बांग्ला थोंपने के आरोप में दार्जिलिंग फिर आग के हवाले!
अलगाव की राजनीति के तहत नस्ली अल्पसंख्यकों का सैन्य दमन ही राजकाज!
पलाश विश्वास
दार्जिलिंग फिर जल रहा है और गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने शुक्रवार को दार्जिलिंग बंद का आह्वान किया है और पर्यटकों से भी दार्जिलिंग छोड़ने को कहा गया है।इसी के तहत बंगाल सरकार मुख्यमंत्री की अगुवाई में पहाड़ से पर्यटकों को युद्ध स्तर पर सकुशल निकालने में लगी है और दार्जिलिंग में सेना का फ्लैग मार्च हिंसा और आगजनी की वारदातों के बीच जारी है।अस्सी के दशक में दार्जिलिंग में पर्यटन आंदोलन और हिंसा की वजह पूरी तरह ठप हो गया था।उस घाये सो लोग अभी उबर भी नहीं सके हैं कि नये सिरे से यह राजनीतिक उपद्रव शुरु हो गया है।
गौरतलब है कि दार्जिलिंग में 43 वर्ष बाद किसी मुख्यमंत्री के रुप में ममता बनर्जी मंत्रियों के साथ कैबिनेट मीटिंग कर रही थीं।जबकि भाषा के सवाल पर यह हिंसा भड़क उठी।
गौरतलब है कि दार्जिलिंग से निर्वाचित भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री एसएस अहलूवालिया ने इस हालात के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को जिम्मेदार ठहराया है। 'बांग्ला थोप रही हैं ममता बनर्जी' एक टीवी चैनल से खास बातचीत में अहलूवालिया ने कहा कि ममता बनर्जी गलत ढंग से बांग्ला भाषा को लोगों पर थोप रही हैं। उनका आरोप है कि यह फैसला पश्चिम बंगाल की कैबिनेट में पारित नहीं हुआ।
भारत आजाद होने के बावजूद लोक गणराज्य के लोकतांत्रिक ढांचे के तहत राजकाज चलाने की बजाय ब्रिटिश औपनिवेशिक विरासत के तहत नस्ली अल्पसंख्यकों को अलग थलग करके उनके सैन्य दमन की परंपरा चल रही है।
कश्मीर में, मध्य भारत में और समूचे पूर्वोत्तर में राजकाज इसी तरह सलवा जुडुम में तब्दील है।पृथक उत्तराखंड आंदोलन के दौरान इसी तरह आंदोलनकारियों की हत्या और स्त्रियों से बलात्कार की वारदातों का राजकाज हमने देखा है।
आदिवासियों को बाकी जनता से अलग थलग रखकर उनका सैन्य दमन जिस तरह अंग्रेजों का राजकाज रहा है,नई दिल्ली की सरकार और बाकी सरकारों का राजकाज भी वही है।
बंगाल के दार्जिलिंग पहाड़ों में कोलकाता के राजकाज का अंदाज भी वहीं है।
पहाड़ के जनसमुदायों को अलग अलग बांटकर,उन्हें अलग थलग करके उन्ही के बीच अपनी पसंद का नेतृत्व तैयार करके वहां सत्ता वर्चस्व बहाल रखने का राजनीतिक खेल बेलगाम जारी है।
अस्सी के दशक में सुबास घीसिंग के मार्फत जो राजनीति चल रही थी,बंगाल में वाम अवसान के बाद विमल गुरुंग के मार्फत वहीं राजनीति चल रही है।जिसमें केंद्र और राज्य के सत्ता दलों के परस्परविरोधी हितों का टकराव हालात और पेचीदा बना रहा है।
गोरखा अल्पसंख्यकों पर ऐच्छिक विषय के रुप में बांग्ला थोंपने के आरोप में दार्जिलिंग फिर आग के हवाले है।वहां अमन चैन और कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी सेना की है।गोरखा जन मुक्ति मोर्चा ने बिना किसी चेतावनी के उग्र आंदोलन शुरु कर दिया है और पूरे पहाड़ से पर्यटक अनिश्चितकाल तक फंस जाने के डर से नीचे भागने लगे हैं।
बंगाल में सत्तादल के मुताबिक यह वारदात संघ परिवार की योजना के तहत हुई है,जिससे पहाड़ को फिर अशांत करके बंगाल के एक और विभाजन की तैयारी है।
गौरतलब है कि बुधवार को दार्जिंलिंग में हिंसा भड़कने के ठीक एक दिन पहले बंगाल भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष ने गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के नेताओं के साथ बैठक की थी।हालांकि भाजपा ने इस आरोप से सिरे से इंकार किया है।
गौरतलब है कि दार्जिलिंग से पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत गोरखा जन मुक्ति मोर्चा के समर्थन से हुई है और तबसे लेकर विमल गुरुंग से दीदी और उनकी पार्टी के समीकरण काफी बिगड़ गये हैं।
गोरखा नेता मदन तमांग की हत्या के मामले में विमल और उनके साथी अभियुक्त हैं तो गोरखा परिषद के बाद दीदी ने लेप्चा और तमांग परिषद अलग से बनाकर गोरखा परिषद की ताकत घटाने की कोशिश की है।
हाल में शांता क्षेत्री को राज्यसभा भेजने का फैसला करके गुरुंग से सीधा टकराव ही मोल नहीं लिया दीदी ने बल्कि पहाड़ पर राजनीतिक वर्चस्व कायम करने के लिए वहां मंत्रिमंडल की बैठक भी बुला कर गुरुंग को खुली चुनौती दी।
जिसके जवाब में यह भाषा आंदोलन शुरु हो गया है,जिससे पहाड़ में लंबे अरसे तक हालात सामान्य होने के आसार नहीं हैं।दरअसल भाषा का सवाल एक बहाना है,स्थानीय निकायों के चुनावों के जरिये पहाड़ में तृणमूल कांग्रेस की घुष पैठ के खिलाफ करीब महीने भर से गोरखा जनमुक्ति मोर्चा का प्रदर्श आंदोलन जारी है।तो दीदी भी इसकी परवाह किये बिना पहाड़ पर अपना वर्चस्व कायम करने पर आमादा है।बाकी राज्य में भी उनकी यही निरंकुश राजनीतिक शैली है,जिसके तहत वह विपक्षा का नामोनिशन मिटा देने के लिए विकास और अनुदान के साथ साथ शक्ति पर्दशन करके विपक्षी राजनीतिक ताकत को मिट्टी में मिलाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ती।
गोरखा जनमुक्ति मोर्चा को भाषा का मुद्दा अचानक तब मिल गया जबकि पिछले 16 मई को दीदी के खास सिपाहसालार राज्य के शिक्षा मंत्री ने घोषणा कर दी कि आईसीएसई और सीबीएसई से संबद्ध स्कूलों सहित राज्य के सभी स्कूलों में छात्रों का बांग्ला भाषा सीखना अनिवार्य किया जाएगा।
शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा कि अब से छात्रों के लिए स्कूलों में बांग्ला भाषा सीखना अनिवार्य होगाष हालांकि ममता बनर्जी ने साफ किया कहा है कि बांग्ला भाषा को स्कूलों में अनिवार्य विषय नहीं बनाया गया है।लेकिन गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के लिए गोरखा अस्मिता के तहत ऐच्छिक भाषा बतौर भी बांग्ला मंजूर नहीं है।
दरअसल दीदी का वह ट्वीट गोरखा जनमुक्ति के महीनेभर के आंदोलन के लिए ईंधन का काम कर गया जिसमें उन्होंने लिखा कि दशकों बाद इस क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत हुई है। तृणमूल कांग्रेस ने राज्य में पहली बार पहाड़ी क्षेत्र में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के एक दशक लंबे एकाधिकार को खत्म कर दिया है।
स्थानीय निकायों के नतीजे पर इस खुली युद्ध घोषणा के बाद पूरी मंत्रिमंडल के साथ दार्जिलिंग में दीदी की बैठक को गोरखा अस्मिता पर हमला बताने और समझाने में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा को कोई दिक्कत नहीं हुई।
इसी बीच बांग्ला व बांग्ला भाषा बचाओ कमिटी के सुप्रीमो डॉ मुकुंद मजूमदार ने एक विवास्पद बयान देकर हिंसा को बढ़ाने में आग में घी का काम किया। उन्होंने कहा बंगाल में रहना है तो बांग्ला सीखना और बोलना होगा। बांग्ला भाषा व संस्कृति को अपनाना होगा।
कल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दार्जिलिंग में राज्य मंत्रिमंडल की बैठक की थी और इस बैठक में सारे मंत्री और पुलिस प्रशासन के तमाम अफसर मौजूद थे।पहाड़ में नये सचिवालय बनाने के सिलसिले में यह बैठक राजभवन में हो रही थी कि गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के नेताओं और समर्थकों ने मुख्यमंत्री और समूुचे मंत्रिमंडल का घेराव करके पंद्रह बीस गाड़ियों में आग लगी दी और भारी पथराव शुरु कर दिया।
उग्र भीड़ पर काबू पाने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा और आंसूगैस के गोले भी छोड़ने पड़े।फिर इस अभूतपूर्व घेराव और हिंसा के मद्देनजर सेना बुला ली गयी।
सुबह तड़के सारे मंत्रियों को सुरक्षित सिलीगुड़ी ले जाया गया हालांकि दीदी अभी दार्जिलिंग में हैं और आज भी आगजनी और हिंसा के साथ बारह घंटे के गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के बंद के मध्य दीदी ने हालात सामान्य बनने तक दार्जिलिंग में ही रहने का ऐलान कर दिया है।
स्थानीय जनता की रोजमर्रे की तकलीफों, उनकी रोजी रोटी और उनके लिए अमन चैन सरकार,पुलिस प्रशासन और राजनीति के लिए किसी सरदर्द का सबब नहीं है। पर्यटकों को सुरक्षित पहाड़ों के बारुदी सुरंगों से निकालने की कवायद चल रही है। ताकि नस्ली अल्पसंख्यकों को अलग थलग करके उनसे निबट लिया जाय।हूबहू सलवाजुड़ुम राजकाज की तरह।
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