प्रधान स्वयंसेवक और महाबलि ट्रंप के मिलन से भारत को क्या मिला और अमेरिका को क्या?
भारत में रोजगार संकट और छंटनी बहार के सिलसिले में ट्रंप की नीतियों में बदलाव के लिए क्या बात हुई?
तीन साल के सात हजार सुधारों के बावजूद संविधान कितना बचा है,लोकतंत्र कितना बचा है और कानून का राज कितना बचा है?
आधार और नोटबंदी से बंटाधार , आगे जीएसटी है,संसदीट सहमति की कारपोरेट फंडिंग सबसे बड़ा सुधार!
जनता के खिलाफ अब लामबंद राजनीति के अलावा मीडिया और न्याय पालिका भी!
बजरंगियों के अलावा अब किसी को कोई मौका नहीं, बजरंगियों के अलावा अब किसी को जीने का हक भी नहीं!
सबसे बड़ी सुधार क्रांति नोटबंदी की हुई है तो उससे भी बड़ी क्रांति गोरक्षा क्रांति अभी शुरु ही हुई है,जो दुनियाभर की क्रांतियों के मुकाबले ज्यादा क्रांतिकारी है क्योंकि इससे भारत में मनुस्मृति विधान लागू होगा जिससे सहिष्णुता ,विविधता, बहुलता,लोकतंत्र, मनुष्यता,सभ्यता,प्रकृति पर्यावरण सबकुछ गेरुआ रंग में समाहित हो जायेगा और जाति वर्ण रंंगभेदी नस्ली निरंकुश सत्ता से विदेशी पूंजीपतियों और कंपनियों के लिए भारत आखेटगाह बन जायेगा।
पलाश विश्वास
अमेरिकी पूंजीपतियों,कारपोरेट कंपनियों और उद्योगपतियों के साथ अमेरिका में प्रधान स्वयंसेवक के गोलमेज सम्मेलन के ब्यौरे भारतीय गोदी मीडिया ने कुछ ज्यादा नहीं दिया है।गौरतलब है कि इस अभूतपूर्व गोलमेज सम्मेलन में प्रधान स्वयंसेवक ने दावा किया कि भारत में पूंजीनिवेश और कारोबार के बेहतरीन मौके उनकी गोभक्त हिंदुत्व की सरकार ने महज तीन साल में सात हजार सुधारों के मार्फत बना दिये हैं।
भारत की आजादी के सिलसिले में लंदन में हुए गोलमेज सम्मेलनों के मुकाबले इस गोलमेज सम्मेलन का मतलब मीडिया ने आम जनता को अभीतक बताया नहीं है,जो आजादी की सारी लड़ाई और स्वराज के सपनों के साथ साथ भारतीय जनता के स्वतंत्रता संग्राम का समूचा इतिहास सिरे से धो डालने का सबसे असरदार डिटर्जेंट पाउडर है और जिससे केसरिया केसरिया रंग बहार है,जो असल में सुनहला है।ये ही सुनहले दिनों के ख्वाब और विचार हैं।यही हिंदुत्व का समरसता मिशन है।यही गोरक्षकों का लोकतंत्र,समता और न्याय,भारतीयता है।
अभीतक किसी विद्वतजन ने पलटकर प्रधान स्वयंसेवक से यह सवाल लेकिन पूछा नहीं है कि इस तीन साल के सात हजार सुधारों के बावजूद संविधान कितना बचा है,लोकतंत्र कितना बचा है और कानून का राज कितना बचा है।
सुधारों की दौड़ में फेल हो जाने की वजह से मनमोहन सिंह अमेरिकी नजरिये से नीतिगत विकलांगकता का शिकार हो गये थे। शायद इसके मद्देनजर व्हाइट हाउस के महाबलि को यह हिसाब लगाने के लिए छोड़ दिया गया है कि तीन साल में सात हजार सुधारों के हिसाब से सुधारों की कुल विकास दर कितनी है।क्रिकेट मैचों के स्कोरर साथ ले जाते तो शायद यह भी मालूम हो जाता कि इन धुंआधार सुधारों से कितने विश्वरिकार्ड बने हैं और टूटे हैं।
मुक्त बाजार के लिए तीन साल में इतने सुधारों के मुकाबले बाकी देश कहां है और सुधारों की रैंकिंग में भारत अब कितने नंबर पर है?
सुधारों में 1160 कानून खत्म करने की संसदीय सहमति और गिलोटिन की भी शायद बड़ी भूमिका होगी।
सबसे बड़ी सुधार क्रांति नोटबंदी की हुई है तो उससे भी बड़ी क्रांति गोरक्षा क्रांति अभी शुरु ही हुई है,जो दुनियाभर की क्रांतियों के मुकाबले ज्यादा क्रांतिकारी है क्योंकि इससे भारत में मनुस्मृति विधान लागू होगा जिससे सहिष्णुता ,विविधता, बहुलता,लोकतंत्र, मनुष्यता,सभ्यता,प्रकृति पर्यावरण सबकुछ गेरुआ रंग में समाहित हो जायेगा और जाति वर्ण रंंगभेदी नस्ली निरंकुश सत्ता से विदेशी पूंजीपतियों और कंपनियों के लिए भारत आखेटगाह बन जायेगा।
आधार क्रांति तो लाजबवाब है जैसा दुनियाभर में कहीं हुआ ही नहीं कि निजता ,गोपनीयता,स्वतंत्रता को पल पल नागरिक बुनियादी जरुरतों और सेवाओं के लिए तिलांजलि दे दें।
भारत में मनुष्य आधार नंबर है वरना उसका कोई वजूद नहीं है।हाथों में हथकड़ी,पांवों में बेड़ियां अलग से डालने की जरुरत नहीं है।देश का चप्पा चप्पा कैदगाह है,कत्लगाह है।कातिलों और दहशतगर्दों को खुली छूट,आम माफी है।यही हिंदूराष्ट्र है।
मुश्किल यह है कि आधार नंबर से कानूनी खानापूरी होगी,लेकिन उससे जान माल की हिफाजत नहीं होगी।वहीं होगा जो कातिलों की मर्जी है।आधार हो न हो,फर्क नहीं पड़ता।
न कानून का राज है और न सात हजार सुधारों के बाद संविधान है।दलित राष्ट्रपति फिर हालांकि मिलना तय है।
आगे जीएसटी सबसे खतरनाक मोड़ है।फिर कत्लेआम बेलगाम जश्न है।खेती का काम तमाम है तो कारोबार भी मौत का सबब है।गजब है।
भारत के संघीय ढांचा् को तोड़कर एक देश एक कर के नाम राज्यों के राजस्व आय की खुली डकैती करके उन्हें गुलाम कालोनियों में तब्दील किया जा रहा है।
केंद्र के पैकेज ,सीबीआई,ईडी जैसी एजंसियों जैसी मेहरबानी पर क्षत्रपों की आत्मरति अब लोकतंत्र है।बाकी वोटबैंक है।
सारा तंत्र एकाधिकार कारपोरेट कंपनियों के लिए है जिसके तहत डिजिटल इंडिया में किसानों, मेहनतकशों और कर्मचारियों, छात्रों, युवाओं और स्त्रियों-बच्चों के साथ साथ खुदरा,छोटा और मंझौला कारोबारियों और वैसे ही उद्योगों का सफाया हो जाना है।
यह चूंचूं का मुरब्बा जीएसटी क्या बला है,कर छूट के गुब्बारों के फूटने के बाद ही पता चलेगा।
फिलहाल सहमति और विरोध का पाखंड संसदीय लोकतंत्र है।
भारत के सुधारों में सबसे बड़ा सुधार शायद राजनीतिक दलों की कारपोरेट फंडिग है।
सारी राजनीति कारपोरेट फंडिंग से होती है तो कारपोरेट हितों के मुताबिक ही राजनीति चलेगी चाहे वोटबैंक समीकरण के लिए किसी दलित को राष्ट्रपति चुनने की मजबूरी हो और आदिवासियों, दलितों,पिछड़ों,स्त्रियों और मुसलमानों को भी सत्ता में हिस्सेदारी का अहसास दिलाना जरुरी हो।
होगा वहीं जो कारपोरेट हित में हो।यही संसदीय सहमति है।
इसी के मुताबिक न्याय पालिका और मीडिया की भूमिका तय हो गयी है।दुनिया भर के सभ्य देशों में नागरिकों के लिए नागरिक और मानवाधिकार की रक्षा करने के माध्यम मीडिया और न्यायपालिका है,जिन पर कानून का राज बहाल रखने के साथ साथ समानता और न्याय की जिम्मेदारी है,जिन्हें पीडितों की सुनवाई करनी है।इसका उलट सबकुछ हो रहा है।
मीडिया पूरी तरह कारपोरेट हैं और न्यायपालिका भी पूरीतरह सत्ता के साथ है।
नागरिक का उसके आधार नंबर के सिवाय कोई वजूद ही नहीं है।गुलामी से बदतर यह आजादी की खुशफहमी और सुनहले ख्वाबों का तिलिस्म है।हम सिर्फ किस्मत के हवाले हैंं।बाकी कत्ल हो जाने का इंतजार।
बहरहाल इन अभूतपूर्व सुधारों के साथ भारत में जारी आत्मघाती हिंसा और दंगाई माहौल की वजह से इस गोलमेज सम्मेलन का नतीजा यह निकला कि प्रधान स्वयंसेवक के न्यौते पर महाबलि ट्रंप की अखबारों की सुर्खियों में अपनी मुस्कान और कारनामों के लिए छायी रहने वाली बेटी इवंका के नेतृत्व में अमेरिकी उद्योगपतियों का एक दल भारत आने वाला है।सुनहले दिनों के सबसे सुनहले संकेत यही हैं।
बाकी सुनहला केसरिया है।हिंदुत्व का रंग केसरिया है,ऐसा वैदिकी साहित्य में कहीं लिखा नहीं है।
बहरहाल अंध हिंदुत्व राष्ट्रवाद के दृष्टि अंध नागरिकों को सावन के अंधों को हरा ही हरा दीखने की तर्ज पर सबकुछ गेरुआ ही गेरुआ नजर आता है।
गेरुआ ही भक्तों के लिए उनके नजरिये से सुनहला है।
महाबलि ट्रंप से हाथ मिलाकर पाकिस्तान का नामोनिशां मिटाने का प्रधान स्वयंसेवक ने मुकम्मल चाकचौबंद इंतजाम किया है और भारत और अमेरिका दोनों ने माना है कि इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में अमेरिका भारत के साथ है।
जाहिर है कि उनकी इस महान उपलब्धि से उनका ही नहीं भक्तजनों का सीना छप्पन इंच से बढ़कर सीधे दिल्ली वाशिंगटन हवाई मार्ग बनने वाला है।
वीसा चाहे मिले या नहीं मिले।
रेड कार्पेट पर अगवानी हो न हो।
जुबां पर दलील हो न हो तो मातहत सेवा में हाजिर हो।
हिंदुस्तान की सरजमीं पर बीफ के शक में दंगा,बेगुनाहों का कत्लेआम तो क्या, विदेश में बीफ खाने वालों का आलिंगन गर्मजोशी है और मुस्कान को छू भर लें तो लाख टके का शूट बलिहारी।
बाकी पाकिस्तान और इस्लाम के खिलाफ युद्धोन्माद के सिवाय प्रधान स्वयंसेवक महाबलि से मिलकर क्या साथ लाये हैं,उसके लिए सात परमाणु रिएक्टर और हथियारों और तकनीक की शापिंग लिस्ट लाइव है।
गौरतलब है कि इस युद्धोन्मादी राष्ट्रवाद की सुनामी में रोज भारत में मजहबी पहचान की वजह से शक और आरोप के बिना बेगुनाह लोग भीड़ के हाथों मारे जा रहे हैं।इस पर मौन है तो किसानों की थोक खुदकशी पर उपवास है और घुंघट की सरकार एक तरफ,दूसरी तरफ बलात्कार सुनामी है और अखंड पितृसत्ता में रोमियो तांडव की बजरंगी बहार।
आईटी सेक्टर में महाबलि ट्रंप की नीतियों के लिए गहराते संकट और लाखों करोडो़ं छात्रों युवाओं के भविष्य पर गहराते अंधेरे के लिए अमेरिका से आयातित परमाणु उर्जा संयंत्रों से कितनी रोशनी मिलेगी और कितनी तबाही,हमें नहीं मालूम।
महाबिल ट्रंप के इस्लामविरोधी जिहाद मौसम में अमेरिकी नीतियों में भारतीयों के लिए भारत और अमेरिका में रोजगार और आप्रवासी भारतीयों के रोजगार जानमाल की गारंटी के बारे में क्या बातचीत हुई, न मीडिया में इसका कोई ब्यौरा है और न संयुक्त घोषणापत्र में कोई उल्लेख।
वीसा समस्या पर क्या बात हुई,हुई भी या नहीं,यह भी किसी को नहीं मालूम।
इससे बजरंगियों को खास परेशान होने की जरुरत नहीं है।
भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए अपढ़,अधपढ़,पढ़े लिखे,योग्य अयोग्य हर तरह के स्वयंसेवकों की भरती हिंदू सेना के नानाविध बटालियनों में हो रही है।उन्हें रोजगार की चिंता नहीं होगी।हिंदू राष्ट्र के मकसद से ढोल गवांर पशु शूद्र नारी सारे ताड़न के अधिकारी किसी भी पद पर तैनात किये जा सकते हैं ताकि बकरी का गला रेंतने से पहले वैदिकी कर्मकांड की रस्म अदायगी हो जाये।
नरबलि भी वैदिकी कर्मकांड है और वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति।
मुश्किल है उनके लिए जो बजरंगी नहीं हैं।
जो बजरंगी नहीं है,उनके लिए इस मुल्क में अब कोई मौके नहीं हैं।फिर दंगाई राजकाज के मुताबिक उन्हें जीने का कोई हक भी नहीं है।बजरंगी सेना उनका हिसाब किताब करने लगी है।
इतने लोग मारे जा रहे हैंं और आगे मारे जाते रहेंगे कि गिनती मुश्किल हो जायेगी।नाम धाम तक दर्ज नहीं होने वाला है।
जलवायु करार के प्रति प्रतिबद्धता का शोर मचाने वाले प्रधान स्वयंसेवक ने आतंकवाद के अलावा जलवायु और पर्यावरण के साथ विश्वनेताओं के बीच आम तौर पर जिन मसलों पर ऐसे मौकों पर चर्चा होती है,उनमें से किस किस मुद्दे पर क्या क्या बातें की हैं,उसका अभी खुलासा नहीं हुआ है।
गौरतलब है कि अमेरिका के आतंकवाद के खिलाफ युद्ध का नाम ट्रंप जमाने में अब इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ युद्ध है और भारत इस युद्ध में इस्लाम के खिलाफ अमेरिका के साथ।चूंकि भारत और अमेरिका, महाबलि ट्रंप और प्रधान स्वयंसेवक दोनों को लगता है कि आतंकवाद इस्लामी है और इस इस्लामी आतंकवाद को जड़ से समाप्त कर दिया जाये तो दुनिया भर में अमन चैन कायम हो जायेगा। मीडिया के मुताबिक महाबलि के साथप्राधान स्वयंसेवक के बिताये अंतरंग पलों का सार यही है कि पाकिस्तान को सबक सिखाने में अमेरिका भारत के साथ है।
भारत अमेरिका संयुक्त घोषणापत्र पर गौर करेंः
मीडिया के मुताबिक भारत और अमेरिका ने आतंकवाद को प्रश्रय देने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का संकल्प लेने के साथ ही पाकिस्तान से मुंबई और पठानकोट आतंकी हमलों के दोषियों को कानून के शिकंजे में लाने की कार्रवाई तेज करने करने को कहा है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच यहां हुई बैठक के बाद जारी संयुक्त घोषणा पत्र में ट्रंप ने कहा, "भारत और अमेरिका दोनों आतंकवाद से बुरी तरह प्रभावित रहे हैं, हम कट्टर इस्लामिक आतंकवाद को जड़ से मिटाने का संकल्प लेते हैं।"
मीडिया के मुताबिक अमेरिकी राष्ट्रपति ने पड़ोसी देश पाकिस्तान से मुंबई और पठानकोट में हुए आतंकी हमलों के दोषियों को कानून के शिकंजे में लाने की कार्रवाई तेज करने काे कहा।
संयुक्त बयान के मुताबिक परमाणु अप्रसार के क्षेत्र में भारत के साथ वैश्विक साझेदार बने अमेरिका ने परमाणु आपूर्तिकता समूह (एनएसजी), वासेनार व्यवस्था और रासायनिक एवं जैविक हथियारों से संबंधित प्रौद्योगिकियों के निर्यात नियंत्रण पर लगाम लगाने के उद्देश्य से बनाये गये अनौपचारिक समूह 'आस्ट्रेलिया ग्रुप' में भारत की सदस्यता की दावेदारी का पुरजोर समर्थन भी किया।
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