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Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Tuesday, June 2, 2015

Janvadi Lekhak Sangh India · अगर आपको NBT/नेशनल बुक ट्रस्ट के नए अध्यक्ष का नाम नहीं मालूम तो जान लीजिये. ये हैं बलदेव भाई शर्मा. RSS के प्रचारक रहे. किताब लिखने जैसी कुटेव के कभी शिकार नहीं हुए. अब इनके अभिभावकत्व में किताबों को सुधारा जा रहा है.... NBT में नया क्या कुछ हो रहा है भाजपा सरकार की देख-रेख में, इस पर राकेश तिवारी की उम्दा लंगर (ऐंकर) स्टोरी.

 संपादक बदल जाने से शंका हो रही थी कि कहीं अपना जनसत्ता  तेवर न बदल दें।नये कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज से परिचय नहीं है और न उनके साथ काम क्या है।फिर संघ परिवार का जो शिकंजा कसता जा रहा है मीडिया पर,हम कहिये कि सांसत मेंं थे कि सालभर और नौकरी भी करनी है और हम खामोशी से नौकरी करने वाले जीव भी नहीं है।

पसंद नापसंद हमारी साफ साफ है।फिरभी
अपने नये संपादक के कामकाज पर इतनी जल्दी कोई राय हमारी बनी नहीं है और न हमारी हैसियत के मुताबिक उनसे सीधे बात होने की संभावना है।

माननीय प्रभाष जोशी के उनके कार्यकाल के दौरान ही हमने निर्मम सार्वजनिक आलोचना बार बार की है और जोशी जी से संवाद का सिलसिला तब तक नहीं तोड़ा जबतक न कि शेखऱ गुप्ता सर्वशक्तिमान ईश्वर के बराबर हो गये।

राहुल देव से जनसत्ता को रिलांच करने के बारे में हम सबकी बातें होती रही है।राहुल देव की विदाई के बाद जनसत्ता में भी संपादकीय लोकतंत्र का अवसान हो गया और हमारी किसी संपादक से फिर अखबार के कामकाज के बारे में कोई बात नहीं हुई क्योंकि कुल माहौल यही था कि जो शेखर गुप्ता कहें सही है।

ओम थानवी में गट्स जरुर होगा वरना वे पंजाब में रक्तनदियों के बीच खाड़कुओं के फतवे के मुकाबले रीढ़ सीधी करके खड़े नहीं हो पाते।जनसत्ता को जनसत्ता बनाये रखने में उनकी भूमिका की हमने मित्रों की चिढ़ के बावजूद हमेशा प्रशंसा की है हालांकि आंतरिक संपादकीय लोकतंत्र की उनने भी कोई परवाह नहीं की और हम जैसे नाचीज लोगों को औकात में रखने की राजस्थानी कला कौशल का उन्होंने जलवा भी खूब दिखाया।

जनसत्ता के संपादक हो या और किसी अखबार का संपादक,संपादक की कुर्सी अब ज्वालामुखी समान है और संपादक न होते हुए भी वह आंच हमारे दिलो दिमाग कोभी अमूमन स्पर्श करता ही रहता है।

हमें बखूब अंदाजा है कि नीतियां कहां से बनती बिगड़ती हैं और इसलिए हम किसी व्यक्ति को इस अराजक मुक्त बाजार में जिम्मेदार ठहरा नहीं सकते और इसीलिए हम ससुरी इसी मुक्तबाजारी अर्थव्यवस्था का काम तमाम करने  पर तुले हैं।

सविता से अब रोज रोज झगड़ा हो रहा है कि साल भर बाद जब छत नहीं होगी तो फिर क्या होगा,यह सोच सोच वह खुदै परेशान हैं और हमें भी डगमगाने लगी है।हम भइया बिंदास जीने वाले हैं और सारी जहां को अपना घर मानते हैंं,इसलिए परवाह नहींय़आपमें से किसी के घर में ही घुस जाउंगा पर कटोरा लेकर चलने की इस फ्रीस्टाइल की हमारी विरासत से सविता को खासा ऐतराज है।

बहरहाल,हमारा जो हश्र हो,उससे ज्यादा हमें अपने अखबार की परवाह है और हम चाहते हैं कि हर कीमत पर जनसत्ता जनसत्ता बना रहे।

नये संपादक आने के बाद समाचारों को बेहतर ढंग से पेश करने की कोशिशें हो रही है,जो जनसत्ता पढ़ रहे हैं,उन्हें ऐसा महसूस हो रहा होगा।अपनी सीमाबद्धताओं के बावजूद जनसत्ता टीम अपनी ओर से हर कोशिश जरुर करती है,इसलिए अपनी पीठ ठोंकने का मौका अब नहीं है।
हम चूंकि संपादक नहीं रहे हैं तो अपनी उपलब्धियों का बकान भी जाहिर है कि रिटायर होने के बाद करने का मौका कोई हमारे लिए नहीं है।

हमें अभी दूसरे अहम मुद्दों पर लिखना था,इसलिए रात को ही पढ़ा हुआ राकेश की रपट पर लिखने का इरादा था नहीं।

जनवादी लेखक संघ का यह पोस्ट साझा करते हुए आंखरों में हलचल हो गयी तनिको तो हमका माफी दे दीजिये।

पहले पेज की इस रपट से साफ है कि फिलहाल जनसत्ता जनसत्ता बना हुआ है।राकेश डीएसबी नैनीताल से हमारा पुरानका दोस्त है और हमारे दोस्त तमाम ससुरे ऐसे हैं कि उनकी तारीफ करोतो उलटे काटने को दौड़ते हैं।नैनीताल के दोस्तों से खासा डरना पड़ता है क्योंकि वे डाट से बैरंग बस में बैठाकर सीधे मैदान वापस करना भी खूब जानते हैं।

पलाश विश्वास

बहरहाल जनवादी लेखक संघ का पोस्ट और राकेश बाबू का आलेख पेश हैः


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अगर आपको NBT/नेशनल बुक ट्रस्ट के नए अध्यक्ष का नाम नहीं मालूम तो जान लीजिये. ये हैं बलदेव भाई शर्मा. RSS के प्रचारक रहे. किताब लिखने जैसी कुटेव के कभी शिकार नहीं हुए. अब इनके अभिभावकत्व में किताबों को सुधारा जा रहा है.... NBT में नया क्या कुछ हो रहा है भाजपा सरकार की देख-रेख में, इस पर राकेश तिवारी की उम्दा लंगर (ऐंकर) स्टोरी.

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