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Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Thursday, June 27, 2013

हिजरत

दोस्तो, 
जब मैंने कुछ समय पहले यह कविता लिखी थी तब यह अन्दाज़ा तो था कि हमारे संसार की ज्वरग्रस्त बेचैनी कुछ ग़ज़ब ढायेगी, पर वो इतना संगीन होगा, इसकी कल्पना नहीं थी वर्ना इसमें और तल्ख़ी होती. यह हादसा हमारा ही बरपा किया हुआ है -- मौजूदा सरकार से ले कर उसे बनाने वालों और बरदाश्त करने वालों तक.

हिजरत

हिजरत में है सारी कायनात
एक मुसलसल प्रवास, एक अनवरत जलावतनी

पेड़ जगह बदल रहे हैं, हवाएँ अपनी दिशाएँ,
वर्षा ने रद्द कर दिया है आगमन और प्रस्थान का 
टाइमटेबल, वनस्पतियों ने 
चुका दिया है आख़िरी भाड़ा पर्वतों को 
और बाँध लिये हैं होल्डॉल

पर्वत भी अब गाहे-बगाहे अलसायी आँखें खोल
अन्दाज़ने लगे हैं समन्दर का फ़ासला

समन्दर सुनामी में बदल रहा है
बदल रहे हैं द्वीप अद्वीपों में
एक हरारत-ज़दा हरकत-ज़दा हैरत-ज़दा कायनात है यह

सबको मिल ही जायेंगे नये ठिकाने मनुष्यों की तरह
और अगर कुछ बीच राह सिधार भी गये तो भी
वे अनुसरण कर रहे होंगे मनुष्यों का ही
जिनके किये से वे हुए थे बेघर

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