अमिताभों-अभिषेकों के बॉलीवुड में चिटगांव एक प्रतिरोध है!
फेसबुक पर अनुराग कश्यप
चिटगांव देखना। वो खेलें हम जी जान से की तुलना में बहुत बेहतरीन फिल्म है। उसकी लागत से 1/8 वें हिस्से में बनी फिल्म। चिटगांव में कहीं बेहतर कलाकार हैं और वो गहरे लगाव से बनायी गयी है। उसके निर्माता चुपचाप बैठ गए क्योंकि किसी ने उन्हें एक फोन किया था। क्योंकि कोई अपने बेटे का करियर बचाने के लिए बदहवास तरीके से प्रयास कर रहा था। बॉलीवुड में आपका स्वागत है। यहां मेहनत, जुनून, क्षमता और प्रतिभा पर ये सच भारी पड़ता है कि आप किसके बेटे हैं। "खेले हम जी जान से" आयी और चली गयी। अब क्या?
अनुराग कश्यप की प्रतिक्रिया का हिंदी अनुवाद
ये सीधे सीधे बॉलीवुड की पवित्र मानी जाने वाली एक मूर्ति पर हमला है और आमतौर पर प्रतिरोध का ऐसा तेवर बॉलीवुड में देखने को नहीं मिलता। जिस शहर में देश के कोने कोने से हजारों लोग हजारों सपने लेकर पहुंचते हैं, वहां परिवारवाद की पथरीली जमीन उनकी गति को लहूलुहान करती रहती है – यह खुलकर कहने की हिम्मत किसी में नहीं है। अनुराग से कम तीक्ष्णता के साथ कुछ समय पहले अमिताभ बच्चन पर शाहरुख खान ने जरा सी टिप्पणी की थी, तो अमर सिंह के गुंडे उनके घर का सीसा तोड़ने के लिए पहुंच गये थे। गनीमत है कि इस वक्त अमर सिंह अमिताभ बच्चन के साथ नहीं हैं। वरना बनारस में जिस फिल्म की शूटिंग के लिए वे डेरा जमाये हुए हैं, वहां दूसरा वाटर कांड अमर सिंह करवा चुके होते।
बहरहाल, हम फैमिली के साथ खेलें हम जी जान से देखने पहुंचे, तो आखिर तक इसलिए बैठे रहे कि पैसा लगा था। चिटगांव में किशोर आंदोलनकारियों की शहादत को जासूसी तरीके से ट्रीट करती हुई कहानी में इतनी नासमझी थी कि पूछिए मत। मैदान में चिटगांव के दर्जनों बच्चे फुटबॉल खेल रहे हैं और सबकी धोती इतनी झक सफेद मानो अभी अभी धोबी के यहां धुल कर आयी हो। उस मैदान पर अंग्रेजी फौज आती है, तो उसे छुड़ाने के लिए बच्चे आपस में माथापच्ची करते हैं। एक सलाह देता है कि किसी स्कूली में सूरजो दा पढ़ाते हैं। स्वतंत्रता सेनानी हैं। जेल भी हो आये हैं। उनसे चल कर मिलते हैं। कमाल है कि फिल्मकार ने उस दौर में बच्चों के मुख से स्वतंत्रता सेनानी की टर्मिनोलॉजी चलती थी।
बकवास फिल्म है, जो आजादी के इतिहास में शहादत के एक मार्मिक पन्ने को मसखरे की तरह दिखाने की कोशिश करती है। मन खट्टा हो गया। पैसा डांड़ गया।
अभिषेक को एक्टिंग करनी नहीं आती, यह एक बार फिर साबित हुआ। उसके पास गुंजाइश थी लेकिन न निर्देशक ने उसकी भूमिका पर काम किया, न अभिषेक ने खुद। अनुराग के स्टेटस मैसेज पर गौरव सोलंकी ने यूट्यूब पर अभिषेक के बारे में आयी एक टिप्पणी की सूचना दी – दुनिया की सारी ताकतें मिल कर भी गधे को घोड़ा नहीं बना सकती। इस पर अनुराग ने कहा कि मैं कई गधों को जानता हूं, जो पांच मौकों में घोड़े हो गये, लेकिन ये गधा कुछ खास है।
खैर बहस लंबी चली। कुछ अंग्रेजी अखबारों ने अनुराग के इस हमले को लेकर स्टोरी भी चलायी। द टाइम्स ऑफ इंडिया की ये स्टोरी देखिए : Big B stalled release to save Abhi's career: Kashyap। इस बहाने अगर उन लोगों का एक समूह बनता है, जिनका बॉलीवुड में कोई रक्तसंबंध नहीं है, कोई माय-बाप नहीं है – और जो अपनी रचनात्मकता को किसी की धमकी के आगे छिपाने में यकीन न रखे, तो एक अच्छी बात होगी। फिलहाल तो हम सबको ये संकल्प लेना चाहिए कि हम देबब्रत पैन की फिल्म चिटगांवदेखेंगे और रिकॉर्डतोड़ देखेंगे।
♦ अविनाश
चंद तस्वीरों में चिटगांव फिल्म
चिटगांव बेदब्रत पाएन निर्देशित फिल्म है। इसमें मनोज बाजपेयी, नवाजुद्दीन सिद्दीकी और दिब्येंदु भट्टाचार्य मुख्य भूमिकाओं में हैं।
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