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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Tuesday, July 9, 2013

बंगाल में आतंकवर्चस्व राजनीति की खास पहचान है बाइकवाहिनी,इसपर अंकुश लगना बेहद मुश्किल!

बंगाल में आतंकवर्चस्व राजनीति की खास पहचान है बाइकवाहिनी,इसपर अंकुश लगना बेहद मुश्किल!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


बंगाल में आतंकवर्चस्व राजनीति की खास पहचान है बाइकवाहिनी,इसपर अंकुश लगना बेहद मुश्किल है। मोटरसाइकिलों की कतारें धड़धड़ाते हुए गति और आवाज से से राजनीतिक ताकत और बाहुबल का जो प्रदर्शन करती हैं, वोटरों के दिलोदिमाग पर उसका स्थाई असर होता है। सेना के फ्लैगमार्च की तर्ज पर यह राजनीतिक फ्लैगमार्च है। इशारा न समझने वाले लोगों के लिए अलग इंतजाम होता है।अमूमन नासमझ लोग कम ही होते हैं।जल में रहकर मगरमच्छ से बैर कौन लें


जाहिर है कि दशकों से जारी इस अमोघ शक्तिप्रदर्शन की तकनीक के बिना कोई चुनाव बंगाल में असंभव है। हालांकि चुनाव आयोग ने बाइक वाहिनी पर रोक लगा दी है पर मोटरसाइकिलें उसी गरज और गति के साथ बंगाल के दूरदराज के इलाकों में खौप पैदा करने में लगी हैं।सुप्रीम कोर्ट तक के हस्तक्षेप के बावजूद बंगाल में पंचायत चुनावों में हिंसा और अराजकता पर कोई अंकुश लगा है या राजनीतिक सदिच्छा लोकतंत्र की बहाली के लिए अब प्रतिबद्ध है,ऐसा नहीं कहा जा सकता।


चुनाव आयोग केंद्रीय वाहिनी की मौजूदगी में मतदान कराने पर अड़ा हुआ था। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद काफी ना नुकुर के बाद केंद्र ने वाहिनी भेजने की शुरुआत भी कर दी है। लेकिन जहां लगभग हर बूथ संवेदनशील हो, वहां जितनी वाहिनी चाहिए, उसकी तैनाती के लिए आपातकालीन सेवाओं और सीमाओं पर लगी वाहिनियों को भी वापस बुलाकर बंगाल में मतदान प्रक्रिया पूरी करने के लिए लगाना होगा। जाहिरा तौर पर आधे से ज्यादा संवेदनशील  मतदानकेंद्रों में केंद्रीय वाहिनी की अनुपस्थिति में ही वोट डाले जाएंगे। ऐसे इलाकों में इलाकादखल और रक्तहीन क्रांति के लिए राजनीति कीसबसे कारगर तरकीब यह बाइक वाहिनी है।


जिलों में बड़े पुलिस अफसरान की मौजूदगी में,शीर्ष राजनेताओं के सम्मान में बाइक जुलूस का सिलसिला जारी है।आमडांगा,कोतलपुर,रानीगंज,बेलदा और चांदरा जैसे संवेदनशील इलाकों में राज्य चुनाव आयोग की निषेधाज्ञा के बावजूद बाइक मिछिल का आयोजन धूमधड़ाके से होने की शिकायतें दर्ज हुई हैं।उत्तरी बंगाल और दक्षिणी बंगाल,कोई हिस्सा बाइक आतंक से मुक्त नहीं है।


अब जब लोकतांत्रिक प्रतिष्ठान के प्रति राजनेता तनिक सम्मानभाव नहीं रखते।शीर्ष नेतृत्व की ओर से चुनाव आयोग पर निरंतर गोलाबारी जारी हो।राजनीति और प्रशासन एकाकार हो, तो बाइक वाहिनी के मौजूदगी में जैसे अबतक वोट डालकते रहे हैं,दशकों के उस पूर्वाभ्यास के मुताबिक चुपचाप इशारा समझकर अपने अपने मताधिकार का इस्तेमाल करें,तभी अमन चैन कायम रहेगा। वैसे भी केंद्रीय वाहिनी दो चार दिनों की मेहमान है,किसी की खाल बचाने के लिए हमेशा रहने वाली नहीं है।


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