फासीवाद की बुनियादी समझ बनायें और आगे बढ़कर अपनी ज़िम्मेदारी निभायें
(1) फासीवाद क्षयमान पूँजीवाद है (लेनिन)। यह वित्तीय पूँजी के आर्थिक हितों की सर्वाधिक प्रतिक्रियावादी राजनीतिक अभिव्यक्ति होती है।
(2) फासीवाद कई बेमेल तत्वों से बना एक प्रतिक्रियावादी सामाजिक आन्दोलन है। बड़े वित्तीय-औद्योगिक पूँजीपतियों के एक हिस्से के अलावा व्यापारी वर्ग और कुलकों का एक हिस्सा भी इसका समर्थन करता है। उच्च मध्यवर्ग का एक हिस्सा भी इसका समर्थन करता है।
(3)फासीवाद पूँजीवादी व्यवस्था में परेशानहाल मध्यवर्ग के पीले-बीमार चेहरे वाले युवाओं को लोकलुभावन नारे देकर और ''गढ़े गये'' शत्रु के विरुद्ध उन्माद पैदा करके उन्हें अपने साथ गोलबन्द करता है। बेरोजगार-अर्द्धबेरोजगार असंगठित युवा मज़दूर, जो विमानवीकरण और लम्पटीकरण के शिकार होते हैं, फासीवाद उनके बीच से अपनी गुण्डा वाहिनियों में भरती करता है।
(4)फासीवाद घोर पुरुषस्वामित्ववादी और स्त्री-विरोधी होता है। शुरू से किया जाने वाला स्त्री-विरोधी मानसिक अनुकूलन फासीवादी कार्यर्ताओं को प्राय: सदाचार के छद्म वेष में मनोरोगी और दमित यौनग्रंथियों का शिकार बना देता है।
(5) फासीवाद एक कैडर-आधारित प्रतिक्रियावादी सामाजिक आन्दोलन होता है, जो समाज में तृणमूल स्तर पर काम करता है। वह हमेशा कई संगठन और मोर्चे बनाकर काम करता है। हर जगह उसकी कई प्रकार की गुण्डावाहिनियाँ होती हैं। बुर्ज़ुआ जनवाद में संसदीय चुनाव लड़ने वाली पार्टी उसका महज एक मोर्चा होती है।
(6) फासीवाद हमेशा उग्र अंधराष्ट्रवादी नारे देता है। वह हमेशा संस्कृति का लबादा ओढ़कर आता है, संस्कृति का मुख्य घटक धर्म या नस्ल को बताता है और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का नारा देता है। इस तरह देश विशेष में बहुसंख्यक धर्म या नस्ल का ''राष्ट्रवाद'' ही मान्य हो जाता है और धार्मिक या नस्ली अल्पसंख्यक स्वत: ''अन्य'' या ''बाहरी'' हो जाते हैं। इस धारणा को और अधिक पुष्ट करने के लिए फासीवादी इतिहास को तोड़-मरोड़ते हैं, मिथकों को ऐतिहासिक यथार्थ बताते हैं और ऐतिहासिक यथार्थ का मिथकीकरण करते हैं।
(7)फासीवाद धार्मिक या नस्ली अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए संस्कृति और इतिहास का विकृतिकरण करने के लिए तृणमूल प्रचार के विविध रूपों के साथ शिक्षा का कुशल और व्यवस्थित इस्तेमाल करते हैं। धार्मिक प्रतिष्ठानों का भी वे खूब इस्तेमाल करते हैं।
(8) फासीवादी व्यवस्थित ढंग से सेना-पुलिस-नौकरशाही में अपने लोगों को घुसाते हैं और इनमें पहले से ही मौजूद दक्षिणपंथी विचार के लोगों को चुनकर अपने प्रभाव में लेते हैं।
(9)अपनी पत्र-पत्रिकाओं से भी अधिक फासीवादी मुख्य धारा की बुर्ज़ुआ मीडिया का इस्तेमाल कर लेते हैं। इसके लिए वे मीडिया प्रतिष्ठानों में योजनाबद्ध ढंग से अपने लोग घुसाते हैं और तमाम दक्षिणपंथी बुद्धिजीवियों की शिनाख़्त करके उनका इस्तेमाल करते हैं।
(10)फासीवादी केवल इतिहास का ही विकृतिकरण नहीं करते, आम तौर पर वे अपनी हितपूर्ति के लिए किसी भी मामले में सफ़ेद झूठ को भी सच बनाकर पेश करते हैं। सभी फासीवादी गोयबेल्स के इस सूत्र वाक्य को अपनाते हैं, 'एक झूठ को सौ बार दुहराओ, वह सच लगने लगेगा।'
(11)फासीवादी हमेशा, अंदर-ही-अंदर शुरू से ही, कम्युनिस्टों को अपना मुख्य शत्रु समझते हैं और उचित अवसर मिलते ही चुन-चुनकर उनका सफाया करते हैं, वामपंथी लेखकों-कलाकारों तक को नहीं बख़्शते। इतिहास में हमेशा ऐसा ही हुआ है। फासीवादियों को लेकर भ्रम में रहने वाले, नरमी या लापरवाही बरतने वाले कम्युनिस्टों को इतिहास में हमेशा क़ीमत चुकानी पड़ी है। फासीवादियों ने तो सत्ता-सुदृढ़ीकरण के बाद संसदीय कम्युनिस्टों और सामाजिक जनवादियों को भी नहीं बख़्शा।
(12)आज के फासीवादी हिटलर की तरह यहूदियों के सफ़ाये के बारे में नहीं सोचते। वे दंगों और राज्य-प्रायोजित नरसंहारों से आतंक पैदा करके धार्मिक अल्पसंख्यकों को ऐसा दोयम दर्जे़ का नागरिक बना देना चाहते हैं, जिनके लिए क़ानून और जनवादी अधिकारों का कोई मतलब ही न रह जाये, वे निकृष्टतम श्रेणी के उजरती ग़ुलाम बन जायें और सस्ती से सस्ती दरों पर उनकी श्रमशक्ति निचोड़ी जा सके। साथ ही मज़दूर वर्ग के भीतर पैदा हुए धार्मिक पार्थक्य की वजह से मज़दूर आन्दोलन बँटकर कमज़ोर हो जाये और उसे तोड़ना आसान हो जाये।
(13)फासीवादी गुण्डे हर देश में हड़तालों को तोड़ने में अहम भूमिका निभाते रहे हैं। जहाँ भी वे सत्ता में आये, कम्युनिस्टों के सफाये के साथ मज़दूर आन्दोलन का बर्बर दमन किया।
(14) अतीत से सबक लेकर आज का पूँजीपति वर्ग फासीवाद का अपनी हितपूर्ति के लिए ''नियंत्रित'' इस्तेमाल करना चाहता है, जंज़ीर से बँधे कुत्ते की तरह, पर यह खूँख़्वार कुत्ता जंज़ीर छुड़ा भी सकता है और उतना उत्पात मचा सकता है, जितना पूँजीपति वर्ग की चाहत कत्तई न हो। फासीवाद ही नवउदारवाद की नीतियों को डण्डे के ज़ोर से लागू कर सकता है, अत: संकटग्रस्त पूँजीवाद इस विकल्प को चुनने के बारे में सोच रहा है।
(15)यदि हमारे भीतर थोड़ा भी इतिहास बोध हो तो यह बात भली-भाँति समझ लेनी होगी कि फासीवाद से लड़ने का सवाल चुनावी जीत-हार का सवाल नहीं है। इस धुर प्रतिक्रियावादी सामाजिक-राजनीतिक आन्दोलन का मुक़ाबला केवल एक जुझारू क्रान्तिकारी वाम आन्दोलन ही कर सकता है।
इन बातों से जो साथी सहमत हैं, वे इसका व्यापक प्रचार करें और स्वयं भी फासीवाद-विरोधी मुहिम से सक्रिय भागीदारी के बारे में सोचें।
By
Kavita Krishnapallavi
This Blog is all about Black Untouchables,Indigenous, Aboriginal People worldwide, Refugees, Persecuted nationalities, Minorities and golbal RESISTANCE. The style is autobiographical full of Experiences with Academic Indepth Investigation. It is all against Brahminical Zionist White Postmodern Galaxy MANUSMRITI APARTEID order, ILLUMINITY worldwide and HEGEMONIES Worldwide to ensure LIBERATION of our Peoeple Enslaved and Persecuted, Displaced and Kiled.
Tuesday, September 2, 2014
फासीवाद की बुनियादी समझ बनायें और आगे बढ़कर अपनी ज़िम्मेदारी निभायें
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