विकास कथा देश पर काबिज प्रोमोटर बिल्डर राज की सही अभिव्यक्ति!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि जीडीपी की विकास दर में सालाना आधार पर भले ही गिरावट दिखाई दे रही है, पर तिमाही स्तर पर देखा जाए तो यह यह जनवरी-मार्च के 5.3 फीसदी के स्तर से बढ़कर 5.5 फीसदी पर आ गई है। यह छोटी ही सही, पर राहत की बात है। भारत के वित्तमंत्री को औद्योगिक विकास दर या कृषि विकास दर में गिरावट की परवाह नहीं है क्योंकि निर्माण क्षेत्र में विकास दर दहाई में है। देश पर काबिज प्रोमोटर बिल्डर राज की सही अभिव्यक्ति है यह। घोटालों से सरकार त्रस्त है औ मैच फिक्सिंग के तहत संसद ठप है।अर्थ व्यवस्था पटरी पर कैसे आयेगी , इसकी चिंता किसी को नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने दैनिक ३२ रुपए के गरीबी के पैमाने की समीक्षा करने से इंकार कर दिया। राजनीतिक डांवाडोल और पस्त आर्थिक हाल में इस देश का क्या होगा, तिरुपति में पूजा करते हुए वित्तमंत्री ने सोचा होता, तो शायद बेहतर होता।पिछले साल की चौथी तिमाही में विकास दर 5.3% रही थी। साल 2011-12 की पहली तिमाही में विकास दर 8.0% थी। पहली तिमाही में कृषि क्षेत्र (Agriculture) विकास दर साल-दर-साल 3.7% से घट कर 2.9% हो गयी है। उत्पादन (मैन्युफैक्चरिंग) की वृद्धि दर 7.3% से घट कर 0.2% पर आ गयी। हालाँकि खनन क्षेत्र की विकास दर -0.2% से बढ़ कर 0.1% हो गयी। जीडीपी की खबर के बाद शेयर बाजार की गिरावट में कमी आयी।विनिर्माण और खनन में मंदी के बावजूद निर्माण और वित्तीय क्षेत्रों में सेवाओं की मदद से मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को बल मिला। हालांकि विनिर्माण का प्रभाव परिवहन क्षेत्र की सेवाओं पर पड़ा जिसकी विकास दर व्यापार, होटल और संचार के समान ही अप्रैल से जून तिमाही में कम होकर 4 फीसदी पर आ गई और यह पिछले 12 वर्षों के दौरान सर्वाधिक न्यूनतम है। पिछले वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही में इस क्षेत्र की विकास दर 13.8 फीसदी दर्ज की गई थी।
वित्त वर्ष 2010-11 की पहली तिमाही के बाद से जीडीपी में जारी गिरावट का सिलसिला टूटना अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संकेत है क्योंकि एक लंबे अरसे के बाद तिमाही आंकड़ों में जीडीपी ने एक बार फिर बढ़त का रुख किया है। विकास दर की धीमी चाल का संबंध निवेश में ठहराव आने से है, जोकि सरकार के लिए चिंता का विषय है।ऐसे में इसे सुधारने और खासकर कारखाना क्षेत्र में निवेश से जुड़ी बाधाओं को दूर करने के लिए तेजी के साथ कदम उठाने की सख्त जरूरत है। इसके अलावा जीडीपी के ताजा तिमाही आंकड़ों में कुछ सकारात्मक चीजें भी देखी जा सकती हैं, जैसे कि निर्माण क्षेत्र की विकास दर बीते वित्त वर्ष की की पहली तिमाही के 3.5 फीसदी से बढ़कर चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 10.9 फीसदी पर पहुंच जाना काफी महत्वपूर्ण है।
इस बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने साफ किया कि वे अपने पद से इस्तीफा नहीं देंगे। प्रधानमंत्री ने तेहरान से लौटते वक्त एक सवाल के जवाब में मीडिया प्रतिनिधियों को बताया कि उन्हें अपने पद की मर्यादा रखनी है। उनके इस्तीफे के लिए भाजपा को 2014 तक इंतजार करना होगा।कोल ब्लॉक आवंटन को लेकर संसद में विपक्ष के रुख की प्रधानमंत्री ने आलोचना की। पीएम ने भाजपा से कहा कि वह संसद को चलने दे। हालांकि उन्होंने साफ किया कि वो आरोप-प्रत्यारोप में नहीं पड़ना चाहते। राहुल गांधी के मंत्री बनने पर पीएम ने कहा कि उन्हें पूरा यकीन है कि राहुल जल्द ही कैबिनेट का हिस्सा बनेंगे।वित्त वर्ष 2012-13 की पहली तिमाही में देश की विकास दर में केवल 0.2 फीसदी का मामूली इजाफा हुआ है। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था फिर बुरी तरह आहत हुई है। यूपीए-2 के शासनकाल में लगातार विकास दर कम हुई है और आम आदमी की हालत बद से बदतर हुई है। 2009 से लेकर अब तक लगातार वित्तीय घाटा बढ़ रहा है। महंगाई आसमान पर है। नौकरियों का सूखा-सा पड़ने लगा है। डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार दम तोड़ता दिख रहा है। आम जनता की क्रय शक्ति न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है। पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था की तस्वीर बिगाड़ने में मैन्यूफैक्चरिंग और खनन क्षेत्र का खासा योगदान रहा है। महंगे कर्ज ने मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की रफ्तार को बेहद धीमा कर दिया है। वहीं कोयला खदानों के उत्पादन में कमी ने खनन क्षेत्र का प्रदर्शन बिगाड़ा है। पहली तिमाही में दोनों क्षेत्रों की विकास दर एक प्रतिशत से भी कम रही है।
कोयला ब्लॉक आवंटन को लेकर शुक्रवार को भी संसद में गतिरोध जारी रहा। इस गतिरोध के बीच शुक्रवार को समाजवादी पार्टी (सपा), तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) व वामपंथी दलों ने संसद के बाहर एकजुट होकर तीसरे मोर्चे के वजूद का आभास कराते हुए धरना दिया और कोयला ब्लॉक आवंटन में कथित भ्रष्टाचार की जांच कराने की मांग की। वहीं संसद के अंदर हंगामे के कारण गतिरोध बना रहा।
सरकार की ओर से आज जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 30 जून को समाप्त चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कृषि वानिकी आर मछली उत्पादन में 2.9 फीसदी की वृद्धि हुई जिससे जीडीपी को पिछली तिमाही के 5.3 फीसदी से बढ़ाकर 5.5 फीसदी करने में मदद मिली। पिछले साल के ऊंचे आधार के कारण सकल जीडीपी में 16 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले कृषि क्षेत्र में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में गिरकर करीब 1 फीसदी वृद्धि रहने के अनुमान लगाए जा रहे थे।इंटरनैशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईएफपीआरआई) के निदेशक (दक्षिण एशिया) पीके जोशी ने कहा, 'कृषि क्षेत्र में वृद्धि उम्मीद से कहीं बेहतर रही है। ऐसा मुख्य रूप से पिछले साल रबी फसलों की बेहतर उपज और छिटपुट बारिश का प्रभाव न पडऩे के कारण संभव हुआ।' अर्थशास्त्रियों ने कहा कि पिछले साल के रबी फसलों की कटाई 2012-13 में हुई और इससे कृषि वृद्धि को बल मिला। केयर रेटिंग के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि कृषि क्षेत्र में अच्छी वृद्धि दर्ज की गई है और इसका मुख्य कारण रहा रबी फसलों का रिकॉर्ड उत्पादन। आंकड़ों के अनुसार, गेहूं का उत्पादन कृषि वर्ष 2011-12 (जुलाई-जून) में 8.1 फीसदी बढ़ा, जबकि चावल के उत्पादन में 16.6 फीसदी की गिरावट आई है।
अमेरिका और यूरोप में आर्थिक नरमी के चलते पश्चिमी देशों की मांग में गिरावट और घरेलू स्तर पर सेवा क्षेत्र एवं कारखाना गतिविधियों में सुस्ती के चलते चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 5.5 फीसदी रही, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में यह आठ प्रतिशत के स्तर पर थी।देश के शेयर बाजारों में बुधवार को गिरावट का रुख रहा। प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 140 अंकों की गिरावट के साथ 17,490.81 पर और निफ्टी 46 अंकों की गिरावट के साथ 5,287 पर बंद हुआ। बम्बई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का 30 शेयरों पर आधारित संवेदी सूचकांक सेंसेक्स सुबह 19 अंकों की तेजी के साथ 17,651 पर खुला और 140 अंकों की गिरावट के साथ 17,490 बंद हुआ। दिन के कारोबार में सेंसेक्स 17653 के ऊपरी और 17471 के निचले स्तर तक पहुंचा।महंगाई की ऊंची दर की वजह से उपभोक्ता मांग लगातार कम हो रही है। इसका असर मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र पर पड़ा है। महंगाई के चलते रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति में भी बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आया है। उद्योग जगत लगातार ब्याज दरों में कमी की मांग कर रहा है। महंगे कर्ज से उद्योगों के लिए विस्तार के संसाधन सीमित हो गए हैं। इससे निवेश की दर भी घट रही है। पहली तिमाही में यह 33.2 प्रतिशत से घटकर 32.8 प्रतिशत रह गई है। उद्योग जगत का मानना है कि आर्थिक सुधारों में तेजी लाए बिना औद्योगिक उत्पादन के हालात सुधारना मुश्किल होगा।
हालांकि तिमाही आधार पर इसमें 0.2 फीसदी की मामूली बढ़त दर्ज की गई क्योंकि इससे पिछली तिमाही में आंकड़ा 5.3 फीसदी पर रहा था। सबसे ज्यादा सुस्ती कारखाना और सेवा क्षेत्र में देखने को मिली, जबकि निर्माण (कंस्ट्रक्शन) क्षेत्र ने मजबूत बढ़त दर्ज की। खनन उद्योग भी निगेटिव जोन से उबरने में कामयाब रहा।
केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार गत 30 जून को समाप्त इस तिमाही में कारखाना क्षेत्र की वृद्धि दर मात्र 0.2 फीसदी रही, जबकि वित्त वर्ष 2011 की आलोच्य अवधि में यह 7.3 प्रतिशत रही थी। सेवा क्षेत्र की गतिविधियों में सुस्ती आने से वित्त वर्ष 2012-13 की पहली तिमाही में इस क्षेत्र की विकास दर दहाई अंक से घटकर 6.7 फीसदी पर आ गई, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में यह 10.2 फीसदी रही थी।
जीडीपी के आंकडे़ में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी करने वाले औद्योगिक क्षेत्र की विकास दर में भी गिरावट का रुख रहा। गत 30 जून को समाप्त तिमाही में यह 3.6 फीसदी रही, जबकि वित्त वर्ष 2011-12 की समान अवधि में यह 5.6 प्रतिशत रही थी। इस दौरान बिजली क्षेत्र की विकास दर में शिथिलता आई है और यह वित्त वर्ष 2011-12 की पहली तिमाही में आठ प्रतिशत से घटकर 6.3 प्रतिशत पर आ गया।
कृषि गतिविधियों में भी सुस्ती देखने को मिली है और चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही इस क्षेत्र की विकास दर महज 2.9 फीसदी रही, जबकि वित्त वर्ष 2011-12 की समान अवधि में यह 3.7 प्रतिशत रही थी। हालांकि आलोच्य अवधि में देश के निर्माण क्षेत्र में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है और पहली तिमाही में यह बढ़कर 10.9 प्रतिशत पर पहुंच गई है। वित्त वर्ष 2011 12 की समान अवधि में 3.5 फीसदी के स्तर पर थी।
खनन क्षेत्र भी नकारात्मक वृद्धि से उबरते हुए पहली तिमाही में 0.1 प्रतिशत की दर से बढ़ा जबकि वित्त वर्ष 2011-12 की समान अवधि में यह नकारात्मक 0.2 प्रतिशत रहा था। वित्त वर्ष 2011-12 में देश की जीडीपी 6.5 प्रतिशत की दर से बढ़ी थी और चालू वित्त वर्ष में भी इसके 6.5 प्रतिशत से लेकर 6.7 प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान जताया जा रहा है।
केंद्र सरकार देश के कॉरपोरेट क्षेत्र की आर्थिक सेहत मापने के लिए एक सूचकांक बनाने की योजना बना रही है। कंपनी मामलों के मंत्री वीरप्पा मोईली ने यहां इंस्टीट्यूट ऑफ कंपनी सेक्रेटरीज ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में यह जानकारी दी।
मोईली ने कहा कि इसके लिए एक मजबूत आर्थिक पैमाना तय किया जाएगा और कंपनियों के प्रदर्शन को इसी पैमाने पर नापा जाएगा। यह नया पैमाना या सूचकांक बनाने का काम किसी विश्वसनीय साख निर्धारक संस्था को सौंपा जाएगा।
उन्होंने कहा कि देश के निवेश माहौल को लेकर निवेशकों में बढ़ती चिंताओं को देखते हुए सरकार ने यह नया पैमाना बनाने का फैसला किया है। नए कंपनी कानून 2011 के संबंध में उन्होंने उम्मीद जताई कि संसद के अगले सत्र में यह पारित हो जाएगा। प्रस्तावित कानून में कंपनियों के सतत और समग्र विकास के लिए बेहतर नियामक ढांचा तैयार करने की कोशिश की गई है।
उच्चतम न्यायालय ने देश में सार्वजनिक वितरण पण्राली की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि कारगर तरीके से इसे लागू करने के दावों के बावजूद गरीबों की हालत जस की तस है। न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अमल के बारे में हमें रिपोर्ट तो मिल रही हैं लेकिन जहां तक गरीबों का सवाल है तो वे अब भी परेशान हाल हैं। न्यायाधीशों ने कहा कि यह मामला 11 साल से लंबित है और अब वे सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर प्रभावी तरीके से अमल के बारे में आदेश पारित करेंगे। इस मामले में न्यायालय को इसमें अब तक 22 रिपोर्ट मिल चुकी हैं। न्यायाधीशों ने केंद्र सरकार को इस मामले में और अधिक समय देने से इनकार करते हुए कहा, यह मुकदमा इस तरह नहीं चल सकता है। न्यायालय को मिली 22 रिपोर्ट इस मामले में निर्देश देने के लिए पर्याप्त हैं।
विश्व बैंक ने वैश्विक स्तर पर खाद्य वस्तुओं के दाम जुलाई माह में 10 फीसदी चढ़ने की बात कही है। बैंक का कहना है कि इससे दुनियाभर के गरीबों खासकर अफ्रीका और पश्चिम एशिया के लोगों के लिए परेशानी बढ़ गई है। सूखे और बढ़ते तापमान की वजह से अमेरिका और पूर्वी यूरोप में कुछ महत्वपूर्ण अनाज की फसलों में कमी आई है। वहीं दूसरी ओर मक्का और सोयाबीन के दाम नई ऊंचाई पर पहुंच गए हैं।
विश्व बैंक ने आगाह किया है कि 2008 के मध्य तथा 2011 की शुरुआत की तरह कीमतों में आई तेजी से ज्यादातर खाद्य आयात करने वाले देशों की सेहत को लेकर अंदेशा बढ़ा है।
विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम यांग किम ने एक बयान में कहा, खाद्य वस्तुओं के दाम एक बार फिर चढ़ रहे हैं, जिससे दुनियाभर में लाखों लोगों की परेशानी बढ़ी है। जून से जुलाई के दौरान मक्का और गेहूं कीमतों में जहां 25 फीसदी का इजाफा हुआ, वहीं सोयाबीन के दाम 17 प्रतिशत चढ़े।
अर्थव्यवस्था में टिकाऊ विकास लाने और देश के सभी लोगों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए फाइनेंशियल इनक्लूजन को विकल्प के तौर पर नहीं, बल्कि जरूरी कदम के तौर पर अपनाना होगा। दैनिक भास्कर समूह की तरफ से आयोजित 'फाइनेंशियल इनक्लूजन कॉनक्लेव 2012' में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष डॉ.सी. रंगराजन ने यह बात कही। इस मौके पर संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री सचिन पायलट ने कहा कि आर्थिक आजादी के बिना लोगों का सशक्तीकरण संभव नहीं है।
वित्तीय सुविधाओं की कमी के खतरे को रेखांकित करते हुए दैनिक भास्कर समूह के चेयरमैन रमेश चंद्र अग्रवाल ने कहा कि इससे दो भारत बन रहा है। एक समृद्ध भारत जहां सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं और दूसरा वित्तीय सुविधाओं से महरूम गरीब भारत। इस मौके पर एलआईसी के कार्यकारी निदेशक (माइक्रो इंश्योरेंस) वी. सत्यकुमार ने कहा कि अभी तक 50 फीसदी आबादी तक बैंकिंग या बीमा की पहुंच नहीं है। इन तक बैंकिंग और बीमा की पहुंच बनानी होगी, तभी इन्हें मुख्यधारा में शामिल किया जा सकेगा।
एनसीडीईएक्स के प्रमुख - कॉरपोरेट सर्विसेज एम.के. आनन्द कुमार ने कहा कि दहाई अंकों में आर्थिक विकास के लिए ग्रामीण क्षेत्र का विकास जरूरी है। कॉनक्लेव के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए डॉ. रंगराजन ने कहा कि आर्थिक और सामाजिक रूप से हाशिये पर बैठे लोगों को मुख्यधारा में लाने का एक ही उपाय है कि उन्हें संगठित वित्तीय तंत्र में भागीदार बनाया जाए। उन्हें अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्र- कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र से जोडऩा होगा। यही नहीं, संगठित वित्तीय तंत्र का विस्तार देश के सभी क्षेत्रों में करना होगा। अभी भौगोलिक रूप से जटिल क्षेत्रों में संगठित वित्तीय तंत्र का विस्तार कम ही है।
उन्होंने कहा कि समाज के निम्न आय वर्ग के लोगों को बेहद कम कीमत पर ऋण और अन्य वित्तीय सेवाएं उपलब्ध करानी होंगी। वित्तीय सेवाओं के विभिन्न रूप जैसे बचत, ऋण, बीमा और भुगतान तथा अंतरण सेवाओं से भी उन्हें जोडऩा होगा। रंगराजन के मुताबिक यह कहना गलत होगा कि जो लोग संगठित वित्तीय तंत्र से ऋण नहीं ले पा रहे हैं, वे फाइनेंशियल इनक्लूजन से बाहर हैं। महत्वपूर्ण यह है कि यदि कोई बैंक से कारोबार करने योग्य है और उन्हें बैंक से क्रेडिट चाहिए तो उसे ऋण देने से इनकार नहीं किया जाना चाहिए।
इस मौके पर संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री सचिन पायलट ने कहा कि आर्थिक आजादी के बिना लोगों का सशक्तीकरण और विकास संभव नहीं है। जहां कही भी वित्तीय सशक्तीकरण हुआ है, वहां विकास अपने-आप आया है। उन्होंने कहा कि वित्तीय सेवाओं से लोगों को अवगत नहीं कराया गया तो हम विकसित राष्ट्र बनने का ख्वाब भूल जाएंगे। इन सबके लिए संपर्क साधन और तकनीक का इस्तेमाल जरूरी है।
इस अवसर पर दैनिक भास्कर समूह के अध्यक्ष रमेश चंद्र अग्रवाल ने कहा कि केन्द्र सरकार हर साल लाखों करोड़ रुपये सब्सिडी के रूप में देती है। राज्यों की सब्सिडी अलग से है। तो फिर अर्थव्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर बैठे लोगों का वित्तीय समावेशन क्यों नहीं होना चाहिए। इस समय देश के 50 फीसदी लोग जानते ही नहीं कि बैंक से लोन लेना क्या चीज है। उन्हें कभी बैंकिंग सुविधा मिली ही नहीं क्योंकि वे योजनाओं के पात्र नहीं बन पाते। ऐसे में दो भारत बन रहा है। एक समृद्ध भारत जहां सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं और दूसरा गरीब भारत जहां लोग वित्तीय सुविधाओं से भी महरूम हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि ऐसे में हाशिये पर बैठे लोगों की अगली पीढ़ी का क्या होगा?
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Friday, August 31, 2012
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