Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Friday, July 12, 2013

आतंकवादी मीडिया और आतंक का हिन्दुत्ववादी मॉड्यूल

आतंकवादी मीडिया और आतंक का हिन्दुत्ववादी मॉड्यूल


अविनाश कुमार चंचल

अविनाश कुमार चंचल, लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

अविनाश कुमार चंचल, लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

बौद्ध गया बम बलास्ट की खबर फेसबुक पर पढ़ते ही गुगल न्यूज पहुँचा। करीब दो-तीन घंटे बाद ही न्यूज वेबसाइट पर घटना के लिये इंडियन मुजाहिदीन को जिम्मेवार ठहरा दिया गया था। मजे की बात यह भी थी कि उसी खबर में ये भी लिखा था- अभी तक हमला करने वाले संगठन का पता नहीं चल सका है।

ऐसे ही कोई और न्यूज वेबसाइट ने तो यहाँ तक लिख दिया कि हमलावर कुर्ता-पायजामा पहन कर आया था। मतलब इशारा साफ था कि वे इंडियन मुजाहिदीन को सीधे-सीधे जिम्मेवार ठहरा रहे थे- ध्यान रहे धमाकों के सिर्फ दो-चार घंटे बाद की ही बात थी। उस समय तक भी किसी संगठन ने हमले की जिम्मेवारी नहीं ली थी (उसमें भी स्पष्ट है कि कोई भी अदना सा आदमी किसी एसटीडी बूथ से ऐसे फोन कर किसी संगठन को बदनाम करने के लिये जिम्मेवारी ले लेता है और मीडिया वाले उसी फोन के आधार पर ट्रायल शुरू कर देते हैं)। फिर भी इस घटना में तो कोई फोन भी नहीं आया था। फिर कैसे ये न्यूज वेबसाइट घटना की जिम्मेवारी इंडियन मुजाहिदीन पर डाल रहे थे समझ से परे है।

इससे भी मजेदार रहा अखबारों की ताबड़-तोड़ की गयी हमलों की पड़ताल।

बिहार के प्रमुख अखबारों ने कल होकर इस घटना के पीछे किसी संगठन के होने की आधिकारिक पुष्टि के बावजूद भी न सिर्फ इंडियन मुजाहिदीन को सीधा-सीधा जिम्मेदार ठहराया बल्कि इस पूरी घटना को म्यांमार में हो रहे मुस्लिम-बौद्ध दंगों से भी जोड़ दिया। सभी अखबारों ने इंडियन मुजाहिदीन की पूरी हिस्ट्री को खंगाल कर परोसा।

इस पूरे मामले पर जिस तरह का कवरेज किया गया वो एक बेहतरीन नमूना है कि इस देश के मीडिया में धमाकों की किस तरह रिपोर्टिंग की जाती है- इस बात को परखने की।

अब देखिये बिहार के एक प्रमुख दैनिक अखबार ने कैसे एनआईए और खुफिया ब्यूरो के हवाले से खबर दी है कि मंदिर उड़ाने की साजिश थी। आगे उसी खबर में लिखा है -आतंकियों ने जो बम इस्तेमाल किये थे वे उनकी उम्मीद के मुताबिक शक्तिशाली नहीं निकले-

अब इस खबर लिखने वाले की बुद्धि पर तरस खाने को जी करता है जो भोला इतना नहीं जानता कि इंडियन मुजाहिदीन जैसा (अगर कोई संगठन है तो या जिसको खुफिया एजेंसियों ने पोट्रेट किया है) खतरनाक आतंकी संगठन के पास बमों के ऐसे टुच्चे विशेषज्ञ होंगे नहीं जो दिल्ली में इतनी बड़ी आतंकी घटना (अगर खुफिया एजेंसियों की माने तो) को अंजाम देने की कुव्वत रखते हैं। या फिर ये पत्रकार हो सकता है कि हम नादान पाठकों को बेवकूफ समझ रहे हों क्योंकि उसी खबर में आगे लिखा यह भी जोड़ा गया है किबौद्ध मंदिर आईएम के टारगेट पर रहा है। तो भई अगर टारगेट पर ही रहा था तो क्या जरूरत थी इत्ती फुस्सी सा बम लगाने की।

बिहार के ही एक प्रमुख अखबार के पहले पन्ने पर किसी बड़े पूर्व पुलिस अधिकारी प्रकाश सिंह ने तो दावा ही कर डाला कि इस घटना के तार म्यांमार से ही जुड़े हुए हैं। उन्होंने खुलेआम मुस्लिम युवकों का नाम भी ले लिया… और ये सब त्वरित टिप्पणी के नाम पर बिना ढँग से जाँच शुरु होने से पहले ही किया जा रहा था।

हद तो तब हो गयी जब राज्य में सुशासन के कसीदे पढ़ते रहने वाले अखबारों में ही एक बड़े पत्रकार महोदय ने दस्तक दी और यहाँ तक कह डाला कि बिहार के विकास को न चाहने वाले लोगों ने ही धमाके करवाये… जी हाँ, थोड़ा हँस लीजिए क्योंकि इन्होंने वैसा ही कुछ लिखा भी है- बिहार में हो रहे विकास को नकारात्मक सोच वाले लोग पचा नहीं पा रहे इसलिये धमाके करवा रहे हैं, टाइप ही कुछ।

रही सही कसर हमारे खोजी पत्रकारों ने पूरी कर दी। जिन्होंने ये महान स्थापनाएं तक दे डाली कि बम का टाइमर गलत सेट हो गया थ और पीएम की जगह एएम हो गया जिसकी वजह से धमाकों का प्रभाव ज्यादा नहीं हो पाया। आगे आईएम को धमाकों का जिम्मेदार बताते हुये इन लोगों ने उन ट्विटर पोस्टों का भी हवाला दिया जिसमें पाक सरकार से म्यामांर में हो रहे मुसलमानों के अत्याचार के लिये कार्रवायी करने की माँग की गयी थी।

अगर इनकी बात पर भरोसा करें और मान लें कि आईएम जैसा कुछ साल दो साल पहले से बौद्ध मंदिर पर हमला करने की योजना बना रहा था तो सवाल सीधा है कि क्या इतनी बड़ी आतंकी संगठन (जैसा खुफिया एजेंसियां पोट्रेट करती हैं) दो साल की तैयारी के बाद भी इस तरह एक कमजोर बमों के सहारे मंदिर परिसर में हमला करेगा।

सवाल तो उनसे भी है जो अपने अखबार में बुद्ध को हँसता हुआ बता आईएम और दरभंगा से गिरफ्तार किये जा रहे मुस्लिम युवाओं को आनन-फानन में बौद्ध मंदिर पर हुये हमले से जोड़ देते हैं।

हालांकि इन अखबार-मीडिया वालों के रिपोर्टों और जबानों पर ताले तो लग ही गये होंगे क्योंकि अभी तक की तहकीकात के आधार पर कुल दो लोगों को गिरफ्तार किया है और दोनों हिन्दू ही हैं।


लेकिन सच तो यह है कि भले ही ये लोग हैदराबाद ब्लास्ट आदि के बाद भी हजार बार गलत साबित हो जायें लेकिन आतंकी घटनाओं को लेकर अपनी रिपोर्टिंग के स्टाईल को बदलने के लिये तैयार नहीं। बिना किसी चार्जशीट और फैसले के ही तो आए दिन आरोपी की जगह आतंकी गिरफ्तार जैसे शब्द धड़ल्ले से लिखे जाते हैं। भले बाद में वो निर्दोष ही साबित हो जाये।

और हाँ, निर्दोष साबित होने पर उनपर किसी अखबार में कोई रिपोर्ट नहीं आती है।


कुछ पुराने महत्वपूर्ण आलेख

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...