झूठ का सबूत अमेरिका से आया सबूत नहीं है. इसी गणतंत्र के उपग्रहों और वैज्ञानिकों की गवाही है ये. लेकिन न उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को सोने से फुर्सत थी और न राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण नाम के परिंदे के बहेलियों को रोने से. 6 घंटे का ऐसा वक्त जो उत्तराखंड के लिए सबसे भयावह होने वाला था, बचाने वाले बर्बादी के दस्तावेज पर अपनी बेफिक्री के दस्तखत कर रहे थे.
राज्य के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा कहते हैं कि बादल फटने के बारे में कोई पहले से नहीं बता सकता. काश मुख्यमंत्री सच बोल रहे होते. सच तो ये है कि बादल फटने से पूरे छह घंटे पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी (इसरो) ने आफत की सारी तस्वीर शीशे की तरह साफ कर दी थी. इसरो की मौसम इकाई मोसदैक की रिपोर्ट आजतक के पास है.
16 जून को उत्तराखंड में तेज बारिश शुरू हो चुकी थी. जीएमटी के मुताबिक सुबह साढ़े सात बजे यानी भारतीय समयानुसार दोपहर एक बजे ये रिपोर्ट जारी की थी इसरो ने. इस पर साफ-साफ लिखा है कि उत्तराखंड में बादल फट सकते हैं. वो भी मुहावरे की भाषा में नहीं. कस्बों और शहरों के नाम के साथ. एक नहीं दो नहीं पूरे 11 जगहों पर ईश्वर के आने वाले आतंक की भविष्यवाणी.
ये 11 जगहें हैं:
बारकोट
कीर्तिनगर
मुनिकीरेती
नरेंद्र नगर
पौड़ी
रायवाला
ऋषिकेष
रुद्रप्रयाग
श्रीनगर
टिहरी
उत्तरकाशी
इसरो ने अपनी ये रिपोर्ट उत्तराखंड की सरकार को भी भेजी थी और एनडीएमए को भी. लेकिन इतनी जरूरी सूचना पर सियासत के सम्राट सोते रहे. ये रिपोर्ट आने के छह घंटे के बाद उत्तराखंड के हालात हौसले के दायरे से बाहर निकल चुके थे. आपदा से पहले तेज इंतजामों की खाने वाले एनडीएमए के खुदा भयावहता को भांपने में असमर्थ रहे.
एक साधारण वैज्ञानिक सूचना को दरकिनार करके सबने मिलजुलकर उत्तराखंड को एक अनियंत्रित आपदा की तरफ धकेल दिया था. उन छह घंटों में कुछ भी हो सकता था. सियासत के सूरमा कहते हैं कि बादल फटना एक दैवीय आपदा है और इसका पता नहीं लगाया जा सकता. झूठ बोलते हो आप सरकार. सरासर झूठ. बादल फटने की जुबानी बाजीगरी में अपराध ढकना चाहते हैं. एक घंटे में दस सेंटीमीटर की बारिश को बादल फटना कहते हैं और इसका पता लगाने की मेटार नाम की मशीन मुश्किल से डेढ़ करोड़ की आती है.
इसरो का कहा सुन लिया होता सत्ता और नौकरशाही के नियंताओं ने तो उत्तराखंड एक नर्क में बदलने से बहुत हद तक बच जाता. लेकिन एक सामूहिक अपराध ने साधना की सुहानी तस्वीरों पर हजारों मौतों का नाम लिख दिया. दाता होने के राजनैतिक दंभ ने विज्ञान के अभिमान को ऐसे चूर किया कि सत्यानाश की तस्वीर तक नहीं देख सकीं सिंहासन की आंखें.
प्राकृतिक आपदा पर भारी सियासी त्रासदी
प्रकृतिक आपदा के 15 दिन बाद उत्तराखंड में खंड-खंड जिन्दगी के पन्द्रह दिन बाद की यह तस्वीरें बताती है कि हालात और बिगड रहे है. राहत सिर्फ नाम की है. आपदा प्रबंधन चौपट है. मौसम के आगे बेबस पूरा तंत्र है. जिन्दगी की आस जगाने वाला तंत्र, राजनीतिक दलो के घाटे मुनाफे में बंट गया है. सीएम से लेकर पीएम तक राहत कोष की रकम से जिन्दगी लौटाने के सपने देख रहे हैं.
राज्य के सीएम यह बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं है कि उनकी सत्ता को कोई दूसरा राजनेता हिलाने की कोशिश करें. या मोदी सरीखा कोई सीएम मदद देने की बात कह कर देश को यह एहसास कराये कि बहुगुणा कमजोर हैं. तो बीते 15 दिनों में मौत का आंकडा लगातार बढ रहा है उसकी जिम्मेदारी सीएम ने नहीं ली. दोष मौसम पर मढा.
बीते 15 दिनों में 200 से ज्यादा गांव में सबकुछ खत्म होने का अंदेशा लगातार गहराया है. लेकिन जिम्मेदारी सीएम ने नहीं ली. दोष मौसम पर मढा. बीते 15 दिनों में लगातार गांव के गांव धंस रहे है. लेकिन उन तक राहत ना पहुंचने की जिम्मेदारी सीएम ने नहीं ली. दोष मौसम पर मढा.
बीते 15 दिनों की जद्दोजहद के बाद भी 4000 से ज्यादा लोग अब भी फंसे है. लेकिन जिम्मेदारी सीएम ने नहीं ली. दोषी मौसम को ढहराया. और बिगडे मौसम के आगे अगर आपदा प्रबंधन नतमस्तक है और सियासत चमक रही है. तो होगा क्या?
- सीएम का इस्तीफा मांगा जायेगा.
- इस्तीफा मांगने वाले को असंवेदनशील बताया जायेगा.
- राजनीति करने वालों पर चोट की जायेगी.
- कांग्रेस और बीजेपी लड़ती दिखायी देंगी.
और देश के बाकी राजनेता जो 2014 के मिशन में लगे हैं उन्हें उत्तराखंड दल-दल लगेगा.
ध्यान दें तो हो यही रहा है और राहत से लेकर आपदा प्रबंधन तक सियासी स्क्रिप्ट के तहत दिल्ली से देहरादून तक लिखा जा रहा है. हर सियासी चेहरा अपने अनुकुल सियासी बयान देकर विरोधी पर राजनीतिक आपदा लाने जा रहा है.
दिल्ली की नजर में उत्तराखंड का आपदा प्रबंधन
- वित्त आयोग की रिपोर्ट में उत्तराखंड सबसे कम आपदा प्रबावित होने की स्थिति में है.
- सिर्फ गोवा और उत्तर-पूर्वी राज्यो से ज्यादा है उत्तराखंड का आपदा कोष.
- 2013-14 के लिये कुल 7035 करोड में से 136 करोड उत्तराखंड को.
- 5 साल में 33586 करोड में से उत्तराखंड को सिर्फ 650 करोड.
आपदा की इन तस्वीरो का सच यह भी है कि करीब दो लाख पशुधन मौत के मुंह में समा गया लेकिन आधुनिक सियासत की आधुनिक चिड़िया आपदा पर ही चहचहाने लगी. आधुनिक चिड़िया यानी ट्विटर पर राजनेता एक दूसरे पर चिड़िया उड़ा रहे हैं.
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