास-पड़ोस की दुत्कार सहता

बिना किसी अपराध के

लांच्छ्ना पर लांच्छ्ना सह्ता.

सुबह फिर से दुत्कारे जाने की

अनदेखी करते हुए

रात विरात किसी के द्वार पर सो जाता था.


मैंने गुरु नरहरिदास के उस

युवा शिष्य को भी देखा है,

जो राम-कथा मे तन्मय होते होते

कनखियों से किसी रत्ना

की तलाश करता रहता था.


मैंने उस युवा तुलसी को देखा है.

जिसके राम नखों को सँवारती

नाइन से चुहुल करते हैं

पर माँ की उपस्थिति के

कारण ठिठकते हैं


तुमने

स्वयंवर में

अपनी विलोकनि से

श्वेत कमलों की फुलवारी सी सजाती

जगत जननी को देखा होगा

पर मैने युवा तुलसी की

उस सीता को देखा है,

जो स्वयंवर में

अपनी कजरारी चितवन के

नील-कमल के से सरों से

दर्शकों को घायल कर रही थी.


रत्ना नाम लेते ही. मेरे मन में

एक किशोरी की छवि आती है,

यह नही कि वह गदराये वदन की

अति रूपवती वधू हो,

पर जनम जनम के प्यासे

तुलसी दास को जैसे उसमें

सब कुछ मिल गया था


कोई तो था जि्सकी गोद में वह

अपने आहत मन को छिपा सकता था,

घर के एकान्त में

अपने सुख दुख बाँट सकता था

एकाकार हो सकता था.

पर जैसे हे रत्ना

द्विरागमन के लिए गयी

उसे लगा कि वह

एक घूँट भी न पी पाया था

कि उसके होठों से लगा

चषक किसी ने छीन लिया है.

वह उस चषक को खोजने दौड़ पड़ा

आधी रात और

हहराती यमुना भी उसे रोक न सकी,

पर उसका यह प्राणांतक उद्दाम वेग

पर जिससे यह वेग टकराया वह

कोमलांगी रत्ना नहीं

उसके दुस्साहस से पथरायी

चट्टान थी


फिर वही धिक्कार, वही दुत्कार.

जैसे वह नशे से जागा

लौट आया सदा के लिए,

यदि इतनी कसक,

इतने आघात,

इतनी दुत्कार न सही होती,

तो शायद लौट आता वह उसी धार,

जहाँ बार-बार रूठते हुए भी

हम सब लौट आते हैं.

Like ·  · Share · 3 hours ago ·

Rajiv Nayan Bahuguna

उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन से एक फर्क तो आज ही मैंने महसूस किया . दिल्ली के उत्तराखंड निवास में आ ठहरा हूँ . यहाँ किराया कम है . नया वाला उत्तराखंड सदन बहुत मंहगा है अपने बश का नहीं . वहां रुको तो खाने के लिए इधर - उधर भटकना पड़ता है . आज यहाँ चाय ट्रे में मिली . कमरा भी ठीक ठाक मिला . पहले मुझे एक दड़बे में ठूंस देते थे , और खाना भी यूँ देते थे , जैसे कुत्ते को टुकडा डालते हैं . मैंने विधायकों से कयी बार कहा भी -- भाईयों तुम तनख्वाह , भत्ता , कमीशन वगैरह सब कुछ ले रहे हो . मैं भी इस राज्य के लिए १९७३ ( चिपको आन्दोलन ) से अब तक गांड मरवा रहा हूँ , तब से अब तक लाठी , जेल , गाली वगैरह ही भुगत रहा हूँ . तुम मुझे कभी कभार दिल्ली में यह सस्ती आवास सुविधा भुगतने दो , खुद होटल में रुक लो . विधायक निधि का कमीशन अकेले खा लो , पर कुछ फर्क न पडा . आज यह परिवर्तन देखने को मिला है , देखो कब तक

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अभी मैं किस तरह मुस्कुराऊं...

त्तराखण्ड में सरकार बदलने से ठीक पहले प्रदेश की कैबिनेट ने मंत्रियों, विधायकों यहाँ तक कि पूर्व विधायकों के वेतन, भत्तों व पेंशन में तीन गुने की वृद्धि कर दी. इसके उलट राज्य में नौकरी के लिए आवेदन करने वाले बेरोजगारों पर अब शुल्क थोप दिया गया है, जो सामान्य व ओबीसी के लिए 500 रुपए तथा एससी-एसटी के लिए 300 रुपए होगा...

मुकुल

यह निजामे कोहना किसकी सेवा कर रही है और किसे लूट रही है. किसे कर रही है दण्डित और किसे मिल रही है मलाई, इस हकीकत से हम रोज दो-चार होते रहते हैं. ऐसे ही एक-दो मामलों को देखते हैं.

एक तस्वीर है हरियाणा के मारुति-सुजुकी मजदूरों की, जहाँ पिछले साढ़े अठारह माह से 148 बेगुनाह मजदूर जेल की सीखचों में बन्द हैं. पुलिस झूठे मुकदमे दर्ज करती है, प्रबन्धन फर्जी गवाह पेश करता है और जमानत देने की जगह न्यायधीश कहते हैं कि इससे विदेशी निवेश पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा.

दूसरी तस्वीर है रुद्रपुर (उत्तराखण्ड) की, जहाँ पारले बिस्किट कंपनी में फर्जी आरोपों में मुकदमे और निलम्बन झेल रहे आठ मज़दूरों को जाँच के बाद पुलिस महकमे ने निर्दोष साबित कर दिया, इसके बावजूद प्रबन्धन ने आठो श्रमिकों की सेवाएं समाप्त कर दीं. उल्टे अध्यक्ष सहित दो और श्रमिक निलम्बित हो गए.

यहाँ 21मई 2013 को कारखाने में कथित मारपीट के आरोप में पारले के सात मज़दूरों पर प्रबन्धन ने आपराधिक मुकदमे ठोंककर निलम्बित कर दिया था. इस खेल में प्रबन्धन ने एक मज़दूर को ही मोहरा बनाकर एफआईआर दर्ज करायी थी. मज़दूरों की अपील पर ऊधमसिंह नगर की वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने अपने स्तर से जाँच करवाई और दो मुख्य प्रबन्धकों को साजिश रचने का जिम्मेदार ठहराते हुए मज़दूरों को निर्दोष बताया. एसएसपी ने प्रदेश के श्रमायुक्त को इसपर कार्यवाही के लिए पत्र भी भेजा.

मगर हुआ क्या? 17 सितम्बर, 2013 को भेजे गये इस पत्र की जानकारी मज़दूरों को भी नहीं मिली. श्रमायुक्त ने इस पत्र पर अपने अडिसनल से रिपोर्ट माँगी. अडिसनल ने डीएलसी को पत्र लिखा. डीएलसी ने एएलसी से रिपोर्ट माँगी और एएलसी ने लेबर इंस्पेक्टर को रिपोर्ट तैयार करने का आदेश दे दिया. बस हो गयी इतिश्री. अमूमन तो श्रमायुक्त व एसएसपी को इसपर सीधे कार्यवाही करनी चाहिए. वैसे भी सारे महकमे पूरे मामले से वाकिफ हैं. पारले यूनियन दर्जनों बार लिखित पत्र व मौखिक तौर पर हकीकत बया कर चुकी है. सबको सब पता है, फिर भी..... मामला मजदूरों का है न!

अब आइए एक दूसरे तथ्य पर नजर डालें.

उत्तराखण्ड में सरकार बदलने से ठीक पहले प्रदेश की कैबिनेट ने मंत्रियों, विधायकों यहाँ तक कि पूर्व विधायकों के वेतन, भत्तों व पेंशन में तीन गुने की वृद्धि कर दी. नये फैसले के बाद कैबिनेट मंत्री का वेतन 15 हजार की जगह 45 हजार रुपए, राज्यमंत्री को 14 हजार की जगह 42 हजार व उपमंत्री को 12 हजार की जगह 36 रुपए हजार मिलेंगे. इसी प्रकार विधायकों का पाँच हजार की जगह 10 हजार रुपया वेतन हो गया. स्पीकर को 18 हजार की जगह 36 हजार वेतन व बतौर जेब खर्च 30 हजार की जगह 60 हजार मिलेगा और नेता प्रतिपक्ष बतौर जेब खर्च 30 की जगह 50 हजार पाएंगे. इन सबके भत्तों आदि में भी दूने से ज्यादा बढोत्तरी हुई है.

इसके उलट राज्य में नौकरी के लिए आवेदन करने वाले बेरोजगारों पर अब शुल्क थोप दिया गया, जो सामान्य व ओबीसी के लिए 500 रुपए तथा एससी-एसटी के लिए 300 रुपए होगा.

दूसरी तरफ, सत्तासीन विजय बहुगुणा सरकार ने मालिकों के दबाव में पिछले साल अप्रैल में मजदूरों के न्यूनतम वेतन का जो फॉर्मूला जारी किया, वह मज़दूरों के लिए छलावा था. स्थिति यह है कि छह माह पूर्व राज्य सरकार ने विभिन्न उद्योगों के कार्यरत मजदूरों के वेतन का जो प्रस्ताव भेजा था, घोषित न्यूनतम वेतनमान उससे भी कम है. बेकरी व बिस्कुट जैसे 12 श्रेणी के उद्योगों में अतिकुशल श्रेणी ही गायब कर दी गयी.

इस श्रेणी में अकुशल के लिए मासिक रु 4980, अर्धकुशल हेतु रु 5445 व कुशल के लिए रु 5915 घोषित हुआ. फाउड्री, रबड, प्लास्टिक, डेरी जैसी श्रेणी के 16 तरह के उद्योगों में न्यूनतम मासिक वेतन अकुशल के लिए रु 5050 ,अर्धकुशल रु 5330, कुशल रु 5610 व अतिकुशल हेतु रु 6080 घोषित हुआ.

गौरतलब है कि उत्तराखंड में वर्ष 2010 से ही न्यूनतम वेतन घोषित होना था. काफी दबाव के बाद सरकार ने 6 अगस्त, 2012 को न्यूनतम वेतन का जो प्रस्ताव भेजा था, इसमें अकुशल के लिए रु 5500, अर्धकुशल रु 4800, कुशल रु 6400 व अतिकुशल रु 7200 प्रति माह था. हलांकि लगभग सभी मज़दूर यूनियनों व संगठनों ने 10 हजार से 14 हजार रुपए का सुझाव भेजा था. यही नहीं, इसे अप्रैल,2010 की जगह 2013 से प्रभावी बनाया गया.

यही तो है वो किस्सा, जिसमें है सबका अपना-अपना हिस्सा

सियासत है जिसके हाथ में, उसका ही है सबसे बडा हिस्सा...मुकुल पिछले तीन दशक से सामाजिक-राजनीतिक आंदोलनों में सक्रिय हैं.

http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-08-56/81-blog/4759-abhi-main-kis-tarah-muskaraun-for-janjwar-by-mukul

Ak Pankaj

राज्यसभा की टिकटें बिकती हैं और लोग खरीदते हैं. लेकिन बड़े ही मुग्ध भाव से वे लिखते हैं कि राज्यसभा जाने के लिए उन्होंने कोई पैसा नहीं खर्च किया. जबकि तथागत की भूमि पहुंचते ही उन्होंने पूरा का पूरा अखबार उस पार्टी प्रमुख के श्रीचरणों में अर्पित कर दिया. यह कोई 'रिश्वत' या 'पैसा खर्चना' नहीं है. और राज्यसभा का प्रमाण-पत्र मिलने के दूसरे ही दिन उस पार्टी प्रमुख (जिसने राज्यसभा भेजा है) का फुल पेज का इंटरव्यू वह भी एक अंग्रेजी पत्रिका से उठा कर छाप दिया, यह भी कोई पैसा खर्च करना नहीं है. सही है कोई-कोई इस तरह 'बिना एक पैसा भी खर्च किए' राज्यसभा चले जाते हैं.

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Vidya Bhushan Rawat

I have no issues if Mayawati, Jayalalitha, Mulayam Singh, Sharad Yadav, Nitish Kumar or Prakash Karath become the prime minister of the country. They are experienced and well versed with national issues and will be much better for India than corporate sponsored Narendra Modi. I welcome the attempt for form a new front. Politics is game of give and take and if these people really wish, they can stop the march of a communal fascist party in Delhi.

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Panini Anand

An empty open grave and a stone mar­ked 'Shaheed Afzal Guru' lie at the Idgah burial ground in Srinagar. Some 80 km from here, in the Seer Jagir village of Sopore district, his family still awaits the remains of Guru, who was hanged to death on February 9, 2013, after being convicted in the Parliament attack case. A year down the line, his wife Tabassum says nothing has cha­nged..."the injustice, the unans­wered demands, the open grave".

"Learn From Pakistan. They Gave Sarabjit Singh's Body.' | Panini Anand

outlookindia.com

A year down the line, his family still awaits the remains of Afzal Guru

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चन्द्रशेखर करगेती

5 hours ago · Edited ·

  • नये सीएम को समझना होगा जनता का मर्म !
  • वर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत को छोड़ दें तो इस प्रदेश ने अब तक सात सीएम देखे हैं । भाजपा ने नित्यानंद स्वामी, भगत सिंह कोश्यारी, बीसी खंडूड़ी (दो बार) और रमेश पोखरियाल निशंक के रूप में चार व कांग्रेस ने एनडी तिवारी और विजय बहुगुणा के रूप में दो सीएम दिए । एनडी तिवारी को छोड़कर अभी तक किसी भी सीएम ने पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं किया । बीसी खंडूड़ी को अपवाद मान लें तो किसी भी सीएम को दोबारा प्रदेश की कमान संभालने का मौका नहीं मिला ।
  • सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ ?
  • क्यों वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में बीसी खंडूड़ी अपनी सीट तक नहीं बचा पाए ?
  • क्यों विजय बहुगुणा को एक अक्षम मुख्यमंत्री करार देते हुए कांग्रेस आलाकमान को उन्हें हटाने के लिए मजबूर होना पड़ा ?
  • क्यों भगत सिंह कोश्यारी को दोबारा मौका नहीं मिला और निशंक एकमात्र ऐसा सीएम होते हुए भी, जिन पर पैराशूटर होने का ठप्पा नहीं लगने के बावजूद वह दोबारा सीएम नहीं बन पाए ?
  • इन सवालों का जवाब तलाशने के लिए हमें देश की दोनों बड़ी पार्टियों की कार्यसंस्कृति पर ध्यान देना होगा । कांग्रेस और भाजपा दोनों राष्ट्रीय पार्टियां हैं । सीएम तो छोड़ो, प्रदेश में मंत्री का पद या दायित्व निर्धारण के लिए भी केन्द्रीय आलाकमान की संस्तुति जरूरी होती है । यानी साफ है जो भी व्यक्ति भाजपा या कांग्रेस शासित प्रदेश का मुखिया होगा उसे पहले अपने आलाकमान की इच्छा और अनिच्छा का ध्यान रखना जरूरी होगा । समस्याएं, जरूरतें व एजेंडे प्रदेश स्तर और राष्ट्र स्तर पर अलग-अलग होते हैं । राष्ट्रीय आलाकमान को देश के स्तर पर सोचना होता है । वह हमेशा चाहेगा कि उसका अपना एजेंडा लागू हो । इसके लिए स्थानीय हितों की बलि देने में भी आलाकमान नहीं हिचकता । मसलन इको सेंसटिव जोन को ही ले लें । केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने प्रदेश की कांग्रेस सरकार को बगैर विश्वास में लिए उत्तरकाशी जनपद को इको सेंसटिव जोन घोषित कर दिया ।
  • कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को पता था कि विजय बहगुणा सरकार इस निर्णय का विरोध नहीं कर पाएगी, जबकि पूरे प्रदेश में इसका विरोध हुआ और केन्द्र सरकार के इस निर्णय को स्थानीय विकास की बलि देने की साजिश करार दे दिया गया । इसके बावजूद तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा इस मुद्दे पर कुछ नहीं कर पाये । आपदा के बाद पीड़ितों के लिए राहत और पुनर्निर्माण के कार्य की आवश्यकता थी । उधर कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व देश में यह संदेश देना चाहता था कि उत्तराखंड में स्थिति सामान्य हो चुकी है । इस संदेश से कांग्रेस आलाकमान यह साबित करना चाहता था कि उनकी पार्टी की सरकार ने उत्तराखंड में आपदा की दुश्वारियों को पलक झपकते दूर कर लिया । इसके लिए जरूरी था कि चारधाम यात्रा को तत्काल शुरू कराया जाए क्योंकि यात्रा को लेकर पूरे देश की निगाहें लगी हुई थीं । केन्द्र ने ऐसा दबाव बनाया कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने पुनर्वास के मुद्दे को किनारे कर दिया और सारा ध्यान चारधाम यात्रा को दोबारा चालू कराने में लगा दिया । इसका खामियाजा क्या हुआ यह विजय बहगुणा सरकार बखूबी जानती है ।
  • कहने का मतलब यह है कि केन्द्र को नाराज किए बगैर स्थानीय जनता की आवश्यकताओं, उनकी अपेक्षाओं और उनके हितों को न केवल समझना, बल्कि उसे दूर करने के लिए प्रयास करना बहुत आवश्यक है । यह काम न तो बीसी खंडूड़ी कर पाए, न निशंक और न कोश्यारी । विजय बहुगुणा भी केन्द्र को संतुष्ट रखने के चक्कर में अपना स्थानीय फर्ज भूल गए । वह भूल गए कि भले ही उन्हें आलाकमान ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने का मौका दिया है पर उनका दायित्व है जनता की सेवा । वह केन्द्र को खुश करने के चक्कर में अपने प्रदेश की जनता को नाराज करते गए । उनके बारे में तो यहां तक कहा जाने लगा कि आपदा के दौरान जब प्रदेश की जनता कराह रही थी, सीएम बहुगुणा इस बात की चिंता में डूबे थे कि किस तरह आलाकमान को खुश रखा जाए ।
  • बारह साल से हरीश रावत सूबे की सत्ता के शिखर पर खड़े होने की कोशिश में जुटे थे । दो बार वे शिखर को छूकर निकल गए । मगर ये भी सही है कि वे सड़क पर संघर्ष करते नहीं रह गए । उनका संघर्ष उन्हें सत्ता की उन चोटियों तक ले गया जहां हरीश रावत का कद और ऊंचा होता गया । उनके व्यक्तित्व में निखार आता गया । उनके रुतबे और हनक में कोई कमी नहीं आई । समालोचक इसे सियासी वनवास के तौर पर देखते हैं । पर यदि वनवास ऐसा होता है, तो ऐसा वनवास सत्ता का हर राजनीतिज्ञ भोगना चाहेगा । बहरहाल आज हरीश रावत शिखर पर हैं । उनका सपना पूरा हो गया है । यह भी उतना ही सच है कि यह सड़क पर संघर्ष की परिणति नहीं बल्कि हाईकमान का आशीर्वाद है । उन्हें सूबे के सियासी रहनुमा के तौर पर प्रोजेक्ट किया गया । लाजिमी है कि उन पर हाईकमान का ही नहीं बल्कि जनाकांक्षाओं का भी दबाव है । जिन सियासी हालात में वे सीएम बने हैं वहां तमाम मौके आएंगे जब उन्हें तय करना होगा कि वे हाईकमान के प्रति जवाबदेह हों या फिर सूबे की जनता के प्रति । कुल मिलाकर शिखर पर पहुंचना और शिखर पर बने रहना दोनों अलग-अलग मसले हैं । बड़ी बात शिखर पर बने रहने से होती है । इसीलिए उनकी अग्निपरीक्षा तो अब है । ये अग्निपरीक्षा क्या-क्या होंगी ?
  • नए सीएम हरीश रावत को हाई कमान के प्रति निष्ठा और जनता के प्रति एक सूबे के मुखिया के फर्ज के फर्क को बहुत जल्दी समझना होगा । वैसे भी हरीश रावत उम्मीदों का पहाड़ अपने सिर पर लेकर इस राज्य के मुख्यमंत्री बने हैं । केन्द्रीय आलाकमान के आदेशों और स्थानीय जनता की अपेक्षाओं पर उन्हें खरा उतरना पड़ेगा । यदि संतुलन का पलड़ा किसी एक ओर थोड़ा भी झुका तो इतिहास अपने आप को दोहराने से बाज नहीं आएगा ।
  • साभार : दैनिक जनवाणी — with Anand Rawat and Harish Rawat.
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Virendra Yadav

विहिप के संतों ने संगम तीर से घोषणा की है कि "'मोदी में राम विराजमान है .राम की शक्ति मोदी के साथ है . गौ ,गंगा की रक्षा और राम मंदिर के निर्माण के लिए मोदी का प्रधान मंत्री बनाया जाना ईश्वरीय इच्छा है .इससे आसुरी शक्तियां कमजोर होंगीं .हिन्दू हितों की रक्षा के लिए मोदी रूपी राम को जिताया जाना जरूरी है ". धर्मगुरु से लेकर कार्पोरेट तक ईश्वरीय इच्छा को सफलीभूत करने के अभियान में जुट गए हैं . ईश्वर की इस कमजोरी पर 'आसुरी' शक्तियों को थोडा अपनी शक्ति पर भरोसा तो होना चाहिए . यह 'ईश्वरीय ' दल का आखिरी कलाम है जिसके निहितार्थ समझे जाने चाहिए .

Unlike ·  · Share · 3 hours ago ·

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Sudha Raje

Sudha Raje

दूध वाली आईसक्रीम चाहिये मिल्क केक

भी मिल्क चॉकलेट भी और मावे के

रॉसगुल्ले केक पेस्ट्री पुडिंग मगर जो दूध

संग्राहक उत्पादक किसान हैं वे गँवार

और देहाती और मखौल के पात्र हैं

यही ठेठ शहरी काले अंगरेजों की सोच है


दुधारू पशु हो या भारवाहक ढोर हों पशु

तो परिजन परिवार की तरह प्यारे

होते हैं । हमारी गौरा के जाने के बाद

महीनों साँझ

सवेरा रुआँसा रहा बच्चों का


बैल गाय भैंस

ऊँट बकरी तो कमाऊ पुत्र की तरह प्यारे

होते हैं ।

नगर के फ्लैट कल्चर वाले अगरेज काले कब सोचेगे कि उनका डॉगी बाबा

नहीं देता

सब्जी फल अनाज पॉपकॉर्न दूध दही मख्खन घी पनीर केक पेस्ट्री पिज्जा बरगर चाऊमीन पाश्टा पूङी पराँठा टोस्ट ब्रेड जैम जैली सॉस कटलेट्स रोटी दाल चावल भाजी


ये

सब

तो

मिट्टी कीचङ गंदगी गोबर

के बीच से किसान देहाती गँवार उजड्ड

अंगरेजी ना

समझने वाले काले साँवले मैले असभ्य किसान किसानिन उगाते संग्रह करते हैं ।


शर्म आनी चाहिये ऐसे देशी तानाशाहों को जो जिनकी नमक रोटी खाते हैं उनकी निंदा करते हैं ।

गाय भैंस बकरी ऊँट भेङ पालना

कुत्ते बिल्ली पालने से अधिक जरूरी ।

है ।

और ये उपहास नहीं साहस और गर्व का कार्य है ।

©®सुधा राजे

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  • Sudha Raje शहर में लोग पिंजरे में तोता और बेड पर कुत्ता तो पाल सकते है किंतु बङा सा लॉन होने पर भी एक गाय या बकरी या भैंस नहीं पाल सकते मगर दूध?? मदर डेयरी है न!!!!! अब क्या डेयरी में दूध मशीन बनाती है?? शायद वे यही सोचते हैं और इसीलिये उनको कमरे में टॉयलेट से बदबू नहीं आती मगर गोबर से नफरत होती है

  • 4 hours ago · Like · 3

  • Rajendra Singh Shekhawat बहुत खूब ....

  • 3 hours ago · Like · 1

  • Pratap Singh Negi nice

  • 3 hours ago · Like · 2

  • Sunita Mishra kisano ke liye unke pashu putravat hote hai.pashu aur janwar me antar hai.

  • about an hour ago · Like

  • Palash Biswas स‌ुधा,संवाद में स‌ामिल कर रहा हूं तुम्हारी पंक्तियां एकबार फिर स‌ाभार।

  • a few seconds ago · Like

Jayantibhai Manani

आप ही कहिये, भाजपा और कोंग्रेस के साथ क्या सलूक किया जाए?

गुजरात की राज्य सरकार ने खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग को जा‌री किए एक पत्र में कहा है कि हर महीन 324 रुपए कमाने वाले ग्रामीण और 501 रुपए कमाने वाले शहरी को गरीबी रेखा से ऊपर रखा जा सकता है। राज्य सरकार ने 16 दिसंबर को यह पत्र जारी किया था।

गौरतलब है ‌कि 2011 में केंद्र सरकार के योजना आयोग के उपाध्याक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा ‌था कि 32 रुपए कमाने वाला शहरी और 26 रुपए कमाने वाला ग्रामीण गरीब नहीं है। उस समय भाजपा समेत विरोधी दलों ने इस पर शख्त ऐतराज जाताया था।


http://www.amarujala.com/news/samachar/national/a-person-not-poor-at-rs-11-per-day-says-modi-govt/

11 रुपए कमाने वाला गरीब नहीं: मोदी सरकार

amarujala.com

योजना आयोग के उपाध्याक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया के बाद अब गुजरात की नरेंद्र मोदी सरकार ने गरीबों का मजाक उड़ाया है।

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Shabnam Hashmi

Where are 24x7 channels?

in gujrat, one who earn 11 rs a day is not bpl गुजरात में 11 रूपये रोज कमाने वाला गरीब नहीं!...

khaskhabar.com

in gujrat, one who earn 11 rs a day is not bpl भाजपा के भावी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी गुजरात के मुख्यमंत्री हैं और वहां गांवों में 324 रूपये व शहरों में 501 रूपये मासिक से ज्यादा कमाने वालों को गरीब...

Like ·  · Share · 9 hours ago ·

Vallabh Pandey

10 साल पहिले एक ठो हमारी भी भैंस कौनो रात में खोल ले गया खूंटा पर से, बड़ी दुधार रही, बल्टी भर के दूध देती रही, तहरीर भी लिखाए रहे लेकिन मिली नहीं ..... अब मंत्री जी वाली खोजाय रही हैं, कहीं हमारी भी मिल जाय तो बतइयो, अब तो बुढा गयी होगी लेकिन फिर भी बताने वाले को दुधारी चाय तो पिला ही दी जायेगी.....

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The Economic Times

Amitabh Bachchan's 'poison' dart leaves Pepsi cringing, staff saddened by remark. PepsiCo paid Amitabh Bachchan Rs 3 cr a year and the Bollywood star was their brand ambassador for 8 years. Criticizing a brand after endorsing it doesn't seem appropriate, celebrity managers told ET. Do you agree? http://ow.ly/td3Kr

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Palash Biswas जनसरोकार कारपोरेट आइकानिक।


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