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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Monday, May 14, 2012

सुख शिक्षक और सम्राटों के भाग्य में नहीं होता!

http://mohallalive.com/2012/05/14/10th-episode-of-upanishad-ganga/
 नज़रिया

सुख शिक्षक और सम्राटों के भाग्य में नहीं होता!

14 MAY 2012 NO COMMENT

♦ अविनाश

भारतीय ज्ञान परंपरा के इतिहास में चाणक्‍य एक ऐसे किरदार रहे हैं, जिनके शब्‍द जितने आ‍कर्षित करते हैं, उनकी जीवनचर्या भी उतना ही अचंभित करती है। एक मामूली हैसियत वाला आदमी मगध का तख्‍तापलट कैसे करता है और कैसे एक साम्राज्‍य को न्‍यायप्रिय छवि देने के लिए काल से होड़ लेता है। उपनिषद गंगा की दसवीं कड़ी में चाणक्‍य की कहानी है। नौवीं कड़ी में सत्‍य हरिश्‍चंद्र की कहानी के जरिये धर्म की महत्ता बतायी गयी थी। जाहिर है, यहां धर्म का मतलब हिंदू धर्म से नहीं है बल्कि उस धर्म से है, जिसकी जमीन पर आप जो बोलते हैं, उस पर खरे उतरते हैं या नहीं। ठीक उसी तरह चाणक्‍य की कहानी के जरिये उपनिषद गंगा में अर्थ का भावार्थ समझाया गया है।

एक बड़ा दिलचस्‍प दृश्‍य है। मगध का एक बड़ा व्‍यापारी श्रेष्ठि सुदत्त अपनी सार्वजनिक हो गयी बेईमानी के संदर्भ में राहत पाने के लिए आचार्य विष्‍णुगुप्‍त (चाणक्‍य) से मिलने देर रात को आते हैं। आचार्य के सामने एक प्रस्‍ताव रखते हैं। आचार्य उनसे पूछते हैं कि प्रस्‍ताव व्‍यक्तिगत हित में है या सार्वजनिक हित में। सुदत्त का जवाब है कि स्‍वार्थ तो निजी ही होता है आचार्य। इस पर आचार्य विष्‍णुगुप्‍त पास में जल रहे दीये को फूंक मार कर बुझाते हुए कहते हैं कि तुम्‍हारे निजी स्‍वार्थ के लिए प्रजा की ओर से दिये जाने वाले तेल को मैं व्‍यर्थ में नहीं जला सकता।

यह एक तरह का राजधर्म है, जो सरकार को जनता की ओर से मिलने वाले कर के उपयोग की सीमाएं बताता है। आज इन बातों का कोई महत्‍व नहीं रह गया है क्‍योंकि जन-धन पर अय्याशी करने वाले आज उंगलियों पर गिनने लायक नहीं रहे, वे बेशुमार हो गये हैं। तीसरी दुनिया के देशों की जो हालत है, उसके पीछे यही बेशुमार धनलोलुप नेताओं की कतार है, जिनका काला धन दूसरे अपने देश की कीमत पर दूसरे देशों की आर्थिक सेहत सुधारने में लगा है।

राज्‍य को लेकर चाणक्‍य की कल्‍पना और उसे साकार करने के लिए उनके बनाये अनुशासन से अपने राज्‍याभिषेक की प्रतीक्षा कर रहे चंद्रगुप्‍त बौखला जाते हैं। आचार्य को अपने पास बुला कर उनके सामने फट पड़ते हैं, 'ऐसे साम्राज्‍य का सम्राट होने का क्‍या लाभ, जहां मैं हर दिन कठपुतली की तरह नचाया जाऊं? अपनी इच्छा से उठ नहीं सकता, अपनी इच्छा से बैठ नहीं सकता। अपनी इच्छा से प्रेम नहीं कर सकता। अपनी इच्छा से विवाह नहीं कर सकता। मेरा विवाह भी आचार्य के लिए राजनीति है। जब से यहां आया हूं एक कमरे में नहीं सो सका हूं। कौन हूं मैं? सम्राट… या आचार्य विष्णुगप्त के इशारों पर नाचनेवाला एक दास। नहीं बनना मुझे सम्राट, नहीं चाहिए मुझे साम्राज्य। नहीं होगा ये राज्याभिषेक।'

चंद्रगुप्‍त की घुटन भरी चीख अपने कथन का विस्‍तार करती है, 'जब से यहां आया हूं, अपनी इच्छा से सांस तक नहीं ले सका हूं। आपने मुझे एक महान स्वप्न दिया था। चक्रवर्ती सम्राट का स्‍वप्‍न। एक महान साम्राज्य का स्वप्न। पर यहां आकर पता चला कि आचार्य विष्णुगप्त के लिए एक सम्राट वेतन लेने वाले नौकर से बढ़कर कुछ नहीं।'

युवा चंद्रगुप्‍त के इस आक्रोश का जवाब चाणक्‍य ने भी अपने तीखे लहजे में दिया। मैं यहां दोनों के बीच हुए संवाद को रख रहा हूं…

आचार्य : ठीक ही समझा तुम ने चंद्रगुप्त। मेरे लिए सम्राट, समाज के नौकर से बढ़कर कुछ नहीं।
चंद्रगुप्त : तो रखें अपना साम्राज्य। नहीं बनना मुझे सम्राट यदि यही सुख है सम्राट होने का।
आचार्य : चंद्रगुप्त तुझे सुखी होना है?
चंद्रगुप्त : क्या सम्राटों को सुखी नहीं होना चाहिए?
आचार्य : मूर्ख, जब एक व्यक्ति भी तेरे साम्राज्य में भूखा है तो क्या तू सुखी हो पाएगा? सुख, शिक्षक और सम्राटों के भाग्य में नहीं होता। भूल गया तू, चंद्रगुप्त मैंने तूझे साम्राज्य देने का वचन दिया था, सुख देने का नहीं। राजा होना सुखी होने का मार्ग नहीं है। भूल गया तू कि, प्रजा के हित में राजा का हित है। भूल गया तू कि प्रजा के सुख में राजा का सुख है। सुख चाहता है तो पहले अपनी प्रजा को सुखी बना। तू ने साम्राज्य अर्जित किया है, सुख अर्जित करने का भी तेरे पास मार्ग खुला है।

यह पूरा का पूरा संवाद आज के राजनीतिज्ञों को पढ़ना-सुनना और उससे सीखना चाहिए। जरूरी बिलों पर गैरजरूरी बहसों में उलझने और अपने सुख से जुड़े बिल पर एकमत होने वाली संसद के इस दौर में चाणक्‍य नीति का पाठ और उस पर अमल एक जरूरी काम होना चाहिए। चंद्रगुप्‍त ने इसी नीति पर चल कर मगध के साम्राज्‍य का विस्‍तार किया था।

(अविनाश। मोहल्‍ला लाइव के मॉडरेटर। प्रभात खबर, एनडीटीवी और दैनिक भास्‍कर से जुड़े रहे हैं। राजेंद्र सिंह की संस्‍था तरुण भारत संघ में भी रहे। उनसे avinash@mohallalive.com पर संपर्क किया जा सकता है।)


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