कहां है भूमि बैंक? दीदी के ख्वाबी पुलाव से उद्योग के लिए जमीन मिलना मुश्किल!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
वामशासन के अंत से राज्यमें औद्योगिक और कारोबारी माहौल सुधरने की बड़ उम्मीद बनी। उद्योगजगत को लगा कि बंगाल में अब जंगी मजदूर आंदोलन का सिलसिला बंद होगा।बीस मई को राज्य सरकार के दो साल पूरे हो जायेंगे। १९ मई, २०११ को ममता बनर्जी ने मां माटी मानुष की सरकार की मख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। शपथ लेने के दस दिनों बाद ही ३० मई को दीदी ने सर्वोच्च प्राथमिकता के तौर पर राज्य में उद्योगो के लिए भूमि बैंक बनाने की घोषणा की। लेकिन पिछले दो साल में इस दिशा में तनिक प्रगति नहीं हुई। जमीन की समस्या की वजह से दीदी की शुरु की हुई मेट्रो और रेल परियोजनाएं तक अटकी हुई है। केंद्र सरकार काम में प्रगति न होने के बहाने बजट अनुदान बढ़ाने से इंकार कर रही है।
इस पर तुर्रा यह कि शपथ लेने के तुरंत बाद सिंगुर के अनिच्छुक किसानों को जमीन वापस दिलाने के लिए कानून बनाकर दीदी ने सरकारी भूमि आंदोलन की शुरुआत कर दी।मजदूर आंदोलन वाममोरचे के अवसान के बाद भले ही अब उतना जंगी नहीं है, लेकिन भूमि आंदोलन और अधिक जंगी हो गया है।सिंगुर से टाटा की वापसी तो हो ही गयी। शालबनी से भी भग लिये जिंदल। बाकी निवेशक भी जान बचाने के रास्त तलाश रहे हैं।
जहां पुराने निवेशक भाग रहे हों, वहां नया निवेश का परिवेश कैसे बन सकता है?
प्रगति महज इतनी हुई कि दो साल पूरे होने पर उद्योग मंत्री को किनारे करके औद्योगिक कोर कमिटी की कमान दीदी ने खुद संभाल ली। फिर वही वायदों का सिलसिला।
दीदी ने सत्ता में आने से पहले जनता से वायदा किया था कि वाम जमाने में राज्य में बंद हो गयी सभी ५६ हजार औद्योगिक इकाइय़ों को पुनर्जीवित किया जायेगा। उस दिशा में कितनी प्रगति हुई, दीदी ने अभी कोई हिसाब नहीं दिया।
बीती बिसारकर उद्योग जगत राज्य में निवेशका जो माहौल चाहते हैं, मनोरंजन पार्क नलबन को जमीन वापस करने का नोटिस देकर उसे भी बाट लगा दिया गया।
राजकाज के दो साल पूरे होने से बारह दिन पहले एकबार फिर उद्योगपतियों को बुलाकर दीदी ने उनके आगे ख्वाबी पुलाव परोस दिये। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उद्योगपतियों से कहा कि राज्य में जल्द ही नई औद्योगिक नीति पेश की जाएगी। बनर्जी ने उद्योगों की कोर समिति की जिम्मेदारी संभालते ही नीतियों में बदलाव का यकीन दिलाना शुरु कर दिया है।लेकिन यह बदलाव औद्योगिक माहौल में होने के बजाय तृणमूल पार्टी और मंत्रिमंडल के आंतरिक समीकरण में ज्यादा हुए।
पार्थ चटर्जी को जहां कोर कमिटी के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया , वहीं दीदी के सुर में सुर मिलाने वाल सुब्रत बनर्जी, मदन मित्र और फिरहाद हकीम कोर कमिटी के नये सदस्य बनाये गये।पहले ही सौगत राय को किनारे कर दिया गया है।
इस राजनीतिक समीकरण से उद्योगों का क्या भला हो सकता है, दीदी ही जानें! पर मुश्किल है कि उद्योग जगत को कुछ बी समझ में नहीं आ रहा। अब तक उद्योग मंत्री और मुख्यमंत्री जो बार बार दावा कर रहे हैं कि भूमि अधिग्रहण कोई समस्या नहीं होगी, जमीन पर निवेश करने से पहले और बाद दोनों ही परिस्थितियों में इसके प्रतिकूल हर स्थिति का सामना करना पड़ रहा है निवेशकों को। जिस जमीन बैंक को लेकर इतने लंबे चौड़े दावे किये जा रहे हैं, राज्य के किसी भी जिले में इसके लिए न सर्वे हुआ है और न जन सुनवाई और न ही भूमि बैंक के लिए उपयुक्त जमीन को चिन्हित करने का कोई काम हुआ है।
उद्योग नीति तो बीरबल की खिचड़ी बन गयी है, जब तैयार होगी तब उसका स्वाद मिलेगा। लेकिन दीदी की रसोई में तो घमासान मचा हुआ है। कौन रसोइया क्या पका रहा है, किसी को नहीं मालूम।
उद्योगपतियों और विभिन्न कारोबारी प्रतिनिधि संगठनों की बैठक में बनर्जी ने कहा कि नई नीति 15 दिनों में सरकारी वेबसाइट पर डाल दी जाएगी। उन्होंने कारोबारियों से सुझाव देने का भी अनुरोध किया। बैठक में मौजूद बंगाल चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष कल्लोल दत्त ने कहा कि मुख्यमंत्री ने कारोबारियों को बताया कि राज्य की नई नीति सबसे पहले वेबसाइट पर डाली जाएगी। दत्त ने आईएएनएस से कहा, "बनर्जी ने कहा कि 15 दिनों के भीतर नीति को कारोबारी समुदाय के सुझावों के लिए वेबसाइट पर डाला जाएगा और जुलाई में कोर समिति की अगली बैठक से पहले नीति को अंतिम रूप दे दिया जाएगा।"अगली बैठक तीन जुलाई को निर्धारित है। सरकार इस साल जनवरी में ही नई नीति की घोषणा करने वाली थी।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आज फिर संप्रग सरकार पर अपनी सरकार और पार्टी को परेशान करने के लिए केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल करने तथा कांग्रेस पर माकपा के साथ मिलकर साजिश रचने के आरोप लगाये और अपने खिलाफ कार्रवाई करने की चुनौती दी। ममता ने कहा, `हम दिल्ली में बदलाव लाएंगे।`
औद्योगीकरण के लिए केंद्र और राज्य सरकारों में तालमेल का अपना महत्व है। लेकिन दीदी ने तो केद्र के खिलाफ जिहाद बोल दिया है। एक तरफ कांग्रेस तो दूसरी तरफ वामपंथी,फिर तीसरी तरफ केंद्र सबके खिलाफ मोरचा खोलकर दीदी कब और कैसे जमीन समस्या का समाधान निकालती है, यह देखना बाकी है। खासकर केंद्र सरकार की मदद और अनुदान से चलने वाली परियोजनाओं का क्या होगा, खुदा ही जानें! अब तो पंचायत और पालिका चुनाव होने की रही सही संभावना भी खत्म हो गयी। हाईकोर्ट के फैसले को मानने से साफ इंकार करते हुए राज्य सरकार इस विवाद को खींचने का जो कदम उढा रही है, उससे स्थानीय निकायों को लेकर संवैधानिक संकट पैदा होगया है।
वेदांत मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वहीं नियमागिरि हिल्ज में खनन के लिए श्थानीय निकाय की सहमति को अनिवार्य कर दिया है। दीदी की जिन इलाकों में भूमि हासिल करने की सबसे ज्यादा उम्मीद है, वे आदिवीसी बहुल इलाके हैं और पांचवीं व छठी अनुसूचियों के अंतर्गत औद्योगिक परियोजनाओं के मामले में वहां स्थानीय निकायों की निर्णायक भूमिका रहनी है। निकायों के चुनाव नहीं हुए, तो उन इलाको से जमीन निकालना असंभव है।
फिर परिवहन सुविधाओं के मद्देनजर जहां उद्योग लगाने और निवेश के लिए प्राथमिकता बनती हैं, वे शहरी इलाके हैं, जहां एक एक इंच जमीन बिल्डरों, प्रोमोटरों और चिटफंड कंपनियों के कब्जे में हैं। बंद कल कराखानों की जमीन पर आवासीय योजनाएं बन गयी हैं।
अब कहां से जमीन निकालेंगी दीदी?
ममता ने पार्टी की एक रैली में कहा, 'सभी केंद्रीय एजेंसियों को तृणमूल कांग्रेस और सरकार को परेशान करने के लिए लगा दिया गया है। कोलगेट घोटाले के हीरो हमारे खिलाफ साजिश रच रहे हैं।' उन्होंने दावा किया कि जब तृणमूल कांग्रेस संप्रग का अंग थी तब तृणमूल सांसदों की फाइलें मंगाकर पार्टी पर आयकर छापा मारने का कदम उठाया गया।
मुख्यमंत्री ने कहा, 'यदि आप उनके साथ हैं तो बुरे हैं और यदि उनके साथ नहीं हैं तो भी बुरे हैं।' तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ने कहा, 'आपने कहा कि हमने (केंद्र ने) मायावती को छेड़ा, हमने मुलायम को छेड़ा, हमने जयललिता को छेड़ा। लेकिन हम ममता को नहीं छेड़ पाए। उनका नाम भी भ्रष्टाचार में घसीटिए।' उन्होंने कहा, 'केंद्र मेरे बाल छूकर देखे। मैं सिर नहीं झुकाऊंगी। मैं राजा और रानी से कह रही हूं कि वे आग से न खेलें।'

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