प्रणय राय के यहां छापे के तुरंत बाद पालतू चैनल इंडिया टुडे के राजदीप सरदेसाई के कानून का हवाला देकर इस छापे के समर्थन में अपने यहां भी छापे का न्यौता मीडिया का यह हिंदुत्व बोध उजागर करता है।
पलाश विश्वास
पिंजड़े में कैद तोता की उड़ान का राजनैतिक एजंडा का खुलासा बार बार बराबर होता रहा है।रघुकुल रीत है यह।
लालूप्रसाद,मुलायम,ममता से लेकर जयललिता तक हजारों किस्से हैं।
जाहिर सी बात है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है।
लेकिन बंगाल पर कब्जे के लिए नारदा और शारदा प्रकरण में जिस तरह एजंसियों का आरएसएस एजंडा के मुताबिक इस्तेमाल होता रहा है और संसद में कानून बनाने बिगड़ने के कारपोरेट एजंडा में अल्पमत को बहुमत में बदलने या संसदीय सहमति हासिल करने के लिए जो ब्लैकमैलिंग की संस्कृति है,वहां कानून और न्याय जैसे शब्द,निष्पक्षता और जांच जैसे तेवर गोरक्षा के अरब वसंत के धर्मोन्माद की तर्ज पर निरंकुश आपातकालीन फासिज्म के लक्षण हैं।
एनडीटीवी कोई दूध का धुला है,ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है।
बल्कि रवीश कुमार के चुने हुए मुद्दों पर बेबाकी के अलावा उसके तमाम अंतर्विरोध जगजाहिर है।राडिया टेप का प्रकऱण याद कर लें।
लेकिन पालतू छी चैनल समूह के मुकाबले इसमें कोई शक नहीं है कि एनडीवी कमोबेश आम जनता के मुद्दों पर अपनी मौकापरस्ती के बावजूद मुखर रहा है।
जबकि बाकी मीडिया में सरकार राजसूय यज्ञ और अश्वमेधी नरसंहार नरबलि अभियान का ही खुल्ला य़ुद्धोन्मादी रंगभेदी युद्धोन्माद है।
प्रणय राय के यहां छापे के तुरंत बाद पालतू चैनल इंडिया टुडे के राजदीप सरदेसाई के कानून का हवाला देकर इस छापे के समर्थन में अपने यहां भी छापे का न्यौता मीडिया का यह हिंदुत्व बोध उजागर करता है।
ऐसे में प्रणय राय और बरखादत्त की वजह से हमेशा चर्चित और रवीश की वजह से धेखने लायक एनडीटीवी पर कानून के राज के इस भयंकर जलवे से आपातकाल का अंधकार गहराने लगा है लेकिन जश्न फिर भी मनाया जा रहा है।
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