केंद्र सरकार ने कोल इंडिया के घाटे का पक्का इंतजाम कर दिया! एनटीपीसी और कोलइंडिया के बीच दो हजार करोड़ के भुगतान विवाद को निपटाने के लिए कैग मैदान में!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
विवाद अभी खत्म होकर भी खत्म हो नहीं रहा है। बिजली कंपनी एनटीपीसी गुणबत्ता का सवाल उठाये हुए है और कोल इंडिया का भुगतान लटकाये हुए है। कोयला आपूर्ति संबंधी विवाद खत्म हुआ तो भुगतान को लेकर रस्साकसी जारी है। एनटीपीसी कोल इंडिया पर घटिया क्वालिटी के कोयले की आपूर्ति के अपने पुरातन आरोप पर कायम है। अब करीब दो हजार करोड़ के इस लंबित भुगतान को निबटाने के लिए भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) मैदान में है। कैग ने भारत के सबसे बड़े कोयला उत्पादक और सबसे बड़े बिजली उत्पादक को आपस में यह मामला सलटा लेने की सलाह दे चुका है।एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को वाणिज्यिक बिजली आपूर्ति कोल इंडिया के उत्पादन पर निर्भर करती है।एनटीपीसी के सीएमडी अरूप रॉय चौधरी का कहना है कि एनटीपीसी की ओर से पेमेंट को लेकर कोई विवाद नहीं था। चूंकि इंडिया से तय गुणवत्ता का कोयला नहीं मिला था इसलिए कंपनी को जिस क्वॉलिटी का कोयला मिला उसी का भुगतान किया गया था।
कोयला मंत्रालय ने सार्वजनिक क्षेत्र की कोयला कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड को भुगतान न होने के बावजूद बिजली उत्पादन करने वाली सबसे बड़ी सरकारी कंपनी एनटपीसी की जरूरतों का 50 प्रतिशत कोयला आपूर्ति जारी रखने का आदेश दिया है।अपने अड़ियल रुख में बदलाव लाते हुए एनटीपीसी ने कोल इंडिया लि. के साथ संयुक्त रूप से कोयले की गुणवत्ता के आकलन का काम शुरू कर दिया है।एनटपीसी ने कहा है कि वह कुछ शर्तों के साथ कोल इंडिया के साथ ईंधन आपूर्ति समझौते पर दस्तखत करेगी। इससे पहले, बिजली कंपनी ने कोयले की गुणवत्ता मुद्दे पर कोयला खरीदने से मना कर दिया था।
कोल इंडिया (सीआईएल) ने बिजली कंपनियों के साथ कम से कम 10 ईंधन आपूर्ति करार (एफएसए) कर लिए, लेकिन एनटीपीसी ने नए एफएसए पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया था क्योंकि आपूर्ति की कोई गारंटी नहीं दी गई थी।एफएसए में आपूर्ति में कमी पर 0.01 फीसदी जुर्माने जैसे प्रावधानों से बिजली कंपनियों में गुस्सा है, यह जुर्माना तब लगेगा जब कंपनी करार के 80 फीसदी कोयले की आपूर्ति में नाकाम रहती है। वर्तमान में निर्धारित आपूर्ति नहीं करने की स्थिति में 10 फीसदी जुर्माना देना पड़ता है।इस पर एनटीपीसी को आपत्ति थी। बहरहाल कोयला आपूर्ति गारंटी पर एनटीपीसी और कोलइंडिया में समझौते का एलान कर दिया।अब कोल इंडिया से फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट को लेकर सारे विवाद खत्म हो गए हैं और एनटीपीसी के बोर्ड से एफएसए को मंजूरी मिल चुकी है। लेकिन अब एनटीपीसी कोल इंडिया का पेमेंट रोके हुए हैं। कोयला आपूर्ति समझौते के लिए कोल इंडिया की आपत्तियों को सिरे से खारिज करने वाली भारत सरकार इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर रही है। मामला कैग पर छोड़ा गया है जो कोलइंडिया के पक्ष पर गौर किये बिना बिजली कंपनी के हित में समझौते के लिए उसपर दबाव बना रहा है।
मजे की बात तो यह है कि एनटीपीसी की हालत भी संगीन है। एनटीपीसी को अपनी 10 प्रतिशत बिजली के लिए ऊंची लागत की वजह से खरीदार नहीं मिल पा रहे हैं।ईंधन की ऊंची लागत की वजह से बिजली की दर बढ़ गई है, जिससे खरीदार कतरा रहे हैं।बिजली मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, 'कच्चे माल की लागत बढ़ने की वजह से खरीदारों के दूर होने से कंपनी का कुल 10 प्रतिशत बिजली उत्पादन प्रभावित हुआ है। खरीदार महंगी बिजली खरीदने के इच्छुक नहीं हैं।'
एनटीपीसी को अपने गैस आधारित बिजली संयंत्रों के लिए कहीं अधिक खर्च करना पड़ेगा। रिलायंस के ब्लॉकों से गैस आपूर्ति होने में देरी के कारण गांधार और कवास में कंपनी की विस्तार परियोजनाओं में देरी हो सकती है। कंपनी के गैस आधारित संयंत्रों की ईंधन लागत में 91 फीसदी से 4.91 रुपये प्रति यूनिट का इजाफा होगा। गेल: नुकसान गैस मूल्य में इजाफे से गेल बुरी तरह प्रभावित होगी। रसोई गैस और पेट्रोरसायन की कीमत पहले से ही आयात आधारित होने के कारण विश्लेषकों को उम्मीद नहीं है कि कंपनी अपनी लागत वृद्धि का बोझ उपभोक्ताओं पर डाल पाएगी।
कैग ने पहले ही कोल इंडिया को फर्जी आंकड़े पेश करने के लिए घेरा हुआ है। जाहिर सी बात है कि दोनों पक्षों में समझौता कराने के लिए दबाव डालने के मकसद से ही कैग को मैदान में उतारा गया है।विश्व की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) ने अप्रैल 2006 और मार्च 2011 के बीच श्रमशक्ति उत्पादकता संबंधी आंकड़े बढ़ा चढ़ाकर पेश किए। कोयला ब्लॉकों के आवंटन और कोल इंडिया के उत्पादन में वृद्धि संबंधी भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की मसौदा रिपोर्ट में यह बात कही गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोल इंडिया ने कर्मचारियों की उत्पादकता मापने के प्रमुख पैमाने प्रति पारी उत्पादन (ओएमएस) में ठेके के जरिये हुए उत्पादन को भी शामिल कर दिया है। इसके जरिये कंपनी ने वर्ष 2006-07 और 2010-11 के बीच कंपनी के अपने उत्पादन आंकड़ों को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया। रिपोर्ट के अनुसार, 'हालांकि खुली खदानों के मामले में ओएमएस (आंतरिक और ठेके) 8.0 से 10.0 टन के बीच रहा जबकि कुल ओएमएस 3.48 से 4.73 के बीच दर्ज किया गया। इस प्रकार ओएमएस की गणना के लिए सीआईएल द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली के तहत आंतरिक उत्पादकता को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया गया।'
आपने सोचा होगा कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में जितने घोटाले होने थे हो चुके और अब वह साफ-स्वच्छ छवि पेश करने की कोशिश करेगी। लेकिन आप गलत हो सकते हैं क्योंकि रिलायंस तथा अन्य कंपनियों को प्राकृतिक गैस कीमत दोगुनी करने की अनुमति देना एक ऐसा फैसला है जिस पर जाहिर तौर पर शंका होती है। दिलचस्प बात यह है कि मंत्रिमंडलीय समिति ने गुरुवार को जो कीमत मंजूर की है वह इसके मूल मंत्रालय यानी पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा तय की गई कीमत से 24 फीसदी ज्यादा है। गैस के दो प्रमुख उपभोक्ता हैं बिजली क्षेत्र और उर्वरक उद्योग। देश में निकलने वाली गैस के दाम बढ़ाकर दोगुने करने का फैसला करने के एक दिन बाद वित्त मंत्री पी.चिदंबरम ने संकेत दिया कि बिजलीघरों और उर्वरक संयंत्रों के लिए दाम कुछ कम रखे जा सकते हैं ताकि बिजली और रासायनिक खाद ज्यादा महंगी नहीं हो। सरकार ने रंगराजन कमेटी की सिफारिशें मानते हुए दाम बढ़ा दिए। नैचुरल गैस की कीमत 4.2 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू से बढ़ाकर 8.4 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू की गई है। बढ़ी हुई कीमतें अप्रैल 2014 से लागू होंगी। हर 3 महीने में कीमतों की समीक्षा की जाएगी। रंगराजन कमेटी का फॉर्मूला अगले 5 साल तक लागू रहेगा।
एनटीपीसी को अपने गैस आधारित बिजली संयंत्रों के लिए कहीं अधिक खर्च करना पड़ेगा। रिलायंस के ब्लॉकों से गैस आपूर्ति होने में देरी के कारण गांधार और कवास में कंपनी की विस्तार परियोजनाओं में देरी हो सकती है। कंपनी के गैस आधारित संयंत्रों की ईंधन लागत में 91 फीसदी से 4.91 रुपये प्रति यूनिट का इजाफा होगा। गेल: नुकसान गैस मूल्य में इजाफे से गेल बुरी तरह प्रभावित होगी। रसोई गैस और पेट्रोरसायन की कीमत पहले से ही आयात आधारित होने के कारण विश्लेषकों को उम्मीद नहीं है कि कंपनी अपनी लागत वृद्धि का बोझ उपभोक्ताओं पर डाल पाएगी। गौरतलब है कि केन्द्र सरकार और पूंजीपतियों के मध्य हुए समझौते से कोल इंडिया लिमिटेड को 60 हजार करोड़ रूपये का प्रतिवर्ष घाटा होगा। निजी बिजली कंपनियां उंची दरों पर बिजली बेच कर देश के गरीब किसान मजदूर लघु उद्यमियों से करेंगी।पिछले वर्ष जनवरी से देश के पूंजीपति टाटा, बिडला, अंबानी, जिंदल, ने केन्द्र सरकार से अपने निजी पावर प्लांटों के लिये दो करोड़ टन विदेशी कोयले की आधे दामों पर कोल इंडिया द्वारा मंगा कर देने की मांग की थी। सूत्र बताते हैं कि दो करोड़ टन विदेशी कोयले की कमीत हजार करोड़ रूपये है जो कि केन्द्र सरकार कोल इंडिया को आयात के जरिये कुल तीन हजार करोड़ में उपलब्ध करायेगी। पूंजीपतियों ने सरकार को सुझाव दिया कि कोल इंडिया को हर वर्ष होने वाला तीन करोड़ के घाटा एनटीपीसी, आदि बिजली बनाने वाली कंपनियों को अपने देशी कोयले की कीमत सौ रूपये प्रति टन अदा कर पूरा कर लें। एनटीपीसी, आदि कंपनियों को मंहगे कोयले की आपूर्ति से होने वाले नुकसान को बिजली कंपनियां अपनी बिजली की दरें बढ़ा कर जनता से बसूल लें।केन्द्र सरकार ने इस आशय का पत्र कोल इंडिया प्रबंधन को लिखा जिस पर कोल इंडिया प्रबंध ने केन्द्र सरकार के इस सुझाव को मानने से इंकार कर दिया। तर्क दिया कि कैग की जांच में फंस जायेंगे। इसके बाद केन्द्र सरकार ने तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल से इस संबंध में आदेश करा लिया। महामहिम का कार्यकाल समाप्ति की ओर था। जाते जाते उन्होंने केन्द्र सरकार के निर्णय पर अपनी मोहर लगा दी। इसके बाद निजी पावर प्लांट केन्द्र सरकार और पूंजीपतियों के बीच हुए समझौते में शामिल हो गये।
केन्द्र सरकार और पूंजीपतियों के बीच समझौता 2032 तक लागू रहेगा। कोल इंडिया वर्तमान रेट पर ही पूंजीपतियों को विदेशी कोयला उपलब्ध करायेगा। ऐसे में कोल इंडिया को होने वाला घाटा बढ़ना लाजमी है। इसके साथ ही एनटीपीसी, आदि कंपनियों को मंहगे कोयले की आपूर्ति से होने वाला नुकसान देगा वहीं बिजली कंपनियां द्वारा बिजली के रेट बढ़ाना निश्चित है।
जहाँ तक गैस की कीमतों में वृद्धि से फायदे का सवाल है, इसका वास्तविक फायदा केवल रिलायंस इंडस्ट्रीज को होने वाला है। वैसे तो कागजी तौर पर इस फैसले का सबसे ज्यादा फायदा ओएनजीसी को मिलना चाहिए, क्योंकि अभी वास्तव में गैस का महत्वपूर्ण उत्पादन उसी का है। मीडिया में आयी टिप्पणियों के मुताबिक ओएनजीसी ने संकेत दिया है कि गैस की कीमत में एक डॉलर की बढ़ोतरी से उसे 2100-2200 करोड़ रुपये का फायदा होने वाला है। इस हिसाब से देखें तो ओएनजीसी को होने वाला फायदा करीब 9000 करोड़ रुपये का हो सकता है, जो काफी बड़ी रकम है। लेकिन आशंका यही है कि सरकार उसके इस लाभ का ज्यादातर हिस्सा सब्सिडी साझेदारी, लाभांश वगैरह के जरिये वापस ले लेगी। ऑयल इंडिया ने भी अनुमान जताया है कि गैस की कीमत में प्रति डॉलर वृद्धि से उसे 400 करोड़ रुपये का लाभ होगा। इस तरह ऑयल इंडिया को भी करीब 1700 करोड़ रुपये का लाभ होना चाहिए। लेकिन ऑयल इंडिया की भी कहानी वही है जो ओएनजीसी की है। इसलिए इन दोनों शेयरों के लिए आज बाजार ने जो उत्साह दिखाया है, उसके टिकाऊ होने पर मुझे संदेह है। लेकिन रिलायंस पर इन दोनों सरकारी कंपनियों की तरह सब्सिडी बोझ नहीं पड़ने वाला। इसलिए गैस की कीमत में वृद्धि का पूरा-पूरा फायदा उसकी जेब में ही रहेगा। लेकिन इस समय रिलायंस के पास गैस है कहाँ? केजी डी6 में उसका गैस उत्पादन घट कर 14 एमएमएससीएमडी के नीचे जा चुका है। बेशक यह माना जा सकता है कि कीमत को लेकर स्थिति साफ होने के बाद कंपनी इस उत्पादन को फिर से बढ़ाने की दिशा में रुचि लेगी।रिलायंस के गैस उत्पादन में कोई ठीक-ठाक सुधार अगले कारोबारी साल के मध्य से ही दिखना शुरू हो सकता है। वास्तव में गैस उत्पादन कंपनी की कुल आय में एक महत्वपूर्ण योगदान 2015-2016 में कर सकेगा और उस समय इस मूल्य-वृद्धि का असली फायदा रिलायंस के बही-खातों में नजर आयेगा।
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