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Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Thursday, December 3, 2009

Dhaka helps, fugitive Ulfa boss in Delhi

India 443/1 at stumps
India take 50-run lead after Sri Lanka score 393, Sehwag batting on 284 | More on Virender Sehwag
 
   One dead in Mumbai protests for water | LIVE updates
   Blinded by gas leak | Victims demand clean up | More
   Get CAT test centre changed now! | Raids in Emaar
   Customers cancel Tata Nano bookings | Biggest CEO outrages



उल्‍फा प्रमुख ने कहा, हैलो.. मैं बांग्लादेश से बोल रहा हूं
एजेंसी

imageप्रतिबंधित उग्रवादी संगठन उल्फा के सरगना और इस संगठन को खड़ा करने वाले अरविंद राजखोवा की गिरफ्तारी का दावा करने वाले भारतीय सुरक्षा बलों का उस वक्‍त मुंह की खानी पड़ी जब राजखोवा ने गुरुवार को यह दावा करके सबको चौंका दिया कि उसकी गिरफ्तारी की खबर पूरी तरह से झूठी है। राजखोवा का कहना है कि ऐसी खबर खबर प्रचारित करने वालों का मकसद असम में शांति स्थापित करने की प्रक्रिया को कोशिश को पटरी से उतारना है।

दूसरी ओर, केन्द्रीय गृह मंत्नालय के सूत्नों ने भी उल्फा के इस शीर्ष उग्रवादी की गिरफ्तारी के बारे में पुष्टि की थी। सरकार ने दावा किया था कि राजखोवा को एक अन्य खुंखार उग्रवादी विश्वमोहन देव वर्मा के साथ बंगलादेश में दबोचा गया है। विश्वमोहन नेशनल लिबरेशन फ्रंट आफ टाईगर का सरगना है। इसके अलावा उल्फा के एक अन्य सदस्य अपूर्वा बरुआ को भी गिरफ्तार किया गया है।

वहीं, नॉर्थ ईस्ट के एक टीवी चैनल से बातचीत में राजखोवा ने कहा कि मैं बांग्लादेश से बोल रहा हूं, जहां से मैं अक्सर बात करता हूं। जो लोग यह कह रहे हैं कि मैं अरेस्ट हो गया हूं वे झूठ बोल रहे हैं। ऐसे लोग असम में शांति प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही इसे पटरी से उतार देना चाहते हैं। राजखोवा ने कहा कि जब भी हम बातचीत शुरू करना चाहते हैं कुछ लोग अफवाहें उड़ा देते हैं।

उल्फा सरगना की गिरफ्तारी भारत के लिए बड़ी कामयाबी : गृह मंत्नालय

दैनिक भास्कर - ‎4 घंटे पहले‎
प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन उल्फा के सरगना और इस संगठन को खड़ा करने वाले अरविंद राजखोवा की गिरफ्तारी भारतीय सुरक्षा बलों के लिये उग्रवाद के खिलाफ अभियान की एक बड़ी कामयाबी है। केन्द्रीय गृह मंत्नालय के सूत्नों ने भी उल्फा के इस शीर्ष उग्रवादी की गिरफ्तारी के बारे में पुष्टि कर दी है। उन्होंने बताया कि राजखोवा को एक अन्य खुंखार उग्रवादी विश्वमोहन देव वर्मा के साथ बंगलादेश में दबोचा गया है। विश्वमोहन नेशनल लिबरेशन फ्रंट ...

बातचीत के लिए उल्फा नेता आगे आयें: गोगोई

हिन्दुस्तान दैनिक - ‎24 मिनट पहले‎
असम के मुख्यमंत्री तरूण गोगोई ने उल्फा के सभी शीर्ष नेताओं से बातचीत करने कि लिए आगे आने की अपील करते हुए कहा है कि प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन की ओर से शांति वार्ता के लिए सरकार को सकारात्मक संकेत मिले हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अगर संगठन के नेता बातचीत के लिए आगे आते हैं तो उनकी सरकार उनके लिए सुरक्षा मुहैया करायेगी। गोगोई ने बताया कि राज्य में हिंसा को अवश्य समाप्त किया जाना चाहिए। हमने उन सबके लिए अपने दरवाजे खुले रखे ...

उल्फा के बारे में अनुमान पर फैला भ्रम: चिदंबरम

हिन्दुस्तान दैनिक - ‎30 मिनट पहले‎
उल्फा के अध्यक्ष अरविंद राजखोवा के आत्मसमर्पण करने की खबरों के बाद गृहमंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि मीडिया अनुमान के आधार पर रिपोर्टे देकर भ्रम की स्थिति पैदा कर रहा है। यहां संसद भवन के बाहर संवाददाताओं ने जब उनसे राजखोवा के आत्मसमर्पण करने के बारे में विस्तार से जानकारी चाही तो चिदंबरम ने कहा कि मीडिया अनुमान के आधार पर रिपोर्टे दे रहा है और इस तरह से बहुत भ्रम फैल रहा है। मैं आपसे आग्रह करता हूं कि कृपया संयम बरतें। ...

विस्फोट में हमारा हाथ नहीं: उल्फा

दैनिक भास्कर - ‎२२-११-२००९‎
प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन उल्फा ने शनिवार को नलबाड़ी में दोहरे बम विस्फोट में शामिल होने से इंकार किया है, जिसमें छह लोगों की मौत हो गयी और 60 से अधिक लोग घायल हो गये। संगठन के 709 बटालियन के कमांडर हीरा सरानिया ने शनिवार को एक स्थानीय समाचार चैनल से कहा कि उल्फा किसी भी तरीके से बम विस्फोट में शामिल नहीं रहा और यह केवल शांति प्रक्रिया को पटरी से उतारने के लिए किसी तबके की साजिश है। सरानिया ने कहा, आरोप पूरी तरह प्रेरित हैं और ...

अब भी असुरक्षित है देश-चिदम्बरम

Patrika.com - ‎11 घंटे पहले‎
पूर्वोत्तर में उग्रवाद की समस्या के बारे में गृहमंत्री ने बताया कि उल्फा की तरफ से कुछ दिनों में एक राजनीतिक बयान जारी होने की सम्भावना है और हम उनसे बातचीत करने को तैयार हैं। साथ ही चिदम्बरम ने दोहराया कि अगर नक्सली हिंसा छोड़ने की औपचारिक घोषणा करें तो सरकार उनसे गरीबी, शोषण से लेकर प्रशासन तक के किसी भी मुद्दे पर बातचीत के लिए तैयार है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि माओवादियों से अब तक कोई बातचीत नहीं हुई है। ...

मालगाड़ी के 12 तेल टैंकरों में आग, उल्फा पर शक

दैनिक भास्कर - ‎१७-११-२००९‎
असम के जोरहाट जिले में मोरियानी के पास उल्फा के संदिग्ध उग्रवादियों ने विस्फोट किया जिससे मालगाड़ी के 12 तेल टैंकरों में आग लग गई तथा चार अन्य पटरी से उतर गए। इससे क्षेत्र की रेल सेवाएं भी बाधित हुईं। नुमलीगढ़ रिफाइनरी लि. के सूत्रों ने बताया कि प्रत्येक टैंकर में 70000 लीटर हाईस्पीड डीजल था जिसकी कीमत 25-25 लाख रुपए थी। टैंकरों में आग तब लगी जब मालगाड़ी सोमवार की रात करीब 9:30 बजे नुमलीगढ़ रिफाइनरी से उत्तरप्रदेश के कानपुर ...

दिन भर की खास खबरें

Awaaz Karobar - ‎21 घंटे पहले‎
असम के आतंकवादी संगठन उल्फा के सरगना अरविंद राजखोवा को बांग्लादेश में पकड़ लिया गया है। साथ ही बोडो आतंकवादी संगठन NDFB के मुखिया रंजन देमिरी को भी बंग्लादेशी पुलिस जल्द ही उसे भारत को सौंप दिया जाएगा। बंग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार बनने के बाद वहां की सरकार आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई में लगी हुई है। अमेरिका की नई अफगानिस्तान नीति में भारत की ज्यादा भूमिका नहीं होगी। राष्ट्रपति ओबामा ने अपनी इस नीति का ...

उल्फा नेताओं को सुरक्षित रास्ता देने को तैयार भारत

नवभारत टाइम्स - ‎२२-११-२००९‎
भारत सरकार ने शांति वार्ता को आगे बढ़ाने के लिए बांग्लादेश में रहने वाले युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के नेताओं को सुरक्षित रास्ता देने का वादा किया किया है। एक विश्वसनीय सूत्र ने यह जानकारी देते हुए कहा कि उल्फा से वार्ता के लिए हम हमेशा तैयार रहे हैं। सूत्र ने कहा, ''हमने उल्फा नेताओं अरबिंदा राजखोवा और परेश बरुआ को सुरक्षित रास्ता देने का वादा किया है।'' सूत्र ने यह भी कहा कि इस रुख में बदलाव नहीं हुआ है। ...

उल्फा ने की चिदंबरम की आलोचना

समय - ‎२५-११-२००९‎
उल्फा ने संसद में गृह मंत्री पी चिदंबरम के उस बयान की आज आलोचना की जिसमें उन्होंने कहा था कि संगठन वार्ता को तैयार नहीं है। उल्फा ने कहा कि इससे पता चलता है कि केंद्र सरकार जटिल समस्याओं का समाधान नहीं चाहती। उल्फा के मुखिया अरविंद राजखोवा ने एक बयान में कहा चिदंबरम के बयान से स्पष्ट है कि केंद्र सरकार असम समस्या का स्थायी और शांतिपूर्ण समाधान करने की इच्छुक नहीं है। उन्होंने कहा हम वार्ता के लिए नहीं गिड़गिड़ा रहे हैं ...

'अपने अड्डे चीन ले जाने की कोशिश में है उल्फा'

हिन्दुस्तान दैनिक - ‎२२-११-२००९‎
असम में बम विस्फोटों की ताजा घटना के कुछ घंटे बाद ही मुख्यमंत्री तरूण गोगोई ने रविवार को कहा कि प्रतिबंधित संगठन उल्फा अपने अड्डे चीन ले जाने की कोशिश कर रहा है। गोगोइ ने एक निजी टेलीविजन चैनल से कहा कि मैं नहीं जानता कि उल्फा को चीनी अधिकारियों का समर्थन प्राप्त है या नहीं, लेकिन निस्संदेह वे अपने अडडे चीन ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर भी इसी तरह की बात कर चुके हैं। ...


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Dhaka helps, fugitive Ulfa boss in Delhi

Dec. 2: Ulfa chairman Arabinda Rajkhowa was tonight flown to Delhi after he was "pushed back" to Tripura from Bangladesh, the two neighbours pulling off the biggest unde- clared deportation of a most-wanted fugitive in recent memory.

The stunning "high-value" transfer, which neither side would confirm on record because of the absence of an extradition treaty, is being seen as an unparalleled goodwill gesture before the visit of Bangladesh Prime Minister Sheikh Hasina to India on December 19.

Rajkhowa heads the political wing of the banned Ulfa that had been blamed for several terror strikes in Assam, including blasts last month in which at least eight people were killed.

With the "capture" of Rajkhowa, one of the five founder leaders of Ulfa, its entire political leadership is now in custody, fuelling speculation that the cornered outfit could soon agree to hold talks without the usual key condition of "sovereignty" being on the agenda.

Union home minister P. Chidambaram, without making any mention of the detention of Rajkhowa, today told the Rajya Sabha: "It is quite likely that the Ulfa leadership will make a political statement in a few days. If they wish to talk, we are ready, provided they formally abjure violence and drop the demand of sovereignty."

The status of Rajkhowa is shrouded in mystery. In order to spare Bangladesh compulsions to explain the "transfer", India could officially claim that the Ulfa leader crossed over and "surrendered" or turned up for talks.

National security adviser M.K. Narayanan said: "I don't think he (Rajkhowa) has been arrested. If at all it will happen, probably he may surrender."

Sources said the 52-year-old Rajkhowa was picked up by Bangladeshi security agencies last week and kept in a secured location in Dhaka.

Along with Rajkhowa, Ulfa publicity secretary Apurba Baruah was flown to Delhi. Sources said the two were "pushed" across the Akhaura checkpoint, 6km west of Agartala on the border, by Bangladesh. The two were flown from Tripura by a special aircraft to Delhi and later transferred to a safe house.

"Pushed back" is a phrase security agencies use when fugitives are "detained" in foreign countries and sent over in the absence of formal treaties. The need for an extradition treaty comes into play only if a suspect is formally arrested.

Sources in Guwahati said officials from external intelligence agency RAW had visited Bangladesh to interrogate Rajkhowa.

Another most-wanted fugitive from the Northeast, Ranjan Daimary, has been detained in Bangladesh but not been transferred. Daimary is the chief of the National Democratic Front of Boroland (anti-talks faction).

A Lashkar-e-Toiba operative, Nazir Tarian Dabede, was handed over by the BSF to Meghalaya police this morning. Nazir, said to be from Kerala but suspected to have been hiding in Bangladesh, is an accused in the 2005 attack on the Indian Institute of Science, Bangalore.

The implications of the unofficial transfers are far-reaching, not the least because Bangladeshi territory was being used as a staging post by assorted extremist groups, including some supported by Pakistan, to launch terror strikes on India.

An interim military regime and subsequently Hasina, the India-friendly leader who won a landslide victory in the Bangladesh elections, had tried to crack down on such outfits.

Unprecedented co-operation from Bangladesh has led to a series of breakthroughs recently. On November 5, Ulfa's "foreign secretary" Sasha Choudhury and "finance secretary" Chitrabon Hazarika were "pushed into" India.

The Ulfa military chief, Paresh Barua, is still at large with reports suggesting he has fled Bangladesh and is flitting among China, Myanmar and Thailand.

Rajkhowa's transfer came on a day the Indian and Bangladeshi home secretaries concluded talks in Delhi. Treaties to tackle terrorism and drug trafficking and exchange of prisoners were more or less finalised.

http://www.telegraphindia.com/1091203/jsp/frontpage/story_11816384.jspTop

Red dens spurn boycott call
Better policing leads to 54 per cent polling

Ranchi, Dec. 2: A wide security blanket comprising more than 40,000 state and central forces personnel, coupled with the genuine desire of people to participate in the election process, ensured a better turnout today in the second phase of voting in 14 constituencies, at least six of which are Maoist strongholds.

Barring a rebel blast in Pirtand in Giridih that killed a CISF jawan and another one that damaged a culvert in Dumri, voting was surprisingly peaceful throughout the seven districts, even though the run up to the second phase of elections saw a Maoist sponsored bandh that came with its share of violence.

The average polling recorded in the second phase was around 54.11 per cent, but poll officials cautioned the figure might change after more data came in from the remote areas.

A much relieved state chief secretary, Shiv Basant, told The Telegraph that elaborate security arrangements that included "pre-poll area domination by security forces" and the active role of the administration helped build confidence among people who ultimately came out to vote.

Defying a Maoist poll boycott call, voter turnout was high in as many as 12 constituencies. Most Naxalite-infested areas like Tamar — parts of which are under Ranchi and Khunti district — and Dumri in Giridih registered a turnout of 42 and 48 respectively.

In the remaining constituencies of Silli, Khijri, Mandar (in Ranchi district), Gomia (Bokaro), Gandey, Giridih and Dumri (Giridih), Barhi and Mandu (Hazaribagh), Barkagaon and Ramgarh (in Ramgarh district), Koderma and Khunti, polling was between 49 to 62 per cent.

Today's turnout was better than the first phase of elections that registered 53.10 per cent polling in 26 seats that were relatively free from rebel influence. Moreover, urban centres registered abysmal polling on November 25 with Ranchi recording only 32.91 per cent, and Hatia and Kanke doing marginally better with 39.45 and 43.57 per cent respectively.

Both the urban seats of Jamshedpur also witnessed poor poll percentages. Ultimately, the seats in Santhal Pargana (Pakur alone polled over 72 per cent) helped shore up the overall figure to 53.10 per cent.

"The smooth and peaceful conduct of the second phase elections was a major concern for us but our arrangements proved to be fool-proof. Barring only one incident in Giridih, everything was OK," said the state's joint chief electoral officer, Ashok Kumar Sinha.

http://www.telegraphindia.com/1091203/jsp/frontpage/story_11815438.jsp
Transgression on Tiger lips
- Apology comes after waitress claims affair
Loneliest place on earth: Tiger Woods during a tournament in October. (AFP)

Dec. 2 (Agencies): Tiger Woods admitted to "transgressions" without being specific, apologising to his family for letting them down a day after a waitress claimed she had an affair with the world's top golfer.

"I have let my family down and I regret those transgressions with all of my heart," Woods wrote on his website. "I have not been true to my values and the behaviour my family deserves. I am not without faults and I am far short of perfect. I am dealing with my behaviour and personal failings behind closed doors with my family. Those feelings should be shared by us alone."

His statement followed a cover story in Us Weekly magazine which quoted a Los Angeles cocktail waitress as claiming that she had a 31-month affair with Woods.

The waitress, Jaimee Grubbs, told the magazine she met Woods at a Las Vegas nightclub the week after the 2007 Masters — two months before Woods's wife, Elin Nordegren, gave birth to their first child. Grubbs claimed to have proof in 300 text messages.

Jaimee Grubbs, the waitress who claimed she and Woods had an affair. (AP)
Rachel Uchitel, the nightclub hostess who has denied being his girlfriend
Elin Nordegren, Woods's
wife and mother of his two children

About three hours before Woods's statement, the magazine published what it said was a voicemail — provided by Grubbs — that Woods left on her phone on November 24, three days before his middle-of-the-night car crash outside his home in Florida.

Woods did not offer details of any alleged relationship. "I will strive to be a better person and the husband and father that my family deserves," Woods said. "For all of those who have supported me over the years, I offer my profound apology."

One of the world's most recognisable figures and a powerhouse pitchman with the image of a squeaky clean, hard-working sportsman, Woods has lucrative endorsement deals with major companies such as Nike, AT&T and Gillette, a unit of Procter & Gamble.

His marketing deals appeared to be holding fast. Nike, Gillette, NetJets, and PepsiCo Gatorade all said their relationship with the golfer remained unchanged. "Nike supports Tiger and his family. Our relationship remains unchanged," Beth Gast of Nike Golf said in an email.

Woods has been subjected to more media scrutiny over the past week than when he first won the Masters in 1997 and set off the first wave of Tigermania. He has spoken only three times through his website, although this was his longest posting.

"Although I am a well-known person and have made my career as a professional athlete, I have been dismayed to realize the full extent of what tabloid scrutiny really means," Woods said. "My family and I have been hounded to expose intimate details of our personal lives."

He continued to insist that accounts which claimed physical violence played a role in his car crash were "utterly false and malicious".

His statement came one day after the Florida Highway Patrol closed its investigation into the accident — without Woods ever speaking to state troopers.

http://www.telegraphindia.com/1091203/jsp/frontpage/story_11816330.jsp

PRESIDENCY: FUTURE TENSE
- Mere making of a university is no solution

University status for Presidency College has hit banner headlines — a rare recognition for an academic institution. The motive force, ultimately, is middle-class Bengali sentiment for a cultural icon. Presidency ranks with Rabindranath and Satyajit — hence the strained efforts to flaunt its links with those stalwarts.

This is not to deny the college's unique and sustained role in Bengal's education. I myself owe it a profound debt from three years as a student and 19 as a teacher there. But now that the dream is turning real, we need to weigh the prospects soberly.

Presidency's chief lasting assets are its treasure-laden library and selectively well-endowed laboratories. In most other respects its infrastructure, though exceptional for a college, are inadequate for a university. The land and buildings cannot possibly suffice: a new campus is imperative, with the funds to stock and people it. Thereby hang several depressing tales.

One relates to staffing. Presidency is served by a floating body of government college teachers. Their Presidency posting is a matter of accident. A university will call for site-specific recruitment on a different pattern. Present teachers may apply for berths, but cannot demand them. The whole process raises complex procedural and even legal issues, not to mention pressure from the powerful teachers' lobby. This may be the biggest roadblock to a smooth transition, which mere money or goodwill cannot remove.

A partial model is offered by the upgrading of Bengal Engineering College, Shibpur. But as one of the very few state-run engineering colleges, Shibpur had a more singular status vis-a-vis both the government and Calcutta University. It also had vastly more land and infrastructure. Presidency will have to steer a trickier course.

The structural problems are compounded by intangible ones which have never been dispassionately assessed. It is simply untrue to say that every teacher at Presidency in pre-Left days was a worthy scholar: there were always some unfit to teach anywhere. The balance was more than redressed by a core staff (largely, though not always, protected from transfer) with learning and research skills unknown in undergraduate colleges elsewhere, and a somewhat higher level of funding. The system was shored up by a network of official privilege and sentimental loyalty that evoked deep resentment in those outside the charmed circle.

That resentment found potent political expression once the Left Front came to power. The transfer policy was intensively applied to bring to the college (a) a few exceptional scholars who had earlier not found favour; (b) some sincere and competent teachers who made best use of the opportunity; and (c) a band of apparatchiks who virtually ran the college for a decade, almost designedly rubbishing its academic needs. Their efforts culminated in a great symbolic drive to abolish admission tests. The move failed, but vitiated and demoralized college life for years. This was when Professor Atin Gun was manhandled in the staff room, and the venerable Professor Amal Raychaudhuri accused of admitting students against bribes.

Presidency was sunk in these self-destructive broils just when the academic scenario was changing radically. It was the most intensive phase of founding and consolidating new universities in India: often with serious defects, but introducing new patterns and purposes that Presidency simply passed by.

What did it thereby lose out on? First, the confidence of its serious teachers and, still more crucially, its potential future teachers. The new universities promised more opportunities and less bureaucracy (on which more below); so, as never before, did non-government colleges. Recruitment to the Government Educational Service has undeniably declined in recent times. Outstanding Presidency alumni no longer think of returning to teach there, and probably could not find berths if they tried. To regain that confidence is no easy task: in the global era, it is hard enough to retain them in India, let alone West Bengal.

This loss of morale also affected infrastructural reform. The efforts of Professor Subrata Datta ensured that at Presidency, even Arts teachers learnt about computers before their compatriots elsewhere; but this was not backed up by upgrading the infrastructure as a whole.

The root problem was, and remains, what we might call mental infrastructure: the mindsets and procedures controlling planning and expenditure. India's education system is hag-ridden by bureaucracy. Even within this prison, the government college occupies a special chamber of little-ease. When I left Presidency in 1991, the principal's financial power in many vital matters was capped at Rs.2,000. As professor-in-charge of the library, I once obtained Rs 8 lakh to buy books but lacked Rs.10 for a pot of glue to label them. The problem is not financial but systemic.

Anecdotes can trivialize, but only by their means can I convey the endemic problems and frustrations of the milieu. In my 19 years at Presidency, I attended just two international conferences. Obtaining the clearances took 54 and 37 visits respectively to Writers' Buildings. Those travelling without clearance were reprimanded and humiliated, threatened with criminal action, or forced to conceal academic distinctions that should be proudly announced. Some rules have now been relaxed, but new curbs put in their place. And needless to say, the problems are multiplied by the clerical incompetence of the secretariat.

Our government colleges are still effectively governed by the Bengal Education Code of 1930, indeed the 19th-century dispensation underlying it: predating the jet plane, the electronic text, information technology, and the concept of collective project-based research. These are the most important of countless innovations that have transformed the academic as most other sectors of life. Their blessings may not be unmixed, but they are radical; more crucially, they are non-negotiable. Some recent teachers at Presidency have made heroic efforts to introduce them, but working against the grain of the system. Their labours have not had proportionate reward.

No institution can mark time: it either advances or declines. By not changing sufficiently in relation to its milieu — which includes other premier institutions in the state — Presidency has effectively fallen back, in ways that cannot be gainsaid by invoking its 'hallowed traditions'. It has a daunting deficit to make good.

University status presents an opportunity. It needs hardcore plans and decisions to back up what is, as yet, no more than a political fiat. I repeat that the search for the right teachers poses the greatest challenge. Guest lecturers and eminent visitors are the icing on the cake: Presidency University must stand or fall by the strength of its core, tenured staff. This is an asset that the government is loath to dispense, even while officials proliferate at the secretariat. Incredibly, the staff strength at Presidency was actually reduced with the introduction of full postgraduate teaching. Many colleges across the land function with two, or one, or no full-time teacher in an Honours department.

Let me close with that reminder of the wider picture: for we must not repeat the folly of thinking that Presidency can flourish by isolating itself from the general scene. (This is not a plea to make it an affiliating university.) Along with many hostile forces, the mush and snobbery of its loyal alumni have played no small part in drawing affliction upon the college. Presidency University can only prosper in interaction with other institutions; above all, as crowning a respectable system of universal schooling that seems no part of the state agenda. A well-staffed Presidency will work little good if there continue to be 60,000 missing teachers in primary schools for poor children. Till those schools provide a student catchment across social divides, elite downstream institutions can only survive by diverting one another's waters. That thought should temper the current bhadralok elation over Presidency.

http://www.telegraphindia.com/1091203/jsp/opinion/story_11812693.jsp

United Liberation Front of Asom

From Wikipedia, the free encyclopedia

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United Liberation Front of Asom
Founder Paresh Barua
Chairman Arabinda Rajkhowa
Commander-in-Chief Paresh Baruah
Founded 1979
Membership Unknown
Ideology revolutionary political organization engaged in "liberation struggle" against India for establishment of a sovereign, independent Assam
International affiliation Operations in India
Website
http://www.geocities.com/CapitolHill/Congress/7434/

The United Liberation Front of Asom is a separatist group from Assam,[1] among many other such groups in North-East India. It seeks to establish a sovereign Assam via an armed struggle in the Assam Conflict. The Government of India banned the organization in 1990 and classifies it as a terrorist group, while the US State Department lists it under "Other groups of concern".[2]

ULFA claims to have been founded at the site of Rang Ghar on April 7, 1979,[3] a historic structure from the Ahom kingdom. According to Sunil Nath, the ULFA established relationships with Nationalist Socialist Council of Nagaland (NSCN) in 1983 and with KIA, operating in Burma, in 1987.[4] It initiated major violent activities in 1990. Military operations against it by the Indian Army that began in 1990 continues till present. In the past two decades some 10,000 people have died in the clash between the rebels and the government.[5]

Contents

[hide]

[edit] Top leaders

The major leaders of the organisation are:

[edit] ULFA according to itself

Organizations listed as terrorist groups by India
Northeastern India
National Socialist Council of Nagaland-Isak-Muivah (NSCN-IM)
Naga National Council-Federal (NNCF)
National Council of Nagaland-Khaplang
United Liberation Front of Asom
People's Liberation Army
Kanglei Yawol Kanna Lup (KYKL)
Zomi Revolutionary Front
Kashmir
Al-Badr
Al-Badr Mujahideen
Al Barq (ABQ)
Al Fateh Force (AFF)
Al Jihad Force (AJF)/Al Jihad
Al Mujahid Force (AMF)
Al Umar Mujahideen (AUR/Al Umar)
Awami Action Committee (AAC)
Dukhtaran-e-Millat (DEM)
Harakat-ul-Ansar
Harakat-ul-Jihad-I-Islami
Harakat-ul-Mujahideen
Hizb-ul-Mujahideen (HUM)
Ikhwan-ul-Musalmeen (IUM)
Jaish-e-Mohammed (JEM)
Lashkar-e-Mohammadi
Jammat-ul-Mujahideen (JUM)
Jammat-ul-Mujahideen Almi (JUMA)
Jammu and Kashmir Democratic Freedom Party (JKDFP)
Jammu and Kashmir Islamic Front (JKIF)
Jammu and Kashmir Jamaat-e-Islami (JKJEI)
Lashkar-e-Toiba (LET)
Jaish-e-Mohammed
Kul Jammat Hurriyat Conference (KJHC)
Mahaz-e-Azadi (MEA)
Muslim Janbaaz Force (MJF/Jaanbaz Force)
Muslim Mujahideen (MM)
Hizbul Mujahideen
Harkat-ul-Mujahideen
Farzandan-e-Milat
United Jihad Council
Al-Qaeda
Students Islamic Movement of India Tehreek-e-Jihad (TEJ)
Pasban-e-Islami (PEI/Hizbul Momineen HMM)
Shora-e-Jihad (SEJ)
Tehreek-ul-Mujahideen (TUM)
North India
Babbar Khalsa
Bhindranwala Tigers Force of Khalistan
Communist Party of India (Maoist)
Dashmesh Regiment
International Sikh Youth Federation (ISYF)
Kamagata Maru Dal of Khalistan
Khalistan Armed Force
Khalistan Liberation Force
Khalistan Commando Force
Khalistan Liberation Army
Khalistan Liberation Front
Khalistan Liberation Organisation
Khalistan National Army
Khalistan Guerilla Force
Khalistan Security Force
Khalistan Zindabad Force
Shaheed Khalsa Force
Central India
People's war group
Balbir militias
Naxals
Ranvir Sena
 v  d  e 

The ULFA is a "revolutionary political organization" engaged in a "liberation struggle" against state terrorism by India for the establishment of a sovereign, independent Assam. It does not consider itself a secessionist organization, as it claims that Assam was never a part of India. It claims that among the various problems that the people of Assam are confronting, the problem of national identity is the most basic, and therefore it seeks to represent "independent minded struggling peoples" irrespective of race, tribe, caste, religion and nationality.

[edit] ULFA according to Government of India

The Government of India (GOI) has classified it as a terrorist organization and had banned it under the Unlawful Activities (Prevention) Act in 1990. Concurrently, GOI started a military offensive against it, named Operation Bajrang lead by the Indian Army. The operation continues at present under the Unified Command Structure.

The Government of India accuses ULFA of maintaining links with the Inter-Services Intelligence (ISI) of Pakistan and the DGFI of Bangladesh, and waging a proxy war on their behalf against India.

The outlawed group was said to be looking to China for shelter following mounting pressure from both Burma and Bangladesh, in turn pressured by India. The outfit's top commander, Paresh Baruah, was believed to be near the Sino-Burmese border looking for an alternative position for a hideout. Indian police and intelligence officials said there could be as many as 50 ULFA militants holed up in China's Yunnan Province led by the group's Lt. Partha Jyoti Gogoi.[6]

[edit] Major activities

[edit] Assassinations

Some of the major assassinations by ULFA include that of Surendra Paul in May 1990, the brother of businessman Lord Swraj Paul, that precipitated a situation leading to the sacking of the Government of Assam under Prafulla Kumar Mahanta and the beginning of Operation Bajrang.

In 1991 a Russian engineer was kidnapped along with others and killed. In 1997, Sanjay Ghose, a social activist and a relative of a high ranking Indian diplomat, was kidnapped and killed. The highest government officer assassinated by the group was local AGP minister Nagen Sharma in 2000. An unsuccessful assassination attempt was made on AGP Chief Minister Prafulla Kumar Mahanta in 1997. A mass grave, discovered at a destroyed ULFA camp in Lakhipathar forest, showed evidence of executions committed by ULFA.

ULFA continues to attempt ambushes and sporadic attacks on government security forces.

In 2003, the ULFA was accused of killing labourers from Bihar in response to molestation and raping of many Assamese girls in a train in Bihar. This incident sparked off anti-Bihar sentiment in Assam, which withered away after some months though.

On August 15, 2004, an explosion occurred in Assam in which 10-15 people died, including some school children. This explosion was reportedly carried out by ULFA. The ULFA has obliquely accepted responsibility for the blast.[7] This appears to be the first instance of ULFA admitting to public killings with an incendiary device.

In January 2007, the ULFA once again struck in Assam killing approximately 62 Hindi speaking migrant workers mostly from Bihar. On March 15, 2007, ULFA triggered a blast in Guwahati, injuring six persons as it celebrated its 'army day'.

[edit] Economic subversion

The ULFA has claimed responsibility for bombings of economic targets like crude oil pipelines, freight trains and government buildings, including the 7 August 2005 attack.[8]

[edit] Recruitment

There are regular media reports of ULFA recruitment drives, especially in the rural areas. Even though many times the estimated original membership have either been captured, killed or have surrendered to government agencies, the continuing presence of ULFA members suggest that these reports are true.

[edit] Political activities

After 1985 and before it was banned in 1990, ULFA was credited in the media with many public activities. Soon after the demolition of the Babri Masjid in 1992, the ULFA was reported to have stopped Hindu-Muslim riots in the Hojai region of Nagaon district by displaying arms openly

It has continued a public discourse of sorts through the local media (newspapers), occasionally publishing its position on political issues centred around the nationality question. It has participated in public debates with public personalities from Assam. During the last two local elections the ULFA had called for boycotts, though media reports suggest that it had intimidated activists of the then ruling parties (Congress and AGP respectively).

[edit] Extortion

The ULFA is credited with some bank robberies during its initial stages. Now it is widely reported to extort businessmen, bureaucrats and politicians for collecting funds. In 1997, the Chief Minister of Assam accused Tata Tea of paying the medical bills of the ULFA cultural secretary Pranati Deka at a Mumbai hospital.

[edit] Other activities

The ULFA is reported to maintain a number of camps in Bangladesh, where members are trained and sheltered away from Indian security forces. Until recently, they had maintained camps in Bhutan, which were destroyed by the Royal Bhutan Army aided by the Special Frontier Force in December, 2003. These camps housed combatants and non-combatant families of ULFA members.

The ULFA maintains close relationships with other separatist organisations like NDFB, KLO and NSCN(Khaplang). The Indian Army notes that

" The ULFA is fighting the jihadi war on behalf of the ISI and taking help from jihadi elements. No doubt they (ULFA leaders) are in a foreign land and are under the control of the ISI which is calling the shots and asking them to do what the ISI wants[citation needed] "

[edit] Surrenders

Beginning in 1990, the Government of India has attempted to wean away members of the ULFA. This occurred due to the death of the ULFA's deputy C-in-C Heerak Jyoti Mahanta on December 31st, 1991. Mr. Mahanta strongly stood against any kind of surrendering, but after his death it nevertheless happened. In 1992 a large section of second rung leaders and members surrendered to government authorities. These former members were allowed to retain their weapons to defend themselves against their former colleagues and were offered bank loans without any liabilities. This loose group, now called SULFA, has become an important element in the armed politics and business of Assam. However there have been cases of surrenderings being staged for political and economical reasons by local and national governments.

The total number of ULFA cadres to have laid down arms has gone up to 8,718. 4,993 cadres surrendered between 1991 and 1998. 3,435 surrendered between 1998 and 2005 when a new policy to deal with the ULFA was unveiled.[9]

[edit] Secret killings of ULFA family members

During the government of AGP leader Prafulla Kumar Mahanta, a number of family members of ULFA leaders were assassinated by unidentified gunmen. With the fall of this government following elections in 2001, the secret killings stopped. Investigations into the killings culminated in the report of the "Saika Commission", presented to the Assam Assembly November 15, 2007. The report provides details about the killings, which were organized by Prafulla Mahanta in his role as the Assam Home Minister, and executed by the police, with cooperation from the Indian Army. The actual killers were surrendered elements of the ULFA, who would approach their targets at home, at night, knocking on the door and calling out in Assamese to allay suspicion. When the victims answered the door, they were shot or kidnapped to be shot elsewhere.[10]

[edit] Negotiations/talks

The ULFA has put forward a set of three preconditions for talks and negotiations with the Indian government. The government has rejected these preconditions. The preconditions are:

  1. The talks should be held in a third country.
  2. The talks should be held under United Nations supervision.
  3. The agenda of the talks should include the sovereignty of Assam.

In 2004, the ULFA dropped the first two preconditions and offered to talk with the government. The Government of India was not ready to negotiate on the issue of sovereignty. Still some progress was made when the ULFA formed a "People's Consultative Group" in September 2005 to prepare the grounds for an eventual negotiation between the government and ULFA, which the government has welcomed.

According to the India Times, talks were first held in December 2005 at the residence of the Prime Minister, Manmohan Singh. There were three rounds of peace talks with the 11-member People's Consultative Group (PCG), headed by noted Assamese writer Indira Goswami, leading to a temporary truce in August 2006. However the truce broke down by September 26 of the same year.[11]

Ceasefire by 28 Battalion of ULFA

The A and C companies of ULFA declared unilateral ceasefire on 24 Jun'2008 at a press meet held at Amarpur in Tinsukia district. The declared the ceasefire in order to pressurise the top brass of ULFA to sit on negotiation table with the Government of India. But the top brass of ULFA expelled the leaders of 28 Battalion led by Mrinal Hazarika and Jiten Dutta. The group later renamed as ULFA ( Pro-talk ).

[edit] See also

[edit] Notes

[edit] References

[edit] External links


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पद्मालक्ष्मी ने दिया न्यूड पोज

खास खबर - ‎2 घंटे पहले‎
लॉस एंजेलिस। कभी विवादास्पद लेखक सलमान रूश्दी की पत्नी रहीं भारत में जन्मी मॉडल पद्मालक्ष्मी ने एक मैग्जीन के कवर पेज के लिए न्यूड पोज दिए हैं। गौर करने वाली बात तो ये है कि पद्मालक्ष्मी 6 महीने की गर्भवती हैं। मैग्जीन के लिए पद्मालक्ष्मी ने अपने दोनों घुटनों से अपने शरीर को आगे का हिस्सा छुपाया हुआ हैं और बेहद तीखी नजरों से देख रही हैं। जिस मैग्जीन के लिए उन्होंने न्यूड पोज दिए है उसका नाम "पेज सिक्स" हैं। ...

शाहिद-प्रियंका के पास एक ही नंबर

जोश 18 - ‎31 मिनट पहले‎
कभी एक-दूसरे से प्यार करने वाले शाहिद और प्रियंका अब भी इस एक नंबर से जुड़े हैं। दरअसल ये न तो शाहिद का निजी नंबर है और न ही प्रियंका का। बल्कि ये यूटीवी के एक पुराने कर्मचारी का नंबर है। लेकिन इस नंबर से शाहिद और प्रियंका का बहुत ही गहरा रिश्ता है। 9820131139 ये वही नंबर है जो शाहिद कपूर की अगले साल प्रदर्शित होने वाली फिल्म 'चांस पे डांस' में उनका नंबर है। जहां उन्होंने एक ऑडिशन के दौरान इस नंबर को अपना नंबर बताया है। ...
ब्रेक के बाद दैनिक भास्कर

मुकेश के हेलीपैड पर नौसेना की आपत्ति

दैनिक भास्कर - ‎5 घंटे पहले‎
मुंबई. शहर के कई ऊँची इमारतों पर विभिन व्यापारिक प्रतिष्ठानों के मालिकों द्वारा हेलीपैड बनाए जाने की मंजूरी दिए जाने पर नेवी ने कड़ा एतराज जताया हैं नेवी के इस ऐतराज के बाद अब लगता हैं कि मुकेश अम्बानी समेत कई लोगों के अपने छत से उड़न भरने की उमीदों पर पानी फिर सकता हैं। इस सम्बन्ध में वेस्टर्न नेवल कमांड के वाइस एडमिरल कमांडिंग संजीव भसीन कहते हैं,'यह न सिर्फ शहर की सुरक्षा के लिए खतरनाक है,बल्कि नेवी की सुरक्षा के लिहाज ...


Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited.blogspot.com/

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