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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Monday, June 24, 2013

गाँव बहे और हो गयी, खाली यहाँ जमीन/ बिल्डर लेकर आयेगा, अबके नई मशीन

गाँव बहे और हो गयी, खाली यहाँ जमीन/ बिल्डर लेकर आयेगा, अबके नई मशीन


नरेन्द्र कुमार मौर्य

 

नरेन्द्र कुमार मौर्य

नरेन्द्र कुमार मौर्य, लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

उत्तराखण्ड की त्रासदी को सभी नेता और अफसर प्राकृतिक आपदा बताते नहीं थक रहे हैं, लेकिन यह सच सभी जानते हैं कि अगर कथित विकास के चलते पहाड़ को खोखला नहीं किया होता तो यह त्रासदी इतनी भयानक नहीं होती। आपको याद होगा भाजपा ने अपने मुख्यमन्त्री निशंक को घोटालों के आरोपों के बाद हटा दिया था। उन पर खनन माफिया से गठजोड़ के आरोप थे और बात अरबों रुपए के घोटाले की थी।

प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने एक बार काबीना मन्त्री जयराम रमेश को इसलिये लताड़ लगायी थी कि वे पर्यावरण के नाम पर कई विकास योजनाओं को स्वीकृति नहीं दे रहे थे। तब मनमोहन सिंह ने कहा था कि ऐसे में तो विकास रुक जायेगा। उन विकास योजनाओं में से कई उत्तराखण्ड की भी थी। जिन्हें बाद में भाजपा सरकार ने भी हाथों-हाथ लिया। इस आपदा में करीब 50 हजार से लेकर एक लाख लोगों के मरने के कयास लगाये जा रहे हैं, लेकिन सरकारी आँकड़ा हजार तक भी नहीं पहुँच रहा है। जब तक हमारे नुमाइन्दे सच्चाई को स्वीकार नहीं करते और उन कारणों को नहीं समझते जो त्रासदी के लिये जिम्मेदार हैं, तब तक आप ऐसे हादसों को झेलने के लिये तैयार रहिये।

संकट की घड़ी में भी लोग कमाने से नहीं चूके। पाँच सौ रुपये का एक प्लेट चावल था। 180 रुपये की एक रोटी बिकी। पाँच सौ रुपये वाले कमरे के तीन हजार रुपए वसूले गये। लूट की घटनाएं भी कम नहीं हैं। दूसरी तरफ ऐसे भी उदाहरण सामने आये हैं जब स्थानीय लोगों ने फँसे हुये लोगों को खाना खिलाया और उनकी ज़िन्दगी बचाई। सेना के जवान भी शानदार काम कर रहे हैं। ऐसे संकटमोचक जाँबाजों को सलाम, लेकिन जो घडि़याली आँसू बहाकर धन्धा बढ़ाने की फिराक में हैं, उनसे सावधान रहने की जरूरत है।


उत्तराखण्ड में करीब 60 गाँव बह गये हैं। केदारनाथ में 90 धर्मशालाएं भी बह गयीं। इस आपदा ने हमारे विकास पुरुषों के लिये रास्ता साफ कर दिया है। अब तो उस खाली जमीन का कोई माई-बाप भी नहीं रह गया है। उस पर अब नेता, नौकरशाह और बिल्डर विकास की इमारत खड़ी करेंगे। आखिर उत्तराखण्ड को इस आपदा से उबारना भी तो है।

दुख में दोहे

खेल ये कुदरत का नहीं, इंसानी करतूत

मोहना तेरे विकास का ये है असली रूप

 

पीटे ढोल विकास का, खोदे रोज पहाड़

कुदरत भी कितना सहे, तेरा ये खिलवाड़़

 

बड़ी मशीनें देखकर, रोये खूब पहाड़

कैसे झेलेगा भला जब आयेगी बाढ़

 

खनन माफिया से हुआ सत्ता का गठजोड़

पैसा खूब कमायेंगे, धरती का दिल तोड़

 

खण्ड-खण्ड बहता रहा हाय उत्तराखण्ड

मलबा बन गई ज़िन्दगी, रुका नहीं पाखण्ड

 

आपदा राहत कोष से, होंगे कई अमीर

जनता बिन राहत मरे, वे खायेंगे खीर

 

धरम करम के चोचले, दान पुण्य भी खूब

भक्त बचे कैसे भला, खुद भगवन गये डूब

 

गाँव बहे और हो गयी, खाली यहाँ जमीन

बिल्डर लेकर आयेगा, अबके नई मशीन

 

नरेन्द्र कुमार मौर्य की फेसबुक वॉल से साभार

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