पुस्तकालयों में लोकप्रिय समाचार पत्र रखने के लिए हाईकोर्ट का आदेश!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
मां माटी मानुष सरकार के सत्तादल के मुखपत्र जागो बांग्ला और सत्ता समर्थक अखबारों के अलावा बाकी समाचारपत्रों को पढ़ने के पाठकीय अधिकार की बहाली के लिए कोलकाता हाईकोर्ट ने पहल की है। एक जनहित याचिका पर सुनवाई के सिलसिले में पिछले साल मार्च में सरकारी और सरकारी मदद से चलने वाले ग्रंथागारों के लिए राज्य सरकार की निर्देशक विज्ञप्ति में दो हफ्ते के भीतर,17 जुलाई तक संशोधित करने का आदेश दिया है हाईकोर्ट ने और कहा है कि लोकप्रिय, बहुप्रचारित अखबारों को इन ग्रंथागारों में रखने की निषेधाज्ञा को तुरंत खत्म कर दिया जाये। अगर सरकार ऐसा स्वयं नहीं करती तो हाईकोर्ट की ओर से समुचित व्यवस्था की जायेगी।
नागरिकों के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अहसास जैसा है यह आदेश। पूर्वी बंगाल में मुक्ति युद्ध से पहले पाकिस्तानी शासकों ने रवींद्र नाथ की रचनाओं पर रोक लगा दी थी। उसी रवींद्रनाथ की सामान्य कविता आमार सोनार बांग्ला आमि तोमाय बालोबासि बांग्लादेश मुक्तियुद्ध का महामंत्र बन गया। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुठाराघात के जरिये कहीं कोई लोकतंत्र जी नहीं सकता, अदालती राय से लोकतंत्र और संवैधानिक व्यवस्ता की बहाली हुई है, सामाचार चैनलों में आम राय ऐसी आ रही है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा सरकारी पुस्तकालयों में चुनिंदा समाचार पत्र रखने के मामले को कलकत्ता हाईकोर्ट में भी चुनौती दी गई है| जानकारी के अनुसार, अधिवक्ता वासवी रायचौधरी ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर सरकार के फैसले को अनैतिक और द्वेषपूर्ण बताया| उन्होंने सरकार के इस फैसले को खारिज करने की मांग की| याचिका पर जल्द सुनवाई की संभावना है|याचिकाकर्ता ने कहा कि सरकार द्वारा उठाये गए इस कदम से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार क्षीण होगा| याचिका में कहा गया है कि जिन समाचार पत्रों को सरकार ने पुस्तकालयों में मंगाने का निर्णय लिया है, उसमे से ऐसे कई मालिक हैं जिनका सम्बन्ध सत्ता पक्ष के करीबियों से है|
गौरतलब है कि बंगाल सरकार के जनसूचना विभाग की ओर से जारी अधिसूचना में पुस्तकालयों को अल्पज्ञात 13 समाचार पत्रों को ही खरीदने का आदेश दिया गया है|
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