तुर्की में अरब वसंत के तहत तख्ता पलट की अमेरिकी कोशिश नाकाम
पलाश विश्वास
तुर्की में सैन्य अभ्युत्थान के पीछे अमेरिकी हाथ है और यह अरब वसंत के विस्तार की नाकाम कोशिश है,जिसे प्रबल जनसमर्थन से तुर्की ने फिलहाल नाकाम कर दिया है।शुरु में ही प्रधानमंत्री बिनअली यिलदरिम का दावा था कि सैन्य तख्तातलट की कोशिश नाकाम कर दी गई है। लेकिन इस हिंसा में सैकड़ों की जान चली गई। प्रधानमंत्री यिलदरिम ने कहा कि जो भी इसके पीछे है उसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी।
रातभर चली हिंसा में 250 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 1440 लोग घायल हैं। उन्होंने बताया कि 2839 साजिशकर्तओं को हिरासत में लिया जा चुका है।
तख्तापलट के नाकाम उठापटक के बीच आम जनता भी सड़क पर उतर आई और खुलकर तख्ता पलट का विरोध किया। इस पर बागी सेना ने इस्तांबुल में भीड़ पर गोलियां दागीं, जिसमें 47 लोग मारे गए।यह मुठभेड़ तब हुई जबकि संसद के बाहर टैंकों की आवाजाही चल रही थी और आसमान पर हवाई जहाज मंडरा रहे थे।
यही नहीं,तख्तापलट की कोशिश नाकाम होने की खबर के बाद राष्ट्रपति के समर्थकों नेे सड़ को पर उतरकर सरकार के समर्थन में नारेबाजी भी की और जश्न मनाया।
गौरतलब है कि राष्ट्रपति अर्दोआन ने इसके लिए एक "समानांतर सत्ता" पर संदेह जताते हुए इशारा फ़तहुल्लाह गुलेन की ओर किया है। गुलेन अमरीका में रहनेवाले एक ताकतवर मुस्लिम धर्मगुरु हैं। तुर्की की सरकार ने गुलेन पर सरकारी तंत्र के समानांतर व्यवस्था खड़ी करने की कोशिश का आरोप लगाया है। अमरीका ने तुर्की से कहा है कि अगर उसके पास धर्म प्रचारक गुलेन के ख़िलाफ़ कोई भी सबूत हो तो वो उसके साथ साझा करे।
इस आरोप को सिरे से खारिज करते हुए फ़तहुल्लाह गुलेन ने इस तख़्तापलट में किसी भी भूमिका से इनकार किया है।
गौरतलब है कि 75 वर्षीय धर्म प्रचारक ने कहा कि वो तख्तापलट के षडयंत्र की कड़े शब्दों में निंदा करते हैं।
राष्ट्रपति अर्दोआन ने तख्तापलट के प्रयास की निंदा करते हुए कहा कि जिस राष्ट्रपति को 52 प्रतिशत लोग सत्ता में लेकर आए, वही इन चार्ज है। जिस सरकार को लोगों सत्ता में लेकर आए, वही इन चार्ज है। जब तक हम अपना सब कुछ दाव पर लगाकर उनके खिलाफ खड़े हैं, तब तक वह कामयाब नहीं हो सकते।'
शुरुआती खबरों से इस आकस्मिक सैन्य अभ्युत्थान में अमेरिकी हितों को देखा जा रहा था।
कमाल अतातुर्क के जमाने से तुर्की में जितने भी सामरिक अभ्युत्थान हुए,वह बाकी इस्लामी देशों से भिन्न है।जिनका मकसद लोकतंत्र की बहाली रहा है।
इस बार भी सैन्य अभ्युत्थान के दौरान सेना के एक हिस्से ने लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता बहाल करने के लिए सत्ता की बागडोर हाथ में लेने का ऐलान कर दिया था।
अरब वसंत और मध्यपूर्व,अफ्रीका और लातिन अमेरिका में अमेरिकी लोकतंत्र के आयात का इतिहास और सीरिया में आइसिस की हरकतों के पीछे अमेरिकी हितों के मद्देनजर तुर्की की जनता इस झांसे में नहीं आयी और अभ्युत्थान नाकाम हो गया।
खास बात तो यह है कि सड़कों पर दौड़ते टैंको की परवाह किये बिना,हेलीकाप्टरों से गोलाबारी से बेखौफ नागरिकों ने अमेरिकापरस्त बागी सेना को सड़क पर शिकस्त दी और इस संघर्ष में कमसकम सैंतालीस तुर्क नागरिकों ने अपनी जान कुर्बान कर दी।तुर्की के इतिहास में यह अभूतपूर्व वाकया है।
खास बात तो यह है कि तुर्की में इन हालातों पर जनता का समर्थन सरकार के पक्ष में अधिक है। अर्दोअान की पार्टी हमेशा चुनावों में जीती है। उनकी पार्टी की जीत 50 से 55 फीसदी रही. इसका मतलब है कि जनता के बीच वो काफ़ी ताक़तवर हैं।
गौरतलब है कि बाकी इस्लामी देशों के मुकाबले तुर्की में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की विरासत गहरी पैठी है।जिंदगी टीवी चैनल में हाल में दो तुर्क सीरियल दिखाये जाते रहे हैं।फेरिहा और उमरगुल। कथा जो हो सो है,लेकिन इससे तुर्क रोजमर्रे की जिंदगी की आधुनिकता और मजहब से अलहदा जम्हूरियत की खुशबू बेहद गौरतलब हैं।
बहरहाल सैन्य अभ्युत्थान के फेल हो जाने के बाद तुर्की ने सीधे सेना में बगावत के पीछे अमेरिका में बैठे धार्मिक नेता फतहुल्ला गुलेन को जिम्मेदार बताते हुए अमेरिकी हाथ का आरोप भी लगाया है।दूसरी ओर,सेना के नवनियुक्त प्रमुख जनरल उमित दुंदार ने बताया, 'इस मामले में वायुसेना, सैन्य पुलिस और सशस्त्र बलों के अधिकारी मुख्य रूप से शामिल हैं। तख्तापलट के इस प्रयास के सेना के किसी भी उच्चपदस्थ अधिकारी का समर्थन हासिल नहीं था और देश के मुख्य विपक्षी दलों ने भी सरकार को उखाड़ फेंकने की इस कोशिश की भर्त्सना की।
गौरतलब है कि देर रात तुर्की में सैनिक और टैंक सड़कों पर उतर आए तथा आठ करोड़ की आबादी वाले देश के दो सबसे बड़े शहरों अंकारा और इस्तांबुल में सारी रात धमाके होते रहे। तुर्की नाटो का सदस्य है।
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