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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Friday, March 7, 2014

ममता मिशन कामयाब,बनने से पहले तीसरा मोर्चा बिखरने लगा,वाम संकट गहराया!

ममता मिशन कामयाब,बनने से पहले तीसरा मोर्चा बिखरने लगा,वाम संकट गहराया!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

ममता मिशन कामयाब,बनने से पहले तीसरा मोर्चा बिखरने लगा,वाम संकट गहराया!

जैसे जैसे चुनाव के दिन नजदीक आ रहे हैं,पक्ष से पक्षांतर की दूरी मिटने लगी है।डूबते जहाज छोड़कर चूहों की अंधी दौड़ तेज से तेज होती जा रही है।चुनाव की तारीखें तय हो चुकी हैं।बंगाल में करीब दो महीने के मतदान के कार्यक्रम से साफ जाहिर है कि राज्य में कानून व्यवस्था का जायजा लेकर ही संवेदनशील उत्तर प्रदेश और बिहार के साथ बंगाल को भी एक पांत में बैठा दिया गया है,जहां चुनावी हिंसा खून की होली में बदल सकती है।


रोज दर्ज होते चुनाव सर्वेक्षणों के मुताबिक नरेंद्र मोदी का राजसूय यज्ञ की पूर्णाहुति का समय आ गया है।रोज रंग बिरंगे पुरोहितों की कतार लंबी होती जा रही है।तीसरा मोर्चा बनने से पहले ही बिखरने लगा है।अम्मा जयललिता राम विलास पासवान के मुकाबले राजनीतिक मौसम परखने में फीसड्डी नहीं है,फिर उन्होंने साबित किया।भगवा सिंहद्वार खुला रखने की गरज से वाम गठबंधन की उन्होंने बाकायदा भ्रूण हत्या कर दी है। बाकी क्षत्रप तो कसमसाने लगे हैं।लालू क्या करेंगे देखना बाकी है,नीतीश खुद प्रधानमंत्रित्व के दावेदार हैं।बाकी जो लोग तीसरे मोर्चे के चेहरे बनकर उभरे हैं,उनके किसी भी खेमे में रम जाने की भारी गुंजाइश है।


वाम दलों की हालत बंगाल में सबसे ज्यादा खराब है।बांकुड़ा में नौ बार के सांसद बुजुर्ग कामरेड वासुदेव अचारिया तक की हालत पतली है।उनके मुकाबले सुचित्रा सेन की बेटी अभिनेत्री मुनमुन सेन का दावा मजबूत समझा जा रहा है।सुभाषिणी अली को बैरकपुर के कुरुऎक्षेत्र में झांसी की रानी की तर्ज पर मोर्चाबंद तो कर दिया गया है,लेकिन वहां उनके वीरगति प्राप्त करने के ही आसार हैं।संसद में शायद सबसे ज्यादा मुखर गुरुदास दासगुप्त इसबार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं,इसके बदले वाममोर्चा ने पिटे हुे नक्सली नेता संतोष राणा को मैदान में उतारा है,जिनके मुकाबले बंगाली फिल्मों के सुपरस्टार देब को खड़ा करके दीदी ने तुरुप का पत्ता फेंका है।दीदी ने पिछले चुनावों में हारी हुई सीटों पर चमकदार चेहरे पेश कर दिये हैं,सर्वत्र लड़ाई दिलचस्प हो गयी है।जंगल महल और मेदिनी पुर में वामदल खस्ता हाल हैं और उत्तर व दक्षिण 24 परगना समेत कोलकाता में हालत सुधरी नहीं है।रज्जाक मोल्ला के बहिस्कार के बाद मुसलमान वोट बैंक तो छीज ही गया है,जिसके बारह मुस्लिम उम्मीदवार सजाने से बढ़ने के कोई आसार नहीं है।


इसके अलावा त्रिपुरा में भी दोनों सीेटें जीतने के लिए लोहे के चने चबाने पड़ेंगे कामरेडों को।दीदी ने त्रिपुरा समेत पूरे उत्तर पूर्व में जबर्दस्त मोर्चाबंदी कर दी है।उत्तर में सिरे से अनुपस्थित कामरेडों का दक्षिण में एकमात्र मरुद्यान केरल है,वहां वे कितने गुल खिला पायेंगे,कहना मुश्किल है।


पिछले चुनावों में जिस मायावती को बाकायदा प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाकर पेश किया था वामदलों ने,उनकी ओर से तीसरे मोर्चे के प्लेट पर घास भी नहीं परोसा जा रहा है।जाहिर है कि मुलायम अपनी नाव केशरिया जहाज से भिड़ायें,इससे पहले नीले और केशरिया झंडे एकाकार हो जाने की प्रबल संभावना है।असम गण परिषद और बीजू जनता दल के केशऱिया होने न होने की कोई राजनैतिक मजबूरी नहीं है।बाकी रही सही कसर राम विलास पासवान और उदितराज ने पूरी कर दी है।


हालत कितनी संगीन है,समझ लीजिये,वाम मोर्चा सरकारों में लगातार मंत्री रहे किरणमय नंद ने अपनी दुकान अलग कर ली है और उनकी समाज वादी पार्टी ने बंगाल में वाम विरोधी चार चार उम्मीदवार मैदान में उतार दिये हैं।वामदलों के लिए राहत यह है कि नजरुल इस्लाम के मूलनिवासी एजंडे में फिलहाल लोकसभा चुनाव नहीं है और सामाजिक न्याय मोर्चा वाले बहिस्कृत रज्जाक मोल्ला ने माकपा के खिलाफ फिलहाल उम्मीदवार खड़ा न करने की घोषणा कर दी है।


लेकिन दलितों के वोट इसबार और कटेंगे।वाम खेमे में ,यहां तक कि नौ फरवरी का ब्रिगेड रैली में रहे मतुा शंघातिपति कपिल कृष्ण ठाकुर अब वन गांव से तृणमूल उम्मीदवार हैं। उनका छोटा भाई मंजुल पहले से दीदी के मंत्रिमंडल में हैंं।मतुआ वोटबैंक बहुत मजबूत है और वहां से कोई तिनका भी वामदलों को अब हासिल होने से रहा।


कही ऐसा न हो कि तीसरे मोर्चे के नाम पर वाम दल एकदम अकेले न हो जाये कांग्रेस की तरह। आसार ऐसे ही नजर आ रहे हैं।बाकी अब नीतीश का भरोसा है। वे भी कब बिहार का राजपाट संबालने की गरज से पलटी खा जायेंगे,कोई ठिकाना नहीं है।


नरेंद्र मोदी को निष्कंटक बनाने का दीदी का मिशन कामयाबी के रोज नये झंडे गाड़ रहा है।सचमुच राष्ट्रीय राजनीति में कारगर सकारात्मक हस्तक्षेप दीदी को करना होता तो वे सर्वत्र अगंभीर उम्मीदवार खड़ा करके मौन सांसदों की टीम बनाने की कोशिश नही करती।पिछली संसद में दीदी की फिल्मी जोड़ी तापस पाल और शताब्दी राय ने एक भी प्रश्न नहीं पूछा है।अब समझ लीजिये कि दीदी का लोकतंत्र यही है कि वफादार गूंगे लोग चमकदार चेहरे के साथ संसद में हाजिरी लगाये और बाकी जो कुछ भी करना हो,दीदी खुद करेंगी।राष्ट्रीय राजनीति के प्रवक्ता बतौर दीदी के पास अन्ना हजारे के अलावा कोई उल्लेखनीय है तो सांसद मुकुल राय,जिनका रेलमंत्री जमाना देश देख चुका है।अन्ना किसके निर्देश पर काम करते हैं,इसका खुलासा करने की कोई जरुरत ही नहीं है।


तीसरे मोर्चे का खेल खराब करना अगर दीदी का खेल है,तो वे चैंपियन बन चुकी हैं। मोदी उनको जीत की ट्राफी बतौर क्या पेश करने वाले हैं,बस,यही देखना बाकी है।


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