थोपे हुए मुख्यमंत्री भी एक राजकीय आपदा है !
एक समय की बात है, कलियुग के प्रथम प्रहर में हिमालयी उपत्यका के राज्य में राजा गुणानंद राज्याभिषिक्त हुए. राजा बनते ही उसका चेहरा लोक निर्माण विभाग की तरह दमकने लगा. राजा के कपड़े कलफ़दार और शानदार थे.
उसके पास हर मौके के लिए एक पोशाक थी. राजा के पास कई चेहरे थे. वह आदमी की औकात और उपयोगिता के हिसाब से चेहरा बदलता था. कोई नहीं जानता था कि राजा का असली चेहरा कौन सा है. रानी ने भी राजा को कभी ओरिजिनल चेहरे में नहीं देखा था.
ज्ञानी लोग बताते हैं कि राजनीति में आने के बाद राजा को कभी ओरिजनल चेहरे की जरूरत नहीं पड़ी. वह चेहरे बदलता रहा और सीढ़ियां चढ़ता रहा. बाद में उसने सीढ़ियां भी बदलनी शुरू कर दीं. उन सीढ़ियों में से कई आज भी अपने कंधों के छाले दिखाते हुए बताती हैं कि इन्हीं कंधों पर चढ़कर वह राजा बना है. लेकिन ये नादान नहीं जानते कि यदि इन्हीं सीढ़ियों पर वह अटका रहता तो राजा कैसे बनता? उसने जान लिया था कि कौन सी सीढ़ी किस ऊंचाई तक ही उपयोगी है. उसकी ऊंचाई बढ़ती रही और पुरानी सीढ़ियां एक के बाद एक धड़ाम होती रहीं. बताया जा रहा है कि आलाकमान में कई नेता अब उसके नेता नहीं, बल्कि राजा की सीढ़ियां हैं.
राजा अपने लिए पोशाकें सिलवाने और सीढ़ियां बनाने में बिजी था इसी वक्त राज्य में प्राकृतिक आपदा से भीषण तबाही मच गई. चारों ओर हाहाकार मच गया. गांवों से त्राहिमाम-त्राहिमाम की आवाज़ें आने लगीं. लेकिन राजा के पास कोलाहल प्रूफ कान थे. इसलिए राजा अविचलित था और 'लाफिंग बुद्दा' की तरह सत्ता के ड्राइंग रूम में जमा हुआ था. दरबारियों को फिक्र हुई कि राजा ऐसे ही लाफिंग मुद्रा में बैठा रहा तो चुनाव में नैय्या डूब जाएगी. सो दरबारियों ने राजा को कहा कि 'हे महाराज, जनता दुख में है इसलिए आपको भी दुखी होना है.' राजा इस बात पर नाराज़ हुआ. 'एक तो चार दिन की चांदनी के अंदाज़ में राजगद्दी मिली है और उसमें भी कुछ दिन दुखी दिखने में चले जाएं! ऐसा नहीं हो सकता.' राजा ने फरमान सुनाया.
दरबारी तो दरबारी होते हैं. हर राजा उनके वश में होता है. इसलिए उन्होंने समझाया, 'महाराज! दुख तो बस मुद्रा है जो कुछ देर के लिए आपको धारण करनी है. कैमरे में संदेश दर्ज होते ही लाफिंग हो जाइए.' चूंकि फिल्म की तरह राजनीति में डुप्लीकेट इस्तेमाल करने की तकनीक नहीं आई थी इसलिए नकली दुख के साथ असली राजा दिखाने के अलावा कोई रास्ता न था.
राजा ने दुख के मौके वाली लंबी अचकन पहनी. शोक सभाओं वाला चेहरा लगाया. बीते ज़माने के ट्रेजडी किंग रहे दिलीप कुमार को याद करते हुए आंखों में पीड़ा की लहरें पैदा कीं. टेलीप्रॉम्पटर पर संदेश पढ़ते हुए राजा ने आवाज़ में ग़ज़ब की भर्राहट पैदा की.
ऐसा लगा जैसे दुख से आवाज़ भारी हो रही हो. राजा के अभिनय में जान फूंकने के लिए विज्ञापन फिल्म में आपदा के असली दृश्य और असली विलाप के विजुअल्स डाले गए. माहौल में गज़ब की कारुणिकता थी. राजा टीवी पर था. जिसने भी देखा उसी ने तारीफ की. लोगों ने जनता के दुख में कातर राजा को इससे पहले कभी नहीं देखा.
बहरहाल सरकारी ख़जाने से बनी आपदा की इस विज्ञापन फिल्म में राजा के ज़बर्दस्त अभिनय क्षमता की चर्चा हुई. राजा ने बॉलीवुड के नायकों के लिए नई चुनौती पेश कर दी है. इधर, प्रजा के दुख में राजा इतना दुखी हुआ कि राज्यभर में मुनादी करवा दी गई कि कोई भी संतरी, मंत्री हो या अफसर हो, सब आपदा के कारण सीरियस दिखेंगे. कोई हंसेगा नहीं. सरकारी दफ्तरों में 'लाफिंग बुद्धा' से लेकर गांधी और अन्य महापुरुषों की जितनी भी मुस्कराती तस्वीरें हैं उन्हें अगले आदेशों तक के लिए हटा दिया जाए. रातोंरात राज्य भर में होर्डिंग के साथ दुखी राजा की आदमकद तस्वीरें लग गईं. राजा ने एलान किया कि जब तक राहत में मिली केंद्र की मदद की एक-एक पाई बची है, तब तक वह चैन की सांस नहीं लेंगे. उनकी इस प्रतिज्ञा को सुनते हुए सभी कलक्टरों, इंजीनियरों, अफसरों ने कसम खाई कि पैसा खर्च होने तक चैन से नहीं बैठेंगे.
दुखी राजा के दुख के विज्ञापन जब अख़बारों में छपे तो अख़बार भी दुख से भर गए. इधर राजा का दुख बढ़ता, उधर अखबारों में आपदा का विज्ञापन बढ़ जाता. टीवी चैनलों से लेकर अखबारों तक हर जगह राजा का दुख बोल रहा था. राजा की तस्वीरें छापकर और दिखाकर चैनल और अख़बार धन्य-धन्य हो रहे थे. एक दिन राहत का पैसा खत्म हो गया और फिर राजा ने चैन की सांस ली. उस दिन राजा चैन से सोया. बहुत दिनों बाद जनता ने राजा के खर्राटे सुने और जब उसे इत्मीनान हो गया कि राजा सो गया है तब जाकर जनता ने चैन की सांस ली. राज्य की जनता समझदार थी और जानती थी कि जागता हुआ राजा राजकीय आपदा है.
साभार : मनु पंवार — with Rajiv Nayan Bahuguna and 19 others.
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