Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Thursday, June 27, 2013

पहाड़ पर मंडराते परोपकारी गिद्ध By धनंजय सिंह, देहरादून से 2

पहाड़ पर मंडराते परोपकारी गिद्ध

By  

जब फ़ौज ने मामला हाथ में लिया तब राहत मिल सकी क्योंकि फ़ौज हिंदुस्तान की थी जो यहां केवल गुजरातियों को बचाने नहीं आई थी।जब फ़ौज ने मामला हाथ में लिया तब राहत मिल सकी क्योंकि फ़ौज हिंदुस्तान की थी जो यहां केवल गुजरातियों को बचाने नहीं आई थी।http://visfot.com/index.php/current-affairs/9507-paropkari-giddho-ki-toli.html

पहाड़ में बारिश हर साल तबाही लेकर आती है। वरुणावत के कहर से उत्तरकाशी शहर आज तक पूरी तरह उबर नहीं सका है, पिछले साल भी जहाँ विनाशलीला मची थी वो इलाके भी अभी तक इंतजार कर रहे हैं कि सरकार उनके द्वार तक आये। पर चूँकि उन लोगों की नियति यही बन चुकी है इसलिए वे अधिक दुखी नहीं होते। लेकिन अबकी बार की बारिश ने गुजरात, दिल्ली, बंगाल और न जाने कहाँ कहाँ के लोगों को चपेटे में ले लिया और पूरा देश दुखी हो गया। दुखी तो अभी तक वो लोग भी हैं जिनके बच्चों का स्कूल पिछली बारिश में कब्रिस्तान बन गया था पर उन लोगों से अधिक दुखी इस बार वो हुक्मरान हैं जिनके दुःख का लाईव टेलीकास्ट होता है फिर उस प्रसारण को देख उनकी भक्त मण्डली जयकारे लगाती है। इस बार केदारनाथ ने मौका दे दिया और छवि चमकाने के लिए परोपकारी गिद्धों की टोली घाटी में मंडराने लगी।

दूर दराज देश से राहत का सैलाब केदार घाटी की और बह निकला है। आफत की बाढ़ अगर पहाड़ से नीचे की ओर बही थी तो राहत की बाढ़ नीचे से पहाड़ की ओर दौड़ लगा रही है। एक भावी प्रधानमंत्री ने रैम्बो स्टाईल का रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया और कीचड़-पत्थर और हजारों के बीच से अपने इलाके के इतने लोगों को बचा लिया जितने शायद वहां से आये ही नहीं थे। ऐसी गिद्ध दृष्टि और कौवे जैसी चतुराई वाले लोग तो शायद पौराणिक कथाओं में ही पाए जाते होंगे। पर एक बात अभी पता नहीं चल सकी है की दूसरे इलाके के लोगों को क्यों मरने के लिए छोड़ दिया जबकि सब उनका ही नमक खाते हैं। माल चाहे जैसा हो उसकी पैकेजिंग ठीक रहे तो बाज़ार मिल ही जाता 

एक दूसरे भावी प्रधानमंत्री उस समय कहीं अवकाश पर थे, वैसे वो करते क्या हैं ये किसी को भी नहीं पता, उनको भी उपकार करने के लिए देश आना पड़ गया। लेकिन खानदान के इकलौते वारिस हैं इसलिए ख़राब मौसम का हवाला देकर मम्मी ने पहाड़ पर जाने से मना कर दिया। और जब ये घोषणा हो गयी की राज्य के बाहर से किसी भी राजनेता को राहत कार्यों के दौरान हेलीकाप्टर का प्रयोग नहीं करना है तब दिल्ली से मम्मी ने झंडी दिखाई और ये केदार घाटी पर उपकार करने आ गए। गरीब सफारी के बाद ये बड़ा एडवेंचर टूर है जनाब का, धकाधक पहाड़ चढ़ गए और फिर इनके रेस्क्यू के लिए हेलिकॉप्टर लगाना पड़ा, ये एक दूसरे राज्य के सांसद हैं और शाही खानदान से हैं इस वास्ते इनके आवभगत के लिए देश के गृह मंत्री की बात भुला दी गयी और हो भी क्यों न उत्तराखंड के मुख्यमंत्री और देश के गृह मंत्री दोनों लोग खुले आम कह चुके हैं की वो जो भी हैं, सब प्रधान मम्मी की कृपा है।

सड़क रहती भी है तो उत्तराखंड में नेताजी लोग पहाड़ की तरफ हेलिकॉप्टर से ही जाते हैं क्योंकि राज्य में सड़कों की हालत से वे बखूबी वाकिफ हैं, सेवा करने का जो टेंडर खुला है उसको वो बेकार नहीं कर सकते। उनको पता है की ऊपर के रस्ते में गाड़ी खाई में जा सकती है फिर न जाने कब बकरियाँ चराने वालों की नज़र पड़े और लोगों को पता चले। इस आपदा के समय भी क्षेत्र के नेता-परेता देहरादून में ही थे और सब वहीं दुखी हो गए, पर दिल्ली की मीडिया लोकल नेताओं के दुःख को दिखा ही नहीं रही थी। इस दौरान बहुत बड़ी भूमिका हेलिकॉप्टरों की भी रही, जो लोग भोलेनाथ को प्यारे हो गए उनके अलावा जो बचे उनमे से अधिकाँश ने जीवन में पहली बार हवाई यात्रा की क्योंकि और कोई चारा ही नहीं था उनके बचने का। एक एक सीट के लिए के साथ जीवन मरण का सवाल था। पर जब फ़ौज ने मामला हाथ में लिया तब राहत मिल सकी क्योंकि फ़ौज हिंदुस्तान की थी जो केवल गुजरातियों को बचाने नहीं गयी थी और पास ये तकनीक भी नहीं है की हवा में या जमीन पर भी लुटे-पिटे जनसैलाब में पहचान कर सके की कौन मराठी है और कौन बिहारी। फिर भी मौसम और फँसे लोगों की संख्या के हिसाब से चॉपर कम थे ऐसे में लोकल नेता भी दुखी थे और उनको भी हेलिकॉप्टर में उड़ते हुए फोटो खिंचवाने का शौक चढ़ गया। केदारनाथ क्षेत्र की विधायक शैला रानी रावत भी बहुत दुखी थीं, वो भी देहरादून से केदारनाथ यानी अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिए उड़ चलीं पर दुःख के मारे अपना हैण्ड बैग राजधानी में ही भूल गयीं। आधे रस्ते याद आया तो उड़नखटोल वापस उतरा, वहीं खबर थी की क्षेत्र में सेवा दे रही हवाई कम्पनियाँ एक-एक सीट के लिए लाखों वसूल रहीं थीं। एक चक्कर मतलब कुछ लोगों के लिए मौत के मुँह से वापसी।

उत्तराखण्ड के एक जाबिर नेता हैं हरक सिंह रावत, विधानसभा चुनाव के बाद दिल्ली ने विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बना दिया, रावत जी अड़ गए की किसी बाहरी को ये पद नहीं मिलना चाहिए। एक बहुत मान्यता प्राप्त मंदिर में इन्होने शपथ ली की सत्ता इनके पैरों की जूती है और ये राज्य के स्वाभिमान के लिए बहुगुणा का सपोर्ट नहीं करेंगे, बहुत से लोग इन्हें धरती के लाल कहने लगे। पर बिलाई कब तक मलाई से दूर रहती, ये आगये सत्ता के साथ। ये जनाब आपदा राहत में उड़े तो हेलीपैड से सामान उतरवा कर तुरंत वापस चल दिए क्योंकि मौसम ख़राब होने का डर था। जमीन पर कुछ लोग हाथ जोड़ते रहे की हमको भी साथ ले लो पर ये उड़ गए। राज्य के परिवहन मंत्री बसपा के कोटे से आते हैं, चारधाम यात्रा शुरू होते ही विदेश दौरे पर चले गए थे परिवहन व्यवस्था के अध्ययन के लिए और उनके इलाके में गर्मी भी बढ़ गयी थी। आपदा राहत में ये भी उड़े पर ये ख्याल रखा की हेलिकॉप्टर में उनके लोग भी साथ रहें और खुबसूरत तबाही को आसमान से निहार सकें।

उधर आपदा में पड़े अपने क्षेत्र भ्रमण पर गए मंत्री प्रीतम पंवार ने एक जूनियर इंजीनियर को झापड़ मार दिया क्योंकि पिछले साल की तबाही झेल चुके इलाके में कोई काम हुआ ही नहीं था। साल भर कहाँ रहे भाई प्रीतम? हो सकता है वो निर्माण कागजों में हुआ हो और उसका हिस्सा इनके पास भी पहुंचा हो। लोकल पत्रकार इस झापड़ काण्ड को उछाल रहे हैं, ये लोग तब कहाँ थे जब पिछली तबाही का फण्ड आया था? पहाड़ों में अधिकाँश पत्रकार ऐसे हैं जिनके चार पहिया वाहन सडकों पर दौड़ते हैं और तीन मंजिली इमारतें तनी हुई हैं, जबकि अखबार केवल खबर भेजने का खर्च देता है। ये देहरादून वालों से अमीर पत्रकार हैं क्योंकि पहाड़ में आपदा हर साल आती है और जेई-ठेकेदार इनकी भी सलामी बजाते हैं।

दिल्ली वाले युवराज की तरह राज्य में भी कई युवराज हैं जो केवल चुनावों के समय दिखते हैं वो सब भी लापता ही रहे क्योंकि सबके गार्जियन समझदार हैं, बता दिया की बेटा मौसम ख़राब है। विधान सभा जीतने वाले बहुगुणा जी अपने सुपुत्र को टिहरी से, जनता की माँग पर, लोकसभा पहुँचाना चाहते थे पर जनता ने ऐसी भाजपाई महारानी को चुन लिया जिनके बारे में परचा दाखिले के दिन तक भ्रम था की किस देश की नागरिक हैं। जीता-हारा कोई प्रत्याशी कहीं दर्शन देने नहीं पहुँचा। दिल्ली का बहादुर पत्रकार चीख रहा है की काँग्रेस विधायक गणेश गोदियाल केदारनाथ में फँसे है, मौसम ख़राब होने से चापर उड़ नहीं सकता। उस पत्रकार को क्या पता की वो जिसे फँसना कहता है उसी स्थिति में पहाड़ में बरसात कटती है। फंसे रहने दीजिये गणेश जी को आखिर वो मंदिर के ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं, उनको एहसास हो की दुनिया देहरादून ही नहीं है।

हाँ दिल्ली से एडवेंचर की तलाश में आये पप्पुओं और मसान की तबाही से बच निकले लोगों के मुँह में भोंपू घुसेड़ कर कैसा लग रहा है पूछने वालों का बचे रहना जरुरी है क्योंकि वे हमें सपने दिखाते हैं, कहानियाँ सुनाते हैं। पहाड़ में तो मानसून अब आने वाला है लेकिन देहरादून में बैठे गिद्धों की नज़र हमेशा आसमान की ओर रहती है कि कब बरसेंगे आपदा के बादल और फटेगी राहत की थैली। न जाने क्यों छप गए हैं अखबारों में पोस्टर की आपदा की घड़ी में सब एक हों, ऊपर पहाड़ में तो सब हमेशा एक ही रहते हैं और नीचे जो यात्री बचा के लाये गए वो अपने घर गए। ये शायद सर्वदलीय समझौते के पोस्टर हैं की गिद्धों को मिलने वाली है, थैली सबमें बंटेगी। इसी बीच आपलोग देखिये युवराज के रेस्क्यू और रिट्रीट का लाइव प्रसारण, उनका बचे रहना जरुरी है क्योंकि वो भी खानदानी प्रधानमंत्री हैं।

http://visfot.com/index.php/current-affairs/9507-paropkari-giddho-ki-toli.html

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...