पश्चिम उत्तर प्रदेश में फूट गया नोटबंदी का बम!
किसानों के गुस्से ने केसरिया मजहबी सियासत को शिकस्त दे दी,असर पूरे यूपी पर होना है।दलित मुसलमान एकता से बदलने लगी है फिजां तो मजहबी सियासत पस्त है।
मुसलमानों के बेहिचक बसपा के साथ हो जाने से साइकिल के दोनों पहिये भी पंक्चर!
पलाश विश्वास
खास खबर यह है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में नोटबंदी का बम फूट गया है। अजित संह की मौकापरस्ती की वजह से पहली बार पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसानों पर चौधरी चरण सिंह की विरासत का कोई असर नहीं हुआ है।यूपी में आज पहले चरण का मतदान खत्म हो गया है।पश्चिम उत्तर प्रदेश में आज 15 जिलों की 73 सीटों पर मतदान हुआ है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के पहले चरण में 15 जिलों की कुल 73 सीटों पर आज छिटपुट घटनाओं के बीच औसतन करीब 64 प्रतिशत वोट पड़े।
खास बात यह है कि इसबार महिलाओं ने बढ़ चढ़कर जोश दिखाया जिसकी वजह से करीब 3 करोड़ लोगों ने वोट डाला है। पिछली बार 61 प्रतिशत मतदान हुआ था। 839 उम्मीदवारों की किस्मत EVM में आज बंद हो गई है।
यूपी से आ रही खबरों का लब्बोलुआब यही हैकि छप्पन इंच के सीने के लिए ऐन मौके पर राम की सौगंध खाकर राममंदिर निर्माण के संकल्प के बावजूद अबकी दफा फिर यूपी की जनता ने वानरसेना बनने से इंकार कर दिया है और किसानों के नरसंहार के ऩसरसंहार के चाकचौबंद इंतजाम की कीमत संघ परिवार को चुकाना ही होगा।
पश्चिम उत्तर प्रदेस में दंगाई सियासत के जरिये यूपी जीतने और नोटबंदी से यूपी जीतने का कारपोरेट हिंदुत्व एजंडा मतदान के पहले ही चरण में बुरीतरह फेल है और बढ़त दलित मुसल्मान एकता को है,जिसकी जरुरत पर बहुजन बुद्धिजीवी एचएल दुसाध ने हस्तक्षेप पर लगे अपने आलेख में खास जोर दिया है।
बिना किसी सोरगुल के मायावती ने नये सिरे से सोशल इंजीनियरिंग करके अखिलेश के अल्पसंख्यक उत्पीड़न,कांग्रेस क मौकापरस्ती और संघ परिवार की दंगाई सियासत को करारा जबाव दिया है।बामसेफ ने भी अलग पार्टी बनाकर लोकसभा चुनाव लड़ने के बाद इसबार बाजपा को हराने वाले उम्मीदवार को जिताने की मुहिम चलाकर भाजपा के खिलाफ दलित मुसलमान गढबंधन फिर खड़ा करने में मददगार है।
अजित सिंह सत्ता के लिए सौदेबाजी के माहिर खिलाड़ी है तो अखिलेश के साथ कड़क मोलभाव में वे गच्चा खा गये।वैसे भी वे पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसानों के नेता अजित सिंह अब अब रहे नहीं है और न किसानों के हितों से उन्हें कुछ लेना देना नहीं है।
इसके उलट,अजित सिंह ने चौधरी साहब की विरासत का जो गुड़ गोबर किया,उसकी वजह से उत्तर भारत के किसानों और खास तौर पर जाटों को चौधरी साहेब के अवसान के बाद भारी नुकसान उठाना पड़ा है।
मुजफ्फर नगर में संघ परिवार को खुल्ला खेलने देकर अजित सिंह ने जो भारी गलती की है,उसके लिए उन्हें पश्चिम उत्तर प्रदेश के हिंदू मुसलमान किसान कभी माफ नहीं करेंगे।भाजपा को हराने के लिए सपा के आत्मघाती मूसलपर्व की वजह से और कांग्रेस के दंगाई इतिहास की वजह से मुसलमानों ने बसपा को वोट देने का फैसला करके यूपी में केसरिया अश्वमेधी अभियान के सारे सिपाहसालारों को चित्त कर दिया है।बाकी यूपी में भी इसका असर होना है।
दूसरी तरफ, उत्तराखंड में भी भूमि माफिया से नत्थी भाजपा ने अपने तमाम पुराने नेताओं को किनारे लगाकर जैसे एक के बाद एक भ्रष्ट नेताओं को टिकट बांटे हैं,वहां भी पश्चिम उत्तर प्रदेश की तरह पांसा बदल जाये तो कोई अचरज की बात नहीं होगी।वैसे पश्चिम यूपी के वोट औरभाजपा विरोधी हवा का उत्तराखंड की तराई में भी असर होना है।
मुश्किल यह है कि उत्तराखंड जीतने में कांग्रेस की कोई दलचस्पी नहीं है।छोटा राज्य होने की वजह से कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के लिए उत्तराखंड में खास दिलचस्पी नहीं है तो दसों दिशाओं में गहराते संकट के बादल की वजह से संघ परिवार कमसकम उत्तराखंड जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है।कांग्रेस के नेता खासकर हरदा के खासमखास वफादारलोग उन्हें हरामने में कोई कसर छोड़ नहीं रहे हैं।
गौरतलब है कि किसान सभा और वाम किसान आंदोलनों के दायरे से बाहर उत्तर भारत और बाकी देश में चौधरी चरण सिंह के किसान आंदोलन का असर अब इतिहास है।फिरभी उत्तर भारत के किसानों खासकर पंजाबियों,सिखों और जाट गुज्जरों और मुसलामनों में सामाजिक तानाबाना सत्तावर्ग की दंगाई मजहबी सियासत के बावजूद अब भी अटूट है।
खासकर आगरा से लेकर बरेली तक और मेरठ गाजियाबाद से लेकर हरियाणा और उत्तराखंड के हरिद्वार जिले तक किसानों में नाजुक बिरादाराना रिश्तेदारी रही है जाति धर्म नस्ल भाषा के आर पार,जिसपर मेऱठ,अलीगढ़,मुरादाबाद ,आगरा के दंगों ने और बाबरी विध्वंस के बाद पूरे उत्तर प्रदेश में दंगाई फिजां बने जाने का भी कोई असर नहीं हुआ था।
पिछले लोकसभा चुनाव से पहले मुजफ्फरनगरके देहात में दंगा भड़काकर किसानों और खासकर जाटों का जो केसरियाकरण किया संघ परिवार ने,उसके आधार पर यूपी में हिंदुत्व के नाम राममंदिर आंदोलन के बाद धार्मिक ध्रूवीकरण हो गया था और पूर्वी उत्तर प्रदेश में अपना दल के साथ गंठबंधन के जरिये भाजपा को लोकसभा चुनाव में बसपा, कांग्रेस और सपा के सफाया करने में कामयाबी मिली है।अब सिरे से पांसा पलट गया है। संजोग से नोटबंदी का असर खेती पर जिस भयानक तरीके से हुआ और जाटों को आरक्षण के नाम जिस तरह धोखा केंद्र सरकार ने गुजरात के पटेलों और राजस्थान के गुज्जरों की तरह दिया,उससे हालात सिरे से बदल गये हैं।
मेरे पिताजी चौधरी साहेब के भारतीय किसान समाज के राष्ट्रीय कार्यकारिणी में थे,तब मैं अपने गांव के बगल में गांव हरिदासपुर में प्राइमरी स्कूल में था।तराई में चौधरी नेपाल सिंह 1958 के ढिमरी ब्लाक आंदोलन के दौरान पिताजी के कामरेड हुआ करते थे,जिनसे हमारे पारिवारिक संबंध बने हुए रहे हैं।
तराई के जाटों को हम शुरु से अपने परिजन पंजाबी,सिखों,पहाड़ियों,देशी और बुक्सा-थारु गावों के लोगों की तरह मानते रहे हैं।मुसलमान आबादी हमारे इलाके में उतनी नहीं रही है।फिर हमारे बचपन के दौरान साठ के दशक में विभाजन के जख्म सभी शरणार्थियों में इतने गहरे थे कि मुसलमान गांवों से रिश्ते बनने से पहले हम नैनीताल पढ़ने को निकल गये।
1984 से 1990 तक मैं बाहैसियत पेशेवर पत्रकार रहा हूं और बिजनौर में सविताबाबू का मायका है।तब से लेकर अब तक पश्चिम उत्तर प्रदेश से हमारा नाता टूटा नहीं है।टिकैत के किसान आंदोलन के बाद साबित हो गया है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसान चाहें तो सारा राजनीतिक समीकरण की ऐसी तैसी कर दें। राजस्थान और हरियाणा के जाट नेतृत्व और उनकी ताकत भी हम जान रहे हैं।जाटों ने भाजपाको हराने की कसम खायी है तो संघ परिवार यूं समझो कि यूपी की सियासत से बाहर है।
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