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Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Saturday, July 25, 2015

अम्बानियों के लिए तो इनके पास जादू की छड़ी हर समय तैयार है, पर आप के और मेरे लिए कुछ भी नहीं है. जो है भी वह हमे जाति और सम्प्रदाय में बाँटने के लिए है. ताकि श्रमजीवी और उन को जगाने के लिए प्रयासरत मेधाओं को विनायक सेन और सीमा आजाद की तरह काल कोठरी में डाला जा सके. सच कहना आज के भारत में सबसे बड़ा अपराध है.

मनु और दनु दोनों ही मिथक है. मनु की सन्तान होने के कारण मानव और दनु की सन्तान को दानव की अवधारणा भी कल्पना से अधिक कुछ नही है. हिन्दू समाज को नियमित करने के लिए रची गयी स्मृतियाँ तो बहुत बाद में बनीं. सम्भवत: गुप्त पुनर्जागरण के बाद. किसी शास्त्रकार ने अपने ग्रन्थ का नाम मनु से जोड़ा तो किसी ने याज्ञवल्क्य से तो किसी ने पा्राशर से-- ताकि सीधी सादी जनता से यह कहा जा सके के यह तो बहुत पुरानी परम्परा है. अत: इस का हर हाल में पालन होना है.

शायद सुदूर अतीत में वर्ण जन्म आधारित न हो कर गुण कर्म स्वभाव पर आधारित रहा होगा. विश्वामित्र का ब्रह्मर्षि होने का प्रयास, अनेक वर्ण विहीनों की औपनिषदिक ऋषि के रूप में मान्यता, मछुवारिन के पुत्र की वेद्व्यास ( वेदों की व्याख्या करने वाले व्यक्ति के रूप में लोक मान्य) के रूप में मान्यता. पुराणों के वाचक के पद को ही व्यास गद्दी नाम देना तत्कालीन समाज में मेरिट आधारित व्यवस्था की स्थिति को सिद्ध करते हैं. (कौरव और पांड्वों के पिता भी तो व्यास की नियोग जन्य सन्तान थे.)

यदि आज हम गौर से अपने समाज को देखें तो हमें वर्ण व्यवस्था के विकास की प्रक्रिया समझ मे आ सकती है. समाज के ऊपरी स्तर पर योग्यता का मानदंड कब का समाप्त हो चुका है. राजकुल की बहू होने के कारण ही सोनियाँ देश की महारानी बनी हुई हैं. राहुल को देश की सत्त्ता सौंपने के लिए कांग्रेसी बैचैन हैं. उत्तर प्रदेश के यादव राजकुल की बहू निर्विरोध सांसद बन गयी हैं. युवराज लै्पटौप और टैबलेट का प्रलोभन देकर राजा बन गया है..उसके दोनों चाचा मंत्री हैं. दक्षिण में करुणानिधि के राजवंश की तूती बोलती है. तो आन्ध्र का रा्जकुमार ... रेड्डी को लगता है कि यदि राहुल भारतीय साम्राज्य का उत्तराधिकारी तो मैं आन्ध्र का क्यों नहीं?---पूरे देश में यही हाल है.

विश्वविद्यालय विद्वानों के लिए नहीं, प्रोफ़ेसरों के वंशजों के लिए हैं. नौकरशाही, नौकरशाहों के वंशजों के लिए ही हो, इस के लिए हमा्रे सामान्य शिक्षा व्यवस्था को धर्मदा खाते में डाल दिया गया है, ताकि इन विद्यालयों से निकलने वाले बच्चों से कहा जा सके कि तुम योग्य नहीं हो, सरकारी सदावर्त पर जियो, बोतल पियो और वोट दो. शरीर में दम है तो माफिया बनो और दंगा करो. जब हमें अपनी गद्दी की रक्षा के लिए तुम्हारी आवश्यकता होगी तब हम तुम्हें बुला लेंगे.

अम्बानियों के लिए तो इनके पास जादू की छड़ी हर समय तैयार है, पर आप के और मेरे लिए कुछ भी नहीं है. जो है भी वह हमे जाति और सम्प्रदाय में बाँटने के लिए है. ताकि श्रमजीवी और उन को जगाने के लिए प्रयासरत मेधाओं को विनायक सेन और सीमा आजाद की तरह काल कोठरी में डाला जा सके. 
सच कहना आज के भारत में सबसे बड़ा अपराध है.


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