Thursday, 01 March 2012 10:38 |
शंकर शरण मनुष्य और समाज के बारे में ज्ञान को ही सामान्यत: मानविकी और समाज विज्ञान कहा जाता है। आधुनिक लोकतंत्र में इसका अध्ययन सबके लिए आवश्यक है। यह उन बौद्धिक गुणों के विकास में सहायक है, जिन पर लोकतंत्र निर्भर है। ये गुण हैं- सार्वजनिक महत्त्व के मामलों में रुचि लेना, उन पर युक्तिपूर्वक सोचने की आदत डालना, विश्व का जरूरी ज्ञान देना, और अपने विषय-क्षेत्र से बाहर के विषयों में अपने पूर्वग्रहों को जानना और उन्हें नियंत्रित करना। अगर इन बातों से कोई निर्विकार हो, तो अच्छा नागरिक नहीं बन सकता। लॉर्ड ब्राइस ने कहा था: 'विज्ञान और तकनीक में कुशलता से कोई मनुष्य राजनीति में भी बुद्धिमान नहीं हो जाता। इस मामले में कई बडेÞ वैज्ञानिक भी स्कूली छात्रों से अधिक बुद्धिमान नहीं रहे हैं।' अत: केवल प्रायोगिक विज्ञान और तकनीक की पढ़ाई वाले वातावरण में अधिकतर युवाओं में उपर्युक्त चारों गुण सूख जाते हैं। तब अच्छे इंजीनियर, डॉक्टर भी सामाजिक मामलों में घातक नारों का समर्थन करने वाले बन जा सकते हैं। इसलिए मानविकी और सामाजिकी, यानी वास्तविक ज्ञान की उपेक्षा खतरनाक है। भारत के लिए तो श्रीअरविंद की चेतावनी विशेषकर स्मरणीय है, क्योंकि पिछले हजार वर्ष से बाहरी दस्यु, बर्बर और धूर्त आकर यहां बेहतर सभ्यता-संस्कृति वाले लोगों पर अधिकार जमाते रहे हैं। यही कार्ल मार्क्स ने भी लिखा है। ऐसी समस्याओं की विवेचना और जरूरी उपायों का अध्ययन किस प्रयोगशाला में किया जाएगा? अगर न किया गया, जैसा ये नए-नए तकनीकी 'विश्वविद्यालय' दिखा रहे हैं, तो पुन: भारत का पराभव नहीं होगा, इसकी गारंटी कौन करेगा? याद रहे, सोने की चिड़िया ही लूटी गई थी! यानी, उद्योग, तकनीक, धन-वैभव से परिपूर्ण भारत ही पराधीन हुआ था। किनके हाथों, कैसे, किन स्थितियों में? यही वे प्रश्न हैं, जिन्हें केवल उत्कृष्ट चिंतन, दर्शन और साहित्य ही समझता और हल करता है। इसी ज्ञान पर कोई भी सभ्यता टिकती, सुरक्षित रहती है। इस पृष्ठभूमि में उस घातक प्रवृत्ति को समझें, जो केवल धन कमाने के प्रशिक्षण को 'शिक्षा' का पर्याय बना रही है। इससे भारत के युवा केवल तकनीकी, मशीनी और कार्यालय चलाने वाले मजदूर, प्रबंधक आदि भर बन सकेंगे। चाहे उन्हें कितनी ही अच्छी आय होती हो, वे देश और समाज के बारे में, यहां तक कि अपने बारे में भी सोचने-विचारने में असमर्थ होंगे। अपने अस्तित्व, जीवन और भूमिका के बारे में वे कुछ ढंग का सोच-विचार नहीं कर सकेंगे। जिन्हें शास्त्रों में ठीक संज्ञा दी गई है- 'मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति'। वैसे भी, अगर मशीन, दफ्तर, कारोबार चलाने के लिए व्यवस्थित प्रशिक्षण जरूरी है, तो मानव जीवन और समाज चलाने के लिए कई गुना जटिल शिक्षण की आवश्यकता होती है, जिसमें दर्शन, इतिहास, राजनीति, मनोविज्ञान का ज्ञान अपरिहार्य है। तभी सुयोग्य लोगों में चिंतन-मनन की वह क्षमता विकसित होती है, जिसके बिना स्व-रक्षा तक के लिए नीति-निर्माण असंभव है। इसलिए श्रेष्ठ साहित्य और इतिहास सबके लिए थोड़ा-बहुत पढ़ना आवश्यक है, अलग सामाजिक और मानविकी धारा के रूप में ही नहीं। महान पुस्तकों के नित्य पाठ से मनुष्य की चेतना, बुद्धि और संस्कार परिष्कृत होते हैं। किसी न किसी उत्कृष्ट साहित्य का दो-चार पृष्ठ भी नित्य पढ़ने की आदत एक ऐसी अनमोल निधि देती है जो अनगिनत रूपों में व्यक्ति के लिए लाभप्रद है। यह ऐसा सत्संग है जिससे सदैव लाभ मिलता है। उससे व्यक्ति में कल्पनाशक्ति, अभिव्यक्ति के लिए सही शब्दों की समझ और भाषा-ज्ञान बढ़ाने के प्रति रुचि सहज बढ़ती जाती है। ये सब व्यक्तित्व के विकास के लिए अनमोल वस्तुएं हैं। मानव जीवन और समाज संबंधी किसी समस्या, परिघटना की व्यवस्थित समझ के लिए ऐसा अध्ययन अत्यंत सहायक होता है। पर अभी भारत में शिक्षा के नाम पर जो चलन बढ़ा है, उससे हमारा देश पूरी दुनिया को 'मानव संसाधन' निर्यात करने वाला कारखाना बनता जा रहा है। चाहे उन्हें इंजीनियर, मैनेजर, आइटी प्रोफेशनल, आदि ही क्यों न कहा जाए; वे उच्च वेतन-भोगी श्रमिक मात्र हैं जो अमेरिका, यूरोप, अरब, आॅस्ट्रेलिया जा रहे हैं। केवल वैसे लोग अधिक मात्रा में बनाने के लिए ये सारे रोजगारोन्मुख 'विश्वविद्यालय' खोले जा रहे हैं। मात्र अधिकाधिक धन बनाने की लालसा ने शुद्ध ज्ञान के क्षेत्र को नितांत उपेक्षित कर दिया है। इससे व्यक्ति और समाज, दोनों को जो दूरगामी हानियां हैं, उन पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। |
This Blog is all about Black Untouchables,Indigenous, Aboriginal People worldwide, Refugees, Persecuted nationalities, Minorities and golbal RESISTANCE. The style is autobiographical full of Experiences with Academic Indepth Investigation. It is all against Brahminical Zionist White Postmodern Galaxy MANUSMRITI APARTEID order, ILLUMINITY worldwide and HEGEMONIES Worldwide to ensure LIBERATION of our Peoeple Enslaved and Persecuted, Displaced and Kiled.
Thursday, March 1, 2012
शिक्षा में विचार का विस्थापन
शिक्षा में विचार का विस्थापन
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