इंडेरिका साउथ ग्लोबल हो गईल, अउरो पड़ोसियन क खैर नइखै।
इराक बनाइके छोड़ेंगे ग्लोबल हिंदुत्ववाले मनुस्मृति अर्थशास्त्र वाले। राजकाज मा मनुस्मृति राजकाज अजबै गजबै सलवाजुड़ुम हउवे।
कौनो पूछत रहे हस्तक्षेप पर की, मी लार्ड, क्या आदिवासी शैतान हैं। पूछेके कौनो बात नइखै,आदिवासी हिंदुस्तानी नइखै जइसन मुसलमान दलित पिछड़ा गैरनस्ली तमामो लोग इंडियन नइखै।
भारत को इराक बनाना है ,ईरान या अफगानिस्तान या सीरिया, पहले तय कर लीजिये । फिर दक्षिण एशिया के का कहीं,उ दुनिया का बाप ससुर कुछउ भी बन जाई और सगरी दुनिया के केसरिया रंग देई।
अंग्रेजी हुकूमत की शुरुआत से लेकर अब तक सारे किसान विद्रोहों में आदिवासी लड़े भी हैं,मरे भी हैं,लड़ भी रहे हैं और मर भी रहे हैं।अगर गांधी और अंबेडकर ने इस हकीकत पर गौर नहीं किया तो उनकी इस भूल को महिमामंडित करने के बजाय आगे भूल सुधार की जरुरत है।बाबासाहेब आदिवासियों को संबोधित कर नहीं सके तो जाति उन्मूलन का उनका एजंडा भी फेल है और आदिवासियों को हाशिये पर रखकर जो इतिहास भूगोल हमने रचा है, वह इतिहास भूगोल दंगाई है,कटकटेला अंधियारा है और मुल्क का,इंसानियत का सिलिसिलेवार बंटवारा है।
पलाश विश्वास
कबीरा खड़ा कहां,कौन जाने,बाजार में खड़े हैं बिरंची बाबा टाइटैनिक अवतार में।उ फिल्मंवा याद ह न,जिसमें केन विंसलेट का जलवा बहार है। उ जहाज जैसे डूबा,वइसनै फिर हिंदुस्तान डूबत ह। कबीरा पुकारे रहै कि घर फूंके आपणा,कोई महात्मा गान्ही भी रहे जो गावत रहे पीर पराई जो जाणे रे वैष्णव जन तेने कहिये,अब लेकिन टाइटैनिक बाबा देश क अइसन केसरिया कायाकल्प कर दिहलन कि बिहारो हिलेला आउर यूपी लूट लिहलन।चाक चौबंद बंदोबस्त होइ गवा। बाकीर क सत्यानाश ह।
नयका राज खुलल हो जबर।ई जो मेकिंग इन रहे,उ मेकिंग इन खालिस नइखे।नको।नको।इ दरअसल मेकिंग इन इंडिरेका जबर हउवे।हिदू राष्ट्र जवन 2020 तक बनावैके चाही,उ भी भव्य राममंदिर जइसन छलावा देखावत ह।
असल मकसद साउथ ग्लोबल ह।
इंडेरिका साउथ ग्लोबल बा, अ पड़ोस क खैर नइखै।
इराक बनायैके छोड़ेंगे ग्लोबल हिंदुत्ववाले मनुस्मृति अर्थशास्त्र वाले।राजराज मा मनुस्मृति राजकाज अजब गजबै सलवाजु़डूम।
कौनो पूछत रहे हस्तक्षेप पर के मी लार्ड,आदिवासी शैतान हैं,पूछेकै बात कौनो नइखै,आदिवासी हिंदुस्तानी नइखै जइसन मुसलमान दलित पिछड़ा गैरनस्ली तमामो लोग इंडियन नइखै।
कई साल पहिले एक अंग्रेज जर्नलिस्ट बतावै रहे कि जब तक आदिवासी हैं,विकास हो नहीं सकता।ग्रोथ के खातिर आदिवासियों का सफाया अनिवार्य है।
साम्राज्यवाद और सामंतवाद के खिलाफ मूलनिवासियों, किसानों,मेहनतकशों और आदिवासियों की लड़ाई का इतिहास अनंत है।
ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लड़ने वाले आदिवासी थे।
शक कुषाण पठान मुगल और आर्यों के खिलाफ भी वे लगातार लड़ते रहे हैं।
अंग्रेजी हुकूमत की शुरुआत से लेकर अब तक सारे किसान विद्रोहों में आदिवासी लड़े भी हैं,मरे भी हैं,लड़ भी रहे हैं और मर भी रहे हैं।अगर गांधी और अंबेडकर ने इस हकीकत पर गौर नहीं किया तो उनकी इस भूल को महिमामंडित करने के बजाय आगे भूल सुधार की जरुरत है।
बाबासाहेब आदिवासियों को संबोधित कर नहीं सके तो जाति उन्मूलन का उनका एजंडा भी फेल है और आदिवासियों को हाशिये पर रखकर जो इतिहास भूगोल हमने रचा है, वह इतिहास भूगोल दंगाई है,कटकटेला अंधियारा है और मुल्क का,इंसानियत का सिलिसिलेवार बंटवारा है।
https://youtu.be/sSqxJwx4Tp0 Let Me Speak Human!All About Making in INDERICA! Manusmriti Economics,South Global, Adivasi and Refugees and Saffron Nationalism!
संयुक्त राष्ट्र,सीईओ सम्मिट और सिलिकन वैली में एकमुश्त साउथ ग्लोबल का एजंडा फिक्स हो गया।
संयुक्त राष्ट्र,सीईओ सम्मिट और सिलिकन वैली में एकमुश्त विकास का,सुधार अश्वमेध और नये सिरे से भारत का हस्तांतरण का एजंडा फाइनल हो गया जो दरअसल धर्मराष्ट्र का ही एजंडा है।
संयुक्त राष्ट्र,सीईओ सम्मिट और सिलिकन वैली में एकमुश्त विकास का,सुधार अश्वमेध और नये सिरे से भारत का हस्तांतरण का एजंडा फाइनल हो गया जो दरअसल सियासत मजहब और हुकूमत का सबसे जहरीला त्रिशूल है जो मीडिया ब्लिट्ज बजरिये हमारे दिलोदिमाग में गहराई तक धंसा है और खून से सराबोर है सबकुछ ,लेकिन हमें केसरिया कमल कमल खिलखिलाता दीख रहा है।
सद्दाम हुसैन को भूल गये।इसी तरह इराक को भी अमेरिका और रूस दोनों मिलकर रीजनल पावर बना रहे थे और इराक पर हमले का रिहर्सल इराक ईरान युद्ध दस साल तक चला था जिसमें मध्यपूर्व का बचपन सारा झोंक दिया गया था।
फिर बाकी जो कुछ हुआ,उस पर हम 1989 से लगातार लगातार लिख रहे हैं।जो पढ़ते रहे हैं ,उन्हें मालूम है।वह किस्सा नये सिरे से बांचने की जरुरत नहीं है।
सिर्फ इतना समझ लें कि तालिबान और अलकायदा और इस्लामिक स्टेट वगैरह वगैरह इसी ईरान इराक का प्रोजेक्ट रहा और मुफ्त में तबाह हो गया अफगानिस्तान से लेकर लीबिया, सीरिया,जार्डन,मिस्र तक तमामो मध्य पूर्व और अफ्रीका के इस्लामी देश।जहां से शरणार्थी सैलाब तबाह कर रहा है सारा यूरोप।
जाहिर है ,जिन विकसित देशों का खेल यह है,इस कारस्तानी का खामियाजा वे भी भुगत रहे हैं।
अमेरिका की अर्थव्यवस्था इतनी तबाह है कि टाइटैनिक बाबा उनका मसीहा है जो भारत को उनका बाजार बनाकर उन्हें बचा लेंगे,इस उम्मीद से वे पलक पांवड़े बिछाये हैं और हम बल्ले बल्ले हैं अपनी तबाही के इस कयामती मंजर को वसंत बहार समझकर।
साउथ ग्लोबल के एजंडे के मुताबिक,मेकिंग इन इंडिरेका के तहत भारत को अब इराक बनाना है ,ईरान या अफगानिस्तान या सीरिया, पहले तय कर लीजिये फिर दक्षिण एशिया के का कहीं,उ दुनिया का बाप ससुर कुछो भी बन जाई और सगरी दुनिया के केसरिया मा रंग देई।
बाकीर इंडेरिका साउथ ग्लोबल बा, अउरो पड़ोस की खैर नइखै।
रीजनल सुपर पावर हम ऐसा बन रहे रहे हैं कि पूरा एशिया अब मुकम्मल युद्धस्थल है।
रीजनल सुपर पावर हम ऐसा बन रहे रहे हैं कि पूरा एशिया अब
मुक्त बाजार है,जहां न उत्पादन कहीं होता है, न खेती कहीं हो रही है और तमाम मेहनतकशों के हाथ पांव काट दिये गये हैं।
प्रोडक्शन के बजाय सर्विस सेक्टर आउटसोर्सिंग रोजगार के जरिये इंडिया इंक के पर कितने खुले,किस किस कंपनी को कितना फायदा हुआ,फिक्की की क्या सोच है और सीआईआई किस तरह भंगड़ा करै है,वह जगजाहिर है लेकिन हकीकत यही है कि हमारे सारे संसाधन बेदखल हैं और हमारे बाजार भी बेदखल है।
जो नौकरी पेशा लोग बेपरवाह किसानों और मेहनतकशों की कूकुरगति से,आम जनता की तकलीफों से और बल्ले बल्ले वेतनमान प्रोमोशन भत्ता बोनस पैकेज प्रोत्साहन और ऊपरी कमाई से,उनके भी अब पूरे बारह बजे हैं।
पानी सर से ऊपर है।क्योंकि टोटल प्राइवेटाइजेशन है तो वेतनमान उत्पादकता से जुड़ा है और निजी क्षेत्र फालतू कर्मचारी कुर्सी तोड़ने के लिए या कोटा आरक्षण वगैरह वगैरह के लिए न भर्ती करने वाला है और न जो पहले ही भर्ती है ,उन्हें आगे पालनेवाला है।आगे छंटनी बहार है।इसीका नक्शा एफडीआई,विनिवेश और निवेश अबाध है।
सीईओ संग पिंग जो बहारों फूल बरसाओ जइसन है,उसका असल मतलब इंडिया,इंडियन रिसोर्सेज,जल जमीन जंगल पहाड़ समुंदर रण मरुस्थल और अंडमान निकोबार आईलैंड, रेलवे,कंज्यूमर मार्केट, मैनुफैक्चरिंग, एविएशन, ट्रांसपोर्ट, पोर्ट,लैंडस्कैप,बिजली पानी हवा और आसमान,अनाज और तेल,बीमा और बैंकिंग,सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा,शिक्षा और चिकित्सा सबकुछ अमेरिकी प्राइवेट सेक्टर के हवाले हैं।
यूनान में जो हुआ,वही हूबहू भारत में हो रहा है।बाकी ग्रीक ट्रेजेडी है।मजा बहुत है। जाहिर है। लेकिन फूल कैथार्सिस का मजा लेने को कौन जिंदा रही कौन ना रही,कउनो गारंटी नाहीं।
मसलन सातवां वेतन आयोग लागू हो जाने के बाद वेतन तो बढ़ जायेगा,लेकिन किसकी नौकरी बची रहेगी,किसकी नहीं,कुछउ पता नइखे ।
इतना बता दें कि जिस जर्मनी की वजह से यूनान पर संकट गहराया है और जो जर्मनी यूनान का कर्ज भुलाकर महाजनी पर आमादा है और जिस जापान ने कोरिया और चीन पर कहर बरपाया,भारत और ब्राजील के साथ वे जीफोर है।इसके अलावा इन्हीं जापान और जर्मनी की छूत से अभी उबरे नहीं हैं इस महादेश के महानायक नेताजी और फासीवाद के खिलाफ उनकी जंग बेमतलब हो गयी और हम सिर्फ यही बहस कर रहे हैं कि वे जिंदा हैं या मुर्दा है या उन्हें जवाहर ने मारा या स्टालिन ने या दोनों ने।
बाकी जनगणमन वंदेमातरम खूब हो रहा है लेकिन जिस हिंदुस्तान को आजाद कराने के लिए शहादतें दी गयीं और नेताजी ने आजाद हिंद फौज बनायी,देश छोड़ा,वह हिंदुस्तान कहीं नहीं है।
हिंदूराष्ट्र अब इंडिरेका मुक्त बाजार बा।
नौकरी की हदबंदी तैंतीस साल है।मैक्सिमम सर्विस 33 साल,फिर तुरंत रिटायर और वेतनमान उत्पादकता से जुड़ा है,फतवा हो गया कि काम के ना है,तो बिना कैफियत तुरंत छंटनी।
निजीकरण के जरिये रोजगार अब प्राइवेट सेक्टर के हवाले है।जात पांत धर्म के बहाने समीकरण चाहे जो साधकर सत्ता में हिस्सेदारी लेकर अपना अपना घर भर लें,लेकिन अब आरक्षण कोटा से रोजगार मिलनेवाला नहीं है।
कोई लायाबिलिटी किसी भी सेक्टर में प्राइवेट सेक्टर की न रहे,न औद्योगिक दुर्घटना में, न परमाणु विकिरण में और सारा समुंदर रेडियो एक्टिव हो,ऐसा चाकचौबंद इंतजाम है और डिजिटल इंडिरेका में कोई चूं न बोल सके,इसलिए सारे के सारे नागरिक और मानवाधिकार निलंबित हैं।लगातार सलवा जुड़ुम है।लगातार आफसा है।कामगारों और मेहनतकशों के हकहकूक खत्म हैं सिरे से।
हम का कहें।जो कुछ समझना है ,मीडिया समझाई दे रिया है।रात दिन सातों दिन,चौबीसों घंटे मीडिया के मोदियापे मा कछु बुझाय नाही,तो कौनो ससुर चरचा उरचा ठीकठाक कर सकें।
जे के देखो सुबोसूबो टट्टी से पहिले अखबार बांचिके सगरा खेल समझ बइठलन बा और ललुआ का कोट एइसन दनाक से मार दीहले बा कि हार्दिक बचवा के बिहार के महाभारत में असल रोल नायक के खलनायक बुझात नाही बा।
पिछड़ो मा राजकाज खातिर झगरा भारी ह।
दलितों का हिस्सा भी कछु कम नहीं।
मसीहा रोजैरोज पइदा होवे के चाहि।
जात पांत आउर धरम करम के चित्र विचित्र खेल मध्ये सबकुछ ठीकठाक लागै हो।सबकुछ बरोबर।
गणपति बप्पा मोरया चीखै तनिको जोर से या चाहै तो चीखौ दुर्गा माईजी की जय।
बाकी फुल फ्लेज्ज्ड रामराज ह आउऱ मनुस्मृति शासन जारी ह।
कौनो माई क लाल के शंबुक बनेके चाहि जवन बान अइसन खींचके मारी बजरंगी सेना कि कुलो कुलबर्गी,दाभोलकर कि पानेसर जइसन खेत हो जाई।
मीडिया रामचरित मानस बांचत हवै तो कबहुं बांचत बा महाभारत।
कन्या उन्या के सजाउजा के स्वंवर भी खूब रचावत ता।
कौनो कुंती बानी।कौनो फिन सत्यवती मइया।कौनो गांधारी महतारी।द्रोपदी तो खिखिलाइके कमल कमल खिलेकै चाहि आउर रासलीला सोलह सौ गोपनिया संग जारी ह।
गीता उपदेश आउर गायत्री बीज मंत्र जो ह सो ह,राम की सौगंध खाइके भव्य मंदिर जो बनावेके चाहि,उ ससुरा इंडेरिका,यानी के इंडिया अमेरिका का गठजोड़,फ्री मार्केट इकोनामी आउर फ्री प्लो आफ फारेन कैपिटलवा समेत फारेन इंटरेस्ट होई गवा है।
बिरंची बाबा अमेरिका मा जलवा बिखैरे हैं तमामो प्राइवेट कंपनी सीईओ संगे।ड्रेसवा झाले आहे रंगारंग गुजराती पारदर्शी भ्रष्टाचार मुक्त।गणेश बप्पा और कातिक ठाकुर अगले बगल बानी।
कंपनियां हिंदुस्तानी जगजाहिर ह, केकर नाम वाम बतावल जाय।
बाकीर कौनो ना कह सकै ह कि बिरंची बाबा नंगा बानी,सबै वाचे ह लाखोलाख टकिया सूट जौन ह के इंडिया साउथ ग्लोबल बा।
रीजनल सुपर पावर इंडिरेका। जय हो।
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