Sunday, 01 April 2012 14:23 |
मधुकर उपाध्याय >चित्रकार जतीन दास को यह अंदाजा नहीं रहा होगा कि सहूलियत का खेल एक दिन उन्हें धकिया कर भिलाई के उस मुर्गा चौक से बाहर कर देगा, जिसे उन्होंने खुद गढ़ा था। पंद्रह साल पहले जतीन ने भिलाई इस्पात प्राधिकरण के आग्रह पर तीस फुट ऊंचा और तीस फुट के दायरे में फैला एक मुर्गा बनाया था, जो तब तक के अनाम एक गोलंबर का नाम ही बन गया। शहर उसी मुर्गे के किनारे गोल-गोल घूमते अपने घर पहुंच जाता था। कुछ लोग उसे देखने आते थे। रघु राय उसकी फोटो खींचते थे। मुर्गा चौक भिलाई की पहचान बन गया कि शहर की दूरियां वहां से नापी जाने लगीं। अचानक एक दिन किसी को वह बदरंग लगा और आनन-फानन में, कृति और कलाकार की परवाह किए बिना, असंवेदनशील ढंग से उसका नए सिरे से रंग-रोगन कर दिया गया। |
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Sunday, April 1, 2012
असभ्यता का पुनर्पाठ
असभ्यता का पुनर्पाठ
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