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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Tuesday, September 1, 2015

दंडकारण्य में शरणार्थी आंंदोलन,विद्यालयों में बंगला शिक्षको की व्यवस्था की मांग

राजेश हालदार @ परलकोट- "जाति मान्यता दिते होबे,बंगला मोदेर गोर्भेर भाषा " के हुंकारों से एक बार फिर आज परलकोट वासियों ने कापसी दुर्गा मंदिर प्रांगण में एकत्र होकर सरकार  के कानो तक अपनी बात और मांग पहुँचाने का सफल प्रयास किया जिसमे परलकोट क्षेत्र से लगभग 12000 से भी ज्यादा बंगबंधुओ ने  निखिल भारत बंगाली उदवास्तु समन्वय समिति के मार्गदर्शन में एकत्र होकर नामोशुद्र जाती हेतु SC मान्यता और विद्यालयों में बंगला शिक्षको की व्यवस्था की मांग पर राजनैतिक दलभेद को भूलकर एकस्वर में अपनी मांगो के लिए आवाज़ उठाया | सभा में उमड़े जनसैलाब को क्षेत्र के कई जनप्रतिनिधियों सहित आम लोगों ने भी संबोधित कर सरकार के सौतेले व्यवहार पर अपने मन की वेदनाए व्यक्त करते हुए इस बार आर-पार की लड़ाई लड़ने की बात कही | सभा में बच्चे,युवा,महिला सहित विभाजन के इतिहास के गवाह रहे 90 वर्ष से ऊपर कई वृद्धजन तेज़ गर्मी में भी सरकार से अपना हक मांगने पहुंचे जिनके बूढी आँखों में आज भी अपने जाती मान्यता और भाषा के लिए एक आस जगी हुयी है |

ज्ञात हो कि भारत-बांग्लादेश विभाजन के बाद बंगबंधुओ को अपने ही देश में अपना पैत्रिक संपत्ति और रिश्ते-नातों को छोड़ खाली हाथ शरणार्थी बनकर आना पड़ा एवं तत्कालिक सरकार द्वारा इन बंगबंधुओ को भारत के विभिन्न राज्यों में बसाया गया जिसमे से एक स्थान छत्तीसगढ़ राज्य के कांकेर जिला का बेहद जंगलो से घिरा हुआ दण्डकारण्य था | जब इन बंगबंधु शरणार्थियो को दण्डकारण्य के जंगलो के बीच छोटे-छोटे कैम्पों में बसाया गया तब सरकार द्वारा इन्हें नाम मात्र का राशन, औजार ,गाय और खेती हेतु जंगलो से भरा हुआ ज़मीन दिया गया | शुरुवाती दिन बेहद मुश्किलों भरा था न सड़क थी, न बिजली और न ही पानी की उचित व्यवस्था यह तक की रोजी-रोटी हेतु न तो कोई साधन था और न ही रोजगार की कोई व्यवस्था , था तो बस आँखों में अपनों से बिछड़ने के आंसू और दिलो में एक बेहतर भविष्य गड़ने की कल्पना वावजूद इसके बंगबंधुओ ने सरकार के उपेक्षा और अपने ही देश में शरणार्थी बनकर रहने के टीस को भुलाकर अपने अथक प्रयास से इस परलकोट क्षेत्र के रूपरेखा को ही बदलकर रख  दिया | बंगबंधुओ ने इन कई सालो में अपना खून-पसीना बहाकर क्षेत्र के जंगली बंजर भूमि को न सिर्फ उपजाऊ बनाया बल्कि तकनीकी विकास की राह पर भी इतिहास गढ़ दिया आज परलकोट क्षेत्र के उन्नत तस्वीर के पीछे बंगबंधुओ के अथक सहयोग को कोई नहीं नकार सकता परन्तु इन बंगबंधुओ को आज भी सरकार के उपेक्षा भरे दृष्टिकोण का शिकार होना पड़ रहा है बरहाल अब बंगबंधुओ को अपने हक के लिए एकजुट होकर हुँकार भरना पड़ रहा है |

अंतागढ़ विधानसभा में विधायक तय करने की दिशा में बंगबंधुओ की भूमिका बेहद अहम है और इसका फायदा राजनैतिक दलों द्वारा आश्वासनों के जरिए अपनी जीत पक्की कर उठाया जाता रहा है | चुनाव आते ही नमोशुद्र जाती मान्यता और बंगला भाषा के पक्ष में वादों और आश्वासनों की एक होड़ सी लग जाती है इस होड़ में अबकी बार विधानसभा चुनाव के दौरान वर्तमान छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह ने भी कोई कसर नही छोड़ी  परन्तु इन बेबस और किस्मत के मारे बंगबंधुओ के इन मांगो को चुनाव में जीत के बाद नेताओ द्वारा वादों की पोटली बाँध कही दूर समुंदर में डुबो दिया जाता है | अपने उपेक्षाओ से त्रस्त होकर अब बंगबंधूओ ने एकजुट होकर अपने मांगो के लिए सड़क की लड़ाई लड़ने का मन बना लिया है |

पखांजूर पुराने बस स्टैंड सभा से प्रारंभ हुआ यह जनशक्ति अब क्षेत्र के विभिन्न गाँवों-गलियारों तक पहुँच रही है | कापसी में आयोजित इस सभा को कोयलीबेडा जनपद सदस्य लक्ष्मण मंडावी ने संबोधित करते हुए बंगबंधुओ के इन मांगो को जायज़ बताते हुए सरकार से इन मांगो पर तत्काल विचार करने की बात कही वही इस आन्दोलन के चेतना स्रोत पवित्र घोष और पतिराम मंडल ने भी अब बंगबंधुओ से आर-पार की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार रहने की बात कही | सभा को नगरपंचायत अध्यक्ष असीम राय, जिला पंचायत सदस्य सुप्रकाश मल्लिक,भाजपा युवामोर्चा अध्यक्ष विकास पाल, मनोज मंडल, बुद्धदेव सरकार सहित कई जनप्रिय प्रतिनिधियों ने संबोधित करते हुए राजनैतिक मत-भेदों से ऊपर उठकर अपने हक की लड़ाई लड़के की बात कही | सभा को अन्य प्रदेशो से आये कई वक्ताओ ने भी संबोधित किया

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- राजेश हालदार (पत्रिका परलकोट संबाददाता)
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