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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Saturday, September 29, 2012

ममता की राजनीति चाहे जो हो,दिल्ली में प्रतिरोध की पहल उन्हीं की!

 ममता की राजनीति चाहे जो हो,दिल्ली में प्रतिरोध की पहल उन्हीं की!

अबाध विदेशी प्रवाह के बावजूद अर्थ व्यवस्था की बदहाली सुधरती नजर नहीं आ रही। राजस्व घाटा उद्योगजगत को लगातार हर साल ळाखों करोड़ की राहत देने से बढ़ता ही जा रहा है। बजट घाटा की तो खूब चर्चा होती है, पर उद्योगपतियों की दी जा रही सब्सिडी के चलते और बाजारू आर्थिक  नीतियों के कारण बढ़ते विदेशी कर्ज और उसके सूद की चर्चा नहीं होती।

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

ममता की राजनीति चाहे जो हो,दिल्ली में प्रतिरोध की पहल उन्हीं की! विदेशी पूंजी और अमेरिका के खिलाफ तोप दागने वाल वामपंथी दक्षिणपंथी दल बयानबाजी में ही जनता को उलझाये हुए हैं। मनमोहन ​​सिंह टी २० स्टाइल में सुधार छक्के दाग रहे हैं और जनता मैदान से बाहर है। ऐसे में तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने यूपीए सरकार पर शनिवार को फिर जोरदार हमला बोला। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार सुधारों के नाम पर आम आदमी को लूटने में लगी हुई है। ममता 1 अक्तूबर को दिल्ली में रिटेल में एफडीआई के मुद्दे पर यूपीए सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरने जा रही हैं।उनकी तरफ से यह टिप्पणी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के उस बयान के बाद आई, जिसमें उन्होंने साफ संकेत दिया है कि सरकार सुधारों को आगे भी जारी रखेगी। वहीं, तृणमूल के नेता सौगत राय ने बताया कि जंतर मंतर पर सोमवार को हो रहे धरने में पार्टी के सभी सांसद हिस्सा लेंगे। मालूम हो कि डीजल के दामों में बढ़ोतरी और रिटेल में एफडीआई के मंजूरी के विरोध में तृणमूल ने यूपीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया था।प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शनिवार को कहा कि आर्थिक सुधार एकबारगी और आखिरी बार की जाने वाली प्रक्रिया नहीं, बल्कि सतत प्रक्रिया है और यह किसी अन्य देश के दबाव में नहीं की जा रही है। उन्होंने साथ ही कहा कि देश के हित के लिए जो भी जरूरी होगा सरकार वह करेगी।पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने कहा कि सुधार लोगों को विकास का लाभ दिलाने के लिए होते हैं, लेकिन आज कल जो भी जनविरोधी फैसला किया जा रहा है, वो सुधारों के नाम पर किया जा रहा है। जंतर मंतर पर अपनी पार्टी के विरोध प्रदर्शन में शिरकत करने के लिए दिल्ली रवाना होने से पहले ममता ने यह टिप्पणी फेसबुक पर की।

34 वर्षो के वामपंथी शासन को बंगाल से उखाड़ फेंकने वाली तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी भी संभवत: 'वामपंथी' हो चुकी हैं। आमतौर पर विदेशी पूंजी निवेश को लेकर वामपंथी दल आक्रामक होते थे। परंतु, एफडीआई को लेकर ममता जिस तेवर में है, उससे यह लगने लगा है कि वह माकपा के लिए विरोध का कोई रास्ता नहीं छोड़ रहीं। अन्य मुद्दे तो हैं ही, लेकिन खुदरा क्षेत्र में विदेशी पूंजी निवेश को लेकर ममता जिस तरह 'वामपंथी' तेवर अख्तियार किए हुए हैं, उससे ऐसा लगने लगा है कि वह कामरेडों को इस मुद्दे पर वाकओवर देने के मूड में नहीं है। इसमें ममता का 'वामपंथी' विचारधारा साफ झलक रही है। क्योंकि वह एफडीआई ही नहीं विदेशी पूंजीपतियों को भी रियायत देने के पक्ष में नहीं है। विदेशी पूंजी निवेश के खिलाफ जिस तरह से माकपा व अन्य वामपंथी दल विरोध करते रहे हैं, उसी नक्शेकदम पर ममता भी बढ़ चलीं हैं। विधानसभा में गुरूवार को एफडीआई के खिलाफ तृणमूल सरकार ने प्रस्ताव पारित किया। जिसमें लिखा है कि कृषि के बाद राज्य में खुदरा व्यवसाय का स्थान है। आंकड़े के अनुसार खुदरा कारोबार में बंगाल देश का तीसरा बड़ा राज्य है। इसीलिए देशी-विदेशी पूंजीपतियों की नजर बंगाल पर है और खुदरा क्षेत्र पर नियंत्रण कायम करना चाहते हैं। खुदरा क्षेत्र में अगर बड़ा पूंजी निवेश होता है तो करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी छीन जाएगी। इसीलिए खुदरा क्षेत्र में देशी व विदेशी पूंजी निवेश का घुसपैठ रोकना होगा।

कांग्रेस ने तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी की रिटेल में एफडीआई के विरोध में सोमवार को होने वाली रैली को ज्यादा तवज्जो नहीं देते हुए कहा है कि वह जो करना चाहे करें। कांग्रेस प्रवक्ता रेणुका चौधरी ने शनिवार को कहा कि ममता बनर्जी की महिमा है। वह जो करना चाहती हैं, वह करें। जहां तक हमारा सवाल है तो हम यही चाहते हैं जो हमारे साथ रहे हैं, वह हमारे साथ रहें। लेकिन साथ एकतरफा नहीं होता है उसे दोनों ओर से निभाना पड़ता है। बढ़ते वित्तीय घाटे पर नियंत्रण के लिए और कडे़ कदम उठाने की केलकर समिति की सिफारिशों पर रेणुका ने कहा कि सरकार कोई कदम सोच विचार कर और देश की भलाई को ध्यान में रखकर ही उठाती है और आगे भी ऐसा करेगी।

इस साल की शुरुआत में अमेरिकी कॉरपोरेट जगत धारणा बनाने लगा था कि नीतिगत जड़ता की वजह से भारत में कामकाज प्रभावित हो रहे हैं। लेकिन सरकार द्वारा हालिया सुधार से जुड़े उठाए गए कदमों से इसमें बदलाव आया है और अमेरिकी निवेशकों में फिर से उत्साह का संचार हो रहा है।

अबाध विदेशी प्रवाह के बावजूद अर्थ व्यवस्था की बदहाली सुधरती नजर नहीं आ रही। राजस्व घाटा उद्योगजगत को लगातार हर साल ळाखों करोड़ की राहत देने से बढ़ता ही जा रहा है। बजट घाटा की तो खूब चर्चा होती है, पर उद्योगपतियों की दी जा रही सब्सिडी के चलते और बाजारू आर्थिक  नीतियों के कारण बढ़ते विदेशी कर्ज और उसके सूद की चर्चा नहीं होती। देश का विदेशों से लिया गया कर्ज जून 2012 को 349.5 अरब डॉलर पहुंच गया। यह मार्च 2012 के मुकाबले 3.9 अरब डॉलर 1.1 प्रतिशत अधिक है। रिजर्व बैंक ने कहा कि आलोच्य तिमाही में कुल बाह्य कर्ज में वृद्धि का कारण रुपये में गैर-प्रवासी बाह्य जमा में वृद्धि है। इसके अलावा अल्पकालिक व्यापार रिण में भी अच्छी वृद्धि हुई है।आंकड़ों के अनुसार दीर्घकालीन कर्ज 269.1 अरब डालर रहा जबकि अल्पकालिक कर्ज 80.5 अरब डॉलर रहा। कुल बाह्य कर्ज में जहां दीर्घकालीन कर्ज की हिस्सेदारी 77 प्रतिशत है वहीं अल्पकालीन ऋण की हिस्सेदारी 23 प्रतिशत है। दूसरी ओर,मुद्रा परिसंपत्ति घटने से विदेशी मुद्रा भंडार पिछले सप्ताह 50.24 करोड़ डॉलर कम होकर 293.97 अरब डॉलर रहा।इससे पूर्व सप्ताह में कुल विदेशी मुद्रा भंडार 2.44 अरब डॉलर बढ़कर 294.47 अरब डॉलर पहुंच गया था।रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति 21 सितंबर को समाप्त सप्ताह में 48.56 करोड़ डॉलर कम होकर 261.03 अरब डॉलर रहा।आलोच्य सप्ताह में स्वर्ण भंडार 26.24 अरब डॉलर के स्तर पर बरकरार रहा।रेटिंग एजेंसी फिच ने चालू वित्त वर्ष के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान शुक्रवार को घटाकर छह प्रतिशत कर दिया। इससे पहले फिच ने चालू वित्त वर्ष के लिए 6.5 प्रतिशत की वृद्धि दर का अनुमान जताया था। अर्थव्यवस्था की सुस्ती के चलते बुनियादी क्षेत्रों की स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है। प्राकृतिक गैस, कच्चा तेल, उर्वरक और सीमेंट उत्पादन में तेज गिरावट की वजह से आठ बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर अगस्त में सिमट कर 2.1 फीसद रह गई है।

सीपीएम के महासचिव की मानें तो तीसरे मोर्चे के लिए तंबू तो तनेगा लेकिन अभी कोई फ्रंट नहीं बनेगा। प्रकाश कारत का कहना है कि ''जिस तरह से अभी देश में राजनीतिक हालात है उससे यह नहीं लगता कि यह सही समय है विकल्प के तौर पर किसी नए फ्रंट के बनाने का। अभी जो आठ दल भारत बंद में साथ आएं हैं उनका मकसद यूपीए सरकार द्वारा लिए गए जनविरोधी फैसलों को विरोध करना है कोई फ्रंट बनाना नहीं। हम अभी किसी फ्रंट के बारे में नहीं सोच रहे हैं। अभी केवल सरकार के फैसलों के खिलाफ फाइट करने का समय है।''
उन्होंने कहा कि सभी आठ पार्टियां मिलकर 6 अक्तूबर को एक बैठक करेंगी। जिसमें इस बात पर फैसला लिया जाएगा कि सरकार की जनविरोधी फैसलों के खिलाफ उनका अगला कदम क्या होगा। इस समय हम किसी भी विकल्प या फ्रंट के बारे में नहीं सोच रहे हैं। अभी लेफ्ट के एजेंडे में केवल यही बात है कि दूसरे लोकतांत्रिक पार्टियों के साथ मिलकर सरकार पर दबाव बनाया जाए। जिससे वह अपने फैसले वापस ले ले। उन्होंने साफ कहा कि यह जो आठ पार्टियां साथ आई हैं वह कोई राजनीतिक फ्रंट नहीं बनाने जा रही है। लेफ्ट केवल कुछ मुद्दों पर ही इस पार्टियों के साथ है।

करात ने बताया कि आने वाले शीतकालीन सत्र में उन सभी मुद्दों को उठाएंगे जो देश की जनता के खिलाफ हैं। इससे पहले भाजपा भी शीतकालीन सत्र में एफडीआई का मुद्दा उठाने की बात कह चुकी है। इस शीतकालीन सत्र में सरकार खाद्य सुरक्षा विधेयक और जमीन अधिग्रहण विधेयक लाने पर विचार कर रही है। उन्होंने कहा कि हम इस बात की भी मांग करेंगे की रेलवे और खुदाई के लिए अधिग्रहित जमीन के लिए भी लोगों को समान मुआवजा और पुनर्वास की सुविधा मिले।

उन्होंने ममता के बारे में कहा कि अभी ममता को इन आठ दलों में शामिल करने का कोई विचार नहीं किया गया है। गौरतलब है कि ममता ने जब समर्थन वापसी की घोषणा की थी तो सभी दलों ने उनके इस फैसले का स्वागत किया था। लेकिन इसके साथ ही ममता एफडीआई के खिलाफ भारत में दूसरे दलों के साथ नहीं आई थी। करात ने ममता पर निशाना साधते हुए कहा कि ममता को अपने पक्ष के विषय में खुद ही साफ नहीं हैं। ममता की आलोचना तो उन्होंने की लेकिन समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव के बारे में उन्होंने बोलने से मना कर दिया। सपा ने एफडीआई का विरोध तो किया था लेकिन उन्होंने अपना समर्थन सरकार के साथ ही रखा था। इसके साथ ही  जब थर्ड फ्रंट की बात उठी थी तो मुलायम सिंह यादव को उसका मुखिया बनाने की बात सामने आई थी।

जिस तरह के देश में राजनीतिक हालात हैं उससे इस बात की संभावना बहुत कम है कि समय से पहले चुनाव होंगे। इसलिए ज्यादातर दल फ्रंट की बात को टालते जा रहे हैं। सभी दल अभी केवल एफडीआई और डीजल के बढ़े दामों के मुद्दे को ही भुनाना चाहते हैं।

केलकर पैनल की रिपोर्ट की कई बड़ी और कड़ी सिफारिशों को सरकार फिलहाल लागू करने के मूड में नहीं है। मगर वह 2 सिफारिशों पर गंभीरता से विचार कर रही है, जिन्हें जल्द ही लागू किया जा सकता है। इनमें से एक सिफारिश सख्त है तो दूसरी नरम।। सरकार ने सब्सिडी का पैसा सीधे लाभार्थियों के बैंक खाते में भेजने की महत्वकांक्षी योजना पर अमल करने का निर्णय किया है। इस योजना से देश के एक चौथाई परिवारों को फायदा पहुंचने की उम्मीद है।इस कार्यक्रम को समयबद्ध तरीके से क्रियान्वित करने के लिए पीएम मनमोहन सिंह ने कुछ ढांचागत व्यवस्था की है। इसके तहत उन्होंने अपने अधीन एक समिति के गठन के साथ-साथ कुछ अन्य समूह गठित किए हैं। इस योजना को आधार पहचान संख्या के आधार पर क्रियान्वित करने का विचार है।सरकार हर साल अलग-अलग प्रकार की सब्सिडी पर 3,25,000 करोड़ रुपये खर्च करती है। नई योजना का उद्देश्य डीजल, एलपीजी समेत अलग-अलग वस्तुओं पर सब्सिडी और पेंशन तथा स्कॉलरशिप जैसे अन्य फायदों को जरूरतमंदों तक नहीं पहुंचने में भ्रष्टाचार और हेराफेरी पर रोक लगाना है।

पूर्व वित्ता सचिव और 13वें वित्ता आयोग के अध्यक्ष विजय केलकर की अध्यक्षता में राजकोषीय मजबूती का खाका तैयार करने के लिए बनी समिति की रिपोर्ट को एक दिन पहले ही जारी किया है। इसमें सब्सिडी को सरकारी खजाने के लिए खतरनाक बताया गया है। इसके मुताबिक, खाद्य, पेट्रोलियम और उर्वरक तीनों सब्सिडी सरकार के वित्ताीय संतुलन को बिगाड़ रही हैं। सरकार की कोशिशों के बावजूद यह कम नहीं हो रही है। सकल घरेलू उत्पाद के दो प्रतिशत तक सीमित रखने की प्रतिबद्धता का भी सरकार पालन नहीं कर पा रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में वृद्धि और रुपये की कीमत में गिरावट ने इसके जीडीपी के 2.6 प्रतिशत तक के खतरनाक स्तर तक पहुंचने की आशंका हो गई है।समिति ने सरकार को आगाह भी किया है कि अगर सब्सिडी को कम नहीं किया गया तो न सिर्फ विदेशी निवेश के प्रवाह में कमी होगी, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सरकार की साख भी घट सकती है। इसलिए समिति की राय है कि उर्वरक सब्सिडी और खाद्य सब्सिडी में कमी करने के लिए सरकार को यूरिया के दामों में वृद्धि के साथ साथ सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत मिलने वाले अनाज की कीमत में भी बढ़ोतरी करने की जरूरत है।

सरकार इस सिफारिश पर सहमत है कि हर तरह की सब्सिडी को गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों यानी बीपीएल परिवारों तक सीमित कर दिया जाए। इसके अलावा सरकार सर्विस टैक्स को 12 प्रतिशत से घटाकर 8 प्रतिशत करने पर राजी है।

सब्सिडी को बीपीएल परिवारों तक सीमित रखने से सरकार की सब्सिडी का बिल 30-40 प्रतिशत तक घट सकता है। मौजूदा समय में सरकार हर साल करीब 3.25 लाख करोड़ रुपये की सब्सिडी देती है। मगर सब्सिडी को बीपीएल परिवारों तक सीमित रखने से वित्तीय घाटा भी देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के परिप्रेक्ष्य में घटकर 5 प्रतिशत या उसके आसपास आ सकता है। स्थिति में सुधार न होने पर चालू वित्त वर्ष में वित्तीय घाटा 6 प्रतिशत तक पहुंचने की आशंका है।

जहां तक सर्विस टैक्स कम करने की बात है तो इससे आम आदमी को फायदा होगा, मगर सरकार को ज्यादा नुकसान नहीं होगा। मौजूदा समय में सर्विस टैक्स की दर 12 प्रतिशत है। सरकार यह फैसला इसलिए करना चाहती है, क्योंकि उसे इससे कुछ समय तक वाहवाही मिलेगी। जब गुड्स ऐंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) लागू हो जाएगा तो केंद्रीय सर्विस टैक्स खुद ही खत्म हो जाएगा। सरकार अगले साल से जीएसटी लागू करना चाहती है।

खजाने पर सब्सिडी के बढ़ते बोझ को घटाने संबंधी केलकर समिति की सिफारिश से सरकार सहमत है। हां, वह इस सब्सिडी को पूरी तरह से खत्म करने के पक्ष में नहीं है। सरकार का मानना है कि गरीबों को अभी सब्सिडी की मदद की दरकार है, उन्हें अभी यह जारी रहेगी।वित्त मंत्रालय के प्रमुख आर्थिक सलाहकार रघु राम राजन का कहना है कि भारत जैसे देश में सब्सिडी खत्म करने का कोई तर्क नहीं है। यहां पर गरीबी है, रोजगार में कमी है और ग्रामीण इलाकों का सही तरीके से विकास नहीं हुआ है। इन लोगों के लिए सब्सिडी की जरूरत है।

केलकर समिति ने सरकार के बढ़ते खर्चो को पूरा करने के लिए संसाधन बढ़ाने के उपाय भी सुझाए हैं। इनमें सार्वजनिक उपक्रमों की इस्तेमाल नहीं होने वाली और कम उपयोग वाली जमीन को बेचने की सलाह दी है। समिति रेलवे और पोर्ट ट्रस्टों की ऐसी जमीन को भी बेचकर संसाधन जुटाने के पक्ष में है। साथ ही विनिवेश की रफ्तार बढ़ाने का विकल्प भी समिति ने सुझाया है।

सुधारों का रोडमैप

-जीएसटी लागू हो, उत्पाद व सेवा शुल्क की दर आठ प्रतिशत पर लाई जाए

-सभी तरह के आर्थिक सौदों में पैन नंबर को अनिवार्य बनाया जाए

-अप्रत्यक्ष कर की नकारात्मक सूची में संशोधन किया जाए

-सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश की रफ्तार तेजी की जाए

-बाल्को और एचसीएल में बची हुई हिस्सेदारी को बेचा जाए

-पीएसयू, रेलवे, पोर्ट ट्रस्टों की बेकार पड़ी जमीन की हो बिक्री

-टैक्स-जीडीपी अनुपात को बढ़ाने के उपाय किए जाएं

-सब्सिडी में भारी कटौती, योजनागत व्यय में हो वृद्धि

उद्योग संगठन फिक्की के अध्यक्ष आर.वी. कनोड़िया ने वाशिंगटन में कहा, कुल मिलाकर बहु ब्रांड खुदरा क्षेत्र में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) की अनुमति दिए जाने का वहां स्वागत किया जा रहा है। भारत में सुधार से जुड़े उठाए गए कदमों के बाद अमेरिकी कारोबारियों की धारणा 'अब बदल गई है।'

न्यूयार्क, शिकागो और वाशिंगटन की यात्रा पर आए कनोड़िया ने कहा, यहां फिर से विश्वास बहाल हुआ है कि भारत कारोबार के लिए है और सरकार भी इसके पक्ष में है। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि भारत के संबंध में धारणा सकारात्मक बनी रहे।उन्होंने कहा कि नए सुधारों और उदारीकरण से भारत में एफडीआई प्रवाह बढ़ेगा विशेषकर अमेरिका से। वाशिंगटन में ऊर्जा पर चल रही बातचीत का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में दोनों देशों के बीच सहयोग की व्यापक संभावनाएं हैं, खासकर स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में।
हालांकि उन्होंने सावधान करते हुए कहा कि इस समय हमें संतुष्ट होकर बैठना नहीं चाहिए।

कनोड़िया ने कहा, हमें सुधार से जुड़ी प्रक्रिया को आगे बढ़ाते रहना चाहिए और बुनियादी ढांचा क्षेत्र के लिए और धन की व्यवस्था, जीएसटी (वस्तु और सेवा कर) को प्राथमिकता के स्तर पर शुरू करने और श्रम कानूनों में ढील देने जैसे लंबित मुद्दों पर काम करना चाहिए।

राष्ट्रपति भवन में देश के प्रधान न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर के शपथ ग्रहण समारोह के बाद प्रधानमंत्री ने संवाददाताओं से कहा, ''सुधार हमेशा के लिए एक ही बार उठाया जाने वाला कदम नहीं है।''मनमोहन सिंह ने इस माह के शुरू में देश के नाम सम्बोधन में कहा था कि कड़ा फैसला लेने का समय आ गया है। उन्होंने जनता से भरोसा रखने और सहयोग करने की अपील की थी।

प्रधानमंत्री के बयान की आलोचना करते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कहा कि वह अमेरिका के दबाव में काम करते हैं। कांग्रेस ने इस हमले के जवाब में कहा कि वह हमेशा देश के हित में काम करते हैं।

भाजपा, वामपंथी पार्टियों और कुछ अन्य पार्टियों ने खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई), डीजल मूल्य वृद्धि और रियायती दर पर रसोईगैस सिलेंडर की संख्या हर परिवार के लिए छह पर सीमित करने जैसे हाल में लिए गए केंद्र सरकार के आर्थिक फैसले की तीखी आलोचना की है।

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के कुछ सहयोगी दलों ने भी फैसले का विरोध किया है।

यह पूछे जाने पर कि क्या संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के सहयोगी हाल में किए गए आर्थिक फैसलों को वापस लिए जाने की मांग कर रहे हैं, तो उन्होंने कहा, ''हम वही करेंगे जो देश के लिए अच्छा होगा।''

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के आरोप कि एफडीआई का फैसला अमेरिका को खुश करने के लिए लिया गया है, पर प्रधानमंत्री ने कहा, ''हम ऐसा देश नहीं हैं, जो अन्य देशों के इशारों पर चलते हैं।''

तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी के हमले के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ''मुझे किसी भी बात की कड़ुवाहट नहीं है।''

प्राकृतिक सम्पदा के आवंटन में नीलामी को एकमात्र सही तरीका मानने से इंकार करने की सर्वोच्च न्यायालय की राय पर प्रधानमंत्री ने कहा, ''हम फैसले का सम्मान करेंगे। हम इसका स्वागत करते हैं।''

भाजपा नेता बलबीर पुंज ने शनिवार को कहा, ''उन्होंने जो कहा हम उसका स्वागत करते हैं लेकिन देश के हित में कुछ नहीं किया गया है।'' पुंज ने प्रधानमंत्री पर अमेरिकी दबाव में काम करने का आरोप लगाया।उन्होंने एक टीवी चैनल से कहा, ''वह अमेरिका के दबाव में हैं। इसमें कोई शक नहीं कि भारत आजाद है लेकिन निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री स्वतंत्र नहीं हैं। देश में वह 1० जनपथ और बाहर अमेरिका के दबाव में काम करते हैं।''

कांग्रेस के प्रवक्ता संदीप दीक्षित ने भाजपा की आलोचना को खारिज करते हुए कहा कि वह हमेशा देश हित में काम करते हैं। उन्होंने कहा, ''प्रधानमंत्री वही करते हैं, जिसे वह सही समझते हैं।''

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