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Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Tuesday, September 1, 2015

हम खेत सींचेंगे अपनों के खून से। अपनी अपनी शहादत से सीचेंगे खेत हम तमाम। खेत फिर जागेंगे। ' आएंगे उजले दिन जरुर ..' कह दो बेखौफ,मुहब्बत है अगर दिल कहीं धड़कता है! नफरत की सुनामियों से क्या डरना! फिजां जब कयामत है तो मुहब्बत का मजा कुछ और है! जो नफरत की आग में खाक करने पर तुले हैं कायनात और इंसानियत भी! अब उन्हें करारा मुंहतोड़ जबाव देने का वक्त इससे बेहतर नहीं कोई! रेत की तरह फिसल रहा है वक्त, दोस्तों! सिंहद्वार पर दस्तक फिर मूसलाधार! बिजलियां गिर रही हैं धुआंधार! जिगर है तो जान है,जान है तो रीढ़ है! किसी कलबुर्गी का खून बेकार बहता रहे,सिंचाई खेतों के वास्ते इससे बेमजा बात और नहीं है।हम खेत सींचेंगे अपनों के खून से। अपनी अपनी शहादत से सीचेंगे खेत हम तमाम।खेत फिर जांगेगे। तन कर खड़ा होकर बता दो कि मुहब्बत क्या चीज है! पलाश विश्वास

हम खेत सींचेंगे अपनों के खून से।

अपनी अपनी शहादत से सीचेंगे खेत हम तमाम। खेत फिर जागेंगे।


' आएंगे उजले दिन जरुर ..'

कह दो बेखौफ,मुहब्बत है अगर दिल कहीं धड़कता है!

नफरत की सुनामियों से क्या डरना!

फिजां जब कयामत है तो मुहब्बत का मजा कुछ और है!

जो नफरत की आग में खाक करने पर तुले हैं कायनात और इंसानियत भी!


अब उन्हें करारा मुंहतोड़ जबाव देने का वक्त इससे बेहतर नहीं कोई!

रेत की तरह फिसल रहा है वक्त, दोस्तों!

सिंहद्वार पर दस्तक फिर मूसलाधार!


बिजलियां गिर रही हैं धुआंधार!

जिगर है तो जान है,जान है तो रीढ़ है!


किसी कलबुर्गी का खून बेकार बहता रहे,सिंचाई खेतों के वास्ते इससे बेमजा बात और नहीं है।हम खेत सींचेंगे अपनों के खून से।

अपनी अपनी शहादत से सीचेंगे खेत हम तमाम।खेत फिर जांगेगे।


तन कर खड़ा होकर बता दो कि मुहब्बत क्या चीज है!

पलाश विश्वास

' आएंगे उजले दिन जरुर ..'


कवि वीरेन डंगवाल की कविता पर बातचीत और उनकी कविताओं की आवृत्ति के आनंद के लिए. 4 सितम्बर की शाम को आई टी ओ के नजदीक गांधी शांति प्रतिष्ठान जरुर पहुंचे.


अनुपम सिंह

जसम, दिल्ली के लिए

97 18427689

लिखना शुरु किया कि एक बुरी खबर आ गयी। डा.मांधाता सिंह ने फोन किया।देर से कोशिश कर रहे थे लेकिन तब मेरी अभिषेक से गुफ्तगू चल रही थी।डाक्साब ने बताया कि शैलेंद्र की मां का निधन हो गया।उनका फोन काटकर शैलेंद्र को फोन लगाया तो वह तब भी रोये जा रहा था।गला रुंध था।मां का इलाहाबाद में आज सुबह ही दस बजे निधन हो गया।मां को श्रद्धांजलि।


कह दो बेखौफ,मुहब्बत है अगर दिल कहीं धड़कता है

नफरत की सुनामियों से क्या डरना!

फिजां जब कयामत है तो मुहब्बत का मजा कुछ और है!


जो नफरत की आग में खाक करने पर तुले हैं कायनात और इंसानियत भी!


अब उन्हें करारा मुंहतोड़ जबाव देने का वक्त इससे बेहतर नहीं कोई

रेत की तरह फिसल रहा है वक्त, दोस्तों!


सिंहद्वार पर दस्तक फिर मूसलाधार!

बिजलियां गिर रही हैं धुआंधार!

जिगर है तो जान है,जान है तो रीढ़ है!

तन कर खड़ा होकर बता दो कि मुहब्बत क्या चीज है!


दरअसल औकात हमारी बहुत छोटी है।हूं वहीं किसान का बेटा दरअसल।बाकी पहचान बेमतलब बदमजगी है।


बचपन से पुरखों की सिखायी तकनीक पल्लू में बंधी सी है कि जमीन को पकाना सबसे जरुरी है और फिर बारिशें भी पैदा करना है।फिजां अगर खराब है तो फिजां को भी बदल देनी है।


कायनात की खुशबूओं को जस का तस बनाये रखने से बड़ी रहमत,नियामत और बरकत कोई और नहीं है और इसलिए मुहब्बत सबसे ज्यादा जरुरी है।


फसल के लिए मुहब्बत की कसरत और कवायद इबादत से भी जरुरी है।तभी सोना उगले खेत हमारे।


बचपन से पुरखों की सिखायी तकनीक पल्लू में बंधी सी है कि खेती अगर करनी है ठीकठाक तो जमीन की तैयारी हर वक्त आदत होनी चाहिए।जमीन की खिदमत से जी भी चुरानी नहीं चाहिए।


हर गीत,हर बोल खेती के वास्ते होने चाहिए।

हर मुहावरे में जमीन खुशबू बदस्तूर होनी चाहिए।


दरअसल औकात हमारी बहुत छोटी है।हूं वहीं किसान का बेटा दरअसल।बाकी पहचान बेमतलब बदमजगी है।


बड़ी मार खायी है बचपन से।बात बेबात पिटा हूं।मोम का हूं नहीं।धूप बरसात हिमपात में पका हूं।


बाल दाढ़ी में मेंहदी नहीं लगाता कि जमीन की महक बनाये रखना जिंदगी जीने के लिए दुआ और दवा से भी ज्यादा जरुरी है।


बड़ी मार खायी है बचपन से।बात बेबात पिटा हूं।

मोम का हूं नहीं।धूप बरसात हिमपात में पका हूं।


हमेशा सीख यही मिली है कि चाहे खुदा बन जाओ कभी तो अपनी जमीन से कटना नहीं हरगिज।

अपनी जड़ों से कटना नहीं हरगिज।

वरना समझो कयामत है।


खुशखबरी यह भी है कि फासीवाद की ताजा मिसाइलों के जवाब भी हमारे पास है।27 करोड़ का हिसाब जो बता रहे हैं और इसतरह जो वंचितों की दुनिया उजाड़ने की जुगत लगा रहे हैं,उनको बता दें कि हमें मालूम है कि वे जो कर रहे हैं,वह आरक्षण की लड़ाई नहीं है हरगिज,यह सरासर आगजनी है।


मुल्क को आग में झोंकने की कारस्तानी है,जिसके मुखातिब हो चुके हैं हमारे पुरखे।अब हम मुखातिब हैं।


यूं समझो,जिनने लाहौर न देखाया हो कि लाहौर फिर जल रहा है।

यूं समजो कि सियालकोट या पुरानी दिल्ली से लाशों से लैस ट्रेनेें अब हर दिशा में चल पड़ी है बुलट गति से।विकास यही है।


यूं समझो कि नोआखाली अब भी जल रहा है और कोलकाता में डाइरेक्ट ऐक्शन जारी है और कोई बापू अनशन पर है।


हमारे पुरखे जो तेभागा के सिपाही थे।

सियासती मजहब से या मजहबी सियासत से जमींदारों की हवेलियों से कत्लेआम का जो स्थाई बंदोबस्त अंग्रेजी हुकूमत से हासिल कर लियाथा उनने,जो दरअसल मुगलों और पठानों के जमाने से चली आ रही सत्ता के प्रति उनकी बेमिसाल वफादारी की विरासत थी और जिसके दम पर वे सदियों से हमें और हमारे लोगों को मजहब,सियासत और हुकूमत के त्रिशुल से बिंध रहे थे,हमारा आखेट कर रहे थे,उसका मुकम्मल जवाब था तेभागा।


यूं तो आदिवासी विद्रोहों का सिलसिला मोहंजोदोड़ो और हड़पा के पतन के बाद कभी थमा नहीं है और न खेती का सिलसिला कभी बंद हुआ है और न किसानों की गुलामी कभी खत्म हुई है,न सियासत,मजहब और हुकूमत के त्रिशुल से आखेट कभी थमा है।


ईस्ट इंडिया कंपनी के राज के खिलाफ लड़ते मरते रहे हैं हमारे लोग और हुकूमत के कारिंदे ने दमन में हुकूमत का साथ दिया हमेशा।


मंगल पांडेय ने बैरकपुर छावनी में जो गोली चलायी,उसकी गूंज दिल्ली में बहादुर शाह जफर के किले तक में हलचल मचा गयी और मेरठ से लेकर देश का चप्पा चप्पा जाग उठा।


नवजागरण के मसीहा सारे के सारे जमींदारियों के रहनुमा थे और आजादी के बोल उनके लफ्ज बनकर लबों पर खिले नहीं कभी।


पलाशी की लड़ाई हारने वाले लोग भी वे ही थे तो पलाशी की लड़ाई जीतने वाले लोग भी वे ही थे।दिल्ली की हुकूमत पलाशी की हार है।


चुआड़ विद्रोह को चोर चूहाड़ों का विद्रोह कहकर इतिहास से बेदखल करने वाले लोग भी वे ही थे जो हजारों साल पहले मोहंजोदोड़ो और हड़प्पा को मटियामेट कर चुके थे।


किसानों और बहुजनों ने जब फिर बगावत की तो उनने सन्यासी विद्रोह का आनंदमठ रच दिया जो आखिर आहा कि आनंदो वाहा कि आनंदो आनंदोबाजार में आज तब्दील है।वही वंदेमातरम है।


किसानों ने बगावत की तो कह दिया कि भीलों का विद्रोह है या मुंडा विद्रोह है या संथाल विद्रोह है।


जैसे आज भी जल जंगल जमीन का मसला है या बेदखली के खिलाफ बगावत है तो कह देते है कि राष्ट्रद्रोह है,माओवाद है या फिर आतंकवाद है।


वे जो कत्लेआम करें खुलेआम,वे जो बलात्कार करें दिनदहाड़े,डाका डालें सरेबाजार,आगजनी करें देश के चप्पे चप्पे में,मुल्क के बंटवारे का हर वक्त जुगत लगाते रहें,वे सारे लोग जनता के नुमाइंदे हैं और उनका सारा धतकरम धरम करम राजकाज है।


तेभागा तब भी चल रहा था जब नोआखाली और कोलकाता में आगजनी और कत्लेाम का समां कहर रहा था।


जब ट्रेनों में बरकर लाशें सीमाओं के आर पार जा रही थी और नई दिल्ला मे सत्ता हस्तांतरण के साथ साथ जनसंख्या स्थानांतरण के कारोबारी समझौते पर दस्तखत कर रहे थे हमारे भाग्यविधाता।


तेभागा तब भी चल रहा था जब किसी नाथूराम गोडसे ने किसी बापू के सीने को गोलियों से छलनी कर दिया था और हे राम कहते हुए वे गिर पड़े थे।


अब फर्क बस इतनाहै कि बापू गोलियां खाने के बाद राम का नाम ले रहे थे और वे राम का नाम ले रहे थे कि वे अपने रब से दुआ आखिरी मांग रहे थे कि कातिलों से इस मुल्क को ,इस कायनात को सही सलामत रखें रब,इसी लिए कुरबानी वह थी।


गोडसे को हमने रब बना लिया फिर भी मजा देखिये कि शर्म लेकिन आती नहीं है कि गांधी का नाम बेशर्म लबों पर है।


फिरकुरबानियों का सिलसिला शुरु हुआ है।

दाभोलकर और कलबुर्गी के नाम आखिरी नहीं हैं उनके हिटलिस्ट में यकीनन।हत्यारे आखेट में निकल पड़े हैं।जो मरा नहीं,मारे जायेंगे।

कत्लेआम के लिए जिनके घोड़े और साँढ़ देश का चप्पा चप्पा छान रहे हैं।चप्पा चप्पा आग के हवाले कर रहे थे।नदियां फिर खून हैं।


जो लड़ रहे थे तेभागा की लड़ाई जो जान रहे थे खेत देहात के हकहकूक अनजाने ही एक झटके से एक दूसरे के किलाफ लामबंद कर दिये गये वे सारे किसान।


जो जांत पांत मजहब से भी बंटे न थे,मजहबी सियासत और देश के बंटवारे ने जिन्हें अकस्मात दो फाड़ कर दिया।


फिर पढ़ें टोबा टेक सिंह का किस्सा,पिर समझें वह राज कि कैसे हिंदु्तान का दिल चाक चाक हुआ।

दो फाड़ पहले हुआ और फिर चाक चाक हुआ।


सबसे खतरे की बात यह है कि हत्यारे सारे सामंतों के प्रेत फिर जाग उठे हैं।


सबसे खतरे की बात यह है कि बलात्कारी सारे सामंतो के प्रेत फिर जाग उठे हैं।


सबसे खतरे की बात यह है कि दंगाई सारे सामंतो के प्रेत फिर जाग उठे हैं।


गौर करें कि तेभागा तब भी जारी था और उसे तब भी नक्सलवादी कहा जा रहा था।


गौर करें कि तेभागा तब भी जारी था और सेना के जरिये जमींदारों क तबका फिर वहीं दमन बरपा रहा था जब सरहद के उस पार बांग्लादेश जनम रहा था।


तेबागा का किस्सा खुलने लगा है तो बात भी दूर तलक जायेगी।


वंचितों के हकहकूक के मामलात.जल जमीन जंगलात के मामलात और अपने तमाम मसलों को जो लोग कोटा और आरक्षण से जोड़कर सियासत मजहब और हुकूमत के त्रिशुल की धार बने हुए हैं अब भी,उन्हें खबर नहीं है कि उन्हीं लोगों के हाथों में नयका त्रिशुल पारमाणविक मिसाइली यह ग्लोबीकरण उदारीकरण और निजीकरण हैं।


उन्हें मालूम नहीं कि बहुजनों की दावेदारी उनकी है जो अल्पजन होकर भी सियासत मजहब और हुकूमत के वारिशान हैं।


उन्हें मालूम नहीं कि नये सिरे से आरक्षण आंदोलन यह आरक्षण आंदोलन नहीं है,दरअसल,आरक्षण खत्म करो आंदोलन है।


खुशखबरी है कि कोटा आरक्षण के सारे फारमूला सार कूट अब डीकोड हैं और हम इस कारोबार का खुलासा भी बहुत जल्द करने वाले हैं।फिलहाल मेइनस्ट्रीम के अगले अंकों का इंतजार करें कि वहां आनंद तेलतुंबड़े का प्रवचन होगा सिलसिलेवार और हमारे ब्लागों को देखते रहें लगातार,देकते रहे हस्तक्षेप।


क्योंकि मीडिया में हानीमून और सुगंधित कंडोम के सिवाय़ कुछ होता नहीं है।मीडिया वह तस्वीर आगजनी की लगाता भी नहीं है।


न मीडिया में कत्लेआम और गैंगरेप,आगजनी,बेदखली के खिलाफ कोई एफआईआर कहीं दर्ज होता है।


इसीलिए हस्तक्षेप जरुरी है।


हमारे पास सारी भाषाों के कांटेट आ रहा है।

जिसकी जो भाषा है,उसमें अपनी चीखें मुकम्मल दर्ज कीजिये,हम यकीनन उन चीखों को अंजाम तक पहुंचायेंगे।


आज ही बात हुई है बंगलूर में कि कन्नड़ में जो चीखें हैं,वे अंग्रेजी और हिंदी खुलासे के साथ दर्ज कर दी जाेंगी,फाइनल हो गया है।



किसी कलबुर्गी का खून बेकार बहता रहे,सिंचाई खेतों के वास्ते इससे बेमजा बात और नहीं है।हम खेत सींचेंगे अपनों के खून से।

अपनी अपनी शहादत से सीचेंगे खेत हम तमाम।खेत फिर जांगेगे।


खास बात यह है कि अभिषेक ने कहा है कि बांग्लादेश से जो हकीकत निकल रहा है किसानों और वंचितों,दलितों और बहुजनों की लड़ाई का बांग्ला में,उसका अनुवाद संभव है।


चाहे तो मेरा भाई दिलीप मंडल यह काम बखूब कर सकता है।


हम अपने भाई से इस सिलसिले में बात नहीं करेंगे।

बड़ा भाई हूं।मजाक नहीं है।


भाई के दिल में मुहब्बत है तो भाई ही न समझेगा कि भाई को आखिर क्या चाहिए!


सिर्फ इतना समझ लें कि नफरत की आग वे जितनी तेज करते जायेंगे और जितना वे खून बहाते रहेंगे,जमीन हमारी बनती रहेगी और जमीन पकती भी रहेगी यकीनन।


किसी कलबुर्गी का खून बेकार बहता रहे,सिंचाई खेतों के वास्ते इससे बेमजा बात और नहीं है।हम खेत सींचेंगे अपनों के खून से।

अपनी अपनी शहादत से सीचेंगे खेत हम तमाम।खेत फिर जांगेगे।


हम खेत सींचेंगे अपनों के खून से।

अपनी अपनी शहादत से सीचेंगे खेत हम तमाम। खेत फिर जागेंगे।


' आएंगे उजले दिन जरुर ..'

कह दो बेखौफ,मुहब्बत है अगर दिल कहीं धड़कता है!

नफरत की सुनामियों से क्या डरना!

फिजां जब कयामत है तो मुहब्बत का मजा कुछ और है!

जो नफरत की आग में खाक करने पर तुले हैं कायनात और इंसानियत भी!


अब उन्हें करारा मुंहतोड़ जबाव देने का वक्त इससे बेहतर नहीं कोई!

रेत की तरह फिसल रहा है वक्त, दोस्तों!

सिंहद्वार पर दस्तक फिर मूसलाधार!


बिजलियां गिर रही हैं धुआंधार!

जिगर है तो जान है,जान है तो रीढ़ है!


तन कर खड़ा होकर बता दो कि मुहब्बत क्या चीज है!


किसी कलबुर्गी का खून बेकार बहता रहे,सिंचाई खेतों के वास्ते इससे बेमजा बात और नहीं है।हम खेत सींचेंगे अपनों के खून से।

अपनी अपनी शहादत से सीचेंगे खेत हम तमाम।खेत फिर जांगेगे।



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