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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Wednesday, March 28, 2012

बाजार का दबाव आर्थिक सुधारों के लिए है, कारोबार को चूना लगाने के लिए नहीं! जनरल एंटी-एवॉयडेंस रूल्स (गार) के मामले में अब नरम पड़ गये प्रणव मुखर्जी!

बाजार का दबाव आर्थिक  सुधारों के लिए है, कारोबार को चूना लगाने के लिए नहीं! जनरल एंटी-एवॉयडेंस रूल्स (गार) के मामले में अब नरम पड़ गये प्रणव मुखर्जी!

मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

बाजार का दबाव आर्थिक  सुधारों के लिए है, कारोबार को चूना लगाने के लिए नहीं! बाजार के दबाव और बहुत कारगर कारपोरेट लाबीइंग के चलते केंद्रीय वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी को डीटीसी लागू करने से पहले ही पीछे हटना पड़ रहा है। वे जनरल एंटी-एवॉयडेंस रूल्स (गार) के मामले में अब नरम पड़ गये हैं और बाजार के सुभीधा मुताबिक इस कानून में ढील देने के लिए तैयार हो गये हैं, ऐसा उद्योग जगत का दावा है।बाजार को शिकायत थी कि  प्रत्यक्ष कर संहिता यानी डायरेक्ट टैक्स कोड (डीटीसी) के बारे में इस बजट में कुछ ठोस नहीं कहा गया, लेकिन उसी डीटीसी के एक प्रावधान को लागू करने से बाजार का को पलीता लग गया और निवेशकों के होश फाख्ता हो गया। विदेशी निवेशक पीएन नोट्स के स्था्नातंरण के जरिए मारीशस छोड़ शिंगापुर को हो लिये और कारपोरेट इंडिया हाथ धोकर गार के फ्रेवधान ढीला करने के करतब में लग गये।गार पहली अप्रैल से लागू होना है अब बाजार की मिजाजपुर्सी के बाद उसकी शक्लोसूरत में प्लास्टिक सर्जरी क्या कर पाते हैं प्रणवदादा , यह देखना है।अभी वित्त विधेयक पारित होना बाकी है। खास कर गार यानी जनरल एंटी एवॉयडेंस रूल्स पर बाजार में घबराहट है।पी-नोट्स को लेकर सरकार ने बजट में बदलाव किए हैं। पहला है जीएएआर, अगर मॉरिशस से आए पी-नोट्स का मकसद टैक्स बचाना हो तो टैक्स देना पड़ेगा।जीएएआर आने से आयकर विभाग के अधिकार बढ़ जाएंगे। टैक्स रेसिडेंसी सर्टिफिकेट (टीआरसी) जमा करने के बाद भी आयकर विभाग कंपनियों और निवेशकों से पूछताछ कर सकता है।तीसरा बड़ा बदलाव है, इनकम टैक्स एक्ट में अप्रैल 1972 से संशोधन करना। सरकार का कहना है कि जिन कंपनियों के पास भारतीय एसेट हैं, उन्हें विदेशी सब्सिडियरी कंपनियों के जरिए किए गए सौदों पर भी टैक्स देना होगा।

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक जीएएआर के मामले पर सेबी और वित्त मंत्रालय के अधिकारी एफआईआई से मिलने वाले हैं। बैठक में अधिकारी विदेशी निवेशकों को समझाने की कोशिश करेंगे कि सभी एफआईआई पर जीएएआर लागू नहीं होगा।अंतिम गाइडलाइंस आने पर ही स्पष्टता आएगी कि जीएएआर लागू करने के लिए क्या मानदंड होंगे।बाजार को आशंका है कि  सरकार मॉरिशस से आने वाले विदेशी निवेश पर टैक्स लगाना चाहती है। मॉरिशस के साथ डीटीएए में बदलाव न होने से सरकार ने जीएएआर का सहारा लिया है।

दुनिया भर के बाजारों से मिल रहे कमजोर संकेतों के चलते घरेलू बाजारों की शुरूआत भी मामूली गिरावट के साथ हुई। सेंसेक्स और निफ्टी मे करीब आधे फीसदी की गिरावट दर्ज की जा रही है। सेंसेक्स 90 अंक गिरकर 17,167 के स्तर पर और निफ्टी 33 अंक गिरकर 5,211 के स्तर पर कारोबार कर रहा है।घरेलू बाजार में सोने-चांदी में शुरुआती गिरावट बरकरार है। एमसीएक्स पर सोना 0.22 फीसदी की गिरावट के साथ 28,218 रुपये के स्तर पर कारोबार कर रहा है, जबकि चांदी में 0.30 की गिरावट के साथ 57,232 रुपये का स्तर देखा जा रहा है। वहीं कॉमैक्स पर भी सोने-चांदी में गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही है।

वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) एक अप्रैल, 2012 से लागू किए जाने का प्रस्ताव किया जो आयकर कानून की जगह लेगी। डीटीसी के मसौदे में ही गार के प्रावधान रहने के बावजूद और इस साल बजट में ही इन प्रावधानों के शामिल होने के बावजूद बाजार को अचानक 26 मार्च को इस बात का ध्यान आया। बाजार को अभी डर इस बात का है कि अगर मॉरीशस के रास्ते से आने वाले एफआईआई निवेश पर कर माफी बंद हो गयी तो एफआईआई का पैसा आना भी बंद हो जायेगा। बजट में आय कर कानून की एक धारा में 1962 से लागू एक संशोधन पर भी बाजार ने यही हाय तौबा मचायी है कि अब सरकार 60 साल पुराने मामलों को भी खोलने की ताकत अपने हाथ में लेना चाहती है। बाजार को डर है कि ऐसे कानून रहे तो कौन-सी विदेशी कंपनी भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) करने की सोचेगी। जनरल एंटी-एवॉयडेंस रूल्स (गार) का प्रावधान डीटीसी में ही शामिल था, और डीटीसी पहले 1 अप्रैल 2012 से ही लागू होने वाला था।

जीएएआर के अलावा एफआईआई की कमाई को कैपिटल गेन माना जाए या बिजनेस इनकम, कैपिटल गेन टैक्स, मॉरिशस से आए एफआईआई पर टैक्स जैसे मुद्दों पर भी पर विवाद है। सरकार के नियम स्पष्ट करने के बाद ही एफआईआई में भरोसा लौटेगा।

एफआईआई के अलावा पी-नोट्स भी जीएएआर के दायरे में आने की आशंका है। हालांकि, वित्त मंत्रालय के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सरकार सिर्फ टैक्स बचाने के मकसद वाले पी-नोट्स पर जीएएआर लागू करेगी।

बाजार को शिकायत है कि एक तरफ वित्त मंत्री कहते हैं कि हम बदला लेने की प्रवृति नहीं रखते, लेकिन दूसरी तरफ वे कानून में 1962 लागू बदलाव कर देते हैं। जहाँ वास्तव में उन्हें कदम उठाने चाहिए थे, जैसे सब्सिडी घटाना, वहाँ वे कुछ नहीं करते। सरकार इस बदलाव से यह संदेश दे रही है कि हम कोई भी 60 साल पुराना कानून पिछली तारीख से बदल सकते हैं।बाजार में चर्चा है कि गार के तहत दो विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) को आय कर अधिकारियों ने नोटिस भेजे हैं। इस नोटिस की खबर के बाद ही कल बाजार में घबराहट फैली है।सरकारी कंपनियों को लेकर भी सरकार का रवैया ठीक नहीं है। अभी सरकार कोल इंडिया को लेकर जो कर रही है, वह उसे ओएनजीसी के रास्ते पर ले जायेगा।

कर चोरी रोकने के मकसद से सरकार प्रस्तावित नियमों के तहत सभी एफआइआइ निवेश पर कर नहीं लगाएगी, इन खबरों ने बाजार में जान फूंक दी। ऊपर से विदेशी बाजारों में मजबूती ने निवेशकों का जोश और बढ़ा दिया। उनकी चौतरफा लिवाली के चलते मंगलवार को बंबई शेयर बाजार [बीएसई] का सेंसेक्स 204.58 अंक यानी 1.20 प्रतिशत की बढ़त के साथ 17257.36 पर पहुंच गया। सोमवार को यह 17052.78 अंक पर बंद हुआ था। इसी प्रकार नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी 58.90 अंक यानी 1.14 प्रतिशत चढ़कर 5243.15 पर बंद हुआ। एक रोज पहले यह 5184.25 अंक पर बंद हुआ था।

इस तरह की खबरें हैं कि सरकार पार्टिसिपेटरी नोट्स [पी-नोट्स] और विदेशी संस्थागत निवेशकों [एफआइआइ] द्वारा किए गए सिर्फ उन निवेश पर कर लगाएगी, जो बजट में प्रस्तावित जनरल एंटी-एवॉयडेंस रूल्स यानी गार के तहत आएंगे। गार एक अप्रैल से प्रभावी हो रहा है। सोमवार को ऐसी चर्चा थी कि सरकार पी-नोट्स के जरिए घरेलू बाजार में निवेश करने वाले सभी विदेशी निवेशकों पर पूंजीगत लाभ कर लगा सकती है। गुरुवार को मार्च के डेरिवेटिव सौदों का निपटान होना है। इस कारण भी बाजार में लिवाली का जोर रहा।

प्रत्‍यक्ष कर संहिता
प्रत्‍यक्ष कर संहिता में सभी प्रत्‍यक्ष करों, नामत: आयकर, लाभांश वितरण कर, अनुषंगी लाभ कर और संपत्ति कर से संबंधित कानूनों को समेकित तथा संशोधित किया जाना है, ताकि एक किफायती रूप से दक्ष, प्रभावी और साम्‍य योग्‍य प्रत्‍यक्ष कर प्रणाली स्थापित की जा सके, जो इसके स्‍वैच्छिक पालन की सुविधा प्रदान करें एवं कर - सकल घरेलू उत्‍पाद अनुपात को बढ़ाने में सहायता करें। इसका एक अन्‍य उद्देश्‍य विवादों के विस्‍तार को कम करना और मुकदमों को न्‍यूनतम रखना है।यह इस प्रकार संकल्पित किया गया है कि कर व्‍यवस्‍था में स्‍थायित्‍व प्रदान किया जा सके, और यह कराधान के भलीभांति स्‍वीकृत सिद्धांतों और सर्वोत्तम अंतरराष्‍ट्रीय प्रथाओं पर आधारित है। अंतत इससे एकल एकीकृत कर दाता रिपोर्टिंग प्रणाली का मार्ग प्रशस्‍त होगा।

संहिता की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं

प्रत्यक्ष करों के लिए एकल संहिता: सभी प्रत्‍यक्ष करों को एकल संहिता के तहत लाया गया है और पालन की प्रक्रिया विधियों को एक समान बनाया गया है। इससे अंतत: एक एकीकृत कर दाता रिपोर्टिंग प्रणाली का मार्ग प्रशस्‍त होगा।

सरल भाषा का उपयोग: अर्थ व्‍यवस्‍था में विस्‍तार के साथ करदाताओं की संख्‍या में उल्‍लेखनीय वृद्धि होने की आशा है। इनमें से अधिकांश करदाताओं की संख्‍या कम होगी जो कर की मध्‍यम राशि का भुगतान करेंगे। अत: यह अनिवार्य है कि इनके द्वारा स्‍वैच्छिक पालन की सुविधा के माध्‍यम से पालन की लागत को कम रखा जाए। इसे प्राप्‍त करने के लिए प्रारूप तैयार करने में सरल भाषा का उपयोग किया गया है, ताकि कानून के प्रावधान का आशय, कार्यक्षेत्र और इसका विस्‍तार स्‍पष्‍ट रूप से समझाया जा सके। इसका प्रत्‍येक उप-अनुभाग छोटा वाक्‍य है जो केवल एक बिन्‍दु संप्रेषित करने का आशय रखता है। जहां तक संभव हुआ, सभी निर्देशों और अधिदेशों को प्रत्‍यक्ष रूप से बताने का प्रयास किया गया है। इसी प्रकार प्रावधानों और व्‍याख्‍याओं को हटा दिया गया है, क्‍योंकि इन्‍हें गैर विशेषज्ञ व्‍यक्तियों द्वारा समझा नहीं जा सकता। एक प्रावधान में निहित विभिन्‍न शर्तों को भी समेकित किया गया है। सभी अधिक महत्‍वपूर्ण, इस तथ्‍य को ध्‍यान में रखते हुए कि कर का एक कानून अनिवार्यत: एक वाणिज्यिक कानून है, सूत्रों और तालिकाओं का व्‍यापक उपयोग किया गया है।

मुकदमेबाजी की संभावना को कम करना: जहां कहीं संभव हुआ उन प्रावधानों में अस्‍पष्‍टता से बचने का प्रयास किया गया है जिनसे अनिवार्यत: आपसी विरोधी व्‍याख्‍याएं निकल सकती हैं। इसका उद्देश्‍य यह है कि कर प्रशासक और करदाता कानून के प्रावधानों पर सहमत हों तथा आकलन एक करदाता की कर देयता में परिणत हो। इस उद्देश्‍य को आगे बढ़ाने के लिए प्रक्रियागत मुद्दों पर दीर्घकालिक मुकदमेबाजी से बचने के लिए केन्‍द्र सरकार / बोर्ड को अधिकार भी सौंपे गए हैं।

लचीलापन: विधान की संरचना इस प्रकार विकसित की गई है, जो बार बार संशोधन का आश्रय न लेते हुए एक बढ़ती हुई अर्थव्‍यवस्‍था में होने वाले संरचना के परिवर्तनों को समायोजित करने में सक्षम है। अत: संभव सीमा तक इस विधान में अनिवार्य तथा सामान्‍य सिद्धांत प्रदर्शित किए गए हैं और विवरण के मामले नियमों / अनुसूचियों में शामिल किए गए हैं।

य‍ह सुनिश्चित करना कि कानून एक प्रपत्र में दर्शाया जा सकता है: अधिकांश करदाताओं के लिए विशेष रूप से छोटे और उपेक्षित वर्ग के करदाताओं के लिए कर कानून वही है जो प्रपत्र में दर्शाया जाता है। अत: कर कानून की संरचना इस प्रकार तैयार की गई है कि इसे एक प्रपत्र के रूप में युक्ति संगत रूप से पुन: उत्‍पादित किया जा सके।

प्रावधानों का समेकन: कर विधानों की बेहतर समझ प्रदान करने के लिए, परिभाषाओं से संबंधी प्रावधानों, प्रोत्‍साहनों, प्रक्रियाविधियों और करों की दरों को समेकित किया गया है। पुन:, विभिन्‍न प्रावधानों को इस प्रकार पुन: व्‍यवस्थित किया गया है कि ये अधिनियम की सामान्‍य योजना के अनुरूप हों।

विनियामक कार्यों का विलोपन: पारम्‍परिक रूप से कर विधान को एक विनियामक साधन के रूप में भी उपयोग किया जाता है। जबकि अर्थव्‍यवस्‍था के विभिन्‍न क्षेत्रों में स्‍थापित किए जा रहे विनियामक प्राधिकरणों के साथ कर विधान के विनियामक कार्य वापस ले लिए गए हैं। इससे सरलीकरण के कार्य में महत्‍वपूर्ण योगदान मिला है।

स्थायित्व प्रदान करना: वर्तमान में करों की दरें संगत वर्ष के वित्त अधिनियम में निर्धारित की गई हैं। अत: करों की वर्तमान दरों में अनिश्चितता और अस्‍थायित्‍व का एक विशेष स्‍तर है। इस संहिता के अंतर्गत करों की सभी दरें संहिता में पहली से चौथी अनुसूची तक निर्धारित करने का प्रस्‍ताव है और इस प्रकार एक वार्षिक वित्त विधेयक की आवश्‍यकता समाप्‍त हो जाएगी। दरों में परिवर्तन, यदि कोई हों, एक संशोधन विधेयक के रूप में संसद के सामने अनुसूची में उपयुक्‍त संशोधनों के माध्‍यम से किया जाएगा।

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