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Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Wednesday, January 27, 2016

मेरा ईमान क्या पूछती हो मुन्नी शिया के साथ शिया , सुन्नी के साथ सुन्नी!खैर , मुझे आजकल ही विदित हुआ कि गंजे एक्टर जी कश्मीरी पंडत हैं , और अपने सजातियों के लिए उद्विग्न भी हैं । उचित ही है । उन पँडतों का पुनर्वास होना ही चाहिए । लेकिन मैंने उग्रवाद से पहले का वह कश्मीर भी देखा है , जब वहां की 99 फीसदी आबादी का मुट्ठी भर चंट पँडतों के हाथों भयंकर शोषण होता था । मैंने उस धरती के स्वर्ग में वहां के निवासियों को बर्फ में नंगे पाँव बोझा ढोते भी देखा है । कालीन बुनकरों की मेहनत पर धर या रैना साहब को मुम्बई में ऐश करते भी देखा है । .... अस्तु , अब वहां शांति क़ायम हो । एक्टर पंडत जी और उनके बांधव भी स्व गृह लौटें । लेकिन अब शोषण का भी अंत हो । न केवल कश्मीर , बल्कि सारे विश्व में ।

मेरा ईमान क्या पूछती हो मुन्नी
शिया के साथ शिया , सुन्नी के साथ सुन्नी

मुअज्ज़िन - ऐ मियां , खुदा का ख़ौफ खाओ । मुसलमान होकर एक तो खुद कभी मस्ज़िद नहीं आते , और ऊपर से अपनी कमबख्त बकरी को मस्ज़िद भेज देते हो । साग पात जो थोडा बहुत रोपा है , उसका नुक्सान कर जाती है । 

कबीर - हुज़ूर , जानवर है । मैं नहीं भेजता । खुद चली आती होगी । मैं तो कभी नही आता । अब जानवर को कौन समझाये कि कहाँ जाना चाहिए , और कहाँ नहीं ।
मोरल -- जाओ ही मत शिंगणापुर , ताकि पंगा न हो ।


पदम् सम्मान को लेकर जिन गंजे एक्टर जी की चर्चा आजकल चरम पर है , उनकी अभिनय मेधा से मैं परिचित नहीं , क्योंकि मैंने पिछले 30 साल से कोई फ़िल्म नही देखी । करीब 8 साल पहले , पुणे के एक कार्यक्रम में मुझे अवश्य उनके साथ कुछ घण्टे गुज़ारने और लन्च करने का अवसर मिला था । जब उन्हें बोलने के लिए मंच पर आहूत किया गया , मैं तभी जान सका कि वह एक्टर हैं , अन्यथा मैं उन्हें वकील समझ रहा था । मेरे सामान्य ज्ञान का ही उथलापन है , कि मैं तब तक उन्हें और वकील उज्ज्वल निकम को शक्ल से नहीं जानताथा , और दोनों में घाल मेल कर रहा था । भले ही उससे पहले मैंने निसन्देह एक्टर जी के चित्र कई बार देखे होंगे । 
खैर , मुझे आजकल ही विदित हुआ कि गंजे एक्टर जी कश्मीरी पंडत हैं , और अपने सजातियों के लिए उद्विग्न भी हैं । उचित ही है । उन पँडतों का पुनर्वास होना ही चाहिए । लेकिन मैंने उग्रवाद से पहले का वह कश्मीर भी देखा है , जब वहां की 99 फीसदी आबादी का मुट्ठी भर चंट पँडतों के हाथों भयंकर शोषण होता था । मैंने उस धरती के स्वर्ग में वहां के निवासियों को बर्फ में नंगे पाँव बोझा ढोते भी देखा है । कालीन बुनकरों की मेहनत पर धर या रैना साहब को मुम्बई में ऐश करते भी देखा है । .... अस्तु , अब वहां शांति क़ायम हो । एक्टर पंडत जी और उनके बांधव भी स्व गृह लौटें । लेकिन अब शोषण का भी अंत हो । न केवल कश्मीर , बल्कि सारे विश्व में । 
अंत में एक बात और । उस दिन , 8 साल पहले , लन्च के वक़्त मैं हंसमुख गंजे एक्टर जी को मराठी समझ कर मराठा परम्पराओं का यश गान करता रहा , और एक्टर जी भी हंस हंस कर हामी भरते रहे । आज जान कर खुश हूँ कि वह भी मेरी तरह पहाड़ी ब्राह्मण हैं ।


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