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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Wednesday, June 3, 2015

संघ की दो-मुंही बाते और बाबासाहब और उनके अनुयायि ..

संघ की दो-मुंही बाते और बाबासाहब और उनके अनुयायि ..

= डी. एस. पाटील, नागपुर.

करोडों वंचित लोगों की जिंदगी मे क्रांति लाने का श्रेय भारतरत्न, संविधान के शिल्पि डॉ. बाबासाहब आंबेडकर को ही जाता है. उनकि 125 वे जयंती वर्ष को धुमधाम से मनाने का पहले कांग्रेस ने ऐलान किया तो संघ के कान खडे हो गए और कुछ ही दिनों मे संघी मोदी सरकारी घोषणा हो गई की सरकार भी इसे मनाएंगी.

बात तो अच्छि है, और यह सच है कि किसी भी महापुरुष को किसी समुदाय, राजनैतिक पार्टी या सरकार की जागीर नही माना जा सकता. वे जो चाहे उनके लिए महान ही है.

पर रा.स्वं.संघ तो कभी बाबासाहाब को मानता ही नही था. इसकि वजह भी है. आरएसएस चार्तुवर्ण की वकालत करता है तो बाबासाहाब समानता का. ऐसे मे संघ और बाबासाहाब कभी भी एक साथ नही चल सकते है, यह निर्विवाद सत्य है. फिर संघ की क्या मजबूरी है कि वह जयंती वर्ष मनाने के लिए अपनी सरकार को कह रही है.

फेसबुक के कई बुद्धिजीवी मित्र इस बात से भलिभांती परिचित है. फिर भी जो नही है, उन्हे यह बात बताना आवश्यक हो जाता है.

सवाल है सत्ता का. कुछ ही महिनों के बाद बिहार मे चुनाव होने वाले है. और एक साल बीत जाने के बाद भी मोदी सरकार "अच्छे दिन" लाने मे सफल नही हो पाई है. ऐसे मे सामान्य लोगों से वोट पाना हो तो उनके आराध्यों को अपनाना शुरु कर देना होता है. वंचितो के मसिहा डॉ. आंबेडकर को भी इसी रणनिति के तहत संघ अपना रहा है. अब यह आंबेडकरी जनता को समझना चाहिए कि आज तक कांग्रेस ने जिस तरह उन्हे अपनाने का विरोधाभास पैदा किया और सत्ता पर कायम रहते रही है, ठिक उसी तरह संघी भारतीय जनता पार्टी भी कर रही है. एक बार सत्ता मे आने की देर है, फिर वही फासीवादी चाले चली जाएंगी.

हाल ही मे आई.आई.टी.- मद्रास के छात्रों द्वारा चलाए जाने वाले "आंबेडकर-पेरियार स्टडी सर्कल" को प्रतिबंधित कर दिया गया. यह संघ, भाजपा और मोदी का सही रुप है. मिडिया ने जब तक भाजपा और संघ का साथ दिया तब तक मिडिया को खुब सराहा गया. पर जैसे ही मोदी सरकार बहुमत से सत्ता मे आई, इसी मिडिया को तुरंत ही आईना दिखा दिया गया. सिधे शब्दो मे कहा जाए तो धमकाया गया कि क्यों न मिडिया पर सरकारी अंकुश लगा दिया जाए ?

ऐसा ही कुछ एन.जी.ओ. के साथ भी हुआ. चुंकि एन.जी.ओ. सरकारी नियंत्रण से बाहर होते है और वे अपने कार्य स्वतंत्र रुप से करते है. उनके द्वारा संघ, भारतीय जनता पार्टी तथा मोदी के विरोध मे कोई सच्चाई, शिकायत, रिपोर्ट आदि ना होने पाए, इसके लिए उन्हे भी धमकाया गया.

अब सरकार तो माय-बाप होती है. यानी की सर्वेसर्वा. ऐसे मे किसी तिसलावाड को झुंठे आरोपो मे दो-चार साल जेल की हवा खिलाना कोई बडी बात नही होती है. यही बात मिडिया के लिए भी लागु है.

"आंबेडकर-पेरियार स्टडी सर्कल" भी एक स्वायत्त संगठन है. फिर ऐसा क्या हुआ कि एका-एक ही इस पर सरकार द्वारा बंदी लाई गई. एक तरफ बाबासाहब का जयंती वर्ष मनाने की घोषणा करने वाली संघी-मोदी सरकार दुसरी तरफ उनके अनुयायियों पर ऐसा अत्याचार क्यों कर रही है? वह भी एक मानव संसाधन विकास मंत्रालय को मिली गुमनाम शिकायत के बदले में.

इस सर्कल के खिलाफ शिकायत यह थी कि उसने आई.आई.टी.-एम के दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया है. इस झटके को नरम करने के लिए यह भी जोडा गया कि यह प्रतिबंध अस्थाई है और सर्कल को छात्रों की प्रतिनिधि संस्था के सामने अपनी बात रखने का मौका दिया जाएगा तथा उसका निर्णय अंतिम होगा.

कोई भी इसके संदेश को अनसुना नही कर सकता है. जयंती वर्ष मनाने का आवरण पहनने वाली संघी सरकार बाबासाहब को मानने वाले युवाओं को सजा दे रही है. क्योंकि वे अपने विचारों और आदर्शों के प्रति सच्चे है. यह विरोधाभास संघ की कार्यशैली की विशिष्टता है. गुमनाम शिकायत को औजार बनाकर अपने राजनीतिक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए यह बिल्कुल सटीक है और फुसफुसाहट के माध्यम से दुष्प्रचार फैलाने की संघ की शैली का प्रतीक है.

आई.आई.टी., मद्रास कोई साधारण संस्थान नही है. 1959 मे इसे जर्मनी के सहयोग से स्थापित किया गया था. यह सुपर कम्प्युटिंग के सबसे महत्वपूर्ण केंद्रो मे से एक है. सुचना प्राद्योगिकी मे व्यापार मे इसके छात्र दुनिया मे सबसे सामने होते है. इसे अकादमिक उत्कृष्टता के लिए जाना जाता है और इसकि अकादमिक स्वंतंत्रता इसके रचनात्मक कार्यों की जड मे है. न कि संघ जैसी विध्वंसक कार्यो मे. इसके अनेक स्टडी सर्कल है और वे न तो संस्थान द्वारा वित्तपोषित है, न ही उन्हे किसी तरह का कोई अनुदान ही मिलता है.

फिर वे कौनसे दिशा-निर्देश है, जिसका उन्होंने उल्लंघन किया है? क्या यह कि उन्होंने अपने लेटरहेड और फेसबुक पेज पर "आईआईटी मद्रास" लिखने के लिए अनुमति हासिल नही की थी? यदि आईआईटी मद्रास के छात्र अपने स्टडी सर्कल के लिए उसके नाम का उपयोग नही करेंगे तो उनके पास और क्या विकल्प है?

प्रतिबंध का वास्तविक उद्देश्य राजनीतिक है. समस्या संस्थान के नाम के उपयोग मे नही है. सरकार और संघ के लिए समस्या उन विचारों मे निहित है जिनका यह आंबेडकर-पेरियार स्टडी सर्कल प्रचार-प्रसार कर रहे है. अगर यही स्टडी सर्कल यदि संघ या मोदी सरकार की प्रशंसा करता तो निश्चितही कोई भी गुमनाम शिकायत नही आती और न ही दिशा-निर्देशों के उल्लंघन का कोई सवाल ही उठता. फिर प्रतिबंध का तो कोई काम ही नही था.

भारतीय संविधान द्वारा पोषित वैचारिक स्वतंत्रता के अधिकार का यह खुला उल्लंघन है, जो कर भी कोई और नही रहा है तो खुद सरकार ही कर रही है. आंबेडकर की कल्पनाओं के भारत और संघ के भारत मे बहुत विषमता है फिर भी यह कहा जाना कि आंबेडकर का 125 वा जयंती वर्ष हम धुमधाम से मनाएंगे, बेशर्मि की हद है.

इतने से संघ, भारतीय जनता पार्टी और मोदी साहाब की कथनी और करनी की बात बहुतों के समझ मे नही आई हो, पर जानने वाले तो जान ही गए है.

= डी. एस. पाटील, नागपुर.


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