मेरे गांव में किसी घर में चुल्हा नहीं जला
पलाश विश्वास
आज सुबह ही बसंतीपुर से भाई पद्मलोचन का फोन आ गया था। घर और गांव में सबकुछ ठीकठाक है। पर खबर बहुत बुरी है। तब तक कोयला घोटाले की खबर या इस महाघोटाले की लीक होने की कोई खबर नहीं थी। अखबार नहीं आये और न ही टीवी खुला था। रात को पद्मलोचन से फिर बात हुई। आज मेरे गांव में किसी घर में चुल्हा नहीं जला। गांव की बेटी आशा ने जो कल देर रात सड़क हादसे में रुद्रपुर सिडकुल के रास्ते अपने पति को खो दिया।
मेरा गांव आज भी एक संयुक्त परिवार है, जिसकी नींव मेरे दिवंगत पिता, आशा के दादाजी मांदार मंडल और आंदोलन के दूसरे साथियों नें हमारे जन्म से पहले १९५६ में डाली थी। ये लोग विभाजन के बाद लंबी यात्रा के बाद तराई में पहुंचे थे। भारत विभाजन के बाद सीमा पार करके बंगाल के राणाघाट और दूसरे शरणार्थी शिविरों से उन्हें लगातार आंदोलन की जुर्म में ओड़ीशा खडेड़ दिया गया था।वहां भी वे अपनी जुझारु आदत से बाज नहीं आये, तो तराई के घनघोर जंगल में फेंक दिया गया। बचपन में हमारे सोने और खाने के लिए किसी भी घर का विकल्प था। और पूरा गांव हमारी संपत्ति थी।हमने जंगल को आबाद होते देखा। जंगली जानवरों के साथ ही हम बड़े होते रहे। कीचड़ और पानी से लथपथ स्कूल जाते हुए आशा के पिता कृष्ण हमेशा हमारे अगुवा हुआ करते थे। वह बहुत अच्छा खिलाड़ी था। पर जब हम ऱाजकीय इंटर कालेज के छात्र थे, तभी कृष्ण की शादी हो गयी। हमारे दोस्त मकरंदपुर के जामिनी की बहन से। हमारे डीएसबी पहुंचते न पहुंचते कृष्ण के पिता मांदार बाबू गुजर गये।
इसके बाद तो एक सिलसिला बन गया। एक एक करके पुरानी पीढ़ी के लोग विदा होते रहे। मेरे पिता पुलिन बाबू, ताउ अनिल बाबू और चाचा डा.सुधीर विश्वास के साथ साथ ताई, चाची और आखिर मां भी चली गयीं।हमारे सामने गांव के बुजुर्ग वरदा कांत की मौक पहली हादसा थी। फिर हमने एक एक करके गांव की जात्रा पार्टी के युवा कलोकारों को तब तराई में महामारी जैसी पेट की बीमारियों से दम तोड़ते देखा। हम बहुत जल्दी बड़े होते गये। युवा पीढ़ी के बाद बुजुर्गों की बारी थी। मांदार बाबू के बाद शिसुवर मंडल और अतुल शील भी चले गये।
उन दिनों सिर्फ बसंतीपुर ही नहीं, समूची तराई और पहाड़ एक संयुक्त परिवार ही हुआ करता था। पहाड़ी, बंगाली, सिख, पूर्विया, मुसलमान, ब्राह्मण, दलित , पिछड़ा कोई भेदभाव नहीं था। पहाड़ और तराई के बीच कोई अलंघ्य दीवार नहीं थी। जब चाहा तब हम तराई से पहाड़ को छू सकते थे। २००१ में बी जब कैंसर से पिता की मौत हुई,तब भी हमने पहाड़ और तराई को एक साथ अपने साथ खड़ा पाया।
हमारे बीच खून का रिश्ता न हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। भाषाएं, धर्म और संस्कृतियां अलग अलग थीं। पर इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ा। हम सभी लोग एक ही परिवार में थे। हर गांव में हमारे रिश्तेदार अपने लोग। ङमने तराई में ्पने बचपन में जंगल के बीच बढ़ते हुए खुद को कभी असुरक्षित महसूस नहीं किया।
हमारे डीएसबी में पहुंचते न पहुंचते कृष्ण का बेटा प्रदीप और बेटी आशा का जन्म हो चुका था। फिर आशा की मां गुजर गयी। कृष्ण ने दुबारा शादी नहीं की। हमने आशा को आहिस्ते आहिस्ते बड़ा होते देखा। उसकी शादी के लिए खूब दबाव था। पर कृष्म हड़बड़ी करने को तैयार नहीं था।रुद्रपुर कालेज जाकर वह एमए तक की पढ़ाई तक गांव की दुलारी बनी रही। हम जबबी देश के किसी भी कोने से गांव पहुंचते अपने घर के आगे बाप बेटी कुर्सी लगाये बैठे मिलते। फिर प्दीप की शादी हो गयी। ुसका बेटा हुआ। एकदम कृष्णजैसा नटखट। बहू ने वकालत बी पास कर ली शादी के बाद। बसंतीपुर में यह नी शुरुआत थी।
आशा का शादी पर कृष्ण ने सबसे पहले फोन पर हमें गांव पहुंचने को कहा था। हम जा नहीं सकें। फिर आशा का शादी के सालभर में कृष्म बी हमें छोड़ गया। गांव जाकर पुराने दिनों की तरह हमेशा हम साथ साथ रहते थे। यह डीएसबी से लगी आदत थी। अब वह साथ हमेशा के लिए छूट गया।
आशा की सादी के बाद सड़क हादसों में हमारे भांजे शेखर और परम मित्र पवन राकेश के बेटे गौरव का निधन हो गया। पर हम टूटे नहीं। लेकिन आशा के साथ हुए इस हादसे के बाद हम उसका कैसे सामना करेंगे। आज सुबह से ही कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। दोपहर को चूल्हे पर रखा चावल ही जल गया। न सविता को और न हमें होश था।
देर रात रूद्रपुर से अंत्येष्टि के बाद बसंतीपुर वाले लौट आये । अब पूरा परिवार शोक मना रहा है। तराई बार के लोग अब भी साथ खड़े हो जाते हैं।बसंतीपुर आज भी संयुक्त परिवार है। देस दुनिया के बदल जाने के बावजूद हमारे लिए राहत की बात यही है।
This Blog is all about Black Untouchables,Indigenous, Aboriginal People worldwide, Refugees, Persecuted nationalities, Minorities and golbal RESISTANCE. The style is autobiographical full of Experiences with Academic Indepth Investigation. It is all against Brahminical Zionist White Postmodern Galaxy MANUSMRITI APARTEID order, ILLUMINITY worldwide and HEGEMONIES Worldwide to ensure LIBERATION of our Peoeple Enslaved and Persecuted, Displaced and Kiled.
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