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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Monday, July 1, 2013

रमजान के लिए पंचायत चुनाव टला तो दुर्गोत्सव से पहले चुनाव मुश्किल ही है।

रमजान के लिए पंचायत चुनाव टला तो दुर्गोत्सव से पहले चुनाव मुश्किल ही है।


अल्पसंख्यकं या बहुसंख्यकों की भावनाओं से ऊपर उठकर पंचायत वोट कराने के लिए शायद ही कोई पक्ष तैयार हो!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


पश्चिम बंगाल में अब हालात ऐसे बन गये हैं कि पंचायत चुनाव अब जाड़ों से पहले होने का आसार कम ही है। मामला दो पक्षों की जिद में रह नहीं गया है और यह अब अल्पसंख्योकों और बहुसंख्यकों की आस्था और भावनाओं से जुड़ गया है।जिस संवैधानिक संकट के नजरिये से चुनाव जल्दी कराये जाने की उम्मीद बनी थी, हाईकोर्ट के बाददेश के सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से भी उसे टालने का उपाय नहीं है। केंद्रीय वाहिनी का मामला औरसुरक्षा का सवाल अब गौण हो गया है। सवैधानिक संकट भी हाशिये पर चला गया है। राज्य सरकार ने संवैधानिक संकट के मद्देनजर पंचयतों का कार्यभार स्थानीय प्रशासन को दे देने का काम शुरु कर दिया है। अब इसके जो भी नुकसान हों, वे होने ही हैं। लेकिन अल्पसंख्यक या बहुसंख्यकों की भावनाओं से ऊपर उठकर पंचायत वोट कराने के लिए शायद ही कोई पक्ष तैयार हो।रमजान खत्म होते न होते दुर्गोत्सव की तैयारियां शुरु हो जायेंगी। रमजान के लिए पंचायत चुनाव टला तो दुर्गोत्सव से पहले चुनाव मुश्किल ही है।



भाजपा के अलावा कोई भी राजनीतिक दल रमजान के दौरान चुनाव कराने को तैयार नहीं है। तृणमूल अल्पसंख्यक सल की तरफ से जबर्दस्त मोर्चाबंदी की गयी है। तो वामपंथी भी पीछे नहीं है। मुस्लिम संगठन की आड़ में पूर्व मंत्री और माकपा नेता रज्जाक अली मोल्ला मुस्लिम वोट बैंक को साधने का काम कर रहे हैं। कांग्रेस तो इस खेल में पारंगत है ही। भाजपा कोई बहुत बड़ी ताकत नहीं है लेकिन रमजान की वजह से अगर इस वक्त सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बावजूद चुनाव टल गया तो दुर्गोत्सव के मौके पर हिंदुत्व का माहौल बनाने में भाजपाई पीछे नहीं रहेंगे। बंगाल में संघ परिवार का अच्चा खासा संगठन है। वामपंथियों के खिलाफ खड़े बहुत सारे लोग परिवर्तन से मोहभंग के बाद बाजपी की ओर चले गये हैं और भाजपा का जनाधार लगातार मजबूत हो रहा है। तीनों प्रमुख राजनीतिक दलों की नजर इस समीकरण पर भी होगी।


कोई भी मुसलमान रमजान की अहमियत को खारिज नहीं कर सकता चाहे वह वामपंथी ही क्यों न हो।माकपा के कृषक नेता ौरमंत्री रज्जाक अली मोल्ला इसके उदाहरण हैं। सिदिकुल्ला चौधरी बी इस बहाने बंगाल में मुस्लिम राजनीति के मंच पर फिर फोकस में आ गये हैं। नंदीग्रम सिंगूर भूमि आंदोलन में सुर्खियों में आये सिदिकुल्ला चौधरी हाल फिलहालतक सोलह बीघा प्रकरण में बिजी थे, लेकिन राज्य राजनीति में अब वे ्पना दांव खुलकर खेल रहे हैं। जिससे सभी दलों के मुसलमान नेताओं के वर्चस्व को गंभीर खतरा पैदा हो गया है।


हालत कितनी गंभीर है , उसका अंदाजा इसी बात से लगाइये कि रमजान के महीने को लेकर पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव की तारीखें फिर से तय करने का अनुरोध करते हुए उच्चतम न्यायालय में एक समीक्षा याचिका दायर किए जाने की खबरों के बीच राज्य निर्वाचन आयुक्त मीरा पांडे सर्वदलीय बैठक को रद्द कर दिल्ली के लिए रवाना हो गई।चुनाव की तारीखों को पुनर्निर्धारित करने के बारे में उच्चतम न्यायालय के आदेश पर चर्चा के लिए और सुरक्षा बलों की तैनाती के सिलसिले में  होने वाली सर्वदलीय बैठक रद्द है। मीरा ने चुनाव प्रेक्षकों के साथ  होने वाली बैठक और कल गृह सचिव, पुलिस महानिदेशक तथा शीर्ष पुलिस अधिकारियों के साथ होने वाली बैठक भी रद्द कर दी।


गौरतलब है कि तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बंदोपाध्याय और शहरी विकास मंत्री फिरहाद हकीम ने 29 जून को संवाददाता सम्मेलन में कहा था, 'हम पांच चरणों में होने वाले चुनाव (11 जुलाई से) के बारे में माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश का पालन करेंगे।


लेकिन, हम 10 जुलाई से पहले (जब रमजान का महीना शुरू होगा) चुनाव की प्रक्रिया पूरी करने के लिए उच्चतम न्यायालय में एक अपील दायर करने की सोच रहे हैं। इस बीच, कुछ मुस्लिम संगठनों ने रमजान के महीने को लेकर पंचायत चुनाव की तारीखों को दोबारा निर्धारित किए जाने की मांग करते हुए आज राज्य निर्वाचन आयोग के कार्यालय की ओर एक जूलुस निकाला। संगठनों ने अपनी मांगें नहीं माने जाने पर पंचायत चुनाव का बहिष्कार करने की धमकी दी।


शीर्ष न्यायालय ने शुक्रवार को चुनाव की तारीखों को पुनर्निर्धारित करते हुए 11, 15, 19, 22 और 25 जुलाई की तारीख तय की थी तथा राज्य सरकार एवं केंद्र सरकार से इसके मुताबिक सुरक्षा बल की व्यवस्था करने को कहा था ताकि स्वतंत्र, निष्पक्ष और शांतिपूर्ण चुनाव हो सके।


गौरतलब है कि इस्लाम धर्म में अच्छा इन्सान बनने के लिए पहले मुसलमान बनना आवश्यक है और मुसलमान बनने के लिए बुनियादी पांच कर्तव्यों (फराईज़) का अमल में लाना आवश्यक है। यदि कोई व्यक्ति निम्नलिखित पांच कर्तव्यों में से किसी एक को भी ना माने, तो वह मुसलमान नहीं हो सकता।


ये फराईज हैं- ईमान यानी कलिमा तय्यब, जिसमें अल्लाह के परम पूज्य होने का इकरार, उसके एक होने का यकीन और मोहम्मद साहब के आखिरी नबी (दूत) होने का यकीन करना शामिल है। इसके अलावा बाकी चार हैं -नमाज़, रोज़ा, हज और ज़कात।


इस्लाम के ये पांचों फराईज़ इन्सान को इन्सान से प्रेम, सहानुभूति, सहायता तथा हमदर्दी की प्रेरणा देते हैं। यदि कोई व्यक्ति मुसलमान होकर इस सब पर अमल न करे, तो वह अपने मजहब के लिए झूठा है।


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