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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Saturday, June 10, 2017

Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!আবার গোরখাল্যান্ড আন্দোলন,আগুন জ্বলছে পাহাড়ে আগ্রাসি ক্ষমতা দখলের রাজনীতিতে! Palash Biswas

Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!আবার গোরখাল্যান্ড আন্দোলন,আগুন জ্বলছে পাহাড়ে আগ্রাসি ক্ষমতা দখলের রাজনীতিতে! 

Palash Biswas
https://www.facebook.com/palashbiswaskl/videos/1747653288596406/?l=3075488592590064234

GJM calls indefinite shutdown from Monday demanding separate 'Gorkhaland' state

The Mamata Banerjee-led government's decision to make Bengali mandatory up to class 10 had triggered the present round of movement.

মাতৃভাষা রক্ষা করার জন্য মাতৃভাষার শিক্ষা অনিবার্যকরে মাতৃভাষাকে রক্ষা করা যায় না,যদিন না মাতৃভাষার মাধ্যমে জীবিকা ও চাকরির ব্যবস্থা হয়
উগ্র জাতীয়তাবাদে বাংলা আবার ভাগ হওয়ার রাস্তায়,যারা বাংলা দখল করার জন্যগৌরিক পতাকা নিয়ে দাপিযে বেড়াচ্ছে,তাঁরাই কিন্তু ইতিপূর্বে উত্তর প্রদেশ,বিহার, মধ্যপ্রদেশ ও অন্ধ্র প্রদেশ ভাগ  করেছে,বাংলা ভাগ করে বাংলা দখল করতে তাঁদের মাতৃভাষাও বাধা হয়ে দাঁড়াবে না,তাঁদের আগ্রাসী রাজনীতি ও সাম্প্রদায়িক অন্ধ জাতীয়তাবাদই প্রমাণ
রেসিয়াল মাইনোরিটির বিপক্ষে সৈন্য নামিয়ে ভূগোল রক্ষা করা যায় না,ভারতবর্ষের ও বিশ্বের ইতিহাস থেকে আমাদের এখনও শিখতে হবে

ভারতভাগের ফলে বাংলার রক্তপাত ও বিপর্যয় এখনও শেষ হয়নি।উদ্বাস্তু সমস্যার সমাধান হয়নি এবং সীমান্ত পেরিয়ে আজও বাঙালি উদ্বাস্তুরা ভারতবর্ষে বিভিন্ন রাজ্যে ছড়িয়ে পড়ছে 
-- ভারতবর্ষে সবচেয়ে বেশি উদ্বাস্তু বাঙালি
ভারতবর্ষে সবচেয়ে বেশি মানুষ জীবিকা ও চাকরির সন্ধ্যানে ভিন রাজ্যে যেতে বাধ্য হচ্ছে
Media reports:

In the wake of ongoing unrest in the northern West Bengal hills, the Gorkha Janmukti Morcha on Saturday called for an indefinite shutdown in Darjeeling from Monday in support of its demand for a separate Gorkhaland state. "All central and state government offices, banks, Gorkhaland Territorial Administration offices will be closed as part of the shutdown from Monday. However, schools and colleges will be outside the purview of the shutdown," GJM General Secretary Roshan Giri told media persons after the party's central committee meeting.

As part of the protest, Block Development Offices, Sub-divisional Offices and District Magistrate's offices will also be closed. The state government's revenue sources like electricity, mines and boulders will also be part of the shutdown, Giri said.

The Mamata Banerjee-led government's decision to make Bengali mandatory up to class 10 had triggered the present round of movement. On Thursday, Darjeeling turned into a virtual battlefield after GJM supporters clashed with the police when they were stopped from marching to the Raj Bhawan where the state cabinet meeting was underway.

The GJM also announced that signboards in Darjeeling, Kurseong, Kalimpong, Mirik and several parts of Dooars and Terai could be written only in Nepali and/or English.

Giri further said there would be torchlight rallies in various wards and assembly constituencies of the hills from 7 to 8 pm starting Monday for the sake of 'Gorkhaland's revival. "There will also be mass signature campaign in favour of Gorkhaland. The signatures will be sent to the Prime Minister and the Union Home Minister," he added.

Earlier in the day, GJM supremo Bimal Gurung said agitation in Darjeeling hills will not stop until and unless a separate Gorkhaland is created. "If TMC wants to play with fire they will regret it," he said. "We will appeal to the people not to cooperate with the state government. It is taking away so much resources from the hills and what are the people of the hills getting? We are getting nothing. This has to stop. We will fight for our freedom and will not allow the divisive politics in the hills," Gurung said.


ভারতের পশ্চিমবঙ্গের পাহাড়ি জেলা দার্জিলিংয়ে আজ বৃহস্পতিবার প্রথমবারের মতো রাজ্যের মন্ত্রিসভার বৈঠক অনুষ্ঠিত হয়েছে। এ বৈঠককে কেন্দ্র করে অশান্ত হয়ে ওঠে দার্জিলিং। পৃথক গোর্খাল্যান্ড রাজ্যের দাবিতে গোর্খা জনমুক্তি মোর্চার সমর্থকেরা পুলিশের সঙ্গে সংঘর্ষে জড়িয়ে পড়েন। এ সংঘর্ষে পুলিশ সদস্যসহ বেশ কয়েকজন আহত হন। মোর্চার সমর্থকেরা পুলিশের বেশ কয়েকটি গাড়ি পুড়িয়ে দেন। এ ছাড়া সরকারি-বেসরকারি আরও কয়েকটি যাত্রীবাহী বাস পোড়ানো হয়।

এ সহিংসতায় আটকে পড়েন দেশ-বিদেশের কমপক্ষে ১০ হাজার পর্যটক। রাজ্য সরকার পরিস্থিতি নিয়ন্ত্রণে আনার জন্য সেনাবাহিনীর সাহায্য চেয়েছে। এদিকে আগামীকাল সকাল-সন্ধ্যা বন্‌ধের ডাক দিয়েছে জনমুক্তি মোর্চা।

পরিস্থিতি নিয়ন্ত্রণের জন্য দার্জিলিং ছাড়েননি মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়। আজ সকালে দার্জিলিংয়ের রাজভবনে শুরু হয় রাজ্য মন্ত্রিসভার বৈঠক। বৈঠকে মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়, মন্ত্রিসভার অধিকাংশ সদস্য এবং প্রশাসনের শীর্ষ কর্মকর্তারা যোগ দেন।

মমতার এ বৈঠকের প্রতিবাদে রাজ ভবনের কাছে ভানু ভক্ত ভবনের সামনে অবস্থান ধর্মঘট পালন করে দার্জিলিংয়ের গোর্খা জনমুক্তি মোর্চা। মোর্চার নেতা-কর্মীরা রাজভবনের দিকে এগোতে চাইলে পাহাড়ের চারদিকে চারটি ব্যারিকেড তৈরি করে বাধা দেয় পুলিশ। মোর্চার নেতা-কর্মীরা এই ব্যারিকেড ভাঙার চেষ্টা করেন। এ সময় পুলিশের সঙ্গে সংঘর্ষ বেধে যায়। জনমুক্তি মোর্চা পাহাড়ের বিভিন্ন এলাকায় অবরোধ তৈরি করলে কার্যত এলাকাটি অচল হয়ে পড়ে। যানবাহন চলাচল বন্ধ হয়ে যায়। এতে করে দার্জিলিংয়ে অবস্থানরত দেশ-বিদেশের পর্যটকেরা বিপাকে পড়েন। বন্ধ হয়ে যায় দোকানপাট।


প্রসঙ্গত, মুখ্যমন্ত্রীর এই সফর নিয়ে দার্জিলিংয়ের গোর্খা জনমুক্তি মোর্চা পাহাড়জুড়ে আন্দোলন শুরু করেছে। জনমুক্তি মোর্চার নেতা বিমল গুরুংয়ের নেতৃত্বে চলছে এ আন্দোলন। এর আগে আন্দোলনকারীরা তৃণমূলের বিভিন্ন ব্যানার ও পতাকা ছিঁড়ে ফেলেন। মমতাকে কালো পতাকা দেখান। স্লোগান দেন পাহাড় ছাড়ার। এসব হুমকি উপেক্ষা করে মমতা আজ বৃহস্পতিবার যোগ দেন মন্ত্রিসভার বৈঠকে।

জনমুক্তি মোর্চার আন্দোলনের সূত্রপাত হয় মুখ্যমন্ত্রী মমতার একটি ঘোষণাকে কেন্দ্র করে। মুখ্যমন্ত্রী কদিন আগে ঘোষণা দেন, রাজ্যের সব বিদ্যালয়ে দশম শ্রেণি পর্যন্ত সব ছাত্র-ছাত্রীর বাংলা ভাষা পড়তে হবে। এ সিদ্ধান্ত মেনে নিতে পারেনি গোর্খা জনমুক্তি মোর্চা। কারণ, দার্জিলিংয়ের মূল ভাষা নেপালি। বিমল গুরুং বলেছেন, তাঁরা বাংলা ভাষাকে দার্জিলিংয়ের শিক্ষার অন্যতম মাধ্যম হিসেবে মানবেন না। যদিও মুখ্যমন্ত্রী বলেছেন, পশ্চিমবঙ্গে সব বিদ্যালয়ে দশম শ্রেণি পর্যন্ত বাংলা ভাষা পড়তে হবে। পরবর্তীকালে মুখ্যমন্ত্রী দার্জিলিংয়ের একটি সংবাদমাধ্যমকে বলেছেন, বাংলা ভাষা এখানে ঐচ্ছিক হিসেবে পড়তে হবে।

এদিকে এই ইস্যুতে রাজ্য সরকারের সঙ্গে বিমল গুরুংয়ের রাজনৈতিক বাগ্‌বিতণ্ডা শুরু হয়েছে। বিমল গুরুং আরও বলেছেন, তাঁরা পৃথক রাজ্য গোর্খাল্যান্ড নিয়ে ফের আন্দোলনে নেমেছেন। এমনকি তাঁরা জিটিএ বা গোর্খা টেরিটরিয়াল অ্যাডমিনিস্ট্রেশন থেকে তাঁদের সদস্যদের পদত্যাগ করারও হুমকি দিয়েছেন। জিটিএর প্রধান হলেন গোর্খা জনমুক্তি মোর্চার নেতা বিমল গুরুং। ২০১২ সালে এ জিটিএ গঠন হয়।

बांग्ला थोंपने के आरोप में दार्जिलिंग फिर आग के हवाले!

अलगाव की राजनीति के तहत नस्ली अल्पसंख्यकों का सैन्य दमन ही राजकाज!

पलाश विश्वास

 

दार्जिलिंग फिर जल रहा है और गोरखा जनमुक्ति मोर्चा  ने शुक्रवार को दार्जिलिंग बंद का आह्वान किया है और पर्यटकों से भी दार्जिलिंग छोड़ने को कहा गया है।इसी के तहत बंगाल सरकार मुख्यमंत्री की अगुवाई में पहाड़ से पर्यटकों को युद्ध स्तर पर सकुशल निकालने में लगी है और दार्जिलिंग में सेना का फ्लैग मार्च हिंसा और आगजनी की वारदातों के बीच जारी है।अस्सी के दशक में दार्जिलिंग में पर्यटन आंदोलन और हिंसा  की वजह पूरी तरह ठप हो गया था।उस घाये सो लोग अभी उबर भी नहीं सके हैं कि नये सिरे से यह राजनीतिक उपद्रव शुरु हो गया है।

गौरतलब है कि दार्जिलिंग में 43 वर्ष बाद किसी मुख्यमंत्री के रुप में ममता बनर्जी मंत्रियों के साथ कैबिनेट मीटिंग कर रही थीं।जबकि भाषा के सवाल पर यह हिंसा भड़क उठी।

गौरतलब है कि दार्जिलिंग से निर्वाचित भाजपा  सांसद और केंद्रीय मंत्री एसएस अहलूवालिया ने इस हालात के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को जिम्मेदार ठहराया है। 'बांग्ला थोप रही हैं ममता बनर्जी' एक टीवी चैनल से खास बातचीत में अहलूवालिया ने कहा कि ममता बनर्जी गलत ढंग से बांग्ला भाषा को लोगों पर थोप रही हैं। उनका आरोप है कि यह फैसला पश्चिम बंगाल की कैबिनेट में पारित नहीं हुआ।

भारत आजाद होने के बावजूद लोक गणराज्य के लोकतांत्रिक ढांचे के तहत राजकाज चलाने की बजाय ब्रिटिश औपनिवेशिक विरासत के तहत नस्ली अल्पसंख्यकों को अलग थलग करके उनके सैन्य दमन की परंपरा चल रही है।

कश्मीर में, मध्य भारत में और समूचे पूर्वोत्तर में राजकाज इसी तरह सलवा जुडुम में तब्दील है।पृथक उत्तराखंड आंदोलन के दौरान इसी तरह आंदोलनकारियों की हत्या और स्त्रियों से बलात्कार की वारदातों का राजकाज हमने देखा है।

आदिवासियों को बाकी जनता से अलग थलग रखकर उनका सैन्य दमन जिस तरह अंग्रेजों का राजकाज रहा है,नई दिल्ली की सरकार और बाकी सरकारों का राजकाज भी वही है।

बंगाल के दार्जिलिंग पहाड़ों में कोलकाता के राजकाज का अंदाज भी वहीं है।

पहाड़ के जनसमुदायों को अलग अलग बांटकर,उन्हें अलग थलग करके उन्ही के बीच अपनी पसंद का नेतृत्व तैयार करके वहां सत्ता वर्चस्व बहाल रखने का राजनीतिक खेल बेलगाम जारी है।

अस्सी के दशक में सुबास घीसिंग के मार्फत जो राजनीति चल रही थी,बंगाल में वाम अवसान के बाद विमल गुरुंग के मार्फत वहीं राजनीति चल रही है।जिसमें केंद्र और राज्य के सत्ता दलों के परस्परविरोधी हितों का टकराव हालात और पेचीदा बना रहा है।

गोरखा अल्पसंख्यकों पर ऐच्छिक विषय के रुप में बांग्ला थोंपने के आरोप में दार्जिलिंग फिर आग के हवाले है।वहां अमन चैन और कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी सेना की है।गोरखा जन मुक्ति मोर्चा ने बिना किसी चेतावनी के उग्र आंदोलन शुरु कर दिया है और पूरे पहाड़ से पर्यटक अनिश्चितकाल तक फंस जाने के डर से नीचे भागने लगे हैं।

बंगाल में सत्तादल के मुताबिक यह वारदात संघ परिवार की योजना के तहत हुई है,जिससे पहाड़ को फिर अशांत करके बंगाल के एक और विभाजन की तैयारी है।

गौरतलब है कि बुधवार को दार्जिंलिंग में हिंसा भड़कने के ठीक एक दिन पहले बंगाल भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष ने गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के नेताओं के साथ बैठक की थी।हालांकि भाजपा ने इस आरोप से सिरे से इंकार किया है।

गौरतलब है कि दार्जिलिंग से पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत गोरखा जन मुक्ति मोर्चा के समर्थन से हुई है और तबसे लेकर विमल गुरुंग से दीदी और उनकी पार्टी के समीकरण काफी बिगड़ गये हैं।

गोरखा नेता मदन तमांग की हत्या के मामले में विमल और उनके साथी अभियुक्त हैं तो गोरखा परिषद के बाद दीदी ने लेप्चा और तमांग परिषद अलग से बनाकर गोरखा परिषद की ताकत घटाने की कोशिश की है।

हाल में शांता क्षेत्री को राज्यसभा भेजने का फैसला करके गुरुंग से सीधा टकराव ही मोल नहीं लिया दीदी ने बल्कि पहाड़ पर राजनीतिक वर्चस्व कायम करने के लिए वहां मंत्रिमंडल की बैठक भी बुला कर गुरुंग को खुली चुनौती दी।

जिसके जवाब में यह भाषा आंदोलन शुरु हो गया है,जिससे पहाड़ में लंबे अरसे तक हालात सामान्य होने के आसार नहीं हैं।दरअसल भाषा का सवाल एक बहाना है,स्थानीय निकायों के चुनावों के जरिये पहाड़ में तृणमूल कांग्रेस की घुष पैठ के खिलाफ करीब महीने भर से गोरखा जनमुक्ति मोर्चा का प्रदर्श आंदोलन जारी है।तो दीदी भी इसकी परवाह किये बिना पहाड़ पर अपना वर्चस्व कायम करने पर आमादा है।बाकी राज्य में भी उनकी यही निरंकुश राजनीतिक शैली है,जिसके तहत वह विपक्षा का नामोनिशन मिटा देने के लिए विकास और अनुदान के साथ साथ शक्ति पर्दशन करके विपक्षी राजनीतिक ताकत को मिट्टी में मिलाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ती।

गोरखा जनमुक्ति मोर्चा को भाषा का मुद्दा अचानक तब मिल गया जबकि पिछले  16 मई को दीदी के खास सिपाहसालार राज्य के शिक्षा मंत्री ने घोषणा कर दी  कि आईसीएसई और सीबीएसई से संबद्ध स्कूलों सहित राज्य के सभी स्कूलों में छात्रों का बांग्ला भाषा सीखना अनिवार्य किया जाएगा।

शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा कि अब से छात्रों के लिए स्कूलों में बांग्ला भाषा  सीखना अनिवार्य होगाष हालांकि ममता बनर्जी ने साफ किया कहा है कि बांग्ला भाषा को स्कूलों में अनिवार्य विषय नहीं बनाया गया है।लेकिन गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के लिए गोरखा अस्मिता के तहत ऐच्छिक भाषा बतौर भी बांग्ला मंजूर नहीं है।

दरअसल दीदी का वह ट्वीट गोरखा जनमुक्ति के महीनेभर के आंदोलन के लिए ईंधन का काम कर गया जिसमें उन्होंने लिखा  कि दशकों बाद इस क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत हुई है। तृणमूल कांग्रेस ने राज्य में पहली बार पहाड़ी क्षेत्र में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के एक दशक लंबे एकाधिकार को खत्म कर दिया है।

स्थानीय निकायों के नतीजे पर इस खुली युद्ध घोषणा के बाद पूरी मंत्रिमंडल के साथ दार्जिलिंग में दीदी की बैठक को गोरखा अस्मिता पर हमला बताने और समझाने में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा को कोई दिक्कत नहीं हुई।

इसी बीच बांग्ला व बांग्ला भाषा बचाओ कमिटी के सुप्रीमो डॉ मुकुंद मजूमदार ने एक विवास्पद बयान देकर हिंसा को बढ़ाने में आग में घी का काम किया। उन्होंने कहा बंगाल में रहना है तो बांग्ला सीखना और बोलना होगा। बांग्ला भाषा व संस्कृति को अपनाना होगा।

कल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दार्जिलिंग में राज्य मंत्रिमंडल की बैठक की थी और इस बैठक में सारे मंत्री और पुलिस प्रशासन के तमाम अफसर मौजूद थे।पहाड़ में नये सचिवालय बनाने के सिलसिले में यह बैठक राजभवन में हो रही थी कि गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के नेताओं और समर्थकों ने मुख्यमंत्री और समूुचे मंत्रिमंडल का घेराव करके पंद्रह बीस गाड़ियों में आग लगी दी और भारी पथराव शुरु कर दिया।

उग्र भीड़ पर काबू पाने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा और आंसूगैस के गोले भी छोड़ने पड़े।फिर इस अभूतपूर्व घेराव और हिंसा के मद्देनजर सेना बुला ली गयी।

सुबह तड़के सारे मंत्रियों को सुरक्षित सिलीगुड़ी ले जाया गया हालांकि दीदी अभी दार्जिलिंग में हैं और आज भी आगजनी और हिंसा के साथ बारह घंटे के गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के बंद के मध्य दीदी ने हालात सामान्य बनने तक दार्जिलिंग में ही रहने का ऐलान कर दिया है।

स्थानीय जनता की रोजमर्रे की तकलीफों, उनकी रोजी रोटी और उनके लिए अमन चैन सरकार,पुलिस प्रशासन और राजनीति के लिए किसी सरदर्द का सबब नहीं है। पर्यटकों को सुरक्षित पहाड़ों के बारुदी सुरंगों से निकालने की कवायद चल रही है। ताकि नस्ली अल्पसंख्यकों को अलग थलग करके उनसे निबट लिया जाय।हूबहू सलवाजुड़ुम राजकाज की तरह।


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