कोयले की कमी के बावजूद बिजली कंपनियों को कोयला ब्लाकों के आबंटन में प्राथमिकता!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
बिजली कंपनियों को कोयला ब्लाकों के आबंटन में प्राथमिकता दी जा रही है।कोयला मंत्री ने भरोसा दिलाया है कि कोयला मंत्रालय ने जिन उर्जा कंपनियों को कोयला मुहैया कराने का आश्वासन दिया है वह उसे जरूर पूरा करेंगे।सरकार ने 14 नई कोयला खानों का आवंटन कर दिया है। इनमें से 4 एनटीपीसी को मिली हैं। इन खानों में 83,110 लाख टन कोयला है।एनटीपीसी को मिली खानों में से 2 छत्तीसगढ़ और 2 उड़ीसा में हैं। इन 14 खानों के लिए पिछले साल एप्लीकेशन मंगाई गई थी जिसके लिए कुल 318 एप्लीकेशन आए थे।जिन अन्य सार्वजनिक उपक्रमों को खदान आवंटित किये गये हैं, उनमें नेवेली उत्तर प्रदेश बिजली लि., ओड़िशा तापीय बिजली निगम, जम्मू कश्मीर राज्य बिजली विकास निगम, छत्तीसगढ़ राज्य बिजली उत्पादन कंपनी लि., आंध्र प्रदेश जनरेशन कंपनी, महाराष्ट्र स्टेट बिजली उत्पादन कंपनी, राजस्थान विद्युत उत्पादन नगम तथा पंजाब राज्य बिजली निगम शामिल हैं। कोयले की भारी कमी को देखते हुए सरकार शायद पावर प्लांट्स से अगले दो साल तक इसके लिए नई ऐप्लिकेशंस स्वीकार न करे। बिजली सेक्टर के लिए कोयला आपूर्ति की समीक्षा करने वाले इंटर-मिनिस्ट्रियल ग्रुप ने कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल को यह सुझाव दिया है। 'स्टैंडिंग लिंकेज कमिटी फॉर ग्रांटिंग लॉन्ग-टर्म लिंकेज टू पावर सेक्टर' नाम के इस ग्रुप ने 31 मई 2013 को कई मुद्दों पर बात की थी।कोल इंडिया की सब्सिडियरीज ने 1,08,000 मेगावाट बिजली पैदा करने की क्षमता के लिए 176 लेटर्स ऑफ एश्योरेंस जारी किए हैं। पिछले तीन साल में 26,000 मेगावॉट बिजली की क्षमता चालू की गई है। अगले पांच साल में 80,000 मेगावॉट से अधिक क्षमता वाले प्रॉजेक्ट चालू होने की उम्मीद है।
बिजली कंपनियां पिछले लंबे समय से कोयले की कमी से जूझ रही हैं। वहीं रुपये की कमजोरी ने कोयला आयात करने वाली कंपनियों की परेशानियों को और बढ़ा दिया है। कोयला नहीं मिलने के कारण बिजली के उत्पादन में कमी आने के साथ-साथ कंपनियों के कारोबार पर भी भारी मार पड़ रही है।कोयला मंत्री ने उर्जा कंपनियों को भरोसा दिलाया है कि जिन कंपनियों ने सरकार के साथ पीपीए किया है उन्हें पर्याप्त कोयला जरूर मुहैया कराया जाएगा। हालांकि नई पावर कंपनियों को कोयला देने में कुछ परेशानियों का सामना जरूर करना पड़ सकता है। इसके अलावा जिन कंपनियों ने सरकार की सहमति के बिना ही उर्जा उत्पादन शुरू किया था उन्हें आयातित कोयले पर ही निर्भर रहना होगा। वहीं रुपये की कमजोरी के चलते आयातित कोयला कंपनियों को महंगा भी पड़ेगा।मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने आयातित कोयले की लागत उपभोक्ताओं पर डालने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इससे बिजली दरों में वृद्धि हो सकती है।कोयला कीमत को लेकर बिजली मंत्रालय और उर्वरक मंत्रालय के सख्त विरोध के बावजूद प्रधानमंत्री ने हस्तक्षेप कर इस पर फैसला करवाया। वहीं, गैस कीमत बढ़ाने के राजनीतिक नुकसान की आशंका और लगभग आधे दर्जन मंत्रियों के विरोध के बावजूद पीएम ने इसे हरी झंडी दिखाने में अहम भूमिका निभाई।कोयला नियामक का गठन अध्यादेश के जरिये करवाने का प्रस्ताव भी पीएम की तरफ से आया है। सूत्रों के मुताबिक विदेशी निवेश से जुड़े हर मंत्रालय में इस समय पीएमओ की चल रही है। कोयला खदानों को मंजूरी देने में आनाकानी करने वाले पर्यावरण व वन मंत्रालय में भी अब फाइलें काफी तेजी से आगे बढ़ने लगी हैं। पिछले दो महीनों में पर्यावरण व वन मंत्रालय ने लगभग तीन दर्जन कोयला खदानों को संबंधित मंजूरी दी है। आगे भी विदेशी निवेशकों को खुश करने वाले इन जैसे तमाम मुद्दों पर सरकार दो टूक फैसले करने जा रही है। कई महत्वपूर्ण उद्योगों में एफडीआइ सीमा बढ़ाने की अरविंद मायाराम की सिफारिशों पर अगले महीने विचार-विमर्श का सिलसिला शुरू होने वाला है।
देश भर में कोयले की कमी तथा अन्य कारणों से बिजली के उत्पादन पर बड़ा प्रभाव पड़ा है। केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण द्वारा जारी किये गये प्रतिवेदन के मुताबिक पूरे देश में विद्युत की आपूर्ति में कमी परिलक्षित हुई है। ऐसे दौर में छत्तीसगढ़ सहित गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा में स्थिति बेहतर परिलक्षित हुई। बिजली उत्पादन हेतु कोयला भंडारण की स्थिति के संबंध में प्रतिवेदन में दर्शाया गया है कि देशभर के 19 विद्युत उत्पादन केन्द्रों में पर्याप्त कोयला संग्रह नहीं है।केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण द्वारा जारी किये गये आंकड़ों के मुताबिक पंजाब, चंडीगढ़, दादर एवं नगर हवेली तथा दिल्ली में बिजली का संकट नहीं रहा। इसी तरह देश के पश्चिम क्षेत्रीय रायों में शामिल छत्तीसगढ़ सहित गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और गोवा में बिजली की कमी मात्र 1.4 प्रतिशत आंकी गई। इन क्षेत्रों में सकल बिजली की मांग 37 हजार 763 मेगावॉट रही, जबकि बिजली की आपूर्ति 37 हजार 232 मेगावॉट की गई।
कोयला खदानों के आवंटन की प्रक्रिया शुरू करते हुए सरकार ने 14 कोयला खदान एनटीपीसी सहित केंद्रीय तथा राज्य के सार्वजनिक उपक्रमों को आवंटित किये हैं।आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार, 'कोयला मंत्रालय ने बिजली क्षेत्र को 14 कोयला खदानों का आवंटन किया. करीब 15 राज्यों तथा छह केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों को कोयला खानों का आवंटन किया गया.' जो खदान आवंटित की गईं, उनमें 831 करोड़ टन कोयला भंडार होने का अनुमान है। इससे बिजली क्षेत्र में 1.6 लाख करोड़ रपये से अधिक का निवेश होगा।विज्ञप्ति के अनुसार खदानों का आवंटन अंतर-मंत्रालयी समिति की सिफारिशों के आधार पर संबंधित राज्य सरकारों तथा संबद्ध मंत्रालयों से विचार विमर्श के बाद किया गया।सार्वजनिक उपक्रमों को खदान आवंटित करने के लिये आवेदन मांगे गये थे। इस संदर्भ में कुल 318 आवेदन प्राप्त हुए जिसमें से 276 आवेदनों को सही पाया गया। आवेदनों की जांच के बाद बिजली संयंत्रों के वास्ते 14 कोयला खदानों के लिये 128 आवेदनों को योग्य पाया गया।
कोयला मंत्रालय के समक्ष 31 दिसंबर 2012 तक 1,614 आवेदन पत्र पावर, स्पॉन्ज आयरन और सीमेंट प्लांट की तरफ से आये । इन्हें मंजूरी देने पर हर साल करीब 320 करोड़ टन कोयले की जरूरत होगी। वहीं, कोल इंडिया लिमिटेड इतनी आपूर्ति नहीं कर सकती। ग्रुप की पिछली मीटिंग में कहा गया है, 'कोल इंडिया के पास जो संसाधन हैं, उनकी तुलना में यह मांग बहुत ज्यादा है। कोयला मंत्रालय को अभी भी नई ऐप्लिकेशंस मिल रही हैं। ये ऐप्लिकेशंस जरूरी फीस के साथ सबमिट की जा रही हैं। अब 12वें प्लान के तहत पावर प्रॉजेक्ट के लिए नए लेटर्स ऑफ एश्योरेंस ग्रांट करने को स्कोप नहीं है। कोल इंडिया लिमिटेड पहले ही सभी सब्सिडियरीज में नेगेटिव कोल बैलेंस का इशारा कर चुकी है।'
सरकार ने पहले ही कोल इंडिया को 2009-2015 के बीच चालू होने वाले प्लांट को कोयला सप्लाई सुनिश्चित करने को कहा है। यह सरकारी कंपनी पावर प्रॉजेक्ट को 65 फीसदी कोयला डोमेस्टिक माइंस और बाकी 35 फीसदी कोयला इम्पोर्ट से पूरा करेगी। यह कोयला कंपनियों को कॉस्ट प्लस बेसिस पर सप्लाई किया जाएगा। डोमेस्टिक कोल सप्लाई 2016-17 तक 75 फीसदी तक जा सकती है।
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