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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Tuesday, January 31, 2012

विधायक की तो दुल्हन आई, मगर….. लेखक : शमशेर सिंह बिष्ट :: अंक: 09 || 15 दिसंबर से 31 दिसंबर 2011:: वर्ष :: 35 :January 1, 2012 पर प्रकाशित

विधायक की तो दुल्हन आई, मगर…..

http://www.nainitalsamachar.in/ajay-tamta-got-married-deepa-died/

विधायक की तो दुल्हन आई, मगर…..

ajay-tamta-and-wife-with-khanduriआजकल शादियों का मौसम चरम पर है। कभी नवाबों और राजाओं के विवाह आम जनता के लिये कौतुहल व चर्चा का विषय होते थे। अब नेताओं, नौकरशाहों, उद्योगपतियों, बड़े व्यापारियों व ठेकेदारों के परिवार के सदस्यों के विवाह भव्यता और विलासिता के प्रतीक बन गये हैं। सम्पन्न परिवारों के लिये विवाह के उत्सव खुशियों के कारण तो हैं ही, शान-शौकत प्रदर्शित करने के भी अवसर होते हैं। मगर आम आदमी के लिये ये शादियाँ मुसीबत का सबब बन जाती हैं। शहरों में बारात के साथ कारों की लम्बी कतारें चलती हैं, महिलायें व पुरुष बैण्ड-बाजे के साथ जमकर थिरकते हैं। बारातियों को इस बात की कोई परवाह नहीं होती कि बारात के कारण जाम लग गया है। हो सकता है कि कोई व्यक्ति मुसीबत में फँसा हो! प्रशासन व पुलिस भी इस आनन्द में हस्तक्षेप करने की कोशिश नहीं करते। ऊपर से बारात के पीछे यदि सत्ता या पैसे की ताकत हो तो क्या कहने ? बड़े लोगों के परमानन्द के लिये छोटे लोगों की बलि भी चढ़ जाये तो क्या फर्क पड़ता है ?

विवाह के बढ़ते खर्च और रात की शादियों में शराबियों के आतंक के कारण किसी के दिमाग में दिन की शादियों का विचार आया। बीस-पच्चीस साल पहले अल्मोड़ा के चितई या नैनीताल के घोड़ाखाल मंदिर में सादगी के साथ ऐसे विवाह होने लगे। लेकिन अब यहाँ भी शादियाँ उतनी ही भव्य और फिजूलखर्च होने लगी हैं। समाज के रसूखदार लोग भी यहाँ शादियाँ करते हैं, ताकि समाज को यह संदेश दे सकें कि उन्होंने मंदिर में विवाह किया। मगर भीड़भाड़, भव्यता और आडम्बर में वे कोई कसर नहीं छोड़ते।

23 नवम्बर को चितई मंदिर के छोटे से अहाते में अधिकृत रूप से 12 शादियाँ थीं। इन दूल्हों में एक उत्तराखण्ड के पूर्व मंत्री व सोमेश्वर के वर्तमान विधायक अजय टम्टा भी थे। प्रदेश के एक पूर्व मुख्यमंत्री के अलावा दर्जनों नौकरशाह व नेता अपने काफिलों के साथ विवाह में पहुँचे। चितई मंदिर से गुजरने वाली सड़क अल्मोड़ा जनपद को पिथौरागढ़ व चम्पावत जनपदों को जोड़ने वाला राजमार्ग है। अल्मोड़ा शहर से इन इलाकों को जाने या वहाँ से अल्मोड़ा पहुँचने के लिये कोई वैकल्पिक मार्ग नहीं है। तो चितई मंदिर के आगे उस रोज सुबह से ही जाम लगने लगा था। ट्रैफिक पुलिस ने शुरू में तो ट्रैफिक को नियंत्रित किया, मगर विधायक जी की बारात आने के बाद स्थिति काबू से बाहर हो गई। इतने-इतने तो वी.वी.आई.पी. थे ! जिसने जहाँ जगह मिली, आड़ी-तिरछी अपनी गाड़ी ठूँस दी। पुलिस बेचारी भी क्या करती ? वह भी हाथ झाड़ कर किनारे खड़ी हो गई। एक-दो अदना सिपाहियों की कैसे हिम्मत होती कि वह नेताओं से वाहन हटाने को कहें। उन्हें यह भी याद रहा होगा कि कुछ समय पूर्व अल्मोड़ा नगर में कुछ महिला पुलिसकर्मियों को तत्कालीन पुलिस अधीक्षक ने इसलिये निलम्बित कर दिया था, क्योंकि उन्होंने सत्तारूढ़ राजनैतिक दल के नेताओं के कुलदीपकों के वाहन का चालान करने की गुस्ताखी कर दी थी। लिहाजा पुलिस हाथ पर हाथ धर कर बैठी रही और चितई के पास नीचे-ऊपर दो-तीन किमी. लम्बा जाम लग गया।

उधर जाम में फँसी एक '108', जिसे अपनी विशेष उपलब्धि बताते हुए प्रदेश सरकार थकती नहीं है, एम्बुलेंस का चालक आपातकालीन हार्न बजाते-बजाते थक गया। एम्बुलेंस में भनोली तहसील (अल्मोड़ा) के रैगल गाँव की दीपा खून में लथपथ कराह रही थी। दीपा ने एक दिन पूर्व एक पुत्र को जन्म दिया था, लेकिन प्रसूति के बाद उसकी हालत खराब हो गई। इसलिये उसके परिवार के लोग उसे अल्मोड़ा के बेस चिकित्सालय ला रहे थे। दीपा का पति गोपाल सिंह तमाम बड़े लोगों के सामने वाहन हटाने के लिये हाथ जोड़ता रह गया, लेकिन उसकी प्रार्थना बैण्ड-बाजे के शोर में दब कर रह गयी। इन बड़े लोगों के दिल नहीं पसीजे। डेढ़ घंटे तक जाम में फँसे रहने के दौरान दीपा का इतना रक्त निकल गया कि उसके प्राण ही चले गये।

25 नवम्बर को सोमेश्वर में अजय टम्टा के विवाह का प्रीति भोज था। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री भुवनचन्द्र खंडूरी उस समारोह में शामिल हुए। अगले दिन समाचार पत्रों में मुख्यमंत्री के साथ में विधायक व उनकी दुल्हन की फोटो प्रमुखता से छपी थी। उन्हीं अखबारों में कहीं एक लाईन की यह खबर भी थी कि दीपा की मौत पर मुख्यमंत्री ने एक लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की है। मगर मुख्यमंत्री भी गोपाल को उसकी पत्नी, उसके नवजात शिशु को उसकी माँ तो नहीं दिला सकते!

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