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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Monday, July 15, 2013

खुद के लिए कब लिखेंगे मीडियाकर्मी

खुद के लिए कब लिखेंगे मीडियाकर्मी?

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Details Category: [LINK=/vividh.html]विविध[/LINK] Created on Monday, 15 July 2013 15:00 Written by सन्तोष देव गिरि
''वेतन के अभाव में शिक्षकों की होली होगी फीकी.....'' ''वेतन के अभाव में चिकित्सकों के घर फीकी रही दिवाली की रौनक....'' जैसी खबरें तो मीडिया से जुड़े साथी दमदारी के साथ यूं लिखते है मानों यह सारी परेशानी उनकी ही है. लेकिन क्या कभी किसी ने इन लाइनों को लिखने वाले उन कलम बहादुरों की भी व्यथा-कथा जानने का प्रयास किया है, जो खुद तो परेशान और जोखिम भरे राहों से गुजरते है, लेकिन दूसरों के लिए कुछ बेहतर सोच रखते हैं.

इन कलम बहादुरों से कोई पूछे कि आपकी दीपावली और होली या अमुक त्योहार कैसा रहा तो शायद अंदर की वेदना को यह अपने मन में दबा वही पुराना जुमला दुहरा देंगे, अच्छी प्रकार से बीता. सच्चाई ये है कि इनके लिए त्योहार कोई मायने नहीं रखते हैं. दीपावली के दिन जहां शाम को छुट्टी हो गई तो यही हाल होली का होता है. कलमकारों को थोड़ी राहत मिल भी जाती है तो प्रेस छायाकार को वह भी नसीब नहीं. होली में कहीं कुछ हो गया तो बेचारे को कैमरा लिए दौड़ लगानी पड़ जाएगी, अन्यथा कोई फोटो छूटा की ब्यूरो से लेकर डेस्क तक की डांट मानो इस प्रकार सुननी होगी जैसे उसने कोई बड़ा जुर्म कर दिया हो.

दूसरों की पिटाई, लुटाई होने पर पूरा का पूरा अखबार का पेज उसी के लिए एलाट कर दिया जाता है. दर्द की ऐसी-ऐसी व्याख्या की पूछो मत. जरा अपने दर्द की बात करते हैं. जब कोई मीडियाकर्मी, छायाकार अपमानित होता है, उसका कैमरा तोड़ दिया जाता है तो वही दल, मंच और वह लोग सामने आकर मीडियार्मी के पक्ष में खड़े होने की जहमत मोल नहीं लेना चाहते हैं जिनके लिए हम लड़ाई लड़ते हैं अपनी कलम के माध्यम से, उनको उनका हक व अधिकार, न्याय दिलाने की खातिर. आखिरकार कब हम चेतेंगे और अपनी पीड़ा को लिखेंगे, छापेंगे?

[B]सन्तोष देव गिरि[/B]
स्वतंत्र पत्रकार
जौनपुर/मीरजापुर
मोबाइल-09455320722

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