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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Wednesday, August 29, 2012

सांप्रदायिक हिंसा: असम की कत्लगाहें और भी... http://aajtak.intoday.in/story.php/content/view/704567/The-Bloodlands-of-Assam.html

सांप्रदायिक हिंसा: असम की कत्लगाहें

हले उसके बाशिंदों को पुलिस ने सुरक्षा के लिए राहत शिविरों में जाने की सलाह दी थी.

26 साल के रज्‍जाक अली कहते हैं कि आगजनी करने वाले बोडो आतंकी थे. वे कहते हैं, ''वे आधी रात के बाद सीआरपीएफ  की वर्दी में आए.'' दो दिन बाद अपने बड़े भाई मतिउर रहमान के साथ लौटे अली को वहां बस राख का ढेर नजर आया, जहां कभी उनका घर था. बोडो आदिवासियों और प्रवासी बंगाली मुसलमानों के बीच हिंसा का यह ताजा दौर असम में देखी गई सबसे रक्तरंजित हिंसा नहीं है. लेकिन जहां एक पखवाड़े पहले 400 चहलपहल वाले गांव हुआ करते थे, वहां की राख में अब निश्चित रूप से कटुता की बू आ रही है.

28 जुलाई को जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बोडोलैंड क्षेत्रीय स्वायत्तशासी जिलों (बीटीएडी) में हिंसा से पीड़ित समुदायों को  'हीलिंग टच' देने गए थे तभी एक आंशिक रूप से जला हुआ और बुरी तरह क्षत-विक्षत शव कनिभुर के रेतीले किनारे पर पाया गया. कनिभुर चिरांग जिले के खगराबाड़ी से गुजरने वाली छोटी नदी है.

स्थानीय लोगों ने मृतक की पहचान 28 वर्ष के शम्सुल हक के रूप में की, जो गूंगा-बहरा था. मानसून की बारिश से भर चुकी कई छोटी नदियों में दर्जनों मुसलमानों के शव पाए गए. 55 साल की जमीला बेवा के हाथ बंधे हुए थे और बदन के निचले हिस्से में कोई कपड़ा नहीं था. यह हैवानियत का एक छोटा-सा उदाहरण है.Assam

कोकराझार शहर से सिर्फ 4 किमी दूर दुरामरिम में 20 जुलाई की रात में बोडो आदिवासियों ने चार लोगों की कुल्हाड़ी से गला काट कर हत्या कर दी. दुरामरि में करीब 15,000 मुस्लिम रहते हैं. दो दिन के बाद काफी संख्या में सशस्त्र हमलावरों ने इस गांव पर हमला किया और लोगों को अपनी जान बचाने के लिए घर छोड़कर भागना पड़ा हमलावारों को प्रतिबंधित नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड के सशस्त्र आतंकियों का सहयोग हासिल था.

इस तरह की संभावित घटना से गांववालों को बचाने के लिए तैनात किए गए 22 पुलिसकर्मी कुछ नहीं कर पाए. इसके बाद आतंकित गांववासी भी एनडीएफबी की भारी गोलीबारी के बीच जान बचाकर किसी तरह भागे. 45 वर्ष की नूरजहां जैसी कई मुस्लिम महिलाओं ने अपने माथे पर सिंदूर लगा लिया ताकि वे हिंदू जैसी दिखें. 

भारतीय सेना के सिपाही 28 वर्ष के नौशाद अली कहते हैं, ''इसके पीछे उनकी पूरी सुनियोजित योजना थी.'' नौशाद जम्मू-कश्मीर में अपनी ड्यूटी से सालाना छुट्टी पर आए थे कि पहले दिन ही उन्हें इस भयावह अनुभव का सामना करना पड़ा.''

मोटगांव में प्रधानमंत्री के दौरे के समय शरणार्थियों की भीड़ में खड़ा यह सैनिक बताता है, ''दुरामरि को आसपास के इलाकों से जोड़ने वाले दोनों पुलों को नष्ट कर दिया गया था.'' दुरामरि भी गोसाईगांव सब-डिवीजन के दर्जनों खाली हो चुके प्रवासियों के गांवों में से एक है जिनको बार-बार निशाना बनाया गया है. इस इलाके में पुलिस या सेना की टुकड़ियों की गश्त से जरा भी न डरने वाले बोडो समूहों ने कई बस्तियों को तहस-नहस कर दिया है.

गृह मंत्रालय में संयुक्त सचिव (उत्तर-पूर्व) शंभू सिंह यह स्वीकार करते हैं कि खाली हो चुके गांवों में मुस्लिमों की संपत्ति लूट ली गई. सेना की टुकड़ियों ने भी कई गांवों में नए सिरे से आगजनी की खबरें दी हैं. राज्‍य के शिक्षा विभाग के कर्मचारी 33 साल के औलाद हुसैन यह मान चुके हैं कि ''इस बार बोडो लोगों का उद्देश्य किसी भी प्रवासी का घर लौटना असंभव बना देना है, हिंसा शांत होने के बाद भी.''

हालांकि ऐसे कई उदाहरण देखे गए हैं, खासकर दक्षिणी ढुबरी जिले में जहां मुस्लिम प्रवासियों ने भी बोडो लोगों पर हमले किए हैं और उनके घर जला दिए गए हैं, लेकिन इस नवीनतम लड़ाई के असल लक्ष्य साफ  हैं. तरुण गोगोई प्रशासन और गृह मंत्रालय, दोनों द्वारा आधिकारिक रूप से स्वीकार्य मरने वालों की 71 संख्या में से सिर्फ  12 बोडो हैं. गोली लगने से गंभीर रूप से घायल गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज ऐंड हॉस्पिटल में भर्ती 12 लोगों में से हर एक प्रवासी है.Assam
 बारूद पर बैठा राज्‍य

समूचे बोडो स्वायत्त क्षेत्र में लंबे समय से पनप रहे तनाव की पहली चिनगारी इस साल मई माह में भड़की. कोकराझार में बेदलांगमारी गांव के बाहर एक संरक्षित जंगल के किनारे एक जमीन पर कब्रिस्तान बनाने की कोशिश कर रहे प्रवासियों से जमीन खाली कराने के लिए राज्‍य के वन विभाग के अधिकारियों ने कथित रूप से बोडो लिबरेशन टाइगर्स के पूर्व आतंकियों को लगाया. इसके बाद पुलिस की गोलीबारी में ऑल बीटीएडी माइनॉरिटी स्टुडेंट्स यूनियन (एबीएमएसयू) का एक कार्यकर्ता मारा गया.

यह संगठन 29 मई को कोकराझार शहर में बाजार बंद कराने का प्रयास कर रहा था. इसके बाद 6 जुलाई को कोकराझार के गोसाईगांव सब-डिवीजन के तहत आने वाले अंतिरपाड़ा में मोटरसाइकिल पर आए अज्ञात हमलावरों ने दो एबीएमएसयू कार्यकर्ताओं की गोली मारकर हत्या कर दी. इसके 12 दिन बाद कोकराझार से सिर्फ  3 किमी दूर स्थित मागुरमारी में एबीएमएसयू के पूर्व अध्यक्ष मोहिबुल इस्लाम और उनके सहयोगी अब्दुल सिद्दीक शेख की हत्या का प्रयास विफल रहा.

19 जुलाई को एक घटना में (जिसे शंभू सिंह प्रवासियों की पहली संगठित प्रतिक्रिया बताते हैं) कोकराझार पुलिस स्टेशन से चंद कदमों की ही दूरी पर 1,000 से ज्‍यादा प्रवासी मुसलमानों की भीड़ ने चार बोडो युवकों को एक पुलिस वैन से बाहर खींचकर पीट-पीटकर मार डाला. मुसलमानों का मानना था कि ये चारों युवक बीएलटी के पूर्व आतंकी हैं.

इसके बाद गोसाईगांव के निकट स्थित ओंताइबारी में एक पवित्र बोडो धर्म स्थल पर गोलीबारी की गई और साथ ही यह अफवाह भी उड़ा दी गई कि कोकराझार, ढुबरी और बोंगाईगांव में लगे सेना की भर्ती शिविर से लौट रहे कई युवक गायब हैं. इस घटना ने ही आगजनी और खून-खराबे के लिए उकसाया जो तेजी से बीटीएडी के पूरे इलाके में फैल गया.
बोडो राज्‍य का असंभव सपना 

परफ्यूम कारोबारी और एआइयूडीएफ  के अध्यक्ष बदरुद्दीन अजमल कहते हैं, ''यह एक साजिश है.'' एआइयूडीएफ  राज्‍य की 126 सदस्यों वाली विधानसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है. मुख्यमंत्री तरुण गोगोई और बीएलटी के पूर्व प्रमुख हगरामा मोहिलरी के बीच के पुराने संबंध की ओर संकेत करते हुए अजमल इसकी सीबीआइ जांच चाहते हैं. हगरामा अब बीटीएडी के मामले देखने वाली बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (बीटीसी) के मुख्य कार्यकारी हैं.

अजमल का मानना है कि ''बोडो इलाकों से मुसलमानों को भगाने का यह गुपचुप समझैता है.'' पुलिस और खुफिया अधिकारियों का कहना है कि इस बात के सबूत मिले हैं कि लंबे समय से निष्क्रिय, यहां तक कि खत्म हो चुके आतंकी संगठनों ने फिर से हथियार उठा लिए हैं क्योंकि वे इस जंग को भौगोलिक रूप से एक बोडोलैंड राज्‍य बनाने का निर्णायक मौका मान रहे हैं.

केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम (अब वित्त मंत्री) ने भी स्वीकार किया कि बीटीएडी में कई संगठनों के पास हथियार हैं क्योंकि कई पूर्व आतंकियों ने अपने हथियार नहीं लौटाए थे. हालांकि, मोहिलरी इससे सहमत नहीं हैं और वे हिंसा के लिए 'अवैध प्रवासियों' को जिम्मेदार ठहराते हैं. मोहिलरी ने 24 जुलाई को कहा, ''हमें खबरें मिली हैं कि बांग्लादेश के लोग ब्रह्मपुत्र पार कर ढुबरी पहुंच रहे हैं और कोकराझार में घुसपैठ कर रहे हैं. हमने कोकराझार और ढुबरी सीमा को सील करने की मांग की है.''

25 जुलाई को असम पुलिस के सब-इंस्पेक्टर दीपंत फुकन और उनके सहयोगी जब चिरांग जिले के देओलगुड़ी में बदमाशों द्वारा प्रवासियों के घर जलाने की शिकायत का एक फोन कॉल सुन रहे थे तभी उन पर गोलीबारी शुरू हो गई. इस अधिकारी ने इंडिया टुडे को बताया, ''उन्होंने क्लाशनिकोव और ऑटोमेटिक पिस्टल का इस्तेमाल किया था.''

फुकन  का मानना है कि ये हमलावर एनडीएफबी के कैडर थे. उनका काम करने का तरीका बिल्कुल वैसे ही था जैसे कोकराझार, चिरांग, बोंगाईगांव और बाक्सा के प्रवासी मुसलमानों को उनके घरों से बाहर करने के मामले में दिखा था. कोकराझार में सेना के सूत्र बताते हैं कि मरने वालों की संख्या सरकारी आंकड़े 71 से पांच गुना ज्‍यादा हो सकती है. एक अधिकारी ने पुष्टि की, ''मरने वालों में बहुत बड़ी संख्या मुसलमानों की है.''

बस्तियों को चुन-चुनकर निशाना बनाया गया. प्रवासियों की बस्तियों भेलातोल और बसारबारी को तबाह कर दिया गया, लेकिन इनसे 100 मीटर दूरी पर ही स्थित कोच-राजबंशी आदिवासियों की बहुलता वाले बाटाबाड़ी में कुछ भी नहीं हुआ. वहां गांव वाले तीन मुस्लिम घरों की बर्बादी को चुपचाप देखते रहे. 38 साल के मनोरंजन बर्मन कहते हैं, ''हम जानते थे कि हमें नहीं छुआ जाएगा.'' बोडो गुटों ने सिर्फ  मुस्लिमों के घरों को निशाना बनाया.

1950 के दशक में उदयांचल राज्‍य की मांग से शुरू होकर 1987 के बाद एक स्वतंत्र राज्‍य के लिए हिंसक आंदोलन करने वाले बोडो लोग हमेशा ही ज्‍यादा आजादी के आकांक्षी रहे हैं. लेकिन वे यह भी जानते हैं कि उनके पास संख्या की कमी है. बीटीएडी की 31 लाख की जनसंख्या में वे सिर्फ  एक-तिहाई के बराबर यानी 10 लाख से थोड़े ज्‍यादा हैं.

पूर्व बार्कले स्कॉलर और गुवाहाटी यूनिवर्सिटी में राजनीतिशास्त्र के एसोसिएट प्रोफव्सर 43 वर्षीय नैनी गोपाल महंत मौजूदा हिंसा की जड़ 1993 के बोडोलैंड समझैते की विफलता को मानते हैं. तब तत्कालीन गृह राज्‍यमंत्री राजेश पायलट ने घोषणा की थी कि बोडोलैंड एक असंभव सपना है क्योंकि बोडो लोग अपनी ही भूमि पर अल्पसंख्यक हैं. महंत कहते हैं, ''यह संदेश सामूहिक रूप से बोडो मानस में पैठ कर गया जिसके बाद से ही सभी गैर-बोडो समुदायों को बाहर करने का प्रयास चल रहा है.''
गोगोई का जिताऊ दांव 

अखिल भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे देबकांत बरुआ की इंदिरा गांधी से कही यह बात काफी चर्चित हुई थी कि 'अली (प्रवासी मुसलमान) और कुली (प्रवासी चाय बगान मजदूर) असम में हमेशा पार्टी को सत्ता में रखेंगे. इसके बाद 2006 में तरुण गोगोई ने इस समीकरण को बदलने का निर्णय लिया. वर्ष 2006 में राज्‍य विधानसभा में बहुमत से थोड़ा पीछे रहने पर उन्होंने 10 विधायकों वाली अजमल की पार्टी एआइयूडीएफ  का साथ लेने की बजाए 11 स्वतंत्र बोडो विधायकों से हाथ मिला लिया.

तब एआइयूडीएफ  से गठबंधन के सवाल पर गोगोई ने भद्दे ढंग से कहा था, ''बदरुद्दीन अजमल कौन है?'' कई लोग उनके इस कदम को राजनीतिक चतुराई के रूप में देखते हैं. अलग बोडोलैंड की मांग को पीछे धकेल देने के साथ ही गोगोई ने जनजाति बहुल क्षेत्रों में अच्छी साख भी बना ली. साल 2011 के चुनावों से पहले इस स्थिति को फिर से मजबूत करते हुए उन्होंने बांग्लादेशी हिंदू प्रवासियों को शरणार्थी का दर्जा देने की वकालत की. इससे उन्हें 20 लाख बांग्लादेशी हिंदू मतदाताओं के बीच व्यापक समर्थन मिला. उनका यह दांव चल गया और कांग्रेस को 78 विधानसभा सीटों पर अभूतपूर्व जीत मिली.

मुख्यमंत्री ने मोहिलरी के नेतृत्व वाले बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) के साथ अपना गठजोड़ जारी रखा. इसके पीछे उनकी सोच यह थी कि पूर्व बीएलटी आतंकियों को सत्ता का स्वाद देने की सफलता जल्दी ही कड़वाहट में बदल सकती है, यदि उन्हें विपक्ष की ओर धकेल दिया गया.

बोडो-प्रवासी टकराव के पीड़ितों का आरोप है कि पुलिस और प्रशासन ने सुस्त प्रतिक्रिया दिखाई है. उदाहरण के लिए गोसाईगांव के सब-डिवीजनल पुलिस आफिसर (एसडीपीओ) ने पांच अत्यंत संवदेनशील बोडो गांवों की सुरक्षा के लिए सिर्फ  10 सीआरपीएफ  जवान भेजे. प्रवासियों ने सभी पांचों गांवों को जला डाला जिसके बाद इस अधिकारी को निलंबित कर दिया गया. पुलिस अधिकारियों का कहना है कि सरकार राजनैतिक दिशाहीनता की शिकार है.

हिंसा पर कार्रवाई के लिए राज्‍य सरकार किस तरह से अनिच्छुक थी, यह बिजनी के एसडीपीओ नारायण दास के इस्तीफे से साफ  हो जाता है. उनके एक सहकर्मी ने बताया, ''नारायण को लगा कि जब लोगों की जान नहीं बचा सकते तो नौकरी करते रहने का क्या मतलब है.''

प्रशासनिक और खुफिया सूचनाओं के अलावा मुख्यमंत्री ने उन दो वरिष्ठ कांग्रेसियों की रिपोर्ट को भी कूड़े में डाल दिया जो 6 जुलाई को दो एबीएमएसयू नेताओं की हत्या के बाद कोकराझार के दौरे पर गए थे. 7 जुलाई को कोकराझार जिला कांग्रेस प्रमुख लोहेंद्र बसुमतारी और असम प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष वाई.एल. करना ने गोगोई पर दबाव डाला कि हिंसा और न बढ़ने पाए इसके लिए अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती की जाए. लेकिन उनका यह दबाव व्यर्थ साबित हुआ.
रक्‍तरंजित भूमि के पुत्र 

बांग्लादेश से लगातार आती प्रवासियों की बाढ़ के मसले पर ब्रह्मपुत्र के शांत किनारे बार-बार खूनी संघर्ष देख रहे हैं. ऑल असम स्टुडेंट्स यूनियन (आसू) ने 1979 से 1985 के बीच चले आंदोलन का नेतृत्व किया था जिसके दौरान 18 फरवरी, 1983 को नेल्ली में आजाद भारत का सबसे रक्तरंजित नरसंहार देखा गया. नौगांव जिले में लालुंग आदिवासियों ने 3,000 से ज्‍यादा बांग्लाभाषी मुसलमानों का कत्ल कर दिया था. इसके बावजूद नेल्ली मुस्लिम बहुल क्षेत्र बना रहा.

वर्ष 1931 की जनगणना के सुपरिंटेंडेंट सी.एस. मुलन ने ''पूर्वी बंगाल खासकर मेमन सिंह जिले से जमीन के भूखे बंगाली प्रवासियों (ज्‍यादातर मुस्लिम) के बड़े झुंड के धावा बोलने'' को रेखांकित किया है. वर्ष 2012 में जोरहाट मेडिकल कॉलेज के भुपेन कुमार नाथ और सांख्यिकीविद दिलीप चंद्र नाथ की एक स्टडी में कहा गया है कि बांग्लादेश से लगातार हो रही घुसपैठ और ऊंची जन्म दर की वजह से असम की मुस्लिम जनसंख्या 1951 से 2001 के बीच 6 फीसदी बढ़ गई है, जबकि इस दौरान हिंदुओं की जनसंख्या में 7.2 फीसदी की गिरावट आई है. इस दौरान बांग्ला बोलने वालों की जनसंख्या में 6 फीसदी की बढ़त हुई, जबकि असमी बोलने वालों की जनसंख्या 9 फीसदी गिर गई.

इसकी पुष्टि 2011 की जनगणना से भी होती है जिससे पता चलता है कि राज्‍य के मुस्लिम प्रवासियों वाले जिलों ढुबरी, ग्वालपाड़ा बारपेटा, मोरीगांव, नौगांव और हाइलाकांडी की जनसंख्या में 20 से 24 फीसदी की भारी बढ़त हुई है. लेकिन अमिय कुमार दास इंस्टीट्यूट ऑफ  सोशल चेंज ऐंड डेवलपमेंट के निदेशक भूपेन सरमा इससे इत्तेफाक नहीं रखते.

वे कहते हैं, ''मैं यह नहीं कहता कि माइग्रेशन नहीं हो रहा, लेकिन जनसंख्या की बढ़त उतनी चिंताजनक नहीं है जितनी बताई जा रही है.'' उनका तर्क है कि ढुबरी, बारपेटा और मोरीगांव में मुस्लिम जनसंख्या बढ़ने की वजह यह हो सकती है कि वहां साक्षरता दर बहुत कम है और इसकी वजह से जन्म दर बहुत ज्‍यादा है.

उदयन मिश्र का कहना है कि असम की आबादी में बदलाव के साथ अन्य गैर बोडो समुदायों की बढ़ती संपन्नता बीटीएडी इलाके में इस तरह के टकराव को जन्म दे रही है. उपयुक्त प्रतिनिधित्व न मिल पाने और बीटीसी के लगातार अल्पसंख्यक विरोधी रवैए से मुस्लिम बहुल गांवों को बीटीएडी से बाहर करने की मांग ने जोर पकड़ा है. बीटीएडी में नौ लाख की अपनी जनसंख्या का दावा करने वाले आदिवासी भी बाहर जाना चाहते हैं. महंत को आशंका है कि अब बोडो और अन्य आदिवासियों के बीच भी टकराव हो सकता है. प्रवासियों के विपरीत ये आदिवासी ज्‍यादा संगठित और हथियारों से लैस हैं. सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि 1996 से 1998 के बीच हुए बोडो-आदिवासी संघर्ष में दोनों तरफ के 1,213 लोग मारे गए थे.
प्रवासी से मुख्‍यधारा 

देबकांत बरुआ के 'अली' यानी प्रवासी मुसलमानों को अब कांग्रेस की जागीर नहीं माना जा सकता. असम के कुल 1.85 करोड़ वोटरों में से 55 लाख प्रवासी मुस्लिम मतदाता काफी हद तक एआइयूडीएफ  के साथ जुड़ गए हैं, साल 2006 में 10 विधायकों के साथ शुरुआत करने वाली यह अनुभवहीन पार्टी साल 2011 में राजनीति के केंद्र में आ गई है और अब ज्‍यादा प्रभावी संख्या 18 विधायकों के साथ वह राज्‍य विधानसभा की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है.

प्रवासी मुस्लिम मतदाताओं में कांग्रेस का हिस्सा साल 2006 के 36 फीसदी से घटकर साल 2011 में 28 फीसदी पर आ गई है. हालांकि, पार्टी ने 13 प्रमुख विधानसभा क्षेत्रों में फैले 'कुली' या चाय बागान मजदूरों के वोटों का 67 फीसदी हिस्सा हासिल किया है. लेकिन गोगोई के 'भूमिपुत्र' दांव से उन्हें असम के मुसलमानों के बीच नए दोस्त मिले हैं और साल 2009 में इनके 39 फीसदी वोटों के मुकाबले 2011 में कांग्रेस को 55 फीसदी वोट हासिल हुए हैं. अपने लगातार तीसरे कार्यकाल में गोगोई अविचलित और संतुष्ट दिख रहे हैं, लेकिन एआइयूडीएफ  का उभार गुवाहाटी और दिल्ली में कांग्रेसियों की चिंता बढ़ा रहा है. उनको डर है कि यह पार्टी असम में कांग्रेस के प्रभुत्व को बड़ी चुनौती दे सकती है.

नौगांव में पैदा हुए अजमल को 2011 के चुनाव में दक्षिण सलमारा और जमुनामुख, दोनों जगहों पर विजय मिली थी. एआइयूडीएफ  प्रमुख ने पहले भी अपनी बढ़ती ताकत का प्रदर्शन किया था जब साल 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने ढुबरी से रिकॉर्ड वोटों से विजय हासिल की थी. गोगोई के विपरीत अजमल के साथ संपर्क में रहने वाले कई कांग्रेसी इस बात से वाकिफ  हैं कि मुस्लिम वोटों का आगे यदि और धु्रवीकरण हुआ तो इससे असम के समीकरण बदल सकते हैं.

कांग्रेस के एक मंत्री कहते हैं, ''गोगोई ऐसा ही करते रहे तो हम 2014 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ  जोरहाट और डिबू्रगढ़ सीट ही जीत पाएंगे.'' दूसरे अन्य दल भी एआइयूडीएफ  की संभावनाओं को लेकर परेशानी महसूस कर रहे हैं.

आसू के मुख्य सलाहकार समुजल भट्टाचार्य अपने दुःस्वप्न की व्याख्या करते हैं, ''यदि घुसपैठ की ऐसे ही इजाजत दी जाती रही तो हम अजमल को अगला मुख्यमंत्री बनते देख सकते हैं.'' अजमल इन बातों को खारिज करते हैं, ''मैं एक भारतीय नागरिक हूं. चुनावों में मेरी पार्टी यदि जीत हासिल करती है तो इसमें क्या गलत है? क्या असम में एक मुस्लिम होना गलत है?''
नीरो की बंसी 

26 जुलाई को जब कोकराझार आग की लपटों में था, गोगोई ने बिना कोई वजह बताए सुबह 11 बजे कानून एवं व्यवस्था को लेकर होने वाली बैठक टाल दी. इसकी जगह उन्होंने अपने एक करीबी सहयोगी द्वारा खरीदे गए निजी टीवी चैनल के लिए रणनीति बनाने पर बेटे गौरव के साथ चर्चा करना मुनासिब समझ. एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा, ''मुख्यमंत्री की प्राथमिकता बदल गई है. कानून एवं व्यवस्था पर बैठक आखिरकार 4 बजे के बाद ही हो पाई.'' ऊपरी असम के एक विधायक कहते हैं, ''गोगोई सबसे पहले अपने बेटे का ध्यान रखते हैं.''

7 जुलाई को बीटीएडी इलाके में संकट बढ़ने के बारे में अपने पार्टी नेताओं की सलाह को नजरअंदाज करने के बाद मुख्यमंत्री ने गृह मंत्रालय की चेतावनी को भी तवज्‍जो नहीं दी. चिदंबरम ने 31 जुलाई के अपने दौरे पर यह स्वीकार किया कि केंद्रीय खुफिया एजेंसियों ने राज्‍य सरकार को पहले ही चेतावनी दी थी.

खबर है कि कांग्रेस हाईकमान गोगोई से खुश नहीं है. 26 जुलाई को सोनिया गांधी ने राज्‍य सरकार के कामकाज की निगरानी के लिए 10 सदस्यों वाली एक समन्वय समिति बना दी और प्रदेश कांग्रेस के मुखिया और गोगोई विरोधी भुुनेश्वर कलिता की अगुवाई में एक मैनिफव्स्टो इम्प्लीमेंटेशन कमिटी बनाई गई. यह सब तब हुआ जब राज्‍य कांग्रेस नेताओं ने दिल्ली को चेताया कि कांग्रेस 2016 के चुनाव में अपने सबसे खराब प्रदर्शन की ओर बढ़ रही है.

10 जनपथ की दुविधा को देखते हुए गोगोई ने एक तरह से सोनिया गांधी के अधिकार को ही चुनौती दे डाली. 1 अगस्त को पत्रकारों के सवाल पर कि क्या उन पर पद छोड़ने का कोई दबाव है  कहा, ''अगला कदम मैं तय करूंगा. मेरी तकदीर का फैसला दिल्ली नहीं कर सकता.'' अपने पिता की अपराजेयता पर भरोसा करते हुए गौरव ने 26 जुलाई को ट्विट किया, ''संभवतः वह कांग्रेस के अंतिम क्षेत्रीय क्षत्रप हैं और इसी वजह से उनको छुआ नहीं जा सकता.''

राजधानी दिसपुर में चल रहे आरोप-प्रत्यारोप से बेखबर सात साल की सुनिया गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज ऐंड हॉस्पिटल के एक वार्ड में अपनी मां आबिदा को कसकर पकड़े हुए है, डरी हुई और कुछ भी बोल पाने में असमर्थ. अपने जांघ पर लगे गोली के घाव को दिखाते हुए वह मुश्किल से कहती है, ''यहां काफी दर्द हो रहा है.'' संदिग्ध बीएलटी आतंकियों ने सुनिया को 95 मुस्लिम परिवार वाले बेनागारी गांव में उसके घर के बाहर गोली मार दी थी. उस अभागे दिन से ही सुनिया चल नहीं पा रही है. जी नहीं, उसे देखकर तरुण गोगोई के आंखों से एक बूंद भी आंसू नहीं निकला.

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