मित्रवर
अमृतलाल नागर हिंदी के अतिविशिष्ट लेखकों में से एक हैं। उनके उपन्यास हों, उनकी कहानियाँ हों या कि 'गदर के फूल', 'ये कोठेवालियाँ' जैसी विशिष्ट कृतियाँ हों जिनकी परंपरा तब तक के हिंदी संसार में नहीं ही थी, उनकी यह सभी कृतियाँ उन्हें एक ऐसा महानतम रचनाकार सिद्ध करती हैं जिसकी जड़ें अपनी जमीन, अपनी परंपरा में गहराई तक धँसी थीं। इसीलिए उन्होंने अपने समय का मुकम्मल यथार्थ रचने के साथ साथ ऐसी भी बहुत सारी कृतियाँ हमें दीं जिनमें भविष्य के ठेठ भारतीय स्वप्न विन्यस्त मिलते हैं। 17 अगस्त 1916 में आगरा में जन्मे नागर जी का यह जन्म-शताब्दी वर्ष है। इस अवसर पर हिंदी समय (http://www.hindisamay.com) के इस अंक में हमने नागरजी के विशाल रचना-संसार की एक प्रतिनिधि झलक रखने की कोशिश की है। हालाँकि नागर जी का रचना संसार इतना विशाल और बहुमुखी है कि ऐसे किसी भी चयन की सीमा स्वतः ही उजागर होती रहेगी।
सबसे पहले पढ़ें नागर जी के दो आत्मकथ्य आईने के सामने और मैं लेखक कैसे बना। इसके बाद प्रस्तुत हैं उनकी पाँच कहानियाँ -प्रायश्चित, दो आस्थाएँ, हाजी कुल्फीवाला, सिकंदर हार गया और धर्म संकट। इसके बाद उनकी डायरी के पृष्ठ हैं। संस्मरण के अंतर्गत पढ़ेंप्रसाद : जैसा मैंने पाया, शरत के साथ बिताया कुछ समय और तीस बरस का साथी : रामविलास शर्मा। यात्रावृत्त के अंतर्गत पढ़ें एकदा नैमिषारण्ये और गढ़ाकोला में पहली निराला जयंती। निबंध के अंतर्गत पढ़ें कलाकार की सामाजिक पृष्ठभूमि। व्यंग्य के अंतर्गत पढ़ें यदि मैं समालोचक होता। इसके बाद पढ़ें उनकी बेहद जरूरी किताब गदर के फूल से एक अंश - लखनऊ। इसी तरह उनकी बहुचर्चित किताब ये कोठेवालियाँ से पढ़ें
सुआ पढ़ावत गणिका तरि गई और सीता-सावित्री के देश का दूसरा पहलू। नागर जी रंगमंच पर भी बेहद सक्रिय रहे। यहाँ प्रस्तुत हैं उनके दो लेख नौटंकी और हिंदी का शौकिया रंगमंच। हमारी हिंदी के अंतर्गत पढ़ें हिंदी और मध्यम वर्ग का विकास और नवाबों की नगरी लखनऊ में हिंदी का बिरवा कैसे रोपा गया?। पत्र के अंतर्गत पढ़ें नागर जी द्वाराश्री उपेंद्रनाथ अश्क, श्री सुमित्रानंदन पंत और डॉ. रामविलास शर्मा को लिखे गए पत्र। और आखिर में पढ़ें नागरजी से सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन 'अज्ञेय' की लंबी बात-चीत सृजन-यात्रा के प्रेरक प्रसंग और पड़ाव। और अंत में प्रस्तुत हैं परिशिष्ट के रूप में शरद नागर के दो लेख नागरजी का रचना-संसार और अमृतलाल नागर : जीवन-वृत्त।
मित्रों हम हिंदी समय में लगातार कुछ ऐसा व्यापक बदलाव लाने की कोशिश में हैं जिससे कि यह आपकी अपेक्षाओं पर और भी खरा उतर सके। हम चाहते हैं कि इसमें आपकी भी सक्रिय भागीदारी हो। आपकी प्रतिक्रियाओं का स्वागत है। हमेशा की तरह आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा।
सादर, सप्रेम
अरुणेश नीरन
संपादक, हिंदी समय
आत्मकथ्य | इस पखवारे | सीख | ||
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आत्मकथ्य
अमृतलाल नागर
आईने के सामने
मैं लेखक कैसे बना
पाँच कहानियाँ
अमृतलाल नागर
प्रायश्चित
दो आस्थाएँ
हाजी कुल्फीवाला
सिकंदर हार गया
धर्म संकट
डायरी
अमृतलाल नागर
डायरी के पृष्ठ
संस्मरण
अमृतलाल नागर
प्रसाद : जैसा मैंने पाया
शरत के साथ बिताया कुछ समय
तीस बरस का साथी : रामविलास शर्मा
यात्रावृत्त
अमृतलाल नागर
एकदा नैमिषारण्ये
गढ़ाकोला में पहली निराला जयंती
निबंध
अमृतलाल नागर
कलाकार की सामाजिक पृष्ठभूमि
व्यंग्य
अमृतलाल नागर
यदि मैं समालोचक होता
गदर के फूल
अमृतलाल नागर
लखनऊ
ये कोठेवालियाँ
अमृतलाल नागर
सुआ पढ़ावत गणिका तरि गई
सीता-सावित्री के देश का दूसरा पहलू
रंगमंच
अमृतलाल नागर
नौटंकी
हिंदी का शौकिया रंगमंच
हमारी हिंदी
अमृतलाल नागर
हिंदी और मध्यम वर्ग का विकास
नवाबों की नगरी लखनऊ में हिंदी का बिरवा कैसे रोपा गया?
पत्र
अमृतलाल नागर
श्री उपेंद्रनाथ अश्क को
श्री सुमित्रानंदन पंत को
डॉ. रामविलास शर्मा को - 1
डॉ. रामविलास शर्मा को - 2
बात-चीत
अमृतलाल नागर
सृजन-यात्रा के प्रेरक प्रसंग और पड़ाव
(सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन 'अज्ञेय' को दिया गया साक्षात्कार)
परिशिष्ट
शरद नागर
नागरजी का रचना-संसार
अमृतलाल नागर : जीवन-वृत्त
अमृतलाल नागर
प्लॉट के बाद हमें अपनी कहानी के चरित्रों का चरित्रांकन करने के लिए भी बहुत सतर्क रहना चाहिए। जैसे जैसे चरित्रों की अपनी स्वाभाविक विशेषताओं का विकास होता चलेगा, वैसे वैसे ही घटनाओं और परिस्थितियों का विकास भी होगा। चरित्रों की गति सही मनोवैज्ञानिक आधार पर होगी तो कथा का घटनाक्रम भी निश्चय ही विश्वसनीय रूप से बन सकेगा। मान लीजिए एक संत है। उसे हम रोज देखते-सुनते हुए उसके प्रति श्रद्धालु हो जाते हैं। उसके बाद एक दिन हमें यह पता चलता है कि वह संतजी बड़े नामी डाकू और हत्यारे हैं तो हम सहसा इस बात पर विश्वास नहीं कर सकते। हो सकता है कि अपने हत्यारे और डाकूपन को छिपाकर वह संत वह संत का ढोंग रचकर बैठ गया हो अथवा यह भी संभव हो सकता है कि वह सच्चा हो और उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचकर उसे हत्यारा सिद्ध किया जा रहा हो। इन दोनों ही स्थितियों में हम संत चरित्र के विभिन्न पहलू दर्शाकर ही हम दर्शक के मन में वह निर्णयात्मक स्थिति उत्पन्न कर सकते हैं जो चरित्र के प्रति न्याय कर सके। पात्रों का चित्रण इसीलिए खूब मनोयोग से करना चाहिए।
अपने फोटो नाटक 'चढ़त न दूजो रंग' के नायक का मनोचित्रण करने के लिए मैंने एक प्रतीक नायिका कल्पना से गढ़ी, उसका नाम है आराधना। वह वस्तुतः सूर का ही दूसरा मन है। वह मन जो अपने इष्टदेव के साथ पूरी तरह से जुड़ गया है और जब जब सूर मानवीय दुर्बलताओं के कारण किसी बाहरी लालच की ओर झुकता है तब वह उसे सचेत कर जाता है। याद रहे कि हम फोटो नाटक में सब कुछ देखना चाहते हैं। फोटो नाटक एक ऐसा कैमरा है जो स्थूल और सूक्ष्म दोनों ही रूपों के चित्र सजीव रूप से अंकित कर सकता है। इसलिए चरित्र चित्रण करते हुए इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि उनकी मनोवृत्तियों की परस्पर टकराहटों अथवा मिलाप के क्षणों से हमारी फोटो-कथा की उचित प्रगति हो रही है या नहीं। यदि चरित्र चित्रण सही होता है तो कथा का विकास भी सही होगा।
कुछ व्यक्ति निष्काम भाव से अपनी प्रकृतिवश परोपकारी और सद्व्यवहारी होते हैं, कुछ स्वार्थवश परोपकारी। स्वार्थ न होने पर वह दूसरे व्यक्ति का भला नहीं करते। कुछ घृणा और भीतरी कुंठाओं से जकड़े होने के कारण बड़े ही घातक होते हैं। इस तरह फोटो नाटक के लेखक को अपनी कथावस्तु (थीम) और कथानक (प्लॉट) को ध्यान में रखकर ही पुरुष पात्रों अथवा महिला पात्रों का चयन करना होता है।
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ISSN 2394-6687
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