काला धन भारतीय शेयर बाजार में खपाने वालों ने नये आयकर कानून से बचने का सुरक्षित रास्ता निकाल लिया!
मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
वोडाफोन मामले में सरकारी रवैया और नये आयकर कानून के मुकाबले निवेशकों ने पैंतरा बदल लिया है। काला धन से शेयर कारोबार करने वाले विदेशी निवेशक अब पार्टिसिपेटरी नोट (पीएन) मारीशस से सिंगापुर स्थांतरित कर रहे हैं ताकि शेयर बाजार की कमाई पर नये कानून के तहत आयकर देना न पड़े। पीएन के जरिए किए जाने वाले निवेश में शेयर बाजार में मजबूती के साथ ही बढ़ोतरी हो रही है। कुछ विदेशी हेज फंड और निजी निवेशक अभी पीएन के माध्यम से शेयर बाजारों में निवेश को तरजीह दे रहे हैं।जाहिर है कि काला धन भारतीय शेयर बाजार में खपाने वालों ने नये आयकर कानून से बचने का सुरक्षित रास्ता निकाल लिया है। विदेशी निवेश के नाम पर रंग बिरंगे घोटाले के जरिये कमाई रकम को सफेद बनाने के लिए अब तक उनका ठिकाना मारीशस हुआ करता था। बजट में कालाधन के खिलाफ कार्रवाई और वोडाफोन टैक्स रिफंड मामले में सरकारी जिम्मेवारी टालने के लिए वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने जो जुगत लगायी है, उसकी काट तैयार है। अब निवेशक मारीशस के बदले सिंगापुर से शेयर बाजार से खेलेंगे। विदेशी निवेशकों का भारतीय शेयर बाजारों में निवेश लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इस साल की शुरुआत के दो महीनों में विदेशी निवेशकों ने अब तक 5.5 अरब डॉलर का निवेश किया है। सिंगापुर नये ायकर कानून के दायरे से बाहर है। कुल मिलाकर भारतीय शेयर बाजार पर कालाधन का शिकंजा नहीं टूटने वाला। गौरतलब है कि सरकार काले धन पर संसद के वर्तमान बजट सत्र में श्वेत पत्र लाएगी। यह ऐलान वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने लोकसभा में आम बजट पेश करते हुए किया। मुखर्जी ने बताया कि दोहरे कराधान से बचने के लिए 82 तथा कर सूचना आदान-प्रदान के लिए 17 करार विभिन्न देशों के साथ किए गए और भारतीयों के विदेश स्थित बैंक खातों और परिसंपत्तियों के संबंध में सूचना हासिल होनी शुरू हो गई है। कुछ मामलों में कानूनी कार्रवाई शुरू की जाएगी।उन्होंने बताया कि केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) में आयकर आपराधिक अन्वेषण निदेशालय की स्थापना की गई है। उल्लेखनीय है कि केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक ए पी सिंह कह चुके हैं कि विदेश में भारतीयों का 24-5 लाख करोड रुपए काला धन जमा है। सिंह का यह बयान उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति की रपट के आधार पर आया था।
बहरहाल हर सूरत में भारतीय शेयर बाजार का मूड मुख्य रूप से विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की खरीदारी पर निर्भर करेगा।मसलन अभी हाल की बात है कि घरेलू और विदेशी कारकों ने मिलकर सेंसेक्स को झटका दिया। सीएजी की ड्राफ्ट रिपोर्ट लीक होने से निवेशकों का मूड उखड़ा। वहीं डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में गिरावट ने निवेशकों की चिंता बढ़ाई। गुरुवार को बांबे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का 30-शेयरों वाला सेंसेक्स गिरकर दो हफ्ते के निचले स्तर पर आ गया। हर तरफ से आ रही नकारात्मक खबरों ने दिन भर सेंसेक्स को सांस नहीं लेने दी, जिसके चलते यह पिछले दो कारोबारी सत्रों की बढ़त को धोते हुए दो सप्ताह के निचले स्तर तक गिर गया।कारोबार के आखिर में 405.24 अंक यानी 2.30 फीसदी गिरावट के बाद सेंसेक्स 17,196.47 अंक के स्तर पर स्थिर हुआ।नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) के 50-शेयरों वाले निफ्टी में भी चौतरफा बिकवाली रही। कारोबार के आखिर में निफ्टी 136.50 अंक यानी 2.54 फीसदी टूटकर 5,228.45 अंक के स्तर पर बंद हुआ। शेयर बाजार में प्रतिदिन बहुलता से उपयोग किये जाने वाला यह शब्द बाजार की चाल का मजबूत आधार माना जाता है। फारेन इंस्टिट्युशनल इन्वेस्टर (एफआईआई) अर्थात विभिन देशों के संस्थागत निवेशक। ये विश्व के अनेक शेयर बाजारों में परिस्थितियों पर नजर रखते हुए निवेश करते रहते हैं। यह वर्ग बड़े रूप में पूरे विश्व में फैला हुआ है और इन्हें प्रोफेशनल इन्वेस्टर माना जाता है। इतना ही नहीं इनके पास निवेश के लिए भारी फंड भी उपलब्ध होता है। एफआईआई को भारत में निवेश करने के लिए भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) से पंजीकरण करवाना पड़ता है। वर्तमान में हमारे देश में 1100 से अधिक एफआईआई पंजीकृत हैं और उनका भारतीय पूंजी बाजार में अरबों रूपये का निवेश है। उनके निवेश प्रवाह के आधार पर हमारे शेयर बाजार में तेजी या मंदी, उछाल या गिरावट सृजित होती है। फॉरेन इंस्टिट्युशनल इन्वेस्टर अर्थात विदेशी संस्थागत निवेशक। ये संस्थागत निवेशक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होते हैं। ये अपने स्वयं के देश के लोगों से बड़ी मात्रा में निवेश के लिए धन एकत्रित करते हैं और उनका अनेक देशों के शेयर बाजार में निवेश करते हैं। इन संस्थागत निवेशकों के ग्राहकों की सूची में सामान्य निवेश से लेकर बड़े निवेशक - पेंशन फंड आदि होते हैं, जिसका एकत्रित धन एफआईआई अपनी व्यूहरचना के अनुसार विविध शेयर बाजारों की प्रतिभूतियों में निवेश करके उस पर लाभ कमाते हैं और उसका हिस्सा अपने ग्राहकों को पहुंचाते हैं। चूंकि इन लोगों के पास धन काफी विशाल मात्रा में होता है और प्रायः ये भारी मात्रा में ही लेवाली या बिकवाली करते हैं जिससे शेयर बाजार की चाल पर सीधा प्रभाव पड़ता है। भारत में तो अभी उनका ऐसा वर्चस्व है कि लगता है शेयर बाजार को वे ही चलाते हैं। वर्ष 2008 में जब अमेरिका में आर्थिक मंदी आयी थी तब इस वर्ग ने भारतीय पूंजी बाजार से अपना निवेश निरंतर निकाला था, जिससे भारतीय बाजार में भी गिरावट होती गयी। किसी भी एफआईआई को भारतीय शेयर बाजार में निवेश करने से पहले अपना पंजीकरण भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) तथा भारतीय रिजर्व बैंक के पास करवाना होता है तथा इनके नियमों का पालन करना होता है।
जरा पार्टिसिपेटरी नोट्स की महिमा समझ लें तो अंदाजा लगाना आसान होगा कि प्रणव णुखर्जी की जवाबी चाल चलने में काला निवेशकों की कला में कितना निखार आ गया है। साल 2007 में सेबी द्वारा पार्टिसिपेटरी नोट्स पर कड़ा रुख अख्तियार करने से पहले भारतीय शेयरों में विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा किए जाने वाले निवेश का लगभग 50 प्रतिशत पीएन के जरिए किया गया था। विशेषज्ञों के अनुसार अगर अगले कुछ महीनों में पीएन के जरिए निवेश की हिस्सेदारी बढ़ती गई तो यह एक बार फिर विवादों में आ सकता है।साल 2008 के उत्तरार्ध्द में सेबी ने पीएन पर लगा प्रतिबंध हटा दिया था। उस समय बाजार परिस्थितियां भी अच्छी अच्छी नहीं थीं और धन का रिकॉर्ड बहिर्प्रवाह हुआ था। सेबी ने विदेशी संसथागत निवेशकों को भारत में सीधे पंजीकरण के लिए आमंत्रित किया था। साल 2009 में 111 नए विदेशी संस्थागत निवेशक और 471 नए सब-अकाउंट्स नियामक के साथ पंजीकृत करवाए गए।पार्टिसिपेटरी नोट (पीएन) और विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा जारी किए जाने वाले ऑफ-शोर डेरिवेटिव उपकरणों द्वारा घरेलू शेयर बाजार में किया जाने वाला आकलित निवेश अगस्त 2009 के 15.5 प्रतिशत से बढ़ कर सितंबर और अक्टूबर में क्रमश: 16.4 और 16.5 प्रतिशत हो गया।भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा उपलबध कराए गए नवीनतम आंकड़ों के अनुसार सितंबर में विदेशी संसथागत निवेशकों ने इक्विटी में 168.53 अरब डॉलर और अक्टूबर में 161.80 अरब डॉलर का निवेश किया था। पीएन के जरिए क्रमश: सितंबर और अक्टूबर में 27.65 अरब डॉलर और 26.68 अरब डॉलर का निवेश किया गया।
काले धन को लेकर सरकार सख्त हो गई है। सरकार ने साफ किया है कि कालाधन जमा करने वाले को खिलाफ कार्रवाई तो की ही जाएगी साथ ही उनके नाम भी पता किए जाएंगे।वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी का कहना है कि काला धन जमा करने वालों को कोई माफी नहीं मिलेगी। वहीं 6 साल पुराने मामलों की आयकर जांच सिर्फ विलय और अधिग्रहण मामलों के लिए ही है। काले धन के मामले में ये नियम लागू नहीं होगा। इसके अलावा गैरकानूनी तरीकों से विदेश में जुटाई गई संपत्ति के केस में 16 साल पुराने मामले भी खोले जा सकते है। विदेश में जमा काले धन से निपटने के लिए आम बजट में अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में आयकर विभाग के आठ नए कार्यालय स्थापित करने के लिए भारी-भरकम राशि आवंटित की गई है। चालू वित्त वर्ष में जहां शुरूआती आवंटन 2.41 करोड़ रुपए का था वहीं अगले वित्त वर्ष में इसे बढ़ाकर 18.20 करोड़ रुपए कर दिया गया है। ये आठों इकाइयां चालू वित्त वर्ष में शुरू होने वाली हैं और यह काम वित्त मंत्रालय की प्राथमिकता सूची में है। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने भारतीय राजस्व सेवा (आयकर) के उन अधिकारियों के नाम भी तय कर लिए हैं जो इन इकाइयों में तैनात होंगे।हालांकि इन्हें नियुक्त विदेश मंत्रालय के साथ विचार-विमर्श के साथ किया जाएगा। प्रस्तावित आठ इकाइयां अमेरिका, ब्रिटेन, नीदरलैंडस, साइप्रस, जर्मनी, फ्रांस, जापान और संयुक्त अरब अमीरात में गठित होंगी। दो ऐसी इकाइयां सिंगापुर और मारीशस में 2010 से ही काम कर रही हैं। मामले से जुड़े सूत्रों ने बताया कि इकाइयां निवेशकों को भारतीय कर कानून तथा प्रक्रियाओं को समझने में मदद करेंगी ताकि वे बेहतर निर्णय कर सकें।
वित्त मंत्रालय के मुताबिक आयकर कानून में संशोधन को संसद की मंजूरी मिलने के बाद दूरसंचार कंपनी वोडाफोन को 11000 करोड़ रुपए का कर चुकाना होगा। वित्त विधेयक में संशोधनों को संसद की मंजूरी के बाद उन्हें (वोडाफोन को) स्वत: ही कर चुकाना होगा। हमें उन्हें नए सिरे से कर डिमांड नोटिस भेजने की जरूरत नहीं होगी। इस मामले में सरकार की पुनर्विचार याचिका को उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को खारिज कर दिया था। इसके बाद सरकार ने कंपनी को 2500 करोड़ रुपए की राशि चार प्रतिशत ब्याज के साथ रिफंड कर दी।सरकार ने वोडाफोन-हचिसन में 2007 में हुए सौदे के लिए 11000 करोड़ रुपए की कर मांग का नोटिस जारी किया था, लेकिन वोडाफोन ने इससे इनकार कर दिया और लंबी कानूनी लड़ाई चली।वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने आम बजट के साथ पेश वित्त विधेयक में देश में स्थित परिसंपत्तियों के बारे में विदेश में किए गए सौदों पर कर लगाने की इच्छा को स्पष्ट तौर पर उल्लिखत कर आयकर अधिनियम 1961 में संशोधन का प्रस्ताव किया है, जिसमें देश के बाहर हुए सौदों पर आयकर विभाग का अधिकार क्षेत्र स्थापित हो जाएगा।। संशोधन वर्ष 1962 से प्रस्तावित हैं।एक अप्रैल 1962 के बाद हुए अंतर्राष्ट्रीय सौदे आयकर विभाग के चंगुल में आ जाएंगे। वित्त सचिव आर एस गुजराल ने प्रस्तावित संशोधनों के बारे में कहा कि इनके जरिए आयकर कानूनों का स्पष्टीकरण किया गया है कि वोडाफोन जैसे सौदों पर आयकर देनदारी बनती है। उन्होंने कहा कि इससे सरकार को 400 अरब रुपए की धनराशि आयकर के रूप में मिल सकेगी। वोडाफोन ने प्रस्तावित संशोधनों को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि ये न्यायालय की कसौटी पर खरे साबित नहीं होंगे। वोडाफोन के एक अधिकारी ने कहा कि कंपनी के पक्ष में आया उच्चतम न्यायालय का फैसला इन संशोधनों के जरिए पलटा नहीं जा सकता। अन्तर्राष्ट्रीय कंपनियों ने प्रस्तावित संशोधनों को भारत में विदेशी निवेश के लिए घातक बताया है। मुखर्जी ने आयकर कानून में प्रस्तावित संशोधनों के बारे में कहा कि न्यायालयों के कुछ फैसलों से कानून की धाराओं के बारे में अस्पष्ट स्थित पैदा हुई है जिसे दूर किए जाने की जरुरत है।
इससे पहले फिक्की ने सरकार के सामने ये सुझाव रखा था कि काला धन जमा करने वालों के नाम सरकार गुप्त रखें और सिर्फ ब्याज पर टैक्स लगाकर छोड़ दे। फिक्की ने इस बारे में ब्रिटेन और जर्मनी के मॉडल का उदाहरण रखा था।
दूसरी तरफ विदेशी कोष कॉपथाल मारीशस इन्वेस्टमेंट ने बुधवार एलआईसी हाउजिंग फाइनैंस के 1.6 करोड़ शेयर खुले बाजार से 410 करोड़ रुपये में खरीदे।शेयर बाजारों पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, विदेशी निवेशक सीएलएसए (मारीशस लि.) ने एलआईसी हाउजिंग फाइनैंस के 1,60,39,061 शेयर कॉपथाल मारीशस इन्वेस्टमेंट को बेचे। कॉपथाल ने ये शेयर 255.35 रुपये प्रति शेयर के मूल्य पर खरीदे।
इस बीच प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने एंट्रिक्स और देवास के बीच हुए सौदे के संबंध में वित्तीय लेनदेन की 'आरंभिक जांच' शुरू कर दी है।बेंगलुरु में प्रवर्तन निदेशालय के जोनल कार्यालय ने यह पता लगाने के लिए कि कहीं इस सौदे में विदेशी मुद्रा विनिमय कानून या मनी लांडरिंग रोधी कानून का उल्लंघन तो नहीं किया गया, जांच शुरू कर दी है। रिजर्व बैंक और आयकर विभाग की मदद से शुरू की गई जांच में देवास मल्टीमीडिया लिमिटेड में मारीशस स्थित कुछ इकाइयों की कथित हिस्सेदारी का भी पता लगाया जाएगा। देवास मल्टीमीडिया ने इसरो के साथ विवादास्पद एस बैंड सौदा किया था। सूत्रों ने कहा, 'दिल्ली में ईडी मुख्यालय से परामर्श लेने एवं निर्देश मिलने के बाद आरंभिक पूछताछ शुरू की गई है।' हालांकि, उन्होंने कहा कि मामले में विदेशी मुद्रा विनियम प्रबंधन कानून (फेमा) या मनी लांडरिंग रोधी कानून के संबंध में किसी तरह की अनियमितता पाए जाने पर ही मामला दर्ज किया जाएगा। इसरो की व्यावसायिक इकाई एंट्रिक्स ने जनवरी, 2005 में देवास के साथ एक सौदे पर हस्ताक्षर किया था जिसके तहत उसने कंपनी को महत्वपूर्ण एस बैंड स्पेक्ट्रम उपलब्ध कराया था। एस बैंड स्पेक्ट्रम को प्रमुख तौर पर देश के रणनीतिक हितों के लिए रखा जाता है।प्रवर्तन निदेशालय की जांच में सौदे में शामिल व्यक्तियों के वित्तीय सौदों की भी पड़ताल की जाएगी और यह पता लगाया जाएगा कि अवैध धन प्राप्ति से कहीं बेनामी या फर्जी संपत्तियां तो अर्जित नहीं की गईं।
कालाधन के खिलाफ सरकारी कार्रवाी कैसे होती है, कृपया मुलाहिजा फरमाये। योग गुरु बाबा रामदेव ब्लैक मनी के मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरते रहे हैं, लेकिन तहलका मैगजीन ने एक रिपोर्ट के जरिए उन्हें और उनके ट्रस्टों के कामकाज को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है। मैगजीन की रिपोर्ट में रामदेव से जुड़े ट्रस्टों पर टैक्स चोरी के सनसनीखेज आरोप लगाए गए हैं। मैगजीन के मुताबिक, बाबा रामदेव का ब्लैक मनी पर बोलना उसी प्रकार है जैसे सूप चलनी पर उंगली उठाए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2004-05 में बाबा रामदेव के ट्रस्ट दिव्य फार्मेसी ने 6,73,000 रुपये की दवाओं की बिक्री दिखाकर 53,000 रुपये सेल्स टैक्स के तौर पर चुकाए। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस तरह से पतंजलि योग पीठ के बाहर लोगों को हुजूम लगा रहता था, उस हिसाब से आयुर्वेदिक दवाओं का यह आंकड़ा बेहद कम था। इसकी वजह से उत्तराखंड के सेल्स टैक्स ऑफिस (एसटीओ) को बाबा रामदेव के ट्रस्ट की ओर से उपलब्ध कराए गए बिक्री के आंकड़ों पर शक हुआ।
एसटीओ ने उत्तराखंड के सभी डाकखानों से जानकारी मांगी। पोस्ट ऑफिस से मिली जानकारी ने एसटीओ के शक को पुख्ता कर दिया। तहलका में छपी रिपोर्ट में डाकखानों से मिली सूचना के हवाले से कहा गया है कि वित्त वर्ष 2004-05 में दिव्य फार्मेसी ने 2509.256 किलोग्राम दवाएं 3353 पार्सल के जरिए भेजा था। इन पार्सलों के अलावा 13,13000 रुपये के वीपीपी पार्सल भी किए गए थे। इसी वित्त वर्ष में दिव्य फार्मेसी को 17,50,000 रुपये के मनी ऑर्डर मिले थे।
इसी सूचना के आधार पर एसटीओ की विशेष जांच शाखा (एसआईबी) ने दिव्य फार्मेसी में छापा मारा। तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर जगदीश राणा ने छापे के दौरान एसआईबी टीम का नेतृत्व किया था। रिपोर्ट में राणा के हवाले से कहा गया है, 'तब तक मैं भी रामदेवजी का सम्मान करता था, लेकिन वह टैक्स चोरी का सीधा-सीधा मामला था। राणा के मुताबिक उस मामले में ट्रस्ट ने करीब 5 करोड़ रुपये की टैक्स चोरी की थी।'
मैगजीन ने इन्हीं तथ्यों के आधार पर बाबा रामदेव के ब्लैक मनी के आंदोलन और सरकार पर ब्लैक मनी को संरक्षण देने के आरोपों पर सवाल उठाए हैं। तहलका में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, उस दौरान बाबा के ट्रस्ट पर पड़े छापे से तत्कालीन गवर्नर सुदर्शन अग्रवाल बहुत नाराज हुए थे। उन्होंने राज्य सरकार को छापे से जुड़ी रिपोर्ट देने को कहा था। अपनी रिपोर्ट में तत्कालीन प्रिंसिपल फाइनैंस सेक्रेटरी इंदू कुमार पांडे ने छापे की कार्रवाई को निष्पक्ष और जरूरी करार दिया था। उस समय मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने राज्यपाल को भेजी रिपोर्ट में पांडे के नोट को भी संलग्न किया थ। रामदेव का आरोप था कि रेड के दौरान अधिकारियों का बर्ताव काफी गलत था, जिसे सरकार ने खारिज कर दिया था।
कई अधिकारियों का मानना है कि रेड के बाद राणा पर इतना दबाव पड़ा कि उन्होंने चार साल पहले ही रिटायरमेंट ले ली। एसआईबी की इस कार्रवाई के बाद राज्य या केंद्र सरकार की दूसरी कोई भी एजेंसी बाबा रामदेव के साम्राज्य के खिलाफ कार्रवाई करने का साहस नहीं जुटा पाई।
मैगजीन का दावा है कि सेल्स टैक्स की चोरी तो पूरे घोटाले का एक हिस्सा भर है। दिव्य फार्मेसी दूसरे तरीकों से भी टैक्स की चोरी कर रहा है। तहलका ने दावा किया है कि उसी फाइनैंशल ईयर के दौरान दिव्य फार्मेसी ने 30 लाख 17 हजार की दवाएं बाबा रामदेव के दूसरे ट्रस्ट दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट को ट्रांसफर किए। दिव्य फार्मेसी की ओर से दाखिल टैक्स रिटर्न में दावा किया गया कि सभी दवाएं गरीब और जरूरतमंद लोगों में मुफ्त बांट दी गईं। लेकिन तत्कालीन टैक्स अधिकारियों का कहना है कि कनखल स्थित दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट ले जाकर बेचा गया। ट्रस्ट के ऑफिस पास ही रहने वाले भरत पाल का कहना है कि पिछले 16 सालों में दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट की तरफ से गरीबों को मुफ्त में दवा नहीं मिली है।
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