असम में शरणार्थी आंदोलन को भारी समर्थन,अब बंगाल ,त्रिपुरा और नई दिल्ली का बारी
विभाजन पीड़ितों की नागरिकता अनिवार्य और बांग्लादेश के हालात राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए भारी खतरा।
असम में बंगाली शरणार्थी वोट बैंक के बिना भाजपा का सत्ता में आना असंभव था।अगर भाजपा अपने अटल जमाने के कानून को संशोधित करके शरणार्थियों को नागरिकता देती है,तो शरणार्थी आंदोलन के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है।
पूर्वी बंगाल से बांग्लादेश बने भूखंड पर हालात भयानक बन गये हैं और वहां से आने वाले वीडियों और समाचारों से साफ जाहिर है कि बांग्लादेश पूरी तरह इस्लमी राष्ट्रवाद के शिकंजे में हैं।
बांग्लादेश में परिस्थितियां नियंत्रण से बाहर इस तरह होती रहीं तो जैसा कि पहल भी होता रहा है,जाहिर सी बात है कि हिंदू, बौद्ध,ईसाई,आदिवासी शरणार्थियों के साथ साथ भारी संख्या में मुसलमान शरण और सुरक्षा के लिए भारत आने को मजबूर होंगे।यह भारत के लिए 1971 से बड़ा संकट बनने वाला है।
पलाश विश्वास
बंगाली हिंदू विभाजन पीड़ित शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए 2003 से नागरिकता संशोधन अधिनियम संसद में तत्कालीन ग-हमंत्री लाला कृष्ण आडवाणी दावारा पेश करने के बाद से लगातार देश भर में आंदोलन जारी है।तब संसद में सर्वदलीय सहमति से यह कानून पारित हुआ।राज्यसभा में डा.मनमोहन सिंह और जनरल शंकर राय चौधरी ने इस कानून के दायरे से पूर्वी बंगाल और बांगालादेश से आने वाले शरणार्थियों को बाहर रखने की मांग की थी।
तब संसदीय समिति में जनसुनवाई के लिए शरणार्थी आंदोलन के कार्यकर्ताओं और नेताओं ने बार बार व्यापक संख्या में ज्ञापन दिये।हमने भी ज्ञापन दिया था।तब इस समिति के अध्यक्ष थे,मौजूदा राष्ट्रपति प्रणव कुमार मुखर्जी,जिन्होंने किसी भी तरह की सुनवाई से इकार कर दिया।
इसी बीच मीडिया में खबर है कि मौजूदा मोदी सरकार इस कानून को संशोधित करके पूर्वी बंगाल और बांग्लादेश के विभाजन पीड़ित हिंदुओं को नागरिकता देने जा रही है।संघ परिवार और भाजपा से ऐसे वायदे लगातार किये जा रहे थे और इसी उम्मीद में देशभर में और खास तौर पर बंगाल और असम में हिंदू शरणार्थियों ने भारी तादाद में भाजपा को वोट दिये।
मीडिया के मुताबिक पड़ोसी देश से आए शरणार्थियों को राहत प्रदान करने के वायदे को आगे बढ़ाते हुए सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 पेश किया ताकि इन देशों के हिन्दू, सिख एवं अन्य अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान की जा सके चाहे उनके पास जरूरी दस्तावेज हो या नहीं।लोकसभा में गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने यह विधेयक पेश किया।
इस विधेयक के प्रावधानों को अभी सिलसिलेवार देखना बाकी है और असल में कानून क्या शक्ल अखतियार करता है,वह भी देखना बाकी है।
गौरतलब है कि निखिल भारत उद्वास्तु समन्वय समिति ने 2011 में नई दिल् ला में नागरिकता की मांग पर बड़ा आंदोलन किया था और वह सिलसिला लगातार जारी है।
असम में बंगाली शरणार्थी वोट बैंक के बिना भाजपा का सत्ता में आना असंभव था।अगर भाजपा अपने अटल जमाने के कानून को संशोधित करके शरणार्थियों को नागरिकता देती है,तो शरणार्थी आंदोलन के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है।
गौरतलब है कि इस शरणार्थी आंदोलन का नेतृत्व शुरुआती दौर में मतुआ महासंघ कर रहा था और मतुआ मुख्यालय में नागरिकता की मांग पर मतुआ और शरणार्थी नेताओं ने आमरण अनशन कराया तब त्तकालीन प्रधानमंत्री का संदेशवाहक बनकर वह अनशन नागरिकता देने के वायदे पर तुड़वाया था रिपब्लिकन नेता रामदास अठावले ने जो संजोग से अब केंद्र सरकार में मत्री हैं और अंबेडकरी आंदोलन में अठावले की भूमिका,कासतौर पर अंबेडकर भवन ध्वस्त करने के सिलसिले में उनकी भूमिका को लेकर विवाद के बावजूद शरणार्थियों को उनसे बारी उम्मीदें हैं।कल रिपब्लिकन पार्टी के कोलकाता में हो रहे समता सम्मेलन में तमाम शरणार्थी नेता मौजूद रहेंगे।
बहरहाल 2005 में शरणार्थी आंदोलन की बागडोर निखिल भारत उद्वास्तु समन्वय समिति के हाथों में हैं जिसका संगठन अब पूरे भरतभर में तमाम राज्यों में सक्रिय है।
उस आमरण अनशन के बाद मतुआ आंदोलन राजनीति धड़ों में बंट गया है तो कुछ अलग शरणार्थी संगठन भी बन गये हैं।शुरु से इस आंदोलन के साथ रहे सुकृति रंजन विश्वास का एक अलग संगठन और इस तरह के कई और संगठन भी नागरिकता के लिए आंदोलन करते रहे हैं।लेकिन राजधानी नई दिल्ली से लेकर भारत के तमाम राज्यों में आंदोलन लगातार चलाने वाला संगठन निखिल भारत उद्वास्तु समन्वय समिति ही है।
अभी हासिल कुछ नहीं हुआ है लेकिन छिटपुट यदा कदा आंदोलन चलाने वाले लोग श्रेय लूटने के फिराक में हैं।जबकि संकट बेहद गहरा गया है और इस वक्त शरणार्थी आंदोलनजन विभाजन पीड़ितों के लिए जीवन मरण का मुद्दा बन गया है।
बहरहाल निखिल भारत उद्वास्तु समन्वय समिति सभी शरणार्थी संगठनों को एक जुट करके आंदोलन की राह पर है।
इस बीच बांग्लादेश में परिस्थितियां विषम हो गयी हैं।भारत में पहले से आ चुके शरणार्थियों की समस्या अभी सुलझी नहीं है कि पूर्वी बंगाल से बांग्लादेश बने भूखंड पर हालात भयानक बन गये हैं और वहां से आने वाले वीडियों और समाचारों से साफ जाहिर है कि बांग्लादेश पूरी तरह इस्लमी राष्ट्रवाद के शिकंजे में हैं।
आतंकवादी हमले तो अब हो रहे हैं लेकिन वहां हिंदुओं की अबाध हत्याएं हो रही हैं रोज रोज।बलात्कार का शिकार हो रही हैं हिंदू महिलाएं और बच्चियां रोज रोज।हिंदुओं की व्यापक पैमाने में बेदखली हो रही है।सत्तादल और पविपक्ष के नेता कार्यकर्ता रजाकर वाहिनी में शामिल थे और अब वे सीधे तौर पर इस्लामी राष्ट्रवाद के शिकंजे में हैं।
जिसके नतीजतन सिर्फ हिंदू नहीं,बल्कि ईसाई,बौद्ध,आदिवासी तमाम समुदायों पर कहर बरपाया जा रहा है।
बांगालदेश में हिंदुओं की आबादी अब भी दो करोड़ 39 लाख है,जिन्हें अब तसलिमा नसरीन के मुताबिक बांग्लादेश में रहने नहीं दिया जायेगा।बांग्लादेश की सरकार उनकी कोई मदद नहीं कर पा रही है तो धर्मनिरपेक्ष प्रगतिशील लेखकों,पत्रकारों और बुद्धिजीवियों की लगातार हत्या से अल्पसंख्यकों के हक हकूक की लड़ाई जारी रखना अब बांग्लादेश में असंभव है।
इसीके खिलाफ निखिल भारत उद्वास्तु समन्वय समिति नागरिकता ,मातृभाषा और आरक्षण जैसी मांगों के साथ साथ बांग्लादेश में तमाम अल्पसंक्य़क समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आंदोलन चला रहा है।
त्रिपुरा में दो अगस्त को रैसी और जुलूस है तो कोलकाता में 5 अगस्त को महाजुलूस है।5 अगस्त को कोलकाता में बांग्लादेशहाई कमीशन, बंगाल की मुख्यमंत्री और राज्यपाल को ज्ञापन दिया जाने वाला है।
इससे पहले इसी सिलसिले में असम की राजधानी गुवाहाटी में 19 जुलाई को विधानसभा पर निखिल भारत उद्वास्तु समन्वय समिति ने धरना दिया और प्रदर्शन किया।असम की संवेदनशील परिस्थितियों के मद्देनजर इसके बारे में पहले से घोषणाएं नहीं की जा सकीं।
असम के टीवी चैनलों और अखबारों में इस सिलसिले में रपटें विस्तार से आयी हैं।
गौरतलब है कि इस धरना प्रदर्शन के मौके पर हाजिर थे सत्ता दल और प्रतिपक्ष कांग्रेस के नेता और बड़ी संख्या में विधायक भी।जो विभाजन पीड़ित बंगाली शरणार्थियों की नागरिकता के पक्ष में हैं,ऐसा उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा है।बांग्लादेश में परिस्थितियों पर नियंत्रण जरुरी है,ऐसा भी उन्होंने कहा है।
हालात बेहद संगीन है और बांग्लादेश फिर विभाजन की कगार पर है तो इससे कमसमकम असम,बंगाल और त्रिपुरा के बहुत ज्यादा प्रभावित होने के खतरे हैं।
जैसा कि 1971 में भी हुआ था कि राजनीतिक उथल पुथल और युद्ध परिस्थितियों के मुताबिक हिंदुओं के सात साथ बड़ी संक्या में राजनीतिक उत्पीड़न और आर्थिक संकट की वजह से बड़े पैनमाने पर मुसलमान शरणार्थी भी भारत चले आये और उनमें से अनेक लौटे बी नहीं हैं।
जैसा कि 1971 से लगातार हो रहा है कि बांग्लादेश से आने वाले शरणर्थियों में भारी संख्या में मुसलमान भी हैं,तो समझने वाली बात है कि बांग्लादेश में इसतरह हत्या,बलात्कार,आतंक और बेदखली का तांडव जारी रहा तो इस बार भी सिर्फ दो करोड़ उनतालीस लाख हिंदू शरणार्ती ही भारत नहीं आयेंगे।
बांग्लादेश में परिस्थितियां नियंत्रणसे बाहर इस तरह होती रहीं तो जैसा कि पहल भी होता रहा है,जाहिर सी बात है कि हिंदू, बौद्ध,ईसाई,आदिवासी शरणार्थियों के साथ साथ भारी संख्या में मुसलमान शरण और सुरक्षा के लिए भारत आने को मजबूर होंगे।यह भारत के लिए 1971 से बड़ा संकट बनने वाला है।
इस सुलझाने के लिए भारत सरकार को तुरंत कदम उठाने होंगे और इसी मांग को लेकर निखिल भारत उद्वास्तु समन्वय समिति असम ,त्रिपुरा और बंगाल के बाद 17 अगस्त को राजधानी नई दिल्ली में बी आंदोलन करने जा रही है।
इसके अलावा भारत के हर राज्य में लगातार आंदोलन होने वाला है।
यह राहत की बात है कि असम जैसे संवेदनशील राज्य में भाजपा और कांग्रेस के अलावा असम सरकार और जनता का व्यापक समर्थन हासिल हुआ है।उम्मीद है कि दूसरे राज्यों में बी समर्थन का यह सिलसिला बना रहेगा।
जाहिर है कि यह मसला सिर्फ विभाजन पीड़ित हिदू बंगाली शरणार्थियों की समस्या नहीं है।यह भारत की एकता और अखंडता के लिए बहुत बड़ी समस्या है जिसे निपटने के लिए बंगाली हिंदू शरणार्थियों की नागरिकता का मसला तुरंत हल करना जरुरी है क्योंकि इसके बिना आप यह तय नहीं कर सकते कि कौन नागरिक है और कौन नागरिक नहीं है।
यह सुरक्षा कारणों से निहायत अनिवार्य कार्यभार है।इसके साथ ही जितनी जल्दी हो सकें बाग्लादेश संकट का राजनीतिक राजनयिक समाधान के लिए भारत सरकार को कदम उठाना होगा।
1947 के बाद जैसे पंजाब से आने वाले शरणार्थियों को युद्धस्तर पर नागरिकता और पुनर्वास दिया गया,वैसा ही पूर्वी बंगाल और बांग्लादेश के शरणार्थियों के मामले में हुआ होता और उन्हें बंधुआ वोट बैंक बनायेरखने की आत्मघाती राजनीति न होती तो आज इतनी भारी सस्या का सामना नहीं करना पड़ता।
इस भयंकर ऐतिहासिक गलती को जितनी जल्दी हो सके,तुरंत सुधरने की जरुरत है वरना राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए भारी खतरा है।
इसी सिलसिले में निखिल भारत उद्वास्तु समन्वय समिति के अध्यक्ष डा.सुबोध विश्वास और महासचिव एडवोकेट राय ने इस बारी संकट के मुकाबले तमाम शरणार्थियों और शरणार्थी संगठनों से समिति के साथ आंदोलन में शामिल होने की अपील की है।
इसी सिलसिले में निखिल भारत उद्वास्तु समन्वय समिति के अध्यक्ष डा.सुबोध विश्वास और महासचिव एडवोकेट राय ने संकट के मद्देनजर सकारात्मक सहयोग के लिए असम के राजनीतिक दलों,मीडिया और जनता के प्रति आभार जताया है।
इसी सिलसिले में निखिल भारत उद्वास्तु समन्वय समिति के अध्यक्ष डा.सुबोध विश्वास और महासचिव एडवोकेट राय ने बाकी देश में भी राजनीतिक दलों, मीडिया,सोशल मीडिया,अराजनीतिक संगठनों,शरणार्थी संगठनों,लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष ताकतों से राष्ट्रहित में शरणार्थी आंदोलन के प्रति सक्रिय समर्थन की अपील की है।
इसी सिलसिले में निखिल भारत उद्वास्तु समन्वय समिति के अध्यक्ष डा.सुबोध विश्वास और महासचिव एडवोकेट राय ने हस्तक्षेप के प्रति आबार और समर्थन जताया है कि वहां लगातार इस समस्या पर रपटें आ रही हैं।शरणार्थी संगठन हस्तक्षेप के साथ है।हस्तक्षेप को जारी रखने के लिए उसकी अलग मुहिम जारी है।
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Hiranmay Sarkar to নিখিল ভারত বাঙালি উদ্বাস্তু সমন্বয় সমিতি। NiBBUSS
15 hrs ·
নিখিল ভারত বাঙালি উদ্বাস্তু সমন্বয় সমিতির দীর্ঘ আন্দলনের কিছু ঐতিহাসিক মুহুর্ত।
দিল্লতে ধর্না 2011.
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