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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Tuesday, June 2, 2015

आदिवासियों के हालात गुलामों जैसे हो जाएंगे

आदिवासियों के हालात गुलामों जैसे हो जाएंगे

रांची। कोल्हान प्रमंडल की बहुद्देश्यीय ईचा-खरकई बांध परियोजना के मूर्त रूप ले लेने से आदिवासियों के हालात गुलामों जैसे हो जाएंगे। अपने ही राज्य में वे परदेशी हो जाएंगे। बांध निर्माण के नफा-नुकसान का आकलन के लिए विधायक चंपई सोरेन की अध्यक्षता में गठित उप समिति ने इस आशय की रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है।
बांध निर्माण से प्रभावित 124 गांवों के लगभग 90 हजार ग्रामीणों की भावना का प्रतिनिधित्व करने वाली इस रिपोर्ट में उप समिति ने जनहित में बांध निर्माण का कार्य अविलंब बंद करने की अनुशंसा की है। उप समिति ने रिपोर्ट में कहा है कि ग्रामीणों ने सरकार से अब तक एक रुपये का मुआवजा नहीं लिया है और न ही भविष्य में लेने की कोई गुंजाइश है।
विस्थापन की स्थिति में दशकों से एक जगह आपसी मेल-मिलाप से रहते आ रहे जनजातीय समुदाय के लोग अपनी संस्कृति खो बैठेंगे और उनका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। रिपोर्ट के अनुसार बांध के स्थापना काल (1979) से ही इस परियोजना का विरोध होता आया है। राष्ट्रपति पदक से सम्मानित भूतपूर्व सैनिक गंगा राम कलुंडिया इसी आंदोलन की भेंट चढ़ गए। पुलिस ने उन्हें उग्रवादी की संज्ञा देकर मार डाला था। आज तक आरोपियों को सजा नहीं दी गई।
विधायक दीपक बिरूवा और गीता कोड़ा की सदस्यता वाली इस उप समिति ने सोसाहातू, तेरगो, मझगांव, तांतनगर, नीमडीह जैसे दर्जनों गांवों का दौरा कर अपनी रिपोर्ट सौंपी है। उप समिति का मंतव्य है कि बल का प्रयोग कर आदिवासियों को बेदखल करने की कोशिश की जा रही है। अगर तत्काल कारगर कदम नहीं उठाए गए तो अपना कहने को उनके पास कुछ नहीं बचेगा।
अनुसूचित क्षेत्रों में गैर आदिवासी, राष्ट्रीय एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों आदि को भूखंड पर स्वामित्व नहीं दिए जाने के तमाम कानूनों का खुलकर उल्लंघन हो रहा है। इससे जनजातियों की अस्मिता एवं अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। उप समिति ने अनुशंसा की है कि परियोजना के लिए अनधिकृत रूप से अधिग्रहीत कृषि भूमि, धार्मिक स्थल, कब्रिस्तान, नदी आदि से आधिपत्य हटाते हुए रैयतों को उनकी भूमि वापस दिलाई जाए

Dalit Adivasi Dunia's photo.

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