विकसित विश्व: आर्थिक लोकतंत्र का विरोधी - मार्टिन खोर
मुद्रा कोष: विकसित देशों का वायसराय
(विकसित देश यूं तो प्रजातांत्रिक व्यवस्था के पक्षधर नजर आते हैं। परंतु अपनी स्वार्थ सिध्दि हेतु वे किसी भी विश्व आर्थिक संस्थान को प्रजातांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत नहीं लाना चाहते। पिछले दिनों विश्व बैंक एवं अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष के उच्चतम पदों पर होने वाली संभावित नियुक्तियों ने पूरी प्रक्रिया को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। चयन की इस अलोकतंत्रीय प्रक्रिया को उजागर करता संक्षिप्त आलेख। का.स.)
(विकसित देश यूं तो प्रजातांत्रिक व्यवस्था के पक्षधर नजर आते हैं। परंतु अपनी स्वार्थ सिध्दि हेतु वे किसी भी विश्व आर्थिक संस्थान को प्रजातांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत नहीं लाना चाहते। पिछले दिनों विश्व बैंक एवं अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष के उच्चतम पदों पर होने वाली संभावित नियुक्तियों ने पूरी प्रक्रिया को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। चयन की इस अलोकतंत्रीय प्रक्रिया को उजागर करता संक्षिप्त आलेख। का.स.)
पिछले कुछ हफ्तों के दौरान हम सभी दुनिया की दो सबसे शक्तिशाली संस्थाओ, विश्वबैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष (आई.एम.एफ.) के नेतुत्व परिवर्तन प्रक्रिया के साक्षी रहे हैं। परंतु इससे कोई अच्छा संदेश नहीं गया अपितु यह सिध्द हो गया कि संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप जैसी महाशक्तियां मुख्य पदों को बजाय योग्यता के नागरिकता के आधार पर अपने राष्ट्रों के अंतर्गत हथियाएं रखने पर आमादा हैं।
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'प्रजातंत्र' के नाम पर चीख-पुकार मचाने वाली ये पश्चिमी ताकतें इस बात का आग्रह तो करती हैं कि तीसरे विश्व की सरकारें और संस्थान तब तक प्रजातांत्रिक प्रक्रिया, जिसमें चुनाव भी शामिल हैं का पालन नहीें किया गया हो। ये बात खासकर एक राष्ट्रपति (अध्यक्ष) या सरकार द्वारा सत्ता के हस्तांतरण से संबंधित हो तो अनिवार्य मान ली जाती है।
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पर जब बात अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों और संबंधों की आती है तो लगता है कि प्रजातंत्र ठहर सा गया है। इन पर पश्चिमी शक्तियों का वर्चस्व है और वे उसे बनाए भी रखना चाहती हैं। अमेरिका और यूरोपियन देशों का अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के संचालक मंडल में बहुमत है और इसी के माध्यम से ये आपस में गठजोड़ करके अपनी पसंदीदा नीतियों को चलाए रखते हैं। दशकों पहले इनके बीच यह गठजोड़ करके अपनी पसंदीदा नीतियों को चलाए रखते हैं। दशकों पहले इनके बीच यह गठजोड़ हो गया था कि विश्व बैंक का अध्यक्ष अमेरिकन होगा और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का प्रबंध निदेशक यूरोपीय। तब से यह क्रम चला आ रहा है।
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अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अंतर्गत कार्यरत विकासशील देशों के अधिकारियों ने इस बात की ओर इशारा किया है कि वे अपने उम्मीदवार को सामने लाने के इच्छुक हैं। परंतु उन्होंने किसी के भी नाम की घोषणा नहीं की है। कोष में यूरोपीय देशों और अमेरिका के कुल 53 प्रतिशत मत हैं अतएव यह निष्कर्ष निकाला जा रहा है कि यूरोपीय उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित है।
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