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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Friday, December 20, 2013

आप के लिए बंगाल में जगह बनाना मुश्किल! নেতৃত্বের অভাবেই ব্যর্থ কং: অমর্ত্য

आप के लिए बंगाल में जगह बनाना मुश्किल!

নেতৃত্বের অভাবেই ব্যর্থ কং: অমর্ত্য


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास



बाकी देश में दिल्ली की तरह आम आदमी पार्टी का तूफान खड़ा होगा या नहीं,यह लोकसभा चुनाव के वक्त तय होगा और वह भी तब जबकि आप दिल्ली में सरकार बनाने की चुनौती मंजूर करके राजनीति और सत्ता में बुनियादी परिवर्तन के अपने वायदे को निभा लें। लेकिन बंगाल की एकतरफा राजनीति में किसी तीसरे विकल्प की कोई गुंजाइश फिलहाल है नहीं। सौरभ गांगुली ने नरेंद्र मोदी के प्रस्ताव को ठुकरा कर बंगाली जनमानस को ही प्रतिबिंबित किया है कि चाहे पूरा भारत नमोमय हो जाये बंगाल की राजनीति को नमोमय बनाना मुश्किल है।वाम जमाने से यह सिलसिला चला आ रहा है। सत्ता दल का वर्चस्व बंगाल में 1977 से ही अपराजेय है। वामपंथियों को हटाकर सत्ता में आयी ममता बनर्जी के राज में भी विपक्ष का पूरी तौर पर सफाया हो गया है। ममता दीदी के प्रधानमंत्रित्व के दांव के मुकाबले बंगाल में वामपंथियों के लिए भी वापसी के रास्ते बंद हो चुके हैं। ऐसे में आप का बंगाल में क्या भविष्य है निकट भविष्य में ,इसपर शक की गुंजाइश प्रबल है। दिल्ली में कांग्रेस और भाजपा जैसे राष्ट्रीय दलों को हराकर सोशल मीडिया के दम पर सत्ता में आना जितना सरल है, दूसरे राज्यों में क्षत्रपों के अस्मिता आधारित जनाधार को चुनौती दे पाना उस मुकाबले बेहद मुश्किल है।


खास बात तो यह है कि सीमा पार बांग्लादेश में सोशल मीडिया के जरिये जो आंदोलन चल रहा है, पश्चिम बंगाल में उसका भी कोई असर नहीं है। यहां सोशल मीडिया के बजाय लोगों की आस्था अब भी प्रिंट मीडिया में ही है।बांग्ला के अलावा हिंदी,अंग्रेजी,उर्दू,पंजाबी और उड़िया अखबारों की प्रसार संख्या ही नहीं,असर भी बंगाल में बहुत ज्यादा है। इसलिए बंगाल में सोशल मीडिया का ब्रह्मास्त्र चलने से तो रहा।


बंगाल में विपक्ष नेतृत्व संकट से जूझ रहा है।विश्वविख्यात नोबेल विजेता अर्थशास्त्री मोदी के मुकाबले कांग्रेस की ओर से बैटिंग कर रहे हैं।जो वाम शासन में बंगाल सरकार के मुख्य सलाहकार हुआ करते थे। 1984 के सिख विरोधी दंगों की तुलना गुजरात नरसंहार से न करने की बात करते हुए उन्होंने साफ तौर पर प्रधानमंत्रीत्व के प्रबल  दावेदार नरेद्र मोदी को कटघरे में खड़ा कर दिया है और कांग्रेस को 1984 के दंगों के मामले में बरी कर दिया है। वे अब कांग्रेस के नेतृत्व संकट को कांग्रेस का मुख्य संकट बता रहे हैं।यानी जनविरोधी नीतियों के आरोपों से भी वे कांग्रेस को रिहा करने लगे हैं। राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में उनके कहे का मतलब चाहे जो हो,बंगाल में सिर्फ कांग्रेस ही नहीं वमपंथियों समेत समूचे विपक्ष के पास ममता बनर्जी को चुनौती देने वाला कोई नेतृत्व फिलहाल है ही नहीं।


बंगाल में सिविल सोसाइटी का पूरी तरह ध्रूवीकरण हो गया है। वे या तो दीदी के साथ हैं या फिर दीदी के विरोध में हैं।तीसरा कोई पक्ष है ही नहीं। आप को बंगाल में अपना वह चेहरा खोजना ही मुस्किल होगा, जो उसे मुंबई और दूसरे महानगरों , राज्यों में शायद आसानी से मिल जायेंगे। फिर बंगाल में राजनीतिक अस्थिरता के पक्ष में लोग हैं नहीं,जनादेश यहां स्थायित्व के लिए बनता है।इसलिए मतों का विभाजन भी असंभव है। आप अभी राजनीतिक स्थायित्व  की गारंटी देने की हालत में नहीं है,जैसा नरेंद्र मोदी दे पा रहे हैं।ङालंकि बंगाल में नमो का भी कोई असर नहीं हो पा रहा है।तृणमूल से गठबंधन के बिना बंगाल में भाजपा के लिए कोई सीट निकालना मुश्किल तो है ही,गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के दीदी के आगे आत्मसमर्पण कर देने के बाद ताजा हालात जो बने हैं,भाजपा के लिए दार्जिलिंग की सीट निकालना भी असभव हो गया है।


ममता बनर्जी के खिलाफ शारदा चिटफंड मामले में सनसनीखेज खुलासे की निरंतरता के बावजूद अब तक यह कोई मुद्दा नहीं बन पाया है। मानवाधिकार हनन के जो मामले चर्चित हैं, वे भी जस्टिस गांगुली के आरोपों के घेरे में आ जाने से रफा दफा है।


हालत यह है कि दिल्ली में आप की सरकार भी मुश्किल नजर आ रही है।आम आदमी पार्टी आप दिल्ली में कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाएगी या नहीं, यह तो वह रायशुमारी के नतीजों के बाद तय करेगी, लेकिन दोनों पार्टियों के बीच तीखी बयानबाजी जरूर शुरू हो गई है। कांग्रेस के नवनियुक्त दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ने आप को कांग्रेस के समर्थन के पीछे उसके झूठे वादों की पोल खोलने की बात कही तो, आप  के नेता कुमार विश्वास ने इसका बेहद तीखा जवाब ट्विटर के जरिए दिया। लवली के इस बयान के बाद कुमार विश्वास ने कांग्रेस को धोखेबाज बताते हुए ट्विटर पर दोमुंहे सांप की फोटो शेयर कर दी।


वैसे तदर्थ तौर पर  अब भी दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की पार्टी आम आदमी पार्टी सरकार बना सकती है। अरविंद केजरीवाल के मुताबिक उन्हें अब तक चिट्ठी, एसएमएस और फोन के जरिए 75 फीसदी लोगों के संदेश सरकार बनाने के लिए मिले हैं। आज से आम आदमी पार्टी ने अलग-अलग इलाकों में जनसभाएं शुरू कर दी हैं। असल में अरविंद केजरीवाल ने सरकार बनाने का फैसला जनता पर छोड़ दिया है। जनता की राय जानने के बाद आम आदमी पार्टी सोमवार को फैसला लेगी कि सरकार बनाए या नहीं।


आपको बता दें कि एसएमएस, फोन के जरिए अबतक 5.35 लाख लोग अपनी राय जाहिर कर चुके हैं। अंग्रेजी अखबार इकनॉमिक टाइम्स के मुताबिक इनमें से 75 फीसदी लोगों का मानना है कि आम आदमी पार्टी को दिल्ली में सरकार बनानी चाहिए।


इस बीच जेडीयू नेता शिवानंद तिवारी ने अरविंद केजरीवाल की नई तरह की राजनीति का समर्थन किया है। शिवानंद तिवारी के मुताबिक जिस तरह से दिल्ली की जनता ने आम आदमी पार्टी को गले लगाया जरूर उसमें खास बात है। आम आदमी पार्टी को जनमत संग्रह का अधिकार है।


उधर बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि अरविंद केजरीवाल को कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनानी चाहिए, इस सरकार के बनते ही पर्दे के पीछे से केजरीवाल का साथ देने वाली कांग्रेस का चेहरा बेनकाब हो जाएगा।

इस तदर्थ राजनैतिक परिवर्तन से भले ही दिल्ली के लोग खुश हो जाये,बंगाल और देश के दूसरे हिस्सों में इसका असर होना मुश्किल है। लोकपाल विधेयक आनन फानन में पास करके सत्ता वर्ग ने आप को दिल्ली में अब सीधे तौर पर अपने वायदे पूरे करने की चुनौती दे दी है,जो आसान भी नहीं है।


सौरभ के मोदी के प्रस्ताव ठुकराने से पहले लग रहा था कि दार्जिलिंग से भाजपा के मौजूदा सांसद जसवंत सिंह को बेदखल करके भारतीय फुटबाल आइकन बाइचुंग भूटिया को जिताकर भले ही तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी बंगाल से अधिकतम लोकसभा सीटें जीत कर नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व को राहुल गांधी या नंदन निलेकणि से बेहतर चुनौती दे दें,आइकन वार में मोदी ने उन्हें जबर्दस्त मात दी है और बंगाल के सर्वप्रिय दादा सौरभ गांगुली को फोड़ लिया है।भारतीय जनता पार्टी ने भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली को अगले साल होने वाले आम चुनाव के लिए टिकट का ऑफर दिया था। माना जा रहा था कि यह दांव फेंककर मोदी ने बंगाल के वोटरों को लुभाने की कोशिश कर दी। नरेंद्र मोदी ने सौरभ गांगुली से यह वादा भी कर दिया कि अगर भाजपा लोकसभी चुनाव के बाद सत्ता में आती है तो उन्हें खेल मंत्री बनाया जाएगा।


सौरभ गांगुली बेहद समझदार हैं और अपने आइकन स्टेटस को किसी कीमत परदांव पर लगाने को तैयार नहीं है। वाम शासन में उन्हें ममता दीदी के खिलाफ प्रत्याशी बनाने की भी तैयारी थी।भाजपाई प्रस्ताव के बाद कांग्रेस  और वामपंथियों की ओर से फिर दादा को घेरने की कोशिश हुई लेकिन दादा राजनीति के पिच पर खड़े नही ंहुए।


आप के लिए बंगाल में दिक्कत यही है कि कोई परिचित लोकप्रिय चेहरा उसके साथ नहीं है।कोलकाता में दिल्ली फतह करने के बाद निकले आप के  जुलूस में खास लोग तो दूर आम आदमी की भी भागेदारी नहीं के बराबर रही है।


क्या अरविंद केजरीवाल अपने वादों को पूरा कर पाएंगे,इस पर बहुत कुछ निर्भर है। कहीं ऐसा तो नहीं आम आदमी पार्टी ने जिन वादों का सपना दिखाकर दिल्ली का दिल जीता है वो वादे हवा हवाई साबित हो जाएंगे। आप के वादों में कितना दम है और इसका क्या असर होगा दिल्ली पर इसी पर है सीएनबीसी आवाज़ की खास पेशकश आप का अब असली इम्तिहान।


आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में सरकार बनाने के 4 महीने बाद ही बिजली 50 फीसदी तक सस्ती करने का वादा किया है। हालांकि आम आदमी पार्टी के सामने चुनौती ये है कि भ्रष्टाचार खत्म होने के बावजूद बिजली सस्ती कैसी होगी। आम आदमी पार्टी ने जलमित्र योजना के तहत 700 लीटर पानी प्रतिदिन मुफ्त में देने का वादा किया है, लेकिन मुफ्त पानी के लिए पैसा कहां से आएगा।


आम आदमी पार्टी ने झुग्गियों की बजाय पक्के मकान देने का वादा किया है। लेकिन सवाल यही है कि इतनी बड़ी संख्या में पक्के मकान कैसे बनेंगे। आम आदमी पार्टी ने 1 साल में कालोनियों को अधिकृत करने का वादा किया है, जबकि कालोनियों को नियमित करने से अव्यवस्था फैलेगी। आम आदमी पार्टी रिटेल में एफडीआई के खिलाफ है, ऐसे में क्या माना जाए कि क्या पार्टी रिफॉर्म के खिलाफ है।


दिल्ली की जरूरतों पर एक नजर डालते हैं यहां बिजली की मांग 5600 मेगावॉट है, जबकि सप्लाई 5200 मेगावॉट की हो रही है। दिल्ली में रोजाना 435 करोड़ लीटर पानी की जरूरत है, जबकि अभी रोजाना 316 करोड़ लीटर पानी की सप्लाई हो रही है।


दिल्ली में 200 यूनिट तक की बिजली के लिए 3.90 रुपये प्रति यूनिट की दर से भुगतान करना पड़ता है। 201-400 यूनिट तक की बिजली के लिए 5.80 रुपये प्रति यूनिट की दर से भुगतान करना पड़ता है। 401-800 यूनिट तक की बिजली के लिए 6.80 रुपये प्रति यूनिट की दर से भुगतान करना पड़ता है। 800 यूनिट से ज्यादा की बिजली के लिए 7 रुपये प्रति यूनिट की दर से भुगतान करना पड़ता है।


दिल्ली में 20,000 लीटर तक पानी के लिए 100 रुपये का भुगतान करना पड़ता है। 20,000-30,000 तक पानी के लिए 150 रुपये का भुगतान करना पड़ता है। 30,000 लीटर से ज्यादा पानी के लिए 200 रुपये का भुगतान करना पड़ता है।


दिल्ली में बीजेपी के नेता डॉ हर्षवर्धन का कहना है कि आम आदमी पार्टी कितने वादे पूरे कर पाएगी, ये समय बताएगा। वहीं बीजेपी के एक अन्य नेता विजय गोयल का कहना है कि आम आदमी पार्टी सरकार बनाएं नहीं तो यही माना जाएगा कि पार्टी वादे पूरे करने को लेकर गंभीर नहीं है।


दिल्ली में कांग्रेस की दिग्गज नेता शीला दीक्षित का कहना है कि आम आदमी पार्टी सपनों को हमेशा नहीं बेच सकते। लेकिन आम आदमी पार्टी ने ये किया है। ऐसा एक बार ही हो सकता है, हमेशा नहीं। कांग्रेस के एक अन्य नेता अमरिंदर सिंह लवली के मुताबिक आम आदमी पार्टी ने झूठे वादों से चुनाव जीता है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कहना है कि पार्टियों को वही वादे किए जाने चाहिए जो निभाए जा सकें।




নেতৃত্বের অভাবেই ব্যর্থ কং: অমর্ত্য


কৃষ্ণেন্দু অধিকারী, এবিপি আনন্দ

Friday, 20 December 2013 17:32কলকাতা: চার রাজ্যের সাম্প্রতিক বিধানসভা ভোটে কংগ্রেসের ভরাডুবির পিছনে যোগ্য নেতৃত্বের অভাবকেই কারণ বলে মনে করছেন অমর্ত্য সেন৷ তাঁর মতে, জোর গলায় লোককে বলতে হবে, কে নেতা৷ লোকের সামনে উপস্থিত না হলে রাজনৈতিক লড়াই করা সম্ভব নয়৷ যোগ্য নেতৃত্বের অভাবেই কংগ্রেসের এই হাল৷

লোকসভা নির্বাচনের আগে চার রাজ্যের বিধানসভা ভোট ছিল সেমিফাইনাল৷ সেখানে ভরাডুবি হয়েছে কংগ্রেসের৷ এই হারের পিছনে কারণ কী? নানা মুনির নানা মত৷ সনিয়া গাঁধী দায়ী করছেন মূল্যবৃদ্ধিকে৷ মনমোহন সিংহ, পি চিদম্বরমরা আঙুল তুলেছেন মুদ্রস্ফীতির দিকে৷ কংগ্রেস সাংসদ মণিশঙ্কর আইয়ার, এনসিপি প্রধান শরদ পওয়ার অবশ্য কংগ্রেসের নেতৃত্ব নিয়েই প্রশ্ন তুলেছেন৷ এই প্রেক্ষাপটে এবার মুখ খুললেন নোবেলজয়ী অর্থনীতিবিদ অমর্ত্য সেন৷ শুক্রবার কলকাতা বিমানবন্দর থেকে শান্তিনিকেতনের উদ্দেশে রওনা হওয়ার আগে তিনি বলেন, নেতৃত্বের অভাবেই চার রাজ্যে কংগ্রেস হেরেছে৷  

২০১৪ লোকসভা ভোটের জন্য নরেন্দ্র মোদিকে প্রধানমমন্ত্রী পদপ্রার্থী করে বেশ কয়েক মাস ধরে কোমর বেঁছে প্রচার চালাচ্ছে বিজেপি৷ কিন্তু কংগ্রেসের মুখ কে হবে, তা এখনও স্পষ্ট নয়৷ ১৭ জানুয়ারি এআইসিসির সভা৷ সেই সভায় ঠিক হতে পারে, কাকে মুখ করে লোকসভা নির্বাচনে ঝাঁপাবে কংগ্রেস৷ এই প্রেক্ষাপটে অমর্ত্য সেনের এদিনের মন্তব্য যথেষ্ট তাত্পর্যপূর্ণ বলেই মনে করছে রাজনৈতিক মহল৷


খাদ্য সুরক্ষা আইনের মতো ইউপিএ-র একাধিক সামাজিক প্রকল্পের সমর্থক অমর্ত্য সেন৷ কিন্তু রাজনৈতিক মহলের একাংশের মতে, চার রাজ্যের ভোটে যেভাবে কংগ্রেস মুখ থুবড়ে পড়েছে, তাতে এই পাইয়ে দেওয়ার রাজনীতি দিয়ে মানুষের মন জয় করা যাচ্ছে কি না, তা নিয়েই প্রশ্ন উঠেছে৷ যদিও অমর্ত্য সেনের মতে, মানুষ যা চেয়েছিল, কংগ্রেস তা পূরণ করতে পারেনি নেতৃত্বের অভাবের জেরেই৷

কয়েক মাস আগে একটি বেসরকারি নিউজ চ্যানেলে অমর্ত্য সেন বলেছিলেন, একজন ভারতীয় নাগরিক হিসেবে তিনি মোদিকে প্রধানমন্ত্রী হিসেবে দেখতে চান না৷ কারণ তাঁর মতে, মোদি গুজরাতে সংখ্যালঘুদের নিরাপত্তার জন্য যথেষ্ট করেননি৷ এবার তিনি কংগ্রেসের নেতৃত্ব নিয়ে প্রশ্ন তুললেন৷

http://abpananda.newsbullet.in/national/60-more/44967-2013-12-20-12-05-43


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