https://youtu.be/iFxjJK0IThI An Ode to Freedom fighters whom nobody remembers!
LET ME SPEAK HUMAN!My heart bleeds as Humanity bleeding.May not say Eid Mubarak.Condolence for those killed in Haj Satmpede.Condolence for those killed in Stampede in all religious places.Condolence for those who have been killed in Man Made Calamities and tragedies.Who remembers those who fought for freedom.Who aligned with British Raj,they make the Class Hegemony .They do MAKE IN!We are enveloped with Fascism and freedom fighters sacrificed themselves for Humanity,Nature,diversity and Pluralism.Who cares for someone named Sudhir Vidyarthi.Bengal worships icons and forgot the freedom fighters.My heart bleeds!Please see this video!
HUMNE HATYRO KO RAB BANA DALA!
HUMNE RAB KO HATYAR BANA DALA!
The rivers are full of blood!
The oceans are full of blood!
The Himalayas bleeding!
We have closed our eyes!
We have to enjoy Open Market Economy and FREE Flow of Capital!
Mainu LAHORE NAA VEKHYA.
AAMI DHAKA DEKHINI.
We have common history!
We have common landscape!
We have common Ocean!
We have common Himlayas!
We Have common culture!
We speak so much so HATRED!
I have to speak on until my tongue is chopped off!
Please see the video!
We express our deep sense of greif and share our condolences with the families of those who met with an accident today in Makkah during Hajj. We also pray to almighty Allah to forgive all of us and grant Jannatul Firdouse to the passed away souls!
नेताजी पर चर्चा अजब गजब,इतिहास और विरासत लापता,बाकी बंगाल के क्रांतिकारियों का नामोनिसां नहीं
बंगाल और देश में नेताजी की मृत्यु को लेकर तमाम राजनीतिक किस्से गढ़े जा रहे हैं और अब स्टालिन को हत्यारा भी साबित किया जा रहा है।हिंदुत्व राष्ट्रवाद में देशभक्ति का अजब गजब नजारा है।हकीकत की जमीन पर हमें इतिहास बदल देने वालों के राजकाज में न इतिहास की कोई परवाह है और न विरासत की।बंगाल को अपने क्रांतिकारियों पर बहुत गर्व है,जिनका नामोनिशां गायब है।,ुधीर जी का दर्द दिल और दिमाग को लहूलुहान करनेवाला है।पहले उनका लिखा हम फंट की वजह से शेयर नहीं कर पा रहे थे। अपने इतिहासकार मित्र डा.मांधाता सिंह ने इस प्तर को यूनीकोड में कंवर्ॉ किया है तो साझा भी कर रहा हूं।
पलाश विश्वास
24/9/2015
प्रिय भाई पलाष,
भारतीय भाशा परिशद के अतिथि कक्ष संख्या 6 से यह पत्र तुम्हें लिख रहा हूं। परसों रात्रि से मेरी तबियत अस्वस्थ हो गई। अपच और सर्दी का अहसास हुआ। अभी ठीक नहीं हूं। रात्रि के 2 बजे से जगा हूं। नींद नहीं आ रही तो तुम्हें यह पत्र लिखने बैठ गया। कोलकाता मैं ऐसे समय आया जब इस जमीन पर क्रांतिकारी आंदोलन के निषान विलुप्त हो चुके हैं। 1980 की कई दिन की यात्रा में षहीद यतीन्द्रनाथ दास के भाई किरनचन्द्र दास के पास 1, अमिता घोश रोड पर ठहरा था। अब वहां किरन दा के बेटे मिलन दास एक उदास और सन्नाटे भरे घर में रहते हैं। यतीन्द्र की सब स्मृतियां वहां से लुप्त हो चुकी हैं। 15, जदु भट्टाचार्जी लेन में रहने वाले क्रांतिकारी गणेष घोश भी नहीं रहे जिनका मेरे जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ा। गणेष घोश की याद में पिछले दिनों मैंने बरेली के केन्द्रीय कारागार में बैरक के नामकरण के साथ ही स्मृति-पटल तथा चित्र लगवा दिया हैै। क्रांतिकारी बंगेष्वर राय, गोपाल आचार्य भी तो अब कहां होंगे। मुझे कोई यह बताने वाला भी नहीं कि जिस फ्रीडम फाइटर्स एसोषियषन को 11, गवर्नमेंट प्लेस ईस्ट से क्रांतिकारी भक्त कुमार घोश चलाते थे और जिनने कभी अपने निजी व्यय से यहां 'विप्लवी निकेतन' की स्थापना की थी ताकि कोई क्रांतिकारी किसी पर बोझ न बने, उनका क्या हुआ। उन्होंने अनेक स्मारक अपने खर्चे पर बनवाए। जगदीष चटर्जी 4 बल्लभदास स्ट्रीट कोलकाता, पूर्णानंद दास गुप्त, महाराज त्रैलोक्य चक्रवर्ती जतीन दास मेमोरियल 47 चण्डीतल लेन, कोलकाता-40, वीरेन्द्र बनर्जी हावड़ा, सूरज प्रकाष आनंद जिनके चार बड़े-बड़े कमरों में षहीदों की बड़ी-बड़ी पेंटिंग्स लगी थीं, इन सबका अता-पता देने वाला अब कोई नहीं। नौसेना विद्रोह के विष्वनाथ बोस भी यहीं 42, टेलीपारा लेन में रहते थे। 1983 के आगरा में आयोजित नाविक विद्रोहियों के सम्मेलन में उनसे मुलाकात हुई थी। उत्तर प्रदेष के मिर्जापुर में क्रांतिकारी प्रकाषन के संचालक और उस छोटे षहर में 'षहीद उद्यान' में षहीदों के दर्जनों बुत स्थापित करने वाले बटुकनाथ अग्रवाल की बेटी उर्मिला अग्रवाल 1980 में यहीं थीं। तब मैं उनके घर 15, इब्राहीम रोड पर गया भी था। आज मुझे क्रांतिकारिणी सुनीति घोश और बीणा दास की भी बहुत याद आ रही है जिनसे मिलने का सुअवसर मुझे यतीन्द्रनाथ दास बलिदान अर्द्धषताब्दी में मिला था। साहित्यिक दुनिया में विमल मित्र, सन्हैया लाल ओझा, महादेव साहा, मनमोहन ठाकौर और रतनलाल जोषी का मुझे बहुत स्नेह मिला। इनसे पत्र व्यवहार भी रहा। इन सबके बिना कोलकाता का अर्थ मेरे लिए बहुत बदल गया है।
मैं कुछ किताबों की भी ढूंढना चाहता था पर वे कैसे मिलें। षांति घोश ने जेल से छूटने के बाद अपनी आत्मकथा 'अरूण बंदी' (लाल आग) लिखी। ़त्रैलोक्य चक्रवर्ती ने 'जेलों में 30 साल' रची। क्रांतिकारी नलिनीदास ने भी अपने संघर्श को लिपिबद्ध किया था। नाम याद नहीं आ रहा। बीणा दास के मेमोआर मुझे जुबान प्रकाषन से पिछले दिनों मिल गए हैं। और भी बहुत कुछ है पर इसके सूत्र कहां से मिलें। आपको अपनी इस चिंता और बेचैनी से अवगत करा रहा हूं।
स्वस्थ होंगे। एक बार और बैठकर बातें हों तो अच्छा रहे।
-सुधीर विद्यार्थी
इतिहास का सांप्रदायिक संस्करण -राम पुनियानी
24 सितंबर 2015
इतिहास का सांप्रदायिक संस्करण
-राम पुनियानी
अतीत को एक विशिष्ट ऐनक से देखना-दिखाना, सांप्रदायिक ताकतों का सबसे बड़ा हथियार होता है। ''दूसरे'' समुदायों के प्रति घृणा की जड़ें, इतिहास के उन संस्करणों में हैं, जिनका कुछ हिस्सा हमारे अंग्रेज़ शासकों ने निर्मित किया था और कुछ सांप्रदायिकतावादियों ने। फिरकापरस्त ताकतें इतिहास के इस सांप्रदायिक संस्करण में से कुछ घटनाओं को चुनती हैं और फिर उन्हें इस तरह से तोड़ती-मरोड़ती हैं जिससे उनका हित साधन हो सके। कई बार एक ही घटना की प्रतिस्पर्धी सांप्रदायिक ताकतें, परस्पर विरोधाभासी व्याख्याएं करती हैं। सांप्रदायिक इतिहास अपने धर्म के राजाओं का महिमामंडन और दूसरे धर्म के राजाओं को खलनायक सिद्ध करने का पूरा प्रयास करता है। उदाहरणार्थ, इन दिनों, ''राणा प्रताप'' को महान बनाने का अभियान चल रहा है। कोई राजा क्यों और कैसे महान बनता है? ज़ाहिर है, इसके कारण और प्रतिमान अलग-अलग होते हैं।
कई बार एक ही क्षेत्र में रहने वाले विभिन्न जातियों और धर्मों के लोग, उस क्षेत्र के राजा को अलग-अलग दृष्टिकोणों से देखते हैं। यह बात महाराष्ट्र के शिवाजी के बारे में बिलकुल सच है। कुछ के लिए वे गायों और ब्राह्मणों के प्रति समर्पित राजा थे तो अन्य लोग उन्हें रैय्यत (किसानों) के कल्याण के प्रति प्रतिबद्ध शासक बताते हैं। राजाओं को धर्म के चश्में से देखने से उनकी एकाधिकारवादी शासन व्यवस्था और सामंती शोषण पर से ध्यान हट जाता है। इससे आमजन यह भी भूल जाते हैं कि राजाओं-नवाबों के शासनकाल में न तो नागरिकता की अवधारणा थी और ना ही राष्ट्र-राज्य की। राष्ट्रवाद का उदय, संबंधित धर्म के पहले राजा के काल से माना जाने लगता है। उदाहरणार्थ, मोहम्मद-बिन-कासिम को इस्लामिक राष्ट्रवाद का संस्थापक बताया जाता है और हिंदू संप्रदायवादी दावा करते हैं कि भारत, अनादिकाल से हिंदू राष्ट्र-राज्य है। उन्हें इस बात से कोई लेनादेना नहीं है कि उस काल का सामाजिक ढांचा कैसा था और तत्समय के लोगों की वफादारी राष्ट्र-राज्य के प्रति थी या अपने कबीले, कुल या राजा के प्रति।
इस तरह, कुछ राजाओं को अच्छा और कुछ को बुरा बना दिया जाता है। सच यह है कि सभी राजा किसानों का खून चूसते थे और उनके राज में पितृसत्तात्मकता और जातिगत पदानुक्रम का बोलबाला था। हिंदू सांप्रदायिक ताकतें मुस्लिम राजाओं का दानवीकरण करती आई हैं और औरंगज़ेब को तो दानवराज के रूप में प्रचारित किया जाता है। इसी तरह की मानसिकता से ग्रस्त एक भाजपा सांसद ने दिल्ली की औरंगज़ेब रोड को एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर करने की मांग की थी।
औरंगज़ेब रोड का नया नामकरण सभी स्थापित नियमों और परंपराओं का उल्लंघन कर किया गया है। भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलन के स्वघोषित मसीहा अरविंद केजरीवाल ने भी इसका समर्थन किया। इस तरह की बातें की गईं मानों एक सड़क का नाम बदल देने से इतिहास में जो कुछ ''गलत'' हुआ है वह ''सही'' हो जाएगा। इतिहास में क्या गलत हुआ और क्या सही, यह अंतहीन बहस का विषय है और इसका उत्तर अक्सर इस बात पर निर्भर करता है कि कोई व्यक्ति समाज के किस तबके से आता है। जो चीज़ किसी अमीर के लिए गलत हो सकती है वह गरीब के लिए सही हो सकती है; जो चीज पुरूषों के लिए सही हो सकती है वह महिलाओं के लिए गलत हो सकती है; जो चीज किसानों के लिए सही हो सकती है वह ज़मींदारों के लिए गलत हो सकती है; जो चीज़ ब्राह्मणों के लिए सही हो सकती है वह दलितों के लिए गलत हो सकती है। जिन राजाओं ने समाज के दबे-कुचले वर्गों की ओर मदद का हाथ बढ़ाया, उन्हें छोड़कर, अन्य किसी भी राजा के महिमामंडन पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाए जा सकते हैं।
कुल मिलाकर, औरंगजे़ब का इस हद तक दानवीकरण कर दिया गया है कि उसका नाम लेने मात्र से लोग घृणा और क्रोध से भर जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि औरंगजे़ब सत्ता का इतना भूखा था कि उसने बादशाहत हासिल करने के लिए अपने भाई दारा शिकोह का कत्ल कर दिया था। निःसंदेह ऐसा हुआ होगा परंतु क्या हम यह नहीं जानना चाहते कि सम्राट अशोक ने भी गद्दी हासिल करने के लिए अपने भाईयों की जान ली थी। अभी हाल में नेपाल के राजा ज्ञानेन्द्र ने अपने भाई बीरेन्द्र सिंह की हत्या कर दी थी। पूरी दुनिया में राजघरानों में षड़यंत्र और कत्ल आम थे।
फिर, यह कहा जाता है कि औरंगजे़ब ने तलवार की नोंक पर हिंदुओं को मुसलमान बनाने का अभियान चलाया। पहली बात तो यह है कि भारत में इस्लाम, मुस्लिम बादशाहों के कारण नहीं फैला। अधिकांश मामलों में जाति व्यवस्था के चंगुल से बचने के लिए बड़ी संख्या में शूद्रों ने इस्लाम ग्रहण किया। स्वामी विवेकानंद (कलेक्टेड वर्क्स, खंड-8, पृष्ठ 330) ने कहा था कि इस्लाम में धर्मपरिवर्तन, जाति व्यवस्था के अत्याचारों से बचने के लिए हुआ। मेवाड़ और मलाबार तट के इलाकों में सामाजिक मेलजोल के कारण भी इस्लाम फैला।
औरंगजे़ब ने गुरू गोविंद सिंह के लड़कों के सिर कटवा दिए। यह धर्मपरिवर्तन करवाने का प्रयास था या हारे हुए राजा को अपमानित करने का? हारे हुए राजा ने क्षमादान मांगा और क्षमा करने के लिए यह अपमानित करने वाली शर्त रखी गई। एक ब्रिटिश इतिहासविद एलेक्जेंडर हेमिल्टन ने औरंगजे़ब के 50 साल के शासन के अंतिम वर्षों में पूरे देश का भ्रमण किया था। उन्होंने लिखा है कि औरंगजे़ब के साम्राज्य में प्रजाजन अपने-अपने तरीके से ईश्वर की आराधना करने के लिए स्वतंत्र थे।
अगर औरंगज़ेब व अन्य मुस्लिम राजाओं का लक्ष्य लोगों को मुसलमान बनाना होता तो 800 सालों के अपने राज में वे क्या देश की पूरी आबादी को मुसलमान न बना देते? और हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि उनके दरबारों में कई बड़े ओहदेदार हिंदू थे। क्या बादशाह उन्हें ऊँचा ओहदा देने के पहले यह शर्त नहीं रखता कि वे मुसलमान बनें?
और जजि़या का क्या? मध्यकालीन इतिहास के अध्येता प्रो. हरबंस मुखिया के अनुसार, औरंगज़ेब ने 1669 में जजि़या लगाया। यह उसके शासनकाल का 21वां वर्ष था। राजाओं की कर संबंधी नीतियां समय-समय पर बदलती रहती थीं। जहां स्वस्थ हिंदू पुरूषों को जजि़या देना होता था वहीं मुसलमानों पर ज़कात नाम का कर लगाया जाता था। ऐसे भी कई कर थे जिनकी वसूली औरंगज़ेब ने बंद कर दी थी। परंतु जजि़या, आमजनों के दिमाग में इस हद तक बैठ गया है कि वे उसे औरंगजे़ब के हिंदू-विरोधी होने का अकाट्य सबूत मानने लगे हैं।
क्या यह सही नहीं है कि औरंगज़ेब ने विश्वनाथ मंदिर तोड़ा और उसके स्थान पर मस्जि़द बनवा दी? इसमें कोई संदेह नहीं कि औरंगजे़ब ने कई मंदिर गिराए परंतु उसने कई मंदिरों को अनुदान भी दिए। चित्रकूट के उत्तर में स्थित ऐतिहासिक बालाजी या विष्णु मंदिर में एक शिलालेख है, जिससे यह पता चलता है कि इस मंदिर की तामीर बादशाह औरंगजे़ब ने स्वयं की थी। औरंगज़ेब ने पंढरपुर के बिठोबा मंदिर को एक बड़ी राशि दान के रूप में दी थी। उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर, गुवाहाटी के उमानंद मंदिर, शत्रुंजई के जैन मंदिर व उत्तर भारत के कई गुरूद्वारों को औरंगजे़ब के शासनकाल में शाही खज़ाने से अनुदान मिलता था। इनसे संबंधित फरमान 1659 से 1685 के बीच जारी किए गए थे। डॉ. विशंभरनाथ पाण्डे ने औरंगजे़ब के कई ऐसे फरमानों को संकलित किया है, जिसमें उसने हिंदू मंदिरों को अनुदान देने का आदेश दिया है। यह विरोधाभास क्यों? इसका उत्तर आसान है। सत्ता संघर्ष के चलते कुछ मंदिरों को गिराया गया और जनता को खुश करने के लिए कुछ मंदिरों को अनुदान दिया गया। कई मौकों पर ऐसे मंदिरों को ढहाया गया जहां बादशाह के खिलाफ विद्रोह का झंडा उठाने वाले योद्धा शरण लिए हुए थे।
हमारे अंग्रेज़ शासकों का कोई प्रयास सफल हुआ हो या नहीं परंतु केवल धर्म के आधार पर राजाओं की पहचान स्थापित करने के लिए उन्होंने इतिहास का जो पुनर्लेखन किया, वह पूरी तरह से सफल रहा। हिंदू व मुस्लिम सांप्रदायिक धाराओं ने इसे अपना लिया और सांप्रदायिक आधार पर देश का ध्रुवीकरण करने के अपने राजनैतिक लक्ष्य की पूर्ति के लिए इसका इस्तेमाल किया। अंग्रेज़ों ने सांप्रदायिक आधार पर इतिहास लेखन इसलिए भी किया क्योंकि उन्हें जनता की वफादारी हासिल करनी थी। उन्होंने इतिहास को इस रूप में प्रस्तुत किया मानो अंग्रेज़ों ने देश को क्रूर मुस्लिम शासन से मुक्ति दिलाई हो। अंग्रेज़ों ने इस देश के साथ क्या किया, यह तो शशि थरूर के कुछ समय पहले वायरल हुए आक्सफोर्ड लेक्चर से ज़ाहिर है। हमारे इन ''उद्धारकों'' ने, जो ''पूर्व को सभ्य बनाने'' आए थे, हमारे देश को किस कदर लूटा-खसोटा यह किसी से छिपा नहीं है। अकबर हों या औरंगजे़ब या फिर दारा शिकोह-सबके व्यक्तित्व अलग-अलग थे परंतु अंततः वे थे तो बादशाह ही। वे सामंती व्यवस्था के शीर्ष पर विराजमान थे और यह व्यवस्था कमरतोड़ मेहनत करने वाले किसानों और दिन-रात खटने वाले कारीगरों के शोषण पर आधारित थी। नाम बदलने का यह खेल विघटनकारी राष्ट्रवाद के सांप्रदायिक एजेण्डे का भाग है। वे शायद यह मानते हैं कि जिस बादशाह ने इस उपमहाद्वीप पर आधी सदी तक शासन किया, उसके नाम पर एक सड़क भी नहीं हो सकती। (मूल अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया) (लेखक आई.आई.टी. मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)
-- INDIAN EXPRESS Reports:
LIVE Mecca stampede: Death toll rises to 717, over 850 Hajj pilgrims injured
At least 717 pilgrims were killed on Thursday in a stampede at Mina, outside the Muslim holy city of Mecca, where some two million people are performing the annual hajj pilgrimage, said Saudi Arabia's civil defense directorate. Civil defence officials have said that over 850 people were injured in the incident. The incident is reported to have occurred between Mount Arafat and the Grand Mosque. The Saudi government has arranged foolproof safety and security measures, deploying nearly 100,000 men in uniform at the holy sites to make the journey of a lifetime for the two million pilgrims safe and secure. The helpline numbers: 00966125458000, 009661254960000 IN PICS: Stampede at Mecca
Pl see my blogs;
Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!
INDIAN EXPRESS REPORTS:
No comments:
Post a Comment