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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Monday, July 15, 2013

मिल्खा ने जब अपने बेटे जीव मिल्‍खा को दौड़ने से रोका!

मिल्खा ने जब अपने बेटे जीव मिल्‍खा को दौड़ने से रोका!

15 JULY 2013 NO COMMENT

♦ ब्रज मोहन सिंह

तीन घंटे से ज्यादा लंबी फिल्म। इतिहास से वर्तमान को जोड़ती फिल्म, भाग मिल्खा भाग। इस फिल्म को मैं "पान सिंह तोमर" के मुकाबले की फिल्म मानता हूं। पान सिंह और मिल्खा सिंह, दोनों ही विपरीत परिस्थियों में घुटने टेकने से इनकार कर देते हैं। लड़ते हैं और जीतते भी हैं। अदम्य साहस का जो चित्रण राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने किया है, वह अपने आप में लाजवाब है।

मैं खुद मिल्खा जी से अपने शुरुआती टीवी रिपोर्टिंग के दिनों में इतनी बार मिला, उनके परिवार के साथ खाना भी खाया लेकिन मिल्खा के दर्द को समझ नहीं पाया। हां, वह कहा करते थे कि खेल को देश में ठीक करना है तो आर्मी को दे दो। मुझे लगता था कि यह उनका गुस्सा महज गुस्सा ही है लेकिन अब समझ पाया कि ऐसा वह क्यों कहते थे। मिल्खा का अतीत संघर्ष से भरा था, मिल्खा ने भागकर अपनी जान बचायी। वह एक बार दौड़ा तो दौड़ता ही रहा। रोम, जापान, सिडनी और कहां-कहां नहीं भागा मिल्खा।

भाग मिल्खा भाग थोड़ी लंबी फिल्म बन गयी है, लेकिन मेरा दावा है कि आपको यह फिल्म बोर नहीं करेगी। बल्कि आपके सामने इतिहास के तमाम पन्ने उधेड़ कर रख देगी, जिसके बारे में आपने सोच भी नहीं होगा। फ्रेम दर फ्रेम कहानी को बहुत अच्छी तरह से पिरोया है फिल्म डायरेक्टर ने। जिस बखूबी से हर शॉट्स को फिल्माया गया, वह आपको आजादी से पहले के ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म के उस दौर में ले जाता है, जहां हर शॉट्स आपके जेहन में झट से चिपक सा जाता है।

मैंने चंडीगढ़ में जब पहले दिन यह फिल्म देखी, मेरी आंखें थिएटर में उन बुजुर्ग लोगों पर टिकी थीं, जो अकेले में बैठकर फिल्म के हर मूवमेंट को गौर से निहार रहे थे। लग रहा था कि वह इस फिल्म में कुछ तलाश रहे हों। फिल्म खत्म हुई तो 84 साल के एक सरदार जी मिले, जो अपनी उम्र को धता बताकर फिल्म देखने आ गये थे। मैंने उन्हें सहारा देने की कोशिश की, तो उनकी आंखों में शुक्रिया कहने का भाव था लेकिन उनका हर एक कदम आत्मविश्वास भरा था। शायद उस पीढ़ी ने ऐसे ही अपनी तकदीर लिखी थी, मिहनत, लगन और आग से।

कभी सोचता हूं, कैसा रहा होगा वह समय जब लोग एक दूसरे के खून के प्यासे थे, और फिर नया मुल्क बना, नया संविधान बना। हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच बराबरी का रिश्ता कायम हुआ। लेकिन दिल पर लगे जख्मों का क्या, जो कहीं न कहीं मौजूद है। और यह कह रहा है कि जो कुछ हुआ था वह सही नहीं था।

असल में सही कहता भी कौन है, सही कहेगा भी कौन? लेकिन मिल्खा का अतीत न होता तो वह मिल्खा न बनता। असल में उसका नाम भी कुछ और ही होता। उसको शोहरत न मिलती। 1932 में पाकिस्तान के मुल्तान में पैदा हुआ मिल्खा सिंह 1960 के शुरुआती कुछ वर्षों में दौड़ना छोड़ देता है। तब से लेकर गिनती करता हूं, तो 50 साल से ज्यादा का वक्फा गुजर गया। लेकिन दूसरा मिल्खा पैदा ही नहीं हुआ। क्यों नहीं हुआ? सवाल अब किससे करें? एक भ्रष्ट व्यवस्था है, जिससे लड़कर मिल्खा आगे बढा।

लेकिन उस दिन की सोचिए, जब मिल्खा ने अपने बेटे जीव मिल्खा को सख्त हिदायत दी कि वह कुछ भी करेगा लेकिन दौड़ेगा नहीं। जीव मिल्खा सिंह आज दुनिया के बहुत बड़े गोल्फर हैं। मिल्खा से सौ गुना ज्यादा कमाते हैं। गोल्फ के लिए अपने पिता पर बनी फिल्म के प्रीमियर पर नहीं आ पाते हैं। इतिहास का पन्ना बंद हो रहा है। लेकिन मेरी निजी राय है कि ऐसी फिल्में बच्चों के साथ जरूर देखें। उनके इतिहास की समझ बढ़ेगी।

Braj Mohan Singh(ब्रज मोहन सिंह। संवेदनशील पत्रकार। साल 2007 में पंजाब में जेंडर सेंसिटीविटी जैसे गंभीर मुद्दे पर काम करने के लिए उन्‍हें यूएन का लाडली मीडिया एवार्ड मिला। 2009-10 के लिए पानोश साउथ एशिया की फेलोशिप मिली। उनसे brajmohan.singh@ gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

http://mohallalive.com/2013/07/15/braj-mohan-singh-on-bhaag-milkha-bhaag/

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